Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
मोक्षोपदः पश्चाशकर
।१९॥
विक्खंभो होइ एयाणं ॥८॥ ईसाणदिसाईसुं एयाणं अंतरेसु असुवि । अद्वैव विमाणाई तेसिं नामाई एयाई ॥ ६॥ अच्चिच्च अच्चिमालि य वयरोचण नामयं च बंभकरं। चंदाभं सुक्काभं सूराभं सुप्पइट्टाभं ॥ १० ॥ तेसु मुरसंख सगसय चउदसहस्स १४००० सगसहस्स७ जुयलतिगे। सेसतिगे नवसय ते सव्वे ख०ख०२६ दु२दुरसंखा २२६०० ॥ ११॥ अडसागरटिईया लोगंतिय जीयकप्पिया देवा । सत्तटुभवग्गहणा इमेहिं नामेहि गिज्झति ॥ १२ ॥ सारस्सयमाइच्चा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा अग्गिच्चा मझि रिहा य ।। १३ ॥ एए देवनिकाया जिणवयसमए समागया भत्ति । भत्तिभरनिब्भरंगा धुणंति एयाहि वाणीहिं ॥१४॥ जय नंदा जय भद्दा खत्तियवरवसभ! जय जय जिणंद । सव्वजगजीवहिययं भयवं तित्थं पवत्तेह ॥१५॥ तत्तो वयगहणमणा जिणनाहा तिगचउक्कमाईसुं । वरवरियं घोसाविय दिति य संवच्छरं दाणं ॥ १६ ॥ दिणि दिणि दिति जिणा कणगकोडि अड लक्ख पायरासं जा । तं कोडितिसय अडसी असीइ लक्खा हवइ वरिसे ( ३८८ क्रोड-८०-लाख ) ॥१७॥ इय दाउं गहियवया विहियतवा लद्धकेवला सिद्धा । जे अरिहंता ते मज्म दितु जयसेहरं ठाणं ॥ १८॥ इति कृष्णराजीविमानविचारस्तवनम् ।। १२ ।।
॥ अथ मोक्षोपदेशपञ्चाशकम् ।। १३ ॥ शुद्धध्यानलवित्रण, समूलः क्लेशपांदपः । विलूनो येन स सदा, जिनो जीयाज्जगत्पतिः ॥ १॥ समस्त्यस्तसुखो मोहमूलो भवविषद्रुमः । विलीनातिचिरालीनवासनाजललालितः ।। २ ॥ आधयो विविधावस्था, व्याधयश्चाधमाधमाः । जन्ममृत्युजराश्चास्य, स्वं स्वरूप जिनैर्मतम् ॥ ३ ॥ दुर्भगत्वदरिद्रत्वविरूपत्वपुरस्सराः । विडम्बनाः फलं प्राहुर्विडम्बितजगज्जनाः ॥ ४ ॥ चतस्रो गतयः शाखा, नानादुःखफलाकुलाः । तासु यहुःखमाख्यातं, तदिदानी निरूप्यते ॥ ५॥ पंचेन्द्रियवधासक्ता, मांसाशनकृतादराः। जायन्ते नरके जीवा, बह्वा
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