Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण मुच्चयः
॥१०॥
जिय ! पमाइगं नाउं । किं न रुयंतो विरमसि सत्तीए उज्जम काउं? ॥३१॥ धम्मं परमरहस्सं रे जिय ! संवेगचायणासारं । चूरिय जुयलं आत्मानुझायसु जइ अप्पा वेरिओ नेव ॥ ३२ ॥ धम्मुज्जमाम सत्ती जइ जिय! तुह नस्थि काइ किर ताव । अप्पाणं झूरंतो मा विरमसु तहवि
शासन४० कइयावि ॥ ३३ ॥ एएणवि बीएणं कयावि धम्मुज्जमोऽवि तुह होज्जा । अन्नह दुहसयबुडो पायालं जासि सत्तमयं ।। ३४ ॥ कीयं आहा| कम्मं नीयावासो गिहीसु पडिबंधो । अमिओ परिग्गहो तह हुंति जईणं इमे दोसा ॥ ३५॥ एक्ककोविहु गरओ मिलिया सव्वेऽवि जइ पुणो हुंति । अहंसणेण तेर्सि साहू गं मह नमोकारो ॥ ३६ ॥ नामेणं चिय साहू साहूसु न ताण होइ अवयारो । किं परविकत्थणेणं? अहवा चिंतेस अप्पाणं ॥ ३७॥ अइयंपिं एरिसो अह सुदूं मग्गं च इह परूवंतो । संविग्गपक्खियत्ता धनं मन्नामि अप्पाणं ॥ ३८॥ एवं ठियस्सर | सययं मम मणभावस्स पत्तियइ को वा? । पच्चाइएण किं वा? अप्पच्चिय सक्खिओ एत्थ ॥ ३९ ।। जं पुण वायाए च्चिय भणामि काएण
किंपि न करेमि । तत्थस्थि गरुयदुक्खं मणमंदिरसाठय मज्झ ॥ ४०॥ सुद्धालोयणदाणं काउं मितिं च सबसत्तेसुं। अप्पाणं गरिहंतो MI भावेमु अहं कया तत्तं ।। ४१ ॥ एग चिय मह सल्लइ जन्न सहाए लहामि मणइढे । एवं झायंतस्स उ को जाणइ किंपि होहित्ति ॥ ४२ ॥
आणंदं दाऊणं समग्गसंघस्स गहियआसीसो । अप्पाणं भावेतो विहरेमु जया तया अहयं ॥ ४३ ॥ अह कहवि जाइ दियहं रत्ती न हु जाइ
अप्पचिंताए । थोवजले मच्छस्सव तल्लोवल्लि कुणतस्स ॥ ४४ ॥ चेयहु ! चेयहु !! चेयहु !!! हं हो मूढमइ ! , कहिय कहाणिय सव्वप्पयारेहिं | तुम्ह मइ । हियडइ ताविय पुण पुण सोढे सहु धराण, परित न कोणवि होसइ तहिं पत्तइ मरणि ॥ ४५ ॥ हियडइ रंगु न जाह तहं सउं बकुसु पडिहाइ । जइ पुण केवइं रंगु तउ नयणिहिं नीरु न माइं ॥ ४६ ॥ जलमसमं कामीणं नीरसलोयाण तुसवुससमाणं । विरयाणं अमि- ॥१० यसमं एवं सब्बांपे जं भणियं ॥४७॥ गंतव्वं कत्थ मए कहि एसो वंदिणो य जियेलोआ। कह माइसयणविहवो इय झूरसि हा !
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