Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
॥११७॥
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| पियारिहिं जोइ पउ, मूढ कि वेयहि ताव ॥ ६७ ।। कर जोडिवि अब्भत्थिया, संघह यह हियकार | कान्नं चहुट्टिय चोयणहु, महु दिज्जउहु सइ
मप्राकृते संवार ॥ ६८ ॥ तुहुवि न चेयहिं रे कहग, जइ पुच्छहि परमत्थु । एउ सउ सव्वह नीरिय, चरहु जु रुच्चइ वत्थु ॥ ६९॥ इय
& वेगामृतपसंसारह दाविउ, दीसइ निच्चु बहंतु । परजिउ कोइ न उब्बियइ, तर पुणु जणइ महंतु ॥ ७० ॥ निरुचु विहाणइ मूढ ! जिय, मई
दतिः ४७ तह दिन्निय सिक्ख | अप्पं परुवि न रंजियं, इंवई सेवियदिक्ख ॥ ७१॥ हूअ वलक्खी जीहडी, महु जपिर सिवमग्गु । किं मह कण्णु किं | जणहु, कसुवि ज किंपि न लग्गु ।। ७२ । भारियकम्मउ जीव ! तुहूं, जइ बुज्झइ ता बुझ । सयलु कुटुंबं खाइसइ, मत्थइ पडिसइ तुज्झ
७३ ॥ ( अन्यकृतेयं) । नीयचउक्किहिं मइ भणिओ, धम्मि न लग्गिउ भद्द। घोररउद्दिहि ठाणिं गओ, करुण म काहिसि सद्द ॥७४॥ विउसह अंचलु दक्खियइ, एहुव ए विणु मग्गु । फुडवि पयंपिउ धम्मु मइ, पुणु कणियावे न लग्गु ।। ७५ ॥ हा हुलि करिवि मिलेइ जणु, देउलि जोयइ कोडु । जिम्ब उरकुडइ तहिं न किं, तेम्ब कुटुंबिनि कोडु ॥ ७६ ॥ तियलोएऽवि न नज्जइ दुल्लहलंभ कयाणयं अन्नं । संवेगं मुत्तणं नऽन्नो जम्हा सिवोवाओ ॥ ७७ ।। किं सोया गुरुकम्मो किं वा भणिरो अहं अणाइज्जो । किं वाऽहमसमयन्नू किं परिवाओ न दइवस्स ॥ ७८ ॥ एयपि हु सोऊणं संवेगामयरसं पियंतोऽवि । जं न जणो अंसुजलं मेल्लंतो उज्जमइ धम्मे ॥ ७९ ॥ युग्मं ॥ निययमणेणं तं | जिय! पंडियवग्गं तणं व मन्नेति । उम्मग्गगामिओ तह जह सिक्खाए पुण न जोग्गो ॥ ८० ।। जइ सच्चं चिय भीओ भवाउ हिययट्ठियंपि ता भाव । असुजलेणं दंसह कइयाविहु जइ न निच्चंपि ॥ ८१ ॥ आयरणंपिहु दंसह पइदियह गुणगणेहिं वद्दुतं । अन्नह पलावयमत्तं एवं सयलंपि मन्नेमि ॥ ८२ ॥ धम्मपरस्सवि चिंताउरस्स दिन्नोऽवि धम्मउवएसो । सुन्नघरे दीवो इव सुनिष्फलो तस्स नायव्वो ॥ ८३ ॥ अणुवट्ठियस्स धर्म मा हु कहिज्जाहि सुट्ठवि पियस्स । विच्छार्य होइ मुहं विज्झायरिंग धर्मतस्स ॥८४॥ ( अन्यकृतेयं ) गरुयासणे न गरुओ
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