Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 119
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण समुच्चयः ॥११५॥ hế độ गाहं पढइ वियड्डो पुच्छिज्जंतो न याणई अत्थं । कह दुद्धं कह दहियं कह महियं कांजिय होई ! ॥३०॥ दुद्धं होइ कुमारी दहियं उम्मत्त-1 प्राकृते संजुव्वणा नारी | मज्झत्था पुण महियं वुड्डा पुण कंजियं होइ ॥३१॥ (अन्यकृतमेतत् गाथाद्वयम् ) कह दुद्धं कह दहियं कह महियं कजियंति वगामृतपरागंधा । हं पुण भणामि महिला सव्वाओ कंजियं चेव ॥३२।। जंमि दिणे इय बुद्धी महिलामुं तुज्झ जीव! किर होही । तंमि दिणे जाणि दतिः ४७ जपु मोक्खाभिमुहो अहं जाओ ॥३३॥ एयाण कए पायं पावं पाविति पाणिणो भुवणे । तह सल्लंपिव तम्हा उद्धर एयासु इयबुद्धिं ॥३४॥ विज्जुझुलुक्का मंनिहह, एकह जम्म हरेसि । चिंतहि किंपि न अप्पहिउ, बहु पच्छा झूरेसि ॥ ३५ ॥ नाणं विणओ किरिया पियवयणं उज्जमो खमा सीलं । एयाई जस्स निचं सकयत्थं जीवियं तस्स ॥३६॥ निद्दा वत्ता तत्ती भवणं मित्ताणि को उगं जस्स । अइपन्नस्सवि विज्जा सिविणेऽवि न संमुहा तस्स ॥ ३७ ॥ उज्जमतुरयारूढो पइदिणपढणं कसं व जो एइ । पावइ जडोऽवि सो इह पंडिच्चपुरं जयपसिद्धं ॥ ३८॥ सव्वरसाणं लवणं धम्मस्स पभावणा जहा सारं । तह गुरुभत्ति मत्तं नह अन्नं तिहयणे सारं ॥ ३९॥जिणसासणनवणीयं धम्म-|| | रहस्सं इमं परं तत्तं | जीवदया गुरुभत्ती परउवयारुत्ति सव्वमयं ॥ ४०॥ सयलोऽवि गुणकलावो अच्चंतमहग्घदुल्लहसरूवो। गयनयणं या वयणंपिव न सोहए सीलपरिमुक्को ।। ४१ ॥ माणिमंतमूलियाहिं मूंढा जंपति इह वसीकरणं । मन्नेऽहं पुण नूर्ण जीहाविन्नाणसंभूयं ।। ४२॥ वत्तालो झंखालो बहुबोल्लो होइ इत्थ जो पुरिसो । उचियपि तस्स वयणं पायं धिप्पड़ न केणावि ॥ ४३ ॥ एयं सोउं कहिउँ अहवा को को | न पंडिओ एत्थ ? | विष्फुरइ तस्स सिक्खा सुकयं परभवकयं जस्स ॥४४॥ इंगु मणु सारहि देहु रहु, इंदियतुरय नभंति । जीउ चडेविणु जाई तहिं, जइ कम्माइ भणंति ॥४५॥ जीव! पराइयतत्तडिय लांबिय नलिय करहिं । घरधंधइ पुग माहियइ अप्पं माणं न धरेहिं ।। ४६॥ ॥११५॥ अज्जह कल्लु व नीयडउ इहजम्मह परजम्मु । इय जाणंतुवि कई करहिं दुग्गइगमणह कम्मु ? ॥४७॥ हुलुहुलु रोइ म अंसुइहि, भवभीर - Các c For Private and Personal Use Only

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