Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
॥११४॥
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हवह तुभे ॥ ११ ॥ दारुमइउब्व होउं पायं अहुणा जगो सुणइ धम्मं । जेण न भावणइंध दीसह केणावि अंगेणं ॥ १२ ॥ धाउसु सुवन्नधाऊ संवेगरसोव्व दीसए थोवो | परदेद्देवि निविट्ठो तेण न दिट्ठो पिओ कस्स ? ॥ १३ ॥ धाऊसु कणय थोवं परदेहठियंपि जणइ जह हरिसं । सव्वरसेसु तहच्चिय संवेयरसोऽवि पुण दुलहो ||१४|| संवेगभावणाए रसचव्वणमणुरवणंपि कुणमाणो । पावेमि जं न तत्ति मुत्तिसुहं तं मह इहंपि ॥ १५ ॥ इय वयणमणुसरंती किरियाविहु जह मणं सुहावेइ । तिहुयणसिरीवि ता नणु करपंकयगोयरं पत्ता ॥ १६ ॥ निद्दाघुम्मिरहियओ मन्ने लोओ सुणेइ धम्मझुाणं । जेणुज्झियसंसारो पव्वज्जं नो पवज्जेइ ॥ १७ ॥ गहियाइवि दिखाए अज्जवि मन्नामि तं तहच्चेव । जं उल्लसंतचित्तो नियसत्तिं नो तुलइ धम्मे ॥ १८ ॥ सेविज्जतं निच्चं सक्करपमुहंपि जणइ उत्र्वेयं । वन्नसरेणं सव्वं धम्मं | मुण सुहजगयं ॥ १९ ॥ निरवच्चाविहु धूया दूवविहवा सवत्तिसंजुत्ता । गयसीला मयपुत्ता धिरत्थु जा एरिसी महिला ॥ २० ॥ हा दिव्त्र ! दिव्व! तुमए ईसे महिलाइ किं कओ जम्मो ? । किं न विलीणा गन्भे जं न अखंडो कओ धम्मो ॥ २१ ॥ भणवि भणावि जो इय धम्मु न कान धरोस । जीवि तुट्टंति धणुह जिम्व, बहु पच्छा झूरेसि ॥ २२ ॥ एउ तहारु एउ महु, एउ करंतु म अच्छि । समहि पलोयणि गुणनिह, जइ इच्छहि विलच्छि ॥ २३ ॥ मणवयणह संवाओ तुहं, जइ जिय ! धमि करेसि। ता मह माण बद्धावणडं, अज्जइ जणु रंजेसि ॥ २४ ॥ एयं झायंतस्स उ पइदियहं जस्स बोलए जम्मो । जिणवयणसवणरत्तो धन्नाण सिरोगणी सोडवि || २५ || वायावित्यरु मत करहु मा बहुत्तरु देहु । जीविय जम्मण गुरुतणड, लहु लहु लाइ उ लेहु ॥ २६ ॥ जं बालसुतकुंपली जोवणु विहसिउ फुल्लु । जाइ मिलाणी बुड्डाणु कइ जिय ! विसइहिं भुल्लु ? ।। २७ ।। को को न गणेइ मए सपणे अन्ने य संखयं काउं । मूढो न गणेइ पुणो | अप्पाणं तत्थ पविसंतं ॥ २८ ॥ अवियारो बालत्तं होइ वियारो य जुव्वणं पुरिसे। जो उ विवेयपवासो सो बुडत्तं अहन्नाणं ॥ २९ ॥
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प्राकृते संबंगामृतपद्धतिः ४७
॥११४॥

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