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प्रतिध्वनि
वैसी ही भर्भराती आवाज गूंज उठी-“कायर ! डरपोक ! कहाँ छिपा है ?"
राजकुमार के पैर डगमगा उठे, छाती धड़कने लग गई, उसके हाथ में कोई शस्त्र भी नहीं था, और अब निश्चय हो गया कि अवश्य ही कोई उसकी जान लेने के लिए छिपा बैठा है। उसने छाती को हाथ से दबाया और एक बार साहस बटोर कर खूब जोर म चिल्लाया- 'मैं मार डालंगा।"
पहाड़ियों से प्रतिध्वनि गंज उठी-'मैं मार डालूंगा।' गजकुमार पसीने से तरबतर हो गया, सिर पर पांव रखकर दौड़ा आश्रम की ओर । उसके पैरों की प्रतिध्वनि ही उसे लग रही थी, जैसे वह दुष्ट उसका पीछा कर रहा है, पर मुड़कर देखने की हिम्मत उसमें नहीं रही। वह हांफता-हांफता आश्रम के द्वार पर पहुंचा और मूर्छा खाकर गिर पड़ा। ___आचार्य दौड़कर आये । राजकुमार का सिर गोदी में लेकर जल छिड़का। राजकुमार होश में आया तो उसने सब बात सुनाई। __ मानव-मन के पारखी आचार्य ने मुक्तहास के साथ कहा-"वत्स ! तुम उससे कैसे डर गये ? वह तो बहत ही भला आदमी है, किसी चींटी को भी कष्ट नहीं, देता, बच्चों से तो वह बहुत ही प्यार करता है । तुम कल फिर वहीं जाना और जैसा मैं कहूँ वैसा पुकारना ।"
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