Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
॥११॥
आ & नहु गुरुओ चारुविविहवत्यहि । जइ पुण गुणेहिं गरुओ ता गरुयं मुणसु अप्पाणं ।। ८५ ॥ मा लंघसु ववहारं जइ अप्पा भाविओ फुडं ले प्राकृते सं
धम्मे | जम्हा लोयविरुद्धं धम्मपराविहु परिहरंति ॥ ८६ ॥ दुलहपि वयं घेत्तुं विज्जो नेमित्तिओ य जोइसिओ । जइ होसि गिहत्थेसुं धी | वेगामृतपधी जम्मो तया तुज्झ ॥ ८७ ॥ जोइसिओ नेमित्ती वेज्जो तह मंतिओ य साउणिओ। जो होज्ज गिहासु जई हा तेणं हारिओ जम्मो द्धतिः ४७ ॥ ८८ ॥ सूईवेहसमाणे अववातपए कयावि कहजुत्तो । तुरियकसायवसट्टा मुसलाइ खिवंति नामजई ।। ८९॥ आवडिए मालिन्ने कयावि पुण दंसणस्स अइगुरुए । एयपि पजंतो पभावगो वइरसामिव्व ॥ ९॥ मह परेहि किज्जइ पायपणामो न तेण तूसामि । अप्पाण| मप्पणच्चिय पणमेसु जया तया तोसो ॥ ९१ ॥ तइया वद्धावयण रससिद्धीविय महंतया जाया | कयकिच्चं मन्नतो अमियरसेणं च सित्तोऽहं
॥ ९२ ॥ किं लज्जेसि परेसिं लज्जह नियईदियाण पंचण्हं । वज्जंतो य अकज्जं सज्जो सज्जोऽसि जइ सुहेसु ।। ९३ ।। रयगाओ गुरुकम्मा जे साहू सोहयति वत्थाई । सरिसबमेरुवमाण ताणं सङ्केहि विवरीयं ॥ ९४ ॥ सामायारि मुत्तुं कयविक्कयधंधांम जे पंडिया । किं न ठिया | गिहवासे ते साहू जइ विसीयंता ॥ ९५ ।। पूगीफलपत्ताई भुत्तुं निसि पाणियं धरिय मुहं । घरसियभमीरमुणीण धिरथु पाणे धरंताणं ॥९६॥ * ओगाहिमाइदव्वं निसि धरित्रे भुंजिराण बीयदिणे । मुणिवेसविडंबीणं किं ताणं नामगहणेण ॥ ९७ ॥ ताउ वहंत जि मुणिवरह, कारिवि
आणेहिं भोज्ज | तिहिं मुणिहिवि तत्थ जइ, तो गोमंसितुलिज्ज ।। ९८ ॥ एउ जहहिउ मई कहिउ, मुणिजणु दिक्खि कुणंतु । अवरु कहतह |पुण हवइ, फुडु संसार अणंतु ॥९९॥ जिणमयरहमि जुत्ता दो उसग्गाववाय वरतुरया । संविग्गो जाइ तहिं जाहिं निज्जइ गीयसारहिणा ॥११८॥
॥ १०॥ विहिलइयहिं जइ जिय भमिसि,ता तुह कज्जह सिद्धि | बलिएण विपुण एकलइ, करिसि न चिंतिय सिद्धि ॥ १.१॥बालत्तरूव| जुब्वणधणवंतपि हु खिवंति भूमीए । गयजीव नाऊण पुत्तावि धिरत्थु संसारो ॥ १०२ ॥ अप्पाणमप्पणच्चिय बोहेउं भावगम्भवयणहि ।
RECARबर
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