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35
AVM
। प्राकृतसंस्कृतादिभाषामयः श्रीमुनिचन्द्राचार्य वादिदेवसूरि चक्रेश्वरसूरि रत्नसिंहसूरि प्रभृति विरचितः
THAN
६ (एकोनपञ्चाशत्प्रकरणमयः) ५ KIRON प्रकरणसमुच्चयःnts
मुद्रयित्री-मालवदेशीयरत्नपुरीस्था श्रेष्ठि ऋषभदेवजी केशरीमलजी नाम्नी संस्था
मुद्रक:-इन्दोरनगरे जैनबन्धुमुद्रणालयाधिपतिः श्रेष्ठि जुहारमल मिश्रीलाल ओसवाल. वीर संवत् २४४९ विक्रम संवत् १९८०
क्राइस्ट सन् १९२३ प्रतयः ५०० एण्यं
-
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क्रम
प्रकरणनाम
१ संज्ञाप्रकरणं
२ मुखवस्त्रिकाप्रकरणं १३ जीवादिगणितं
४ धनुः पृष्ठगणितं
५ प्रतरप्रमाणं
६ घनगणितं
७ गांगेयभङ्गप्रकरणं
८ बन्धहेतूदयत्रिभङ्गी
९ योगानुष्ठानविधिप्रकरणं
१० प्रतिलेखनाविचारः
अत्र प्रकरण समुच्चये, मुद्रितानां प्रकरणानामानुक्रमः
गाथा. - ?
कर्त्ता क्रम
पृष्ठा.
११
११
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পmr m ১ ও2221
११ देहकुलकं १२ | कृष्णराजीविचारः १३ मोक्षोपदेशपञ्चाशिका १४ जीवोपदेशपञ्चाशिका १५ हितोपदेशपञ्चविंशतीद्वे १६ उपदेशामृतपञ्चविंशतिका पद्मविजयः " विषयानुशासनविंश. ६५ १२ श्रीसागरशिष्यः १८ सामान्यगुणोपदेशकुलकं १९ धर्मोपदेशकुलकं
७
३६
८
१७
३० १४
३२ १६ | विजयविमलः २० | सम्यक्त्वोपायप्रकरणं
५
२८ ३ वर्धमानमूरिः
८
३
प्रकरणनाम
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| गाथा..
पृष्ठा.
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कर्त्ता
२३ १८
१८ १९ जयशेखरः
५१ २२ श्रीमुनिचंद्राचा.
33
५० २५ २५ २८
२५ ३०
२५ ३१
२५ ३३
२५ ३४
२९ ३६
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क्रम
प्रकरणनाम
गाथा. पृष्ठा.
गाथा. पृष्ठा. कर्ता । क्रम-
कत्ता
प्रकरणनाम
प्रकरणनाम
गाथा. पृष्ठा.
को
चक्रेश्वरसूरिः
२२
.
.
.
.
धर्मोपदेशः (शोकवारणं) ३३ | ३८ श्रीमुनिचन्द्राचा. ३१ | पौषधविधिप्रकरणं | उपदेशामृतप्रकरणं
उपधानपोषध. | उपदेशकुलकं
| पदार्थस्थापनापकरणं रत्नत्रयकुलकं
सूक्ष्मार्थसप्ततिप्रकरणं प्रभाते जीवानुशासनं
वसूरयः | चरणकरणसप्ततिप्रकरणं मुनिचन्द्राचार्यस्तुतिः
| सभापञ्चकस्वरूपप्रकरणं | गुरुविरहविलापः
३६ | सूक्ष्मार्थसप्ततिकाटीप्पनं . २८ प्रातःकालिकजिनस्तुतिः सं. ९ ४९ मुनिचन्द्राचायाः ३७ | आत्मतत्त्वचिन्ताभावना सं. | २४ द्वादशव्रतस्वरूपं
|५७५३| वादिदेवसूरयः | ३८ आत्मानुशास्तिपश्चचिशिका सं. २५/ ३० सिद्धान्तसारोद्धारप्रकरणं २१३ ६५/ चक्रेश्वरसूरिः । ३९| आत्मविज्ञप्तिः
| ३०९९
.
रत्नसिंहाः
२९|
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प्रकरण नाम
गाथा. पृष्ठा.
क्रम
प्रकरण नाम
पृष्ठा .
कर्ता
MES moccom
००००० 600
आत्मानुशासनकुलकं ०२ रत्नसिंहाः ४५ उपदेशकुलकं
२६/१११/ रत्नसिंहाः ४१ | आत्माहितचिन्ताकुलक
४६| संवेगामृतपद्धतिः सं. ४२११३|| ४२] मनोनिग्रहभावनाकुलकं
१२२/१२०॥ |गुरुबहुमानकुलकं
४८ संवेगरंगमाला
१५०१२८ ४४ | पर्यन्ताराधनाकुलकं ।१६१
| ४९ वर्षाचतुर्मासीश्राद्धाभिग्रहाः । १२९ सज्जनगण समाददतां प्रकरणसमुच्चयाभिधानमेतं यथार्थनामक ग्रन्थं सहर्षमाविष्क्रियमाणं प्रकृतसंस्थया, प्रकरणरत्नानि चैतदन्तर्गति वैक्रमाब्दीयद्वादशशतीविद्यमानसूरिपुरन्दरौहितानीति सर्वैरादरणीयानि, प्रकरणानां चैतेषां पुस्तकानि क्वचिदेव भाण्डागारे लभ्यानि, दुर्लभत्वादेव चैकेनैव पुस्तकेनास्य मुद्रणं शोधनं च विहितमिति क्षन्तव्याःस्खलनाः, ज्ञापयिष्यन्ति च सुधियो यदि ता द्वितीयावृत्तावुपकरिष्यति, प्रस्तुतानां प्रकरणानां चेत्तयो लप्स्यन्ते यद्वा कश्चिद्विद्यारमणो ज्ञापयिष्यति तासां सत्ता दास्यति च ताः सोपकारं ता अपि आविर्भावयिष्यामः, प्रकरणानां मुखे सुपठत्वं निश्चित्यैतन्मुद्रणप्रयास इति विधायोपयोगं यथार्थ कृतार्थयन्तु कृतिनोऽस्मानित्यर्थयन्ते आनन्दसागराः
विक्रम सं. १९८० कार्तिक शुक्ला. ५
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प्रकरण समुचयः
संज्ञाकुलब मुखवविध प्रकरणे
॥ अर्हद्भ्यो नमः ॥ अथ श्रीप्रकरणसमुच्चयः
॥ अथ संज्ञाकुलकम् ।। १ रुक्खाण जलाहारो १ संकोइणिया भएण संकुचिया २। नियतंतुएहिं वेढई वल्ली रुक्खे परिगहे य ३ ॥ १ ॥ इत्थियपरिरंभेशं कुरुवगतरुणो फलंति मेहूणे ४ । तह कोकनस्स कंदो हुंकारे मुयइ कोहेणं ५॥२॥ माणे झरइ रुयंती ६ छायइ वल्ली फलाई मायाए । लोभे बिल्जपलासा खिवंति मूलं निहाणुवरि ८॥३॥ रयणीए संकोओ कमलाणं होइ लोकसन्नाए । ओहे चइत्सु मग्गं चढंति रुक्खेसु वल्लीश्रो १०॥४॥ ए दस थावरसन्ना सुह १ दुह २ मोहाइ ३ तह दुगुंछा ४ य ॥ सोगे ५ धम्मो ६ एए सोलस सन्ना तसजिएसुं॥५॥
॥ इति संज्ञापकरणम् ।।
॥ अथ मुखवत्रिकास्थापनप्रकरणम् ॥२ मोहतिमिरोहसूर नमिउं वीरं सुआणुसारेणं । साहेमि अमुहपत्ति, सडाणमणुग्गहट्ठाए ॥१॥ इह केइ समयतत्तं अमुणता सावयाण मुहपत्ति । पडिसेहंति जईणं उषगरणमिणंतिकाऊणं ।।२।। एवं च चीवराणं जुज्झति न सावयाण परिहेउं (हाणं)। जम्हा ताणिवि मज्झिमजिणाण उवग| रणभूत्राणि ॥३॥जं च जईवि फुसंतो पाए मुहणतएण पच्छित्तं । पावइ किं पुण सट्टो तंपिवि निअकप्पणामित्तं ॥ ४ ॥ भिन्नविसर्य खु सिं
Aॐॐॐॐॐ
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प्रकरण समुच्चयः
मुखवत्रिक प्रकरणे
SOCTOCALCANOAAAKALA
पच्छित् भणिअमागमे इहरा । दव्वथए वर्सेतो जइब्व दूसिज्ज सोवि ।। ५ अह एगमडिएणं उत्तरसंगेण वसहिमाईसु । पाएण विसइ सदो तम्हा वत्थंचलेणेव ॥६ ।। सामाइगाइ एवंपि संभवइ इमंपि आगमविरुद्धं । आवस्सयचुनीए जं सामाइअविही एवं ॥७॥ सामाइअं करतो सट्टो कुंडलकिरीडमणिबद्धं । तंबोलपुष्फपंगुरणमाइ वोसिरइ सव्वंपि ॥ ८॥ सुब्बइ अ सत्तमंगे उवासगदसासु कुंडकोलिओ। मुत्तण उत्तरिज्जं पडिवन्नो पोसहवयंपि ॥ ६॥ कंपिल्ले सावय कुंडकोलिओ निषअसोगवणिआए । गंतुं ठवइ सिलाए नाममुदंतरिज्जं च ॥१०॥ वीरवरस्स भगवो उवसंपज्जित धम्मपन्नतिं । विहरइ अ जाव सामी समोसढो तत्थ तं समयं ॥ ११ ॥ लट्ठो अ इमीसे कहाइ सो हटुं तुट्टओ हिअए । सेअं खलु महसामी वंदित्ता तह नमंसित्तुं ।।१२ ॥ तत्तो अ पडिनिअत्तस्स पोसह पारिउंति पेहित्ता । जह नाम कामदेवो वच्चइ तह पज्जुवासइ अ ।। १३ ॥ जंपिश्र समए भणि कडसामइओ गुरूण पासंमि । रथहरणमह निसिज्जं मग्गइ सो अह घरंमि ॥ १४ ॥ तो तस्स उवग्गहिअं रयहरणं तस्स असइ पुत्तस्स । अंतेणंति तहिंपिश्र पुत्तं मुहपत्तिा नेा ॥ १५॥ वासत्ताणावरिश्रा निकारणि ठंति कज्जि जयणाए। हत्थत्थंगुलि सन्ना पुतंतरिआ व भासंति ॥१६।। इस आवस्सगगाहामज्झे पढिअस्स पुत्तसहस्स । मुहपत्तिअस्स अत्यो चुन्नीए वन्निो जम्हा ॥ १७ ॥ कण्हस्सट्ठारसमणिसहस्सवंदणगवइअरेवि तहिं । भणिमिमं चित्र सामी समोसढ़ो निग्गो राया ।। १८ ॥ सब्वेवि वंदिया जाव बारसावत्तवंदणणंति । किंबहुणा पंचविहोभिगमोऽवि न भासिओ तत्थ ॥१९॥ तह पण्हावागरणे दसमंगे सावगाण मुहपुत्ती । पयडकिचन ठाणतिगे बरिणज्जइ तत्थिमं पढमं ॥ २०॥ दवकिअं भावकिअं दव्वकिअं पुत्तिाइ इअ सुत्ते । मुहपुत्तीपाइदब्वेण सावगा किणइ साहुत्ति ।। २१ ॥ अचिअत्तघरे गमणं अचिअत्तघरे अ भत्तपाणं च । वज्जेअव्वं सिज्जा संथारग पीढ़ फलगं च ।। २२ ।। वत्थं पत्तं कंबल मुहपुत्तिअमाइ इअ भवे बीअं । नवि वंदणाइ नवि पूअण्णाइ नवि माणणाइन्ति ॥२३॥
SCARRANGAL
॥२॥
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प्रकरण समुच्चयः
गणित
प्रकरणं
मुहपुत्तिा नमुकारमालिया विअरणाइरूवाए । नवि पूषणाइ भिक्खं गवेसिव्वति तइअमिणं ॥२४॥श्रावस्सगुवासगदसपण्हावागरणपमुहसत्थेसु । वत्थंचलविरहेणं मुहपुत्ती ठाविआ एवं ॥ २५ ।। इअ समयावविहहेऊजुत्तीहि संगय बुहजणाणं। अवहत्थिन मुहपुत्तुं जमन्नहा के उवि पलवंति ।। २६ ॥तं माहप्पं मोहस्स विलसि अहव अभिनिवेसस्स । दीहरसंसारफलाणमहब कम्माण परिणामो ॥२७॥ ता भो भव्वा! | चइऊण कुग्गहं अणुसरह सम्मग्गं । सिरिवद्धमारणसूरीहिं संसि जइ महह सुख्खं ॥ २८॥
॥ इति मुखवत्रिकामकरणम् ।।
॥अथ जीवादिगणितसंग्रहगाथाः॥ ३ जोयणसहस्सनवर्ग सत्तेव सया हवंति अडयाला । बारस य कला सकला दाहिणभरहद्धजीवाओ॥१। दस चेव सहस्साई जीवा सत्तय सयाई वीसाई । बारस य कला ऊरणा वेयगिरिस्त विनेया ।।२।। चउदस य सहस्साई सयाई चत्तारि एगसयराई। भरहदुत्तरजीवा छञ्च कला आणया किंचि ॥ ३ ॥ चउवीस सहस्साई नव य सए जोयणाण बत्तीसे । चुल्लहिमवंत जीवा आयामेणं कलद्धं च ॥४॥ सत्तत्तीससहस्सा छच्च सया जोयणाण चउसयरा । हेमवयवासजीवा किंचूणा सोलस कला य ॥५॥ तेवन्न सहस्साई नव य सया जोयणाण इगतीसा। जीवा य महाहिमवे अद्धकला छक्कलाओ य ॥ ६ ॥ एगुत्तरा नवसया तेवत्तरिमेव जोयणसहस्सा । जीवा सत्तरस कला अद्धकला चेव हरिवासे ॥ ७ ॥ चउणवइ सहस्साई छप्पन्न उहियं सयं कला दो य । जीवा निसहस्से सा लक्खं जीवा विदेहद्धे ॥८॥
॥ इति जीवासंग्रहगाथा ॥
॥३॥
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प्रकरण समुच्चयः
बाहो प्रत प्रमाण प्रकरणे
SAXAMSMORECASNA
अथ धनुःपृष्ठवाहासंग्रहगाथा:४ नव चेव सहस्साई छाषट्ठाई सयाई सत्तेव । धणुपिटुं भरहद्धे कला य पन्नारस हवंति ॥१।दस चेव सहस्साई सत्तेव सया हवंति तेयाला । धणुपिटुं वेयड़े कला य पन्नारस हवंति ॥ २ ॥ सोलस चेव कलाओ अहियाश्रो हुंति अद्धभागेणं । बाहा वेयड्स्स उ अट्ठासीया सया चउरो ॥३॥ चउदस य सहस्साई पंचेव सयाइं अट्ठवीसाई । इक्कारस य कलाओ धणुपिटुं उत्तरद्धस्स ॥ ४ ॥ भरहदुत्तरबाहा अट्ठारस हुंति जोयणसयाई । बाणउय जोयणाण य अद्धकला सत्त य कलाओ॥५॥धणु हिमवे कल चउरो पणवीस सहस्स दुसय तीसहिया। बाहा सोलद्धकला तेवन्नसया य पन्नहिया ॥ ६॥ अडतीस सहस सगसय चत्त धणु दस कला य हेमवए । बाहा सत्तट्ठि सए पणपन्ने तिन्नि य कलाओ॥७॥ धणु महहिमवे दस कल दो सय तेणउय सहस सगवन्ना । बाहा बाणउय सए छहत्तरी नव कलद्धं च ॥८॥ चुलसी सहसा सोलस धणु हरिवासे कला चउक्कं च । बाहा तेरसहस्सा तिसय इगसट्टा छ कल सड्डा ॥९॥ निसह धणु नव कल लक्खु सहस चउवीस तिसय छायाला । बाहा पन्नसटू सयं सहस्स वीसं दु कल अद्धं ॥१०॥ सोलस सहस्स अडसय तेसीया सतेरस कला य । पाहा विदेहमज्मे धणुपिड परिरयस्सद्धं ११
॥ इति धनुःपृष्ठवाहासंग्रहगाथा: ॥
॥ अथ प्रतरप्रमाणसंग्रहगाथाः॥ लक्खड्डारस पणतीस सहस्स चउसया य पणसीया। बारस कला छ विकला दाहिणभरहद्धपयरं तु ॥ ११॥ सत्तहिया तिनि सया बारस य सहस्स पंच लक्खा य । बारस य कला पयरं वेयवगिरिस्स धरणितले ॥२॥ जोयणतीसं वा से पढमाए मेहलाई पयरमिमं । लक्खातिगं तिसयरिसया चुलसी इकारस फलामो ॥३॥ दसजोयण विक्खंभे बीयाए मेहलाइ पयरमिमं । लक्खो चउवीस सय इगसट्टा दस कलाओ य ॥४||
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प्रकरणा -अटु सया अडसीया सहसा बनीस (सोल) लक्खा य । कल बार विकलिगारस उत्तरभरद्दद्धपयरभिमं ॥५॥ दो कोडी चउलखा सहसा छप्पन्न |
घनगणित समुच्चयः नव य इगसयरा । अटकला दस विकला पयरमिमं चुल्ल हिमवते ॥६॥ हेमवए छक्कोडी बावत्तरि लक्ख सहस तेवन्ना। पणयाल सयं पयरो
| पंच. कला अट्ठ विकला य ||७|| गुणवीस कोडि अडवन्न लक्ख अडसटि सहस सयमगं । छलसीई दस य कला पण विकला पयर महहिमवे ॥5॥ चउपन्न कोडीओ लक्खा सीयाल तिसयरि सहस्सा । अट्ठसय सचरि सत्त कलाश्रो पयरं तु हरिवासे ॥ ६॥ बायालं कोडिसयं छावद्विसहस्स लक्ख चउपन्नं । पणसयगुणहत्तरकला । अढार निसहस्स पयरमिमं ॥१०॥ तेस, कोडिसयं लक्खा सगवन्न सहस राणयाला । तिसय दहत्तर दस.कल पनरस विकला विदेहद ॥ ११॥ इति प्रतरप्रमाणसंग्रहाथाः ।।
अथ धनगणितसंग्रहगाथाः ॥६॥ बसलोयाममाए पुग. ठेवीस सहस्स. लक्क इगवना छावत्तरि छ कला य वेयाई होइ घणगांसय ॥१॥ अट्ठ सया.पणयाला वीसं बक्सा | है तिहत्तरि सहस्साः। पनरस कालाउ घणो दसुस्साए होइ बीयंभि ॥२॥ सत्ताहिया तिन्नि मया बास्स य सहस्स पंच:लक्खा य । अक्रा य
बारस कला प्रमुस्सर-इ-माणमणियं ॥३॥ मत्वामीई लकखा उरणतीसहिया. य विणवइ समाई। अउणावीसभामा बउदस बेयमयलघणं पा-४॥ हिमकंति-कुसय-चन्दस कोडी छप्पन्न लक्ख सगनई । महमा चोयालमयं सोल कला बार विकल घणं ॥ ५॥ मुख्याल सया-स्तरम. कोडी तीस सस समालीसा । सहसा तिसय अदुन्दर घर विकल वणुः महाहिम्बे ॥ ६॥ सगबन्न सहम अनुर-कोडि है।
४ ॥५॥ छासहि लक्ख गुणतीसं । सहसा नव सय एगृणसीई निसहरूस घणगणियं ॥॥इति घनगणितसंग्रहगाथाः॥
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प्रकरण समुच्चयः
CANCERRACK
॥ अथ गांगेयभंगप्रकरणम् ।।७।।
मांगेयभंग नामऊण महावीरं गंगेयसुपुटुभंगपरिमाणं । पुवप्पगरणसेस वुच्छं सुगुरूवएसेणं ॥ १॥ वाणियगामे नयरे भयवं वीरो समोसढो ।
प्रकरण नाणी । पासावचिज्जो बह गंगेओ आगो तत्थ ॥ २॥ तस्सासंका जाया एसो किमु अत्थि इंदजालुत्ति । पसिणाई महत्थाई पडिपुच्छइ हेउणा तेणं ॥३॥ पुच्छाउत्तरसयलं नायव्वं पंचमंगनवमसया । इह उण संखेवत्थो भणामि निश्चं ससरणट्टा ॥ ४॥ एगंमि य नरगंमी भंगा सग हुँति जइ असंखेज्जा । इगवीसा दुगनिरए पणतीसा तिन्नि नरगमि ॥ ५ ॥ चउसुवि पणतीमायो पंचसु इगवीस भंगसंखाओ। छगनरगे सग भंगा सत्तसु पुढवीसु एगो य॥६॥जे एगमि उ नरए सगभंगा छग्गुणा बियालीसं । दुगनिरयाओ दुभागे हवंति हरिया हु इगवीसा ॥७॥ एगूणा उण किउजइ निरयपमाणेण दिज्जई भागो । इगवीसा पणगुणिया जायइ पंचुत्तरसयं च ॥८॥ ते य तिभागे हरिया हुँति पणास तिन्नि नरगंमि । चत्तसयं चउभागे हरिया पणतीस भंगाओ॥ ६ ॥ तिगुणा पंचुतरसय भंगा इगवीस पंचभागंभि । बायालसिं दुगुणा छगभागे सत्त भंगा य॥१०॥ अह उण विगप्पमाणं पगविगप्पो य दुन्नि जीवाणं । तिगजीवाण दुजोगा दुन्नि तिग जोग एगेव ॥११॥ चउजीवाण दु जोगा तिन्नि य तिगजोग तहय तिन्नेव । चउजोगो एगेव य अ पण जीवाण सुणसुकमा ॥१२॥ दुतिच उपंचयजोगा चउ छञ्चउ एग अह छजीवाणं ।। दुतिचउपंचछजोगा पणदसदसपणेग नेयं च ॥ १३ ॥ छ पण दस बीस पण दस छगदुगाईसगंत सत्तरहं । अट्टाहं जीवाणं दुगाइअटुंत संजोगा ॥ १४ ॥ सग इगवीस पणतीस पणतीसिंगवीस सत्त एगो य । नवजीवाण दुगाई नवंतमयोग कायज्वा ॥ १५ ॥ अट्ठ
10॥६॥ ढवीस छप्पन्न सयरी छप्पन्न अट्टवीसट्टा । एगविगप्पो एसिं अह दहजीयाण संजोगा ॥१६॥ नव छतीस य चुलसी छब्बीसुत्तरसयं च पण
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प्रकरण समुच्चयः
RECAMERIC
गांगेयभंग प्रकरणम
४! जोगा । पुण छब्बीसुत्तर सय चुलसी छत्तीस नव एगो ॥१७॥ इच्चाईयविगप्पा जीवपमाणेण अक्खचालणया । कायव्या पुण एसिं
सुणसु उवायं समग्गाणं ॥१८ ।। जइसंखा हुंति जिया दुगपंजोगा हवंति एगणा । संजोगि तिगाईणं तिगाइरासी ठवेयब्वा ॥ १६ ॥ पुव्वविगप्पा पढमंकगुणणा काऊण सेसकाणं । भाइज्जइ जं लब्भइ मुणसु पमाणं तिगाईणं ॥२०॥ जह पणजीवाणं इह दुगसंजोगा
वति चत्तारि । तिगसंजोगाणं पुरण ठविज्ज रासीवि तिन्नेव ॥२१॥ तिन्नि य एगो एगो दुगजोगा पढमअंक गुणियब्वा । बारस सेस दुभत्ता तिगजोगा हुँति छकचेव ॥ २२॥ भंगा य पइविगप्पे पुवुत्ता नरगभंगगुणियब्वा । अह पुण सव्वविगप्पा जीवाणं हुंति ते भणिमो ॥२३॥ तिगजीयाण विगप्पा दुगेण गहिया चउण्ह जीवाणं । ते पुण दुगेणग हिया पंचजिाणं मुणेयव्वा ॥२४॥ एवं कमेण सव्वत्थ अह भंगा सब्बजीवरामीणं । एगेगहिया किजजइ संखामाणं विभत्ताओ ॥२५ ।। सगपढमपुढविभंगा अष्टगुणा ते बिजीवपविभत्ता। अदाबीसं भंगा दुगजीवाणं विधाणाहि ।। २६ ॥ तेवि अ नवगुणियाओ एवं इकिकरूबवुड़ाए। जीवपमाणविभत्ता संखा बुद्धहिं नायव्वा ॥२७॥ पुव्वसूरीहिं नढुद्दिष्ट्रपत्थारभासियो नेश्रो । वित्थरओ पुण सुत्ता नायव्वो सुहुमदिट्ठीहिं ॥ २८ ॥ गंगेभो अह सुच्चा भयवं वीरानो भंगजालमिणं । भयवं उवरिं जाओ सव्वभूपधाओ तस्स ।। २६ ॥ वंदइ नमसई अह आयरबहुमाणभत्तिपुव्वं च । गंगेओ संजाओ समिश्रो गुत्तो विसेसणं ॥३०॥ | चउजामाओ धम्मा पडिवज्जइ पंचजामधम्मं च । नाणकिरियादिजुत्तो विहरइ निश्चं गुरुसगासे ॥३१॥ जस्सासाए कीरइ सुनग्गभावो य मुंडभावो य । श्राराहिओ तयट्ठो सिद्धो परिनिव्वुडो बुद्धो ॥३२॥ धन्नो सो गंगेओ जेणेवं वीर जगगुरू पुट्ठो। धन्ना ते चिय पुरिसा दिट्ठो पहु वागरंतस्स (तो उ) ॥३३॥ धन्ना चिय मह जीहा पढमभासे हु वीरपहु थुणिो । धन्ना गुरुण बुद्धी अत्थो जेणेस परिकहिओ ॥३४॥ सिरिपुज्जोदय |
A
RROSAROREOS
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प्रकरण समुच्चयः
बंघहेवय त्रिभंगा
॥ ८॥
&ा सायरसूरिणा गुणवया. य. बुद्धिमया । कारण सुहियं तेणं विलोहित्य मागियजाण ॥३५॥ सिरिउत्तमविजयाणं सीसोनामेण उमविजयोति । हा देणापगरण इयं मामबहवस्समारोजं ॥ ३.६ ॥ इति गंगेयऋषिकृत:च्छा-उत्ता भंगप्ररूपणामकरणम् ।।
श्री आनन्दविमलमूरिसद्गुरुभ्यो नमः
॥ अथ :६२ मारमेणामु बंधहेतूदयविभंगीप्रकरणम् ॥८॥ बंधशहेउविमुक्कं बंदित्ता युद्धमापतित्ययरं । गुणसहिअमग्मणेसु भणामि हेउदयसामित्तं ॥१॥ मिच्छे :१ सालण २ मीसे ३ अविरय ४ देसे ५ पमत्त ६. अपमत्ते १७ । निअट्टि ८ अनियट्टि ६ मुहुमु १० वसम ११ खीण १२ सजोग१३ जोगि१४ गुणा ॥२॥ गइ १ इंदिए य २ काये ३ जोए ४ वेए ५ कसाय ६ नाणेसु ७.। संजम ८ दंसण एलेसा १० भव ११ सम्मे १२ सन्नि१३ श्राहारे १४ ॥ ३ ॥ नरय १ तिरि.२ नरः ३ सुर ४ गइ (१) इग१ विय २ तिय ३ चउ ४ पणिदिया ५ नेया ।। (२) पुढधी १ जलं२ व जलणो ३ पवण ४ वण ५ तसा य६ छकाया (३)॥४॥ सच्चे १ यर २ मीस ३ अपच्चमोस मण क्य, उराल वेउव्वं १०
श्राहारं ११ तम्मिस्सं १४ कम्मण १५ मित्र पन्नरस जोगा (४) ॥ ५॥ वेय नरिस्थि २ नपुंसा३(५) असा १ अपचक्खाण २ * पच्चखाणा३य । सेजलण ४ कोह १माण २ माया ३ लोभत्ति ४ सोलस कसाया (६) ॥ ६॥ [गीती] मइ १ सुय २ वहि ३
मणपज्जव ४ केवल नाणा ५. य मइ १ सुअन्नाणार । विभंग३ जुया अट्ट य ७) सामाइय१ छेअ २ परिहारा३ १७।। सुहुम ४ अक्खाय५ संजम देसजइ ६ अजय ७.संजमा सत्त (८)। चक्खु १ अपक्खू २ मोहो ३ केवल ४ देसण चउकभिणं (६) सदा किएहा १ नीला २
1॥८॥
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मकरण समुच्चयः
॥ ९ ॥
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।
| काऊ ३ तेऊ ४ पहा य ५ सुक लेंसा ६ य (१०) । भवे १ यरे २ दुगनेये (११) खाओसमं १ तहा खवर्ग २ | | उसमसम्म ३ | मिच्छं ४ मीसं ५ सासायं ६च छकभिरणं ( १२ ) । सन्नि १ असनी२ (१३) आहार १ इयर २ (१४) दो दो हसिय भैया ॥ १० ॥ मणवयचड वेउव्वाद्दारदु ओराल १ इत्थि १ पुंवेया १ । अभोगरहियभिच्छ ४ लद्धीअपज्जा १६ नहु हुति ॥ ११ ॥ ओरालिय २ हारग २ दुगमित्थी १ पुंवेयमिय १ छगं मुकुं नेरइयाणं हेऊ आहे मिच्छे य इगवन्ना ११२ ॥ बीयगुणे बढ़ते नरयं नहु जाइ तेण कम्मरयं । वेव्वियभिस्सं १ पुरा सासाये नेव हुं तासें ||१३|| पण मिच्छारा अणुदयाच चत्ता४४ तत्थ अण४ विणा मीसे । चत्ता ४० कम्मण १ वेडव्विमिस्सजुयमजय बायाला ४२ ॥ १४ ॥ सम्मजुओ सत्तमिए न जाइ तो तत्थ अंजइ चालीसा । पज्जाणं सामन्नं कम्मण १ वेडव्विमिस्स २ विणा ।। १५ ।। मिच्छंमी गुणवन्ना अपजा छ गुणा दुबे ताथ । कम्मणविडव्विभिस्सं जोगदुगं मिच्छि बायाला ।। १६ ।। तित्तीसं जयंमी सत्तमिचापज्जयाण एगगुणो । जे जत्थ ठंति हेऊ विच्छिती १ तेसि नायव्वा ॥ १७ ॥ सव्वोदयसंखा पुण२ तइ अभावो ३ तिभंगिया एसा । तिरिणाहारदुर्ग २ वज्जित्ता मिच्छि (१) पपन्ना || १८ || पण मिच्छविणा पनं सासाणे (२) अण ४ दुमीस २ कम्मण्यं १ । वज्जित्ता तेयाला ४३ मी (३) अजयमि छायाला ४६ ॥ १६ ॥ मिस्सदु२कम्मण १ सहिया (४) देसे ओरालमिस्स १ कम्मण्यं १ । बयकसाए ४य विणा गुण्याला ३६ तसवहं मुत्तुं (५) ॥ २० ॥ मिहुणतिरियाण बेडव्वार हारदुगं विणा य नपुं वेयं १ । बावन्ना ५२ मिच्छ ५ विरा सासणि सगयाल ४७ अण्वगं ४ ॥ २१ ॥ कम्मणमुराल मिस्सं १ मुकुं इगयाल उदय मी संमिं । तद्दुजु अजयंमी तेयाला ४३ भिदुरापुरिसाएं ।। २२ ।। की वित्थी २ वेय विणा नर १ कीवि २
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बंधहेतूदय त्रिभंगी
118 11
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प्रकरण समुच्चयः
॥ १० ॥
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विणा तहा तइत्थी १ । तिरिया नरा य हुंती बद्धी अपज्जा ण उण अन्ना ॥ २३ ॥ तेसिमरणभोगमिच्छं छज्जीव ६ बहो नरित्थि - | वेयरविणा । तेवीस २३ कसाया उरलमिस्स १ कम्मणज्य दुत्तीसं३२ ||२४|| सामन्नमपज्जाणं जोगदुगंर तं तत्र अ चडचत्ता४४ । तिरियाणं च नराणं पंचगुणा ( ५ ) अह पमत्तम ।। २५ ।। अविरइ ११ तइयकसाए ४ मुत्तुं छगवीस२६हारदुग खेवा (६) । अपमत्ते चडवीसं विङब्बगाहारमिस्सविणा (७) || २६ ॥ श्रपुत्रे दुगवीसं २२ विउव्व १ माहारगं च १ वज्जित्ता ( ८ ) । हासाइ छक्करहिया सोलस १६ हेऊ अ अनियट्टी (९) ॥ २७ ॥ संजलण ३ वेय३ ति विणा सुहुमे दस (१०) उसमे नव अलोभा (११) । खीणेऽवि (१२) मोस सच्चामोसं चयणं २मणं २मुत्तुं ।। २८ ।। सत्त सजोगे हेऊ उरालमिस्सेण १ काम्मणेण १ जुआ (१३) । एगो ऽनिबंधऊ नत्थ अजोगंमि मणुआणं (१४) || २ || मेहुणनराणित्थीणं लद्धिअपज्जाण तिरिअतुल्लमिणं । अपजाणं चेगगुण करणापज्जाण पढम १ बियर तुरिआ ४ ॥ ३० ॥ ( गीतिः ) देवाखं ओरालाहारदुर्ग वज्जिडं च नपुत्रेयं । बावन्ना देवीणं इगवन्ना पुरिसवेयार्वा ॥ ३१ ॥ इत्थीविणेगवन्ना सरणंकुमाराई जाव गेविज्जा । विजयाइविमाणे अजयगुणो तत्थ बायाला ||३२|| इतिगतिद्वारं ॥ १ ॥ अणभोगमेगाभिच्छं १ छज्जीव ६ वो तहेव फासिंदी १ । पुरिसित्थिं वज्ज तेवीसकसाया २३ पंच जोगा य ॥ ३३ ॥ श्रराल विउव्विदुगं कम्मण५मेगिंदण मिच्छमि (१) । छत्तीस ३ ६ मुरलमिस्सं १ कम्मण२ मिंदि विणा विरई ६ || ३४|| इगतीसं ३१ सासाणि (२) बितिचडरिंदी मिच्छि पुण तेसिं । ऐगे में दियवुड्डी चउरो जोगा इमे हुति ।। ३५ ।। ओरालदुगं कम्मणमेगा भासा असच्चमोसति । छग ३६ सत्त ३७ अट्टतीसा ३८ तेसिं हेऊ इमे भणिया ।। ३६ ।। पंचिंदियाण चउदस ठाणा हेऊ अ तत्थ नरतुल्ला ४ ॥ इतद्रियद्वारं २ ॥ बाऊ इगिंदि तुल
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11 20 11
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बंधहेतूदय त्रिभंगी
प्रकरण 18| पुढविदगरतरूण ३ तेऊणं ४ ॥ ३७ ॥ वेउव्विद्गविहणा ३४ चउतीसं इगगुणो गइतसाणं । मणुअ व तसा नेया इतिकायद्वारं ३।४ समुच्चयः | सञ्चाणुभयमि मणवयणे ४ ।। ३८ ॥ वेउब्बिदुगर मुरालं सच्चाणुभयं मणं २ तहा वयणं२ । एएहिं सत्तजोगेहिं हुंति मिच्छमि गुणवन्ना ४९ । ११ ॥
|॥ ३९ ॥ मीसे विउव्विीसं न होई अजए हवेज्ज देसेऽवि । तहय पमत्ते एवं सजोगि उरलं१मणो२ वइदुगं च ॥४०॥ एवमसच्चो| भयमणश्वयंमिरवारस हवंति गुणठाणा। केवलमणुभययोगेऽगभोगमेगं भवे मिच्छं ॥ ४१ ॥ मणविणु विरइक्कारस११ अणुभयवयणं उरालमेगें च१ । तेवीसं च कसाया२३ सगतीसं३७हेऊणो हुंति ॥४२॥ सञ्चाणुभयंमि मणमि२ वयंमिश्सजोगि१ पंच केवलणे(८) । ओराले मण ४ वय १ चउ उरलं १ नवजोग : इगवन्ना ५१ ।। ४३ ॥ बारगुणेसु सजोगे दो मण २ वय २ उरल १ जोग पणगमिणं (6)। श्रणभोग१ मुरलमिस्से सजोग १ इंदियविणाउविरई६ ॥४४॥ तित्तीसं मिच्छंमी १ साणे अजए३ तहा सजोगंमि४ । बत्तीसडवीसेगा(१०) कम्मणकाए वि एमेव(११) ॥४५॥ वेउब्वे सत्त गुणा प्राइम ओरालयं च(१२)तम्मिस्से । मीस विणु पमत्तता पंच गुणा हेउपुव्वं व(१३) ॥४६॥ श्राहारंमि पमत्ते छकं संजलण चउर पुंवेओ। मण४ वइ४चउ आहारो इय वीसंते उपमत्तेवि (१४) ॥४७॥ तम्मिस्सि पमत्तगुणो (१५) ( इतियोगद्वारं४ ) तहेव थीकीव २ वेय मुत्तणं । तेवन्नं ५३ पुंवेए थीवेए हारगदुगुणा ॥४८॥ नपुनरवेयविहीणा साणे कम्मण उरालमिस्स विणा । छायाला ४६ कीवेऽविहु सेसं पुरिसुव्व गुणनवगं ।। ४९ ।। इतिवेदद्वारं५॥ कोहचउक्के माणा ४ | माया ४ लोहा ४ हवंति नहु चउरो १२ । हारदुगुणा मिच्छे तेयाला मीसि अणकोहं ॥ ५० ॥ कम्मं १ मीसदुगं २ पिहु मुत्तुं | चउतीस ३४ देसि बिअकोहं५-३३ । तियकोई च पमत्ते ६-२३१७-२१।१६-वज्जित्ता नवमि छकं च ॥५१॥ वेयतिगं३ संजलणो कोहो?
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प्रकरण समुच्चयः
। १२ ॥
* नवजोग ९ तेरस य हेऊ । एवं माणे ९.४ माया९-४ चउगे लोभे उ गुणदसगं१०-४॥ ५२ ॥ इतिकषाय द्वारं ।। मइ१सूयरवहि ३नाणेमुं
बंधहेतूदय अजयाई नवगणाहि अडयाला ४८ मिच्छा५ण४ वज्जणाओ हारदुगुणा जए देसे ॥ ५३ ॥ मणनाणि पमत्ताई सत्त गुणा केवलमिली दो अंता । मइ१सुयरअन्नाणेसुं विभंगी ३ तह दो गुणाऽऽइल्ला ।। ५४ ॥ इतिज्ञानद्वारं सप्तमं ।। ७ ॥ सामाइयांम छेओवट्ठाणे चउ गुणा पमत्ताई । सहमे दोस सठागं आइमगुणचउ अविरयमि५ ॥ ५५ ।। अहक्खायवरम चउरो अोहुदओ तह पमात्ति परिहारे । थवेदृणा बारस कसाय १२ नवजोग : इगवीसा ॥५६॥ अपमत्तेऽथिय एवं (संयमद्वारं ८) चक्व१ अचक्खसु बार पढमगुणा । चक्खुमि उरलम्मिस्सं बीयं पुण कम्मणं नत्थि ।।५७।। अवहिस्स केवलस्स य नाणसमं दंसणंपि नायव्वं । [इतिदर्शनद्वारं९] गुणछक्कमाइलेसत्तिगंमि उदोऽत्थ सामन्नं ॥ ५८ ॥ तेऊए पउमाए सत्त गुणा सुक्कलेसि तेरसगं १३। [इतिलेश्याद्वारं १०] सव्वगुणा १४ भज्वाणं आइक्वगुणो अभव्वाणं | इतिभव्यद्वारं ११॥ ॥५९॥ तुरियाइ गुणचउर्फ४ खाओवसमे१ इगारस खयम्मिर अड८ उवसमसम्ममी श्राहारदुर्गन तत्थ भवे३ ॥६॥ मिच्छे४ मीसे ५ सासाणगंमि ६ निअनिअगुणमि ओहुदओ। [इतिसम्यग्द्वारं १२] सन्नीणं सव्वगुणा १४ असन्नीणं पढमदुगुणा ।। ६१ ॥
अणभोगमेगमिच्छं १ मणरहिया अविरई ११ पुमिश्स्थिविणा । तेवीसं २३ च कसाया उराल १ वेउव्व२ तम्मिस्सा ४ ॥ ६ ॥ कम्मण | मंतिमवयणं १ छज्जोगा सव्व हुँति इग चत्ता ४१ ( इतिसंशिद्वारं १३) आहारे तेर गुणा श्राइम ३ अणाहारि पंचेए ॥६३।। पढमर तिमदुगर तुरिअं१ छक्काय औरइमिच्छोगं च । सो कसाय २५ कम्मण १ जोगोतित्तीस ३३ हेउदो ॥ ६४ ॥ इतिश्राहारद्वारं ॥१४ || इय मग्गण ठाणेसुं, गुणठाणगजोअपेण हेउदओ । भाणओसपरहिअत्थं सिरिसायर सूरिसीसेणं ॥ ६५ ॥
॥१२॥ ॥ इति बंधहेतूदयत्रिभंगी सूत्रं समाप्तम् ।। छ ।
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प्रकरण समुच्चयः
योगानु ष्ठानविाई प्रकरणम्
॥ अथ योगानुष्ठानविधिगर्मितपकरणम् ॥ ९॥ जोगाणुट्ठाणविहिं संखेवेणं मुणंतु मुणिवसहा! ॥ आवस्सयसुअखधे दु नंदि अड दिण छ अज्झयणा ॥१॥ दसयालिअसुअखधे दिण पनर दु नंदि बारस उज्झयण । पंचम नवमे दो चउ उद्देसा कालिया सेसा॥२॥ कालिअ उत्तरायण सुअखंधे दुन्नि नंदि सगवीसं । दिवसाइ जइ असंखं एगदिणायामि अहीइज्जा ||३।। बीअदिणि पढिएं निविन अन्न आयामु एगदिणबुड्डी। चउदसमं जा इगकालि एगु परओ दु दुऽज्झयणा ॥४॥ जत्थ उ इगु संधो तहिं नंदितिगति अंबिलचउक्कं । जत्थंग दो खंधा तहिं पण नंदी ति आयामा ॥५॥ आयारे पएण दिणा दो खंधा पढमि अट्ठ अज्झयणा । तेसु कमुद्देसा सग छ चउ चउ छ पण अड चउरो॥६॥ सत्तज्झयणुदेसा एगारस ति चउसु दु दु दु कमसो । सग ७ सत्तिक्क दु चला इअ एए सोलसज्झयण ॥ ७॥ आचारांगयोगोऽनागाढः । सूयगडे दो खंधा पणज्झयगुहेस चउ ति चउ दो दो। केवल इगार बीए केवलसगझयण तीस दिणा ॥८॥ सूअगडंगयोगःअनागाढः | इकिकसरं चउ चउ चउ तिअ उद्देस पण पणेगसरा इगु खंधु अढारदिणा ठाणे समवाइ तिन्नि दिणा ॥६॥ ठाणांगे अनागाढः । भगवई
अंगे खंधो न अस्थि हुंति अमयाणि इगचत्ता ४ सगसयरि काल७७ छासिअ सउ १८६ दिण दो नंदि २ गणिनामं ॥१०॥ तिसु दस दस | उद्देसा पण सग सग काल जेण बीइ सए । पढमे खंदुहेसे दो कालायाम पण दत्ती ॥११॥ तइअसए पुण बीओ उद्देसो चमरउत्ति खंदसमो । | तत्थुग्गाहिमविगईउस्सग्गो छ?जोगो अ॥१२॥ तुरियसंयदसुद्देसा आइल्लंतिल्ल अटू इगकाले। दो सेस एगकाले मूलाओ काल इगवीसं ॥ १३॥ पंचाइ अडतसए पण पण कालेहि दस दसुदेसा । नवमाइ चउदसंता आइल्लंतिल्लि ( प्रथमः अंत्यः ) गिगकाले ॥१४॥ पनरसमे गोसालयसए दु आयामकाल दत्तितिगं । अट्ठमजोगो गुणवन्न४६ काल मूलाओ हुंति इहं ॥१५॥ सेसा छव्वीस सया आइल्डंतिल्ल नवनवुस्सग्गां ।
॥ १३ ॥
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योगानु
प्रकरण समुच्चयः
टानविधि प्रकरण
।१४॥
।
| नवरं तित्तीसाइसु आइल्लतिल्ल सय नेया॥१६॥ भगवती आगाढयोगः। तित्तीसदिणा (ज्ञातासूत्र) नायाइ खंधिगुणवीसमग्झयणमिकसरा । दसवग्ग बीअखंधे पाइल्लंतिल्ल अज्झयणा ॥१७॥ उवासगे इगु खंधो केवल दसज्झयण चउद दिण सब्वे । इगु खंघो पुत्वविही अडवगदिण बारसंतगडे (अन्तकृद्ददशांगसूत्र)॥१८॥त्रयोऽप्यनागाढाःनवमंगे इगु खंधो सत्त दिणा तिन्नि वग्ग पुब्वविही । दसमगि दसज्झयणा केवल दिण | चउद इगु खंधो ॥ १९ ॥ दो सुअखंधा दस अज्झयणाई केवलाई विवागसुए। चउवीस दिणाइ तओ [एत्तो उ] परं उबंगाई॥ २० ॥
(अनु०प्रश्न विपाकभत प्र०वि० सू०) उकालि उवाइ चउ कालिअ पन्नत्ति तिग तिगायामा। निरयावलियाखंधे सगदिण पण वग्ग दो नंदी।।२ । | दस दिण वीसुद्देसा निसीहि कप्पाइखंधि वीसदिणा । दुसु छद्दस उद्देसा दसासु अज्झयण नंदिदुगं ।। २२ ।। सुन्न नव सोल बारस चउ छच्च वी|| सुद्देस सोला य । अडज्झयण दु नंदि दिवङ्मास खंधे महानिसीहे।।२३।। आगाढः । पण कप्पे आयामं तितिनिविए नंदिउणुओगदारेसु । इगनिविध जीअकप्पे तेर पइन्नेसु तेश्र इमे ।।२४।। कुसलानुवांध १ भत्तपरिन्ना २ आउरयपच्चक्खाणं च ३। संथारय ४ तह तंदलवेयालिअ५|| चंदविज्झयगं ६ ॥ २५॥ देविंदत्थय ७ गणिविज्जया य ८ महपच्चखाण ह वीरथओ १० । अज्जीवकप्प११ गच्छायारो १२ तह मरण विहि चरमो १३ ॥ २६ ॥ सुत्त १ त्थर भत्त३ काला४ वस्सय५ सज्झाय६ तय संथारे७ । सग मंडलि सव्वंके मासा गुणवीस १६ तिन्नि दिणा३ ॥२७।। उत्तरज्झयणा सत्तिक भगवई महनिसीह दसमंगं । इअ आगाढा उत्तरज्झयण विणाऽऽउत्तवाणमि ॥२८॥ इअ सव्वाणुट्राणे नंदी इगवन्न५१ काल सयचउरो ४०० बावीससय अहुत्तर२२०८ सगलुस्सासा उ उस्सग्गा (कायोत्सर्गाः ८१-२११२७ उच्छ्वासाः) ॥२९॥ इअ मुणिणे मुणिऊणं जोगविहिं विहिअतत्ततवचरणा । चरणकरणावउत्ता गुत्ता सुत्तं अहिज्जंतु ॥ ३०॥
इति श्री योगानुष्ठानविधिः समाप्तः ॥ ६॥
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करण समुच्चयः
१५ ॥
॥ अथ पडिलेहणाविचारप्रकरणम् ॥१०॥
द्र पडिलेहण सुत्तत्थतत्तदिट्ठी १ दंसणमोहत्तिग च ४ रागतिगं ७ । देवाई तत्ततिगं १० तह य अदेवाइजत्तातगं १३ ॥१॥ नाणाइतिग १६ तह मकरणम् तन्विराहणा १६ तिन्नि गुत्ती २२ दंडतिग २५। इय मुहर्णतयपडिलेहणाउ कमसो विचिंतेज्जा ॥२॥ हासो रई य अरई ३ भयसोगदुगुंछाओ६ तह विवजिज्जा । भुयजुअलं पेहंतो सीसे अपसत्थलेसतिगं ९ ॥ ३ ॥ गारवतिगं च वयणे १२ उर सल्लतिगं १५ कसाय चउ पीठे १६ । परसु छजीव वह २५ तणुपेहाए विजाणमिणं ॥ ४ ॥ जइवि पडिलेहणाए हेऊ जियरक्खणं जिणाणा य । तहवि इमं मण| मक्कडनिजतणत्थं मुणी बिंति ॥ ५॥ पडिलेहणाविसेसं बुच्छामि विहायारजाणणट्ठाए। सामायारीजुग्गं मग्गं जाणन्ति मुणिनिवहा ॥६॥ वत्थरयहरणपट्टयपत्ताईयाण हुँति पणवीसं । दस दंडगाणं अक्खा जइणमवि पडिलेहणा तेर ॥७॥ वत्थरयहरण ओएणाइयाण मुहणंतयव्व पडिलेहा । दंडाइयाण दसगं तिगं तिगं माझि सिरमूले ॥८॥ दिट्टिपडिलेह एगा अक्खो पक्खो तिगं तिगं छकं । बज्झब्भंतर बारस पडिलेहा हुंति अक्खाणं (स्थापनाचार्याणां ) ।।९।। दिट्ठिपडिलेह ऐगा परिहितिगे तिरिण तिारण तिग छूढा । मज्झे बाहिर बारस पणवीसं हुंति पत्ताणं ॥१०॥ दिद्विपडिलेह एगा चउपाए तिन्नि तिन्नि इयं बार । बाहिर चउरो पाए पट्टाणं हुंति पणवीसं ॥१॥ अएणे भणंति बारस अभंतर तह चउसु परिहीसुं। अड तिग चउवीसाणं पडिलेहा हुंति पट्टाणं ।।१२।। पणवीसं तणुपेहा इत्थीणं तह य हुंति पन्नरस। मुहि (मुखे) हियएउवि तिगं तिग पिढे चउरोवि वज्जिज्जा ॥१३॥ तह जोगाणुटाणे पडिलेहा हुँति जेण पणसयरि । पत्तयपत्ताबंधाण पडलयकप्पादियाणं च ॥१४|| साण समीणं पोसहजुत्ताण होति दुगवेला । पडिलेहा सव्वाणं मुणिव्व णेया जहाजुग्गं ॥१५॥ गोसे (प्रभाते) जहरण पुवी पुत्ती धम्म
॥॥१५॥ मयं (रजोहरणम् ) निसीहतिगं। कडिसुत्त चोलपट्टो इरिया अक्खाण पडिलेहा॥१६॥बालाणं बुदाणं उवगरणं) तो य उवाहसमग्गपडिलिहणं ।
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प्रकरण
पडिलेह प्रकरणा
समुच्चयः
है। तउ इरिया पुण दंडगपडिलहण कायजुद्धरणं (कचवरकः) ॥१७॥ पुण इरिय पडिकामत्ता वसहिं काल तो पडिकम्म । सम्झायमाणपरो
हविज्ज जा ताव जामदुर्ग ॥ १८ ॥ तओ-चिइवंदणं जिणाणं पडिलेहिय पुत्ति पोरसीयाए । तह पच्चक्खाणं पुण पारित्ता भंडगाणं च ||१९|| पडिलहित्ता गोयरमग्गगओ एसणाइसमिइपरो । इरियमुवओगकिरियं किच्चा गुरुआणमासज्जा ॥२०॥ तह निरवज्जाहारं गहिऊणं गुरुसमीवमागम्म । आलोइत्ता सम्म छज्जीवणियं (दशकाालेकचतुर्थाध्ययनं ) भणित्ता य ॥२१॥ दीणगुरुभत्तिपुध्वं दच्चा भुत्तुं गुरूणमह पच्छा । आहारमा येरइभो यणदासं विवजंतो॥२२॥ मंडलि पमज्जिऊणं किच्चा चिइवंदणं पुणोवि तहा । सञ्झायज्माणपरो हुज्जा गुरुवयण पवणो य ॥२३॥ पुण पोरिसिम्मि इरियं पुत्ती वसहिं तो य कडिसुत्तं । चोलं तो य अक्खा पुत्ती पुण तह य सज्झायं ॥२४॥ बंदणगं दाऊणं पच्चक्खाणं करिज्ज सत्तीए । उवहिसमग्गं तत्तो कंबलपुव्वं पडिलिहिज्जा ॥२५॥ दवरयकंबल निसिहियदंडय मुणिवरझयंति (रजोहरणं) पडिलिहणं । जइ पुण उववासपरो तो पडिलेहिज्ज कडिवत्थं ॥२६॥ तो इरियं पुण दंडय पडिलेहित्ता य कायउद्धरणं (काजो)। इरियं पडिक्कमित्ता भंडोवगरणं पडिलिाहिज्जा ॥२७॥ सड्डाण पुणो एवं पोसहजुत्ताण तत्थ भिउ णत्थि। पडिलिहिय वसहिसालं पुच्छयं तउ अ आयरिया ॥ २८ ॥ तउ कढि ऊण कज्ज इरियं पुण कुणइ जइजणुव्व परं । पुणरवि कायुद्धरणं सज्झायपरो तो हुज्जा ।। २६ ।। सड्डीणं पुण एवं परं विसेसोऽथि वत्थपडिलेहे । उग्गहपटपरिहाणयवत्थे पुण कायउद्धरणं ।। ३० ।। तिगवेल कढिज्जह कायउद्धरणं च जीवजयणटाए । पुण साहुणीणमेव य करेइ उग्घाडियसिरा य ॥३१।। पडिलेहणावियारो लिहिलो भव्वाण जाणणट्टाए । आणंदविमलसुरिसरसीसेण विजयविमलेणं ॥ ३२ ॥ इति पडिलेहणाविचारप्रकरणम् ।। १० ॥
।।१६।
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प्रकरण समुच्चयः
॥ १७ ॥
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॥ अथ देहकुलकम् ॥ ११ ॥
नमिऊजिणं वीरं किंचि सरूवं भणामि देहस्स । पिट्टिकरंडा अट्ठारसेव बारस य पंस लिया ॥ १ ॥ सत्त सिराण (नसा) सयाई पुरिसस्सित्थीण तीसऊणाई | दसऊरगाइ नपुंसे तिन्नि सया अदामागं ॥ २ ॥ पंचसय पेसियाई नराण महिलारण तीसरहियाई । दसऊणाई नपुंसे मम्माण सयं च सत्तऽहियं ॥ ३ ॥ नव हारूण सयाई नव धमणीओ य संधि सट्ठिसयं । परिणमइ उ उच्चारो पढम पासेय दाहिगए ॥ ४ ॥ थूलंते तणुयंते दो यंता पंच वामया हुंति । परिणमइ उ उच्चारो पढम बीए अ पासवणं ॥ ५ ॥ बत्तीसमेव दंता पणवीसपलाई तह य कालिज्जं (कलेज)। अपलं हिययं कुच्छीय विहत्थिसुपमाणा ||६|| सत्तंगुलाई चउरो पलाई जीहा सिरं चउकवालं । चउरंगुलिया गीवा पलजुयलं लोयगजुगंमि ||७|| सुक्करस अद्धकुडवो कुडवो पित्तस्स तहय सिंभस्स । श्रद्धाढयं च वसए रुहिरस्स य आढयं एगं ||८|| सुत्ताढयं पुरीसे छप्पत्था मुत्थलिंग पत्थो य । पुरिसस्स पंच कुट्ठा छट्टा गन्भमि इत्थीए || ६ || नवई य सयसहस्सा रोमकूपाणि केसमु८छ विणा । अट्ट रोमकूवा कोडी सह के समंसूहिं ॥ १० ॥ पुरिसस्स सोयनवगं इक्कारस सोइ जाण इत्थीए । पुरिमाईणं कवला बत्तीसवी चवीसा || ११ | सत्ताहं कललं होई, सत्ताहं होइ अब्बुयं । अब्बुया जायए पेसी, पेसीयो अ घणं भवे || १२ || पढमे मासे करिपूर्ण, पलं बीए घणो नीई (भवे ) । तइए मासे अ माऊणं. डोहलं जणइ अणुरुवं ॥ १३ ॥ चथे मासे माऊए अंगोवंगाइ पीए गन्भो । करचरणसिरिऊरे पंचमए पंचयं करे || १४|| छट्ठे मासे गन्भो उवचिणइ सोणियं च गन्भभि । सत्त सिराण सयाई एमाई सत्तमे मासे ॥ १५॥ अट्टमे वित्तीकप्पे उ, नवदसमेसु जायति । गब्भस्स य सुणजागर सुहदुक्खं जणणिअणुरूवं ||१६|| जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स
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11 200 11
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प्रकरण समुच्चयः
। १८॥
जंतणो । तेण दुक्खेण संतत्तो, न सरइ जाइमप्पणो ।। १७ ।। सूईहि अग्गिवन्नाहि, संभिन्नस्स निरंतरं । जावइयं गोयमा दुक्खं, गब्भे| कृष्णाराज अगणं तओ ॥१८॥ गम्भाओणीहरंतस्म, जोणोजतणिपीलणे । सयसाहस्सियं दुक्ख, कोडाकोडिगुणंपि वा ॥१९॥ उयरे कोवि घसंतो । विमान धम्म सणिण चित्ततल्लेयो । तदप्पिकरणो मरिउं सुहभावा जाइ सुरलोअं ॥ २० ॥ मोही परवल दडं चउहा सेरणं वेउब्बिउं जुज्झे । IC विचारमक | तदप्पिप्रकरणो मरि वच्चइ एसो महानरए ॥ २१ ॥ दोहि असईहि पसई दुप्पसइ सेइया चउ कुडवो । चउकुडवो मगहपत्थो चउ- रणम्
पत्थो आढो होई ॥२२॥ एयं देहसरूवं कहियं वीरेहि गोयमाईहिं । तंदुलवेयालियसुए भविप्रजणविबोहणट्राए ॥ २३ ॥ CM यंत्र-२ असइ-पसइ, २पसइ-सेतिअ, ४सेतिअ-कुडब, ४कुडव-प्रस्थ, ४प्रस्थ-आढक, ४आढक-द्रोण ११॥] इति देहकुलकं समाप्तम् ।।
॥ अथ कृष्णराजीविमानविचारस्तवनम् ॥ १२ ॥ जहिं जह लोगंतियसुरेहि वयसमय संथुय जिणिदा । तेसिं तह कित्तणेणं सभासओ अहमवि थुणेमि ॥१॥ तिरियमसंखइमो खलु दीवो अरुणवरनामओ तत्तो । जोयणदुचत्त ४२ सहसा ओगाहिय अरुणवरजलहिं ।। २ ॥ तत्थ पएसे जलमयतमकाओ निग्गओ कसिणरूवो। बलयागिइ अह भागे फुकुडपंजरसमो उवरि ॥ ३ ॥ उबरुवरि वित्थरंतो सोहम्माईण आवरेमाणो । ता पत्तो जा पंचमकप्पंतिमपयरुवरि मिलिओ ॥ ४ ॥ तत्थंतिमंमि पयरे रिट्ठाभविमाण चउदिसिं दो दो। समचउरंसखाडयदिइयो अड कण्हराईयो ॥ ५ ॥ पवावरउत्तरदाहिणाहि मझिल्लयाहि पुट्ठा हि । दाहिणउत्तर पुवा अवरा बहिराइयो कमसो ॥ ६॥ पुब्बावरा छलसा तंसा पण |
॥१८॥ दाहिणुत्तरा बज्झा । अभितर चउरंसा राईओ पुढविरूवाओ ॥७॥ श्रआयामपरिक्खेवो ताणं अस्संखजोयणसहस्सा ।। संखिज्जसहस्सा पुण
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मोक्षोपदः पश्चाशकर
।१९॥
विक्खंभो होइ एयाणं ॥८॥ ईसाणदिसाईसुं एयाणं अंतरेसु असुवि । अद्वैव विमाणाई तेसिं नामाई एयाई ॥ ६॥ अच्चिच्च अच्चिमालि य वयरोचण नामयं च बंभकरं। चंदाभं सुक्काभं सूराभं सुप्पइट्टाभं ॥ १० ॥ तेसु मुरसंख सगसय चउदसहस्स १४००० सगसहस्स७ जुयलतिगे। सेसतिगे नवसय ते सव्वे ख०ख०२६ दु२दुरसंखा २२६०० ॥ ११॥ अडसागरटिईया लोगंतिय जीयकप्पिया देवा । सत्तटुभवग्गहणा इमेहिं नामेहि गिज्झति ॥ १२ ॥ सारस्सयमाइच्चा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा अग्गिच्चा मझि रिहा य ।। १३ ॥ एए देवनिकाया जिणवयसमए समागया भत्ति । भत्तिभरनिब्भरंगा धुणंति एयाहि वाणीहिं ॥१४॥ जय नंदा जय भद्दा खत्तियवरवसभ! जय जय जिणंद । सव्वजगजीवहिययं भयवं तित्थं पवत्तेह ॥१५॥ तत्तो वयगहणमणा जिणनाहा तिगचउक्कमाईसुं । वरवरियं घोसाविय दिति य संवच्छरं दाणं ॥ १६ ॥ दिणि दिणि दिति जिणा कणगकोडि अड लक्ख पायरासं जा । तं कोडितिसय अडसी असीइ लक्खा हवइ वरिसे ( ३८८ क्रोड-८०-लाख ) ॥१७॥ इय दाउं गहियवया विहियतवा लद्धकेवला सिद्धा । जे अरिहंता ते मज्म दितु जयसेहरं ठाणं ॥ १८॥ इति कृष्णराजीविमानविचारस्तवनम् ।। १२ ।।
॥ अथ मोक्षोपदेशपञ्चाशकम् ।। १३ ॥ शुद्धध्यानलवित्रण, समूलः क्लेशपांदपः । विलूनो येन स सदा, जिनो जीयाज्जगत्पतिः ॥ १॥ समस्त्यस्तसुखो मोहमूलो भवविषद्रुमः । विलीनातिचिरालीनवासनाजललालितः ।। २ ॥ आधयो विविधावस्था, व्याधयश्चाधमाधमाः । जन्ममृत्युजराश्चास्य, स्वं स्वरूप जिनैर्मतम् ॥ ३ ॥ दुर्भगत्वदरिद्रत्वविरूपत्वपुरस्सराः । विडम्बनाः फलं प्राहुर्विडम्बितजगज्जनाः ॥ ४ ॥ चतस्रो गतयः शाखा, नानादुःखफलाकुलाः । तासु यहुःखमाख्यातं, तदिदानी निरूप्यते ॥ ५॥ पंचेन्द्रियवधासक्ता, मांसाशनकृतादराः। जायन्ते नरके जीवा, बह्वा
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प्रकरण समुच्चयः
॥२०॥
KALAMARCRABAR
रम्भपरिग्रहाः ॥६॥ कुम्भीपाकेन पच्यन्ते, पिष्टवन्नष्टचेतनाः । तत्र मुजादि (तृणादि) वञ्चेते, हन्यन्ते लगुडै टैः ॥७॥ बजजधेषु पांड्यन्ते, मोक्षोपदेश निपीडयन्ते तिलेशुवत् । भष्टा भूमीषु भूज्यन्ते, निस्त्राणाश्चणकादिवत् ॥ ८ ॥ दारुवदारुणाकारछिद्यन्ते च परश्वधैः। भिद्यन्ते प्रासकुन्ताये ||
पञ्चाशकम राखेटकमगादिवत ॥ ॥ तप्तं त्रपुं च पाय्यन्ते, आच्छोट्यन्ते शिलातले । आकीरणों कण्टकैस्तीगैरारोप्यन्ते च शाल्मलीम् ॥ १०॥ काककंकशृगालाद्यैर्भक्ष्यन्तेऽत्यन्तनिर्दयः । कार्यन्ते तरण रीणा, वैतरण्याः सुराधमैः ॥ ११॥ यस्य जिह्वाशतं वक्त्रे, यो जीवेच्छरदां शतम् । सोऽपि वक्तुं क्षमो न स्यादशर्म नरकेषु यत् ॥ १२ ॥ इति नारकदुःखम् ॥ कूटमानतुलावन्तो, मिथ्याभाषणतत्पराः । मायाविनो जना यान्ति, तैरश्चं जन्म निश्चितम् ॥१३॥ यादृशं मरके दुःखं, तियेक्ष्वपि च तादृशम् । यतो वाहनदोहाद्या, व्यापदोऽत्र सदुस्तराः।।१४।। जुत्तृष्णाबाधिता दीनाः, पारवश्यमुपागताः । वहन्ति पशवो भारं, पृष्ठकण्ठसमपितम् ।। १५ । केचनादाहदोषेण, दाहदोषेण केचन । केचिदलकशघातेन, कशाघातेन केचन ।। १६ ।। केचिद्वधेन बन्धेन, निरोधेन च केचन । कर्णपुच्छच्छविच्छेदनाशावेधादिभिस्तथा ॥१७॥ अपारदुःखसंसारमध्यममा दिवानिशम् । साक्षादेवेह दृश्यन्ते, तियेञ्चो वञ्चिताः शुभैः।।१८।। इति तिर्यग्दुःखम् । सामान्यदानदातारस्तुच्छकोपादिकिल्विषाः । लभन्ते मानुषं जन्म, जन्मिनो मध्यमैगुणैः ॥ १९ ।। रौद्रदारिद्यतस्तत्र, मृतभावातिशायिनः । केचित्कथाञ्चिज्जीवन्ति, मानवा मानवजिताः ।। २० । केचिनिष्ठुरकुष्ठेन, सुष्टु कष्टां दशां गताः। अन्ये ज्वरातिसारादिरोगोरगविषातुराः ॥२१॥ परकर्मकरा: केचिन्मलिनाननलोचनाः । दृश्यन्ते क्लेशजलधी, मना नना अनादृताः ॥२२॥ अन्ये स्कन्धसमारूढप्रौढभारा दृढापदः । जीवत्यतिजघन्येन, कर्मणा कर्मणोजिझताः ॥ २३ ॥ ज्वलज्वलनसम्पर्ककर्कशविहानलैः। केचित्तापितसर्वाङ्गा, ग्लायान्त गलितोद्यमाः ॥ २४॥ इति मनष्य-॥ दुःखम् ॥ अकामनिर्जरादिभ्यः, केचन स्युः सुरा अपि । तत्रापि न सुखख्यातिः, काचिदस्ति सतां मता ॥ २५ ॥ वितुद्यमानहृदया. ईया || ट॥२०॥
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प्रकरण समुच्चयः
मोक्षोपदे संसारवि कदेवस्वर
॥२१॥
OCOCCOCALSOCTOCOGEOGR
शल्यैर्दुरुद्धरैः । विषादवह्नावलाय, निपतन्त्यत्र केचन ॥ २६ ॥ कण्ठलोठितवादित्रा, हठतोऽकुण्ठतापराः। रङ्गस्थानेऽवतार्यन्ते, दीर्यमा| णाङ्गिका इव ॥ ॥२७॥ स्तम्घरम(हस्ति।तुरङ्गादिवाहनाकारधारिणः । दयाबाह्यं च वाह्यन्ते, केऽपि मृण्यादिघट्टनैः ॥२८॥ चण्डालाकृतयः केचिच्चण्डदण्डैर्निपीडिताः । स्वप्नेऽप्यलब्धसंचाराः, पुरन्दरसभादिषु।।२६।। स्वर्गारच्युति विलीनं च, गर्भजम्बाल(कादव) लालनम् । पश्यन्तो यत्र भिद्यन्ते, तद्वततनवः सुराः ॥ ३० ॥ इति देवगतिदुःखं ॥ यथेह लवणाम्भोभिः, पूरितो लवणोदधिः । शारीरमानसैर्दुःखैरसङ्ख्येयैस्तथा भवः ॥३१॥ किश्चित्स्वप्नाप्तधनवन्न तथ्यमिह किंचन । असारं राज्यवाज्यादि, तुषकण्डनवत्तथा ॥ ३२ ॥ तडिदाडम्बराकारं, सर्वमत्यन्तमस्थिरम् । मनोविनोदफलदं, बालधूलीगृहादिवत् ।। ३३ ॥ यश्च कश्चन कस्यापि, जायते सुखविभ्रमः । मधुदिग्धासिधाराप्रपासवन्नैष सुन्दरः ॥३४॥ इति संसारस्वरूपदुःखं । अत एव विरज्यन्ते, नीरजोम्ज्वलमानसाः। रोगादिव भुजङ्गाद्वा, संसारावासतोऽमुतः ॥३५॥ यतन्ते च सदानन्दसुधानीरधये उधिकम् । परमब्रह्मसंज्ञाय, पदाय विगतापदे ।। ३६ ॥ स्मरज्वरज्वरा मुख्या, दोषा भवभुवोऽत्र ये । सर्वथा ते न सन्त्येव, यत्र तत् परमं पदम् ॥ ३७॥ सर्वकल्याणसंयोगः, सर्वमङ्गलसंगमः। सर्वोपादेयसीमा च, यतस्तन्मृग्यते बुधैः ॥ ३८ ॥ यथाऽमृतरसास्वादी, नान्यत्र रमते जनः । तथा मुक्तिसुखाभिज्ञो, रज्यते न सुखान्तरे ॥ ३९॥ तीएर्णप्रायभवाम्भोधि—तसम्मोहकश्मलः। कश्चिदेव महाभागो, भवेत्सिद्धिमुखोन्मुखः ॥४०॥ इति मुक्तिसुखस्वरूपं ॥ चौराकुलपथप्राप्तो, यादृशो दुर्गसंग्रहः। गम्भीरसलिलेऽम्भोधौ, द्वीपाप्तिरथवा यथा ॥४१॥ महाशैलगुहायां वा, ज्वलद्रश्मिर्माणियथा । बिवेको निर्मलस्तद्वत्पुण्यभाजां विजृम्भते ॥४२॥ इति विवेकस्वरूपं ॥ क्रियाभिर्ज्ञानमूलाभिर्मोक्षोऽक्षेपेण सिध्यति । ताः पुनर्देवतापूजागुरुसेवादयो मताः ॥४३॥ विशुद्धकेवलालोकविलोकितजगत्त्रयः । प्रातिहार्यमहापूजाजनितासमविस्मयः ॥४४॥ समस्तजगतामेकं, मौलिमाणिक्यमुज्ज्वलम् । अर्हन्नेव सतां देवो, देवतागुणभूषितः॥४५।। इति देवस्वरूपं ।।
।।२१।
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प्रकरण समुच्चयः
मोक्षोपदे धर्मस्वरूपं
॥ २२ ॥
गुरुर्गृहीतशास्त्रार्थः, परां निःसङ्गतां गतः। मार्तण्डमण्डलसमो, भव्याम्भोजविकाशने ॥ ४६॥ गुणानां पालनं चैव, तथा वृद्धिश्च जायते । यस्मात्सदैव स गुरुभवकान्तारतायकः ॥४७॥ इति गुरुस्वरूपं ॥ स पुनर्जायते तावदाचारात्सज्जनश्रुतेः । आत्मबोधविशेषाच्च, पुण्याचेत्याह सर्ववित् ॥ ४८ ॥ अक्षुद्रता दया दाक्ष्यं, क्षमा वाक्ष्य( चाक्ष )विनिग्रहः । न्यायानुवृत्तिरनघा, यत्नश्च श्रुतशीलयोः॥४९॥ समानधर्मवात्सल्यं, यतिधर्मादरः परः । इत्यादिः कुशलारम्भो, मुक्तिमार्गतया मतः ॥ ५० ॥ इति धर्मस्वरूपं ।। मोक्षोपदेशपञ्चाशदेषा भाव्या | मुमुक्षुभिः । स्यान्मुनीन्द्रमुनीशेष्टं, येन मुक्तौ स्थिरं मनः ॥ ५१ ॥ इति श्रीमुनिचन्द्रमूरिविरचिता मोक्षोपदेशपञ्चाशिका समाप्ता ॥ १३ ॥
अथ शुद्धधर्मयोग्यजीवोपदेशपश्चाशिकामारंभः ।। १४ ॥ जिणिंदचंदाण कमारवंदे, बंदिसु संकंदणवंदणिज्जे । भणामि संखेवमहं गुणाणं, धम्मारिहाणं किल जे जियाणं ॥१॥ लण माणुस्स| भवं भवंमि, भविज्ज भो भव्व! भवा विरत्तो । धम्मे दढारूढमणो जमेत्तो, न सुंदरं किंचिदिह उन्नमस्थि ॥ २ ॥ चिंतामणी चित्तविचिंति
याणं, महोसहं सव्वदुहामयाणं । आणाणुसारेण सरेज्जमाणो, किं नाम कल्लाणमिमो न कुज्जा? ॥ ३ ॥ एयस्स लोगप्पहुणो पणाओ, | जोगो जुओ जो गुणसंपयाए । एसा अखुद्दत्त१पसन्नरूव२, सहावसोमत्त ३जणप्पियत्तं४ ॥ ४ ॥ अकूरभावो५तह भीरुयत्ता६ऽसढत्त दक्खिन्न८ सलज्जभावोह। दयालु१०मज्झत्थपसन्नदिलुि११, गुणाणुरागित्त१२मुदाहरति ॥५॥ सुद्धकहा१३ सुंदरपक्खगाहो १४.! सुदीहदंसीत्त १५ विसेसनाणं१६ । वुट्टाणुगामित्त१७विणीयभाव१८, कयन्नु १९ सत्तीइ परोवयारो२० ।।६।। सुलद्धलक्खणत्त२१मेगवीस| मिमे गुण तेहिं विभूसितो जो। सो चेव संसुद्धजिणिंदधम्मचिंतामणीपावणपच्चलोति ॥ ७ ॥ संपुनपुन्नो कुसलत्तणाइगुणोववेओ य जणे | | जहेत्थ । जोगो पहाणाण मणीण जाण, तहेव एयस्सवि एस भव्वो ॥८॥ अखुद्दचित्तत्तणको हवेज्ज, तो तुम धीरगहीरभावो।
॥ २२ ॥
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अणुस्सुओ इट्ठसमागमेस, कर्हिवि णटेसु अदुम्मणो य ॥ ६॥ पाएण बज्झवि गुणा भवंति, रूवे पसन्ने महुरे णराणं । अभंतरे किं पुण| शुध्धधर्म प्रकरण
IG|| सीलरूवे?. जएज्ज तो संठवणंमि तस्स ॥१०।। सोमो जहा सोम. सुदंसणिज्जो, सहावसोमत्तणओ गुणाओ । तहा तुम चिट्टणमासणेस, लाग्योपदेड समुच्चयः
होज्जा महाणंदकरो जणाणं ॥११॥ जणप्पिो सुंदर ! तेण अप्पा, तएउवाएण जहोचिएण। कज्जो जओ धम्मगुणाणुरागं,
जणा कयाणंदमणा कुणंति ॥ १२॥ सव्वस्स कल्लाणविचिंतगाणं, समंतओ भद्दपरंपराभो। भवंति कूरत्तणमप्पमत्तो, चएज्ज तं ॥२३॥
सजणमि चित्तं ॥ १३ जहा मसाणिंधनमद्धदई, तहा जणो सीलकलंकिओ जो। कलंकपंकाउ कुलाइहीलाणिबंधणाओ भव भीरुभावो ॥१४॥ पुव्वं मणो होज्ज जहा तहेव, भासिज्ज चिट्ठिज्ज तुम तो ते । दढं दढत्तेण ऽजढस्स होही, सुहं जसो निम्मलधम्मकम्मं ॥१५॥ धीरो गहीरो हयमच्छरो य, घवन्नदक्खिन्नभरो भवित्ता । परत्थ मज्झत्थियसूरयाए, करेज्ज सव्वत्थ पसत्थचित्तो ।।१६।। लज्जिज्ज सक्खं सपसंसणांम, मज्के महंताण पहाणभावे । कहिंचि दुट्ठाइ कुलट्ठिईए, भंगे अणायारनिसेवणाय ॥ १७ ॥ दयालुया धम्मधणस्स मूलं, तो तदत्थी पढमं तमेव । करेज्ज इसिपि परिरुचएज्जा, तुम परुव्वेयकार पवित्तिं ॥ १८॥ अपक्खवाएण (अपक्षपातेन) णिए परे य, जणमि वट्टिज्ज ठिई ठवितो। एवं च मज्झत्थगुणत्तणाओ, विस्संभणिज्जोऽसि तुमं जणाणं ॥ १९ ॥ निद्धं सुतारं सरलं सलोणं, पफुल्लनीलोप्पलकोमलं च । जणंमि पीयूसमितुम्मुयंतं, चक्खुप्पसन्नं सइ निक्खिवेज्जा ।। २० ॥ नीहारहारुज्जलसालिसीले, जणे गुणन्नम्मि रई करेजा । जओ जिओ तग्गुणखित्तचित्ते, ण रज्जए दोसविसे कहंपि ॥ २१ ॥ मुंचेज्ज मिच्छाभिनिवेसबुद्धिं, वई तहा दोसवई सहावि । कहं च पक्खं च विसुद्धमेव, करेज्ज सद्धम्मपरायणाणं ॥ २२ ॥ मा निष्फलारंभपरो भवेज्जा, पराभवट्ठाणकरो स जम्हा । सुदीहदंसित्तणो विहेज्ज, कज्जाइ पज्जंतसुहावहाई ॥ २३ ॥ जाणेज्ज सव्वत्थ तुमं विसेसं, गुणाण दोसाण य निव्विसेसं ।।
CROMANCESCAMERCMS
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शुध्धधर्म ग्योपदेश
॥२४॥
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सबुद्धिजोगेण तो न होही, पोयणे कत्थुइ विप्पलंभो ॥२४॥ वुड्डाणुगामित्तणो णराणं, बुद्धीउ सुद्धा समुभवंति । वयं च सत्थं च । समेञ्च बुड़े, तो तुमं धीर! सया सरेज्जा ॥२५॥ अप्पाणमच्चंतविणीयभावं, ठवेज्ज धम्मो विण्यप्पहाणो। तहा ण कल्लाणमगुणमएणो, जहा विणीओ विणयादुवेइ ।। २६ ॥ कयन्नुया नाम गुणाण मूलं, दोसाण मूलं च कयप्पणासो। थेवपि मन्नेज्ज परोक्यारं, न सम्बहा निण्वमायरेज्जा ।। १७ । जम्मं च जीयं च धणं च चारु, तं चेव चिंतेज्ज सलक्खणं च । जं मे परत्थंमि समुज्जएक्कचित्तस्स साहेज्ज करं वेज्ज ॥ २८ ॥ विचिंतिऊणं निउणं वेज्जा, सव्वमि कब्जे लहु लद्धलक्खो। एवं चमुक्कारकराइ होति, किलाकिलेसेण पोयणाई ॥ २६ ॥ एए गुणे धीर! तुमं धरतो, गुणाण लोगुत्तरसंगयाणं । अप्पाणमप्पेज्ज जमन्नहा ते, तदुब्भवत्तेण न चेव होंति ॥ ३० ॥ अकारणा नत्थिह कज्जसिद्धी, न याणुवाएण वयंति तन्ना । उवायचं कारणसंपउत्तो, साहेइ कज्जाइ पयत्तवं च ॥ ३१ ॥ दुमंमि पुष्पं च फलं च पच्छा, जहा कमेणेव रसप्पसिद्धी । भब्वे तहा लोयगुणा तो य, लोगुत्तरा सिद्धिसुहं च तत्तो ॥ ३२ ॥ जहुच्छुकंडाण रसा सहावा, सीओ सिसिद्धो महुरो य होइ । एमेव एए सुकुलुग्गयाणं, भवंति पाएण गुणा जणाणं ।।३३।। जहारसो सो परिकम्मणाओ, गुडाइपज्जायपरंपराए । वरिसोलगुप्पत्तिरसावसाणं, लहेज्ज माहोज्जगुणं तहेव ॥ ३४ ॥ एयाणमेतेउवि गुणा गुरूणं, चरित्तवंताण बहुस्सुयाणं । संसग्गो पन्नवणागुणाओ, लोगुत्तरत्तेण परीणमंति ॥३५॥ लोगुत्तरे धम्मपहे पवन्ने, भवेज्जं सुप्तत्तविहिप्पहाणो । मोहंधयाराउ जियंमि लोए, न सत्थदीवादपरो पयासो ॥ ३६ ॥ जिणाणमाणाणुगमेण हीणो, धम्मो न धम्मत्तणमावहेइ। पेच्छाच्छणोकिण्णिविलोयणाणं, जहा सुचुक्खोवि न किंचिदेव ॥३७॥ तंबं जहा सिद्धरसाणुविद्धं, चएज्ज तंबत्तमसेसमेवं । भावस्सरूवं विसमंपि भव्वा !, प्राणापरीणामगुणाण जाण ।। ३८ ।। भव्वत्तमेत्थं किल तंबधाऊ, तंबत्तमक्खुद्दगुणाइभावो । आणारसो सुद्धगुरुप्पसिद्धो, सुवन्नभावो य जियाण मोक्खो ॥३६॥
२४ ।
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प्रकरण समुच्चयः
॥२५॥
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वेलावहाणाइगुणोववेयं, करेज चीवंदणमायरेण । अझनिव्वाणफलं तिसंझ, पमोयरोमंचियमंगुवंगो ॥ ४० ॥ जहोचियाओ || शुध्धधमे किरियाउ हाणी. सयं च तेसिं च न पाउणन्ति । काले विहाणेण तुमं गुरूणं, करेग्ज पुज्जाणमुवासणंति ॥४१॥ तहा असंदिद्धमणो ग्योपदे सुणेज्ज, सिद्धुतसंसिद्धषयत्थसत्थं । कहिंचि संदेहमुवागोऽवि, बहुस्सुए तत्थ पमाणएज्जा ॥ ४२ ॥ पयंपएणं परिसंठविन्तो, तयत्थमच्चत्थमगुस्सरंतो। संवेयनिव्वेयरसं फुसंतो, सज्झायमउझीणमणे सरिज्ज ॥ ४३ ॥ एवं च सामाइयमाइकिच्चे, लोगुत्तरे चत्तपमत्तभावो । उदग्गवेरग्गसमग्गचित्तो, जत्तं ससत्तीऍ पवत्तएज्जा ॥४४॥ अकंडचंडानिलसंपणुएणविलोलजालासयसंकुलमि । जहा पलित्तंमि ( ज्वालते ) गिहे न जुत्तो, सुबुद्धिणो जागरओऽणुरागो ॥ ४५ ॥ एमेवमचंतमभियांमि, जराइ मच्चूइ भवंमि निच्चं । विवेयवं निक्खमणेकचित्तो, ण रज्जए कत्थइ वत्थुभेए ॥४६॥ अव्वंगसीलंगमणंगरंगभंगक्खमं चत्तसमत्थसंगो । पउत्तजत्तो य जहुत्तमेव, कया णु चारित्तमहं चरिस्सं ? ॥४७॥ एवं सुचिंतापरमो गिहंमि, वेसागिहावाससमं वसिज्जा । तुमं तओ अप्पडिबद्धभावो, णढे विणलुमि न मिज्जासत्ति ॥४८॥ विसुज्झमाणज्झवसायजोगा, कम्मे किलिटुंमि पलीयमाणे । इहं जसो चित्त चए सुहं च, सग्गोऽपवग्गो य परत्थ होइ ॥ ४९ ॥ तुम्हाणं भणियं मए जिणमउद्देसेण संखेवो, एयं निम्मलधम्मकम्मविसए जोग्गत्तसूयापरं । ता तुम्भं भणियाणुसारविहिणा बडेज्जहा सव्वहा, संसारासयऽसंखदुक्खणिहणो मोक्खो जओ नऽन्नहा ।। ५०॥ इति शुद्धधर्मयोग्यजावोपदेशपञ्चाशिका समाप्तेति ॥ १४ ॥
॥२५॥ ॥ अथ हितोपदेशकुलकपञ्चविंशती द्वे ॥ १५॥ निसुणंतु खणं परिरंभिऊण भव्वा! मणं समाहिम्मि । उवएसलेसमणवज्जकज्जमेयं भणिज्जंतं ॥१॥ दुलहं ता मणुयत्ते पत्ते
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प्रकरण
समुच्चयः
॥२६॥
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वित्तारियत्तमित्तो य | निम्मल कुलजाइसमग्गरूवयारोम (ग्ग) सामग्गी ॥ २ ॥ तत्थवि महद्दहट्ठियकुम्मस्स मयंकमंडलालोओ । चम्मंतरेण दुलहो जह तह जीवाण जिणधम्मो || ३ || पत्तोऽवि पमत्तेहि सत्तेहिं पत्तयाविउत्तेहिं । चिंतारयणं व महोयहिंमि हारिज्जए एसो ॥ ४॥ ता पाविकरण एयं मुक्कपमाएण कुसलपुरिसेणं । एयथिरत्तनिमित्तं निसेवणिज्जाई एयाई || ५ || जिणसासणागुरागो निच्चमचागो (अत्यागः) सुसाहुमंगस्स । समं च सुयवभासो तह तह भवभावगुल्लासो || ६ || मरुपहपहिओ कप्पहुमं व पोयं व जलहिजलपडिओ । चिंतारयणं व चिरं दारिद्दोवद्दवाभिहओ ॥ ७ ॥ संपइ रे जीव ! तुमं धम्मं सव्वन्नुनाहपन्नत्तं । पत्तो कहिंचि नूणं ता तं संपुन्नपुन्नोऽसि ॥ ८ ॥ सुलहं | सव्वंपि जए रे जीव ! सुरेसरत्तमाईयं । निव्वुइसुहारा साहणमणहो दुलहो य जिणधम्मो ॥ ९ ॥ तम्हा इणमेव पुरो कार्ड हाउं च पावचरियाई । जुत्तं पवत्तिउं ते जेण खणो दुल्लहो एसो || १० || एवम सास णिज्जो अप्पा निच्चपि भवविरत्तेणं । चित्तेण जेण ण जिओ जिणमयं हाउमुच्छहइ ॥ ११ ॥ कमलुज्जलसलसिरिसुगंधियो बंधुणो य भुषणस्स । निच्चं निसेवणिज्जा मुणिणो गुणिणो पयत्तें ।। १२ ।। | दढमारूढगुणोऽव हु जीवो इह साहुसंगपरिहरिणो । पाउणइ गुणविणासं जएज्ज ता तेसि संगकए ॥१३॥ सिद्धंतधारगाणं विसुद्धसीलंगसंगसुभगाणं | दूरद्वियापि मरणे करेज्ज सुमुखीख संभरणं ।। १४ ।। मंतविवज्जियमोमज्जणं व निज्जीवदेह किरियंव । सुयबहुमाणविहीणं | मज्जाणं ॥ १५ ॥ तत्थ पढमं पढेज्जा सुत्तं तत्तो सुणेज्ज तस्सऽथं । सुत्त (अत्थ) विहीणं पुरण सुयमपक्कफल संस (भक्ख ) णसरिच्छ्रं ॥१६॥ सुतं पढिपि बहु अपरिन्नायत्थमित्थमक्खायं । सुक्कस्स इक्खुणो भक्खरांव ण खमं सकज्जस्स || १७ || भणियाणायरणवओो समयन्नू पनवंति णापि । भारकरं चिय दूभगमहिलाहरणं व बहुयंपि ।। १८ ।। ता भववाहिचिरिच्छासत्थं सुत्थियपयत्थपरमत्थं । जिरणवयणमणुदिणं चिय पढिज्ज शिसुज्ज गुट्ठेज्जा ।। १९ ।। भावेज्जा भवरूवं जह इह सरयन्भ (शरद) विब्भमं सव्वं । जियजोव्वणापियसं
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हितोपदेश कुलकं
॥ २६ ॥
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मकरण समुचयः
॥२७||
गममाई खणदिवणट्ठति ॥२०॥ उब्वणपवणपणोल्लियमहल्लहुलंतजलणजालाम । गेहम्मि व मन्नेज्जा खणपि ण खमो भवे वासो ॥२१॥ | | जह दुज्जणजणसंगो भंगफलो तह दुहावसाणो य। संसारे तह तियसत्तणाइसोक्खाण परिणामो ॥ २२ ॥ एकोऽत्थ पसत्थसमत्थवत्थु. हितोपदे | वित्थारफुरियमाहप्पो । पमुहावसाणसुंदरपरिणामो नवरि जिणधम्मो ॥२३॥ तेण अलद्धं लध्दु लद्धं परिपालिउं इमे बुड़े । परिपालियं च |४| कुलक परमं वुड्डी नेउं पयत्तेज्जा ॥ २४ ।। धन्ना भवदुक्खाणं तिक्खाण असंखलक्खसंखाएं। एयं विरेयणोसहमुवएसं केइ पावेंति ॥ २५ ॥ ।। इति प्रथमा हितोपदेशकुलकपञ्चविंशतिका ॥ १ ॥ अथ द्वितीया।
सुणेह भो भव्वजणा! भवित्ता, समं समाहाणपहाणचित्ता । असारसंसारविरागहेडं, धम्मोवएसं सहलं विहेउं ॥ १ ॥ पलित्तमंदिरागारो, सच्चमच्चंतभीसणो । एसो भवोयही तिक्खदुक्खलक्खऽवलक्खिो ॥२॥ अबंभं कारणं जम्मे, मरणस्स सरीरिणो । दुरंतो य || कयंतोऽवि,कयनासो समंतओ ॥३।। परं पराभवट्ठाणं, दालिदं रोदरूवयं । अभच्छायब्व लच्छीओ, तुच्छाओ पिच्छ निच्छियं ॥४॥ जलंमि || D मच्छलुत्थल्लतुल्ला य पियसंगमो । खणं पणट्ठिया कट्ठमणिट्ठाणं समागमा ॥५॥ तहावि छिन्नवंछोहछोहवंतो जिया इहं । जहाचिंतियमत्थाणं, IX संपत्ती पुण दुल्लहा ॥६॥धम्माभिप्पायावग्घस्स, कारओ वल्लहो जणो । पायं स भावगम्भेण, पेम्मेण य विवज्जिो . ॥७॥ मग्गमेत्तगवेसश्रिो, आवयाउ खणे खणे । पच्चासन्न निसन्नो य, निच्चं मच्चू सरीरिणं ॥८॥ जोव्वणं जीवियं रूवं, विज्जुविज्जोयचंचलं । ता इत्थं पडिबंधस्स, ठाणमत्थि न किंचिवि ॥ ९ ॥ जहा महासमुद्दमि, चुए चिंतामणी तहा। दुल्लभे माणुसे जम्मे, सुद्धजाईकुलन्निए ॥ १० ॥ तं लणं महाभागाः, रागादेगंतओ तओ। पमायस्स खमो(य)काउं, तुम्हाणं धम्म उज्जमो ॥११॥ तत्थ विच्छिन्नसंसारकंतारुत्तारकारओ ।* देवो जिणो पयत्तणं, सेवणिज्जो विहाणओ ॥ १२॥ तहा भीमभवुब्बिग्गा, सम्मं मग्गाणुगामिणो। निहाणं णाणमाईणं, वंदणिज्जा
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प्रकरण
हितोपदे
समुचयः
कुलक
॥२८॥
सुसाहुणो ॥१३॥कामग्गहमहामंतो, कम्मदारुदवानलो । मोहदावजलुप्पीलो, मिच्छत्ततमदीवो ॥ १४ ॥ कल्लाणकंदलीकंदो, जिाणंदपरिभासियो । सोयव्वो सुप्पणीहाणं, सिद्धंतो तेसिमंतिए ॥ १५ ॥ तहा तस्साणुसारेणं, पसन्नेण मणेण य। कज्जो चीवंदणाइंमि, धम्मकज्जे समुज्जमो ॥ १६ ॥ मूलओ चेव दुस्सीलजणसंसग्गिवज्जणं । सुसीलजणसंवासो, कसाइंदियनिग्गहो ॥ १७ ॥ तहाणुव्वयमाईया, जे य पुब्वमभिग्गहा । पवन्ना जायए वुडी जहा ताण तहा करे ॥ १८॥ देज्जा दीणाईणं दाणं, सीलेज्जा सीलमुज्जलं । जहासत्तीएँ तप्पेज्जा, तवं भावेज्ज भावणं ॥१६॥ साहुविस्सामणाझम्मि, रमेज्जा विणए तहा । अपुवापुव्वरूवे य, पवज्जेज्जा अभिग्गहे
॥ २० ॥ सुद्धसभायमाणेसु, अपुष्वपढणम्मि य । सदोसगुणाचंताए, चित्तं दिज्जा निरंतरं ।। २१ ॥ बज्जेत्ता सेससावज्जं, कज्ज | पव्वज्जमुज्जलं । कया अहं पब्वज्जामि, इई चिंतेज्ज निच्चसो ॥ २२ ॥ मित्तत्तं सव्वजीवेसुं, गुणरागो गुणन्नुसुं। दुक्खिएसु दयालुत्तं, | निग्गुणाणमुवेहणं ॥ २३ ॥ गंभीरत्तमुदारत्तं, धीरभावो थिरत्तणं । एवमाई गुणग्गाम, सुटुमब्भूयमब्भसे ॥ २४ ॥ एसो मए तुम्हमगुग्गहत्थो, हिओवएसो भणिो महत्थो । एयाणुसारेण तओ य निञ्चं, कायब्वमेत्तो सयलंपि किच्चं ॥ २५ ॥
॥ इति हितोपदेशकुलके समाप्ते ।। अथ उपदेशामृतपश्चविंशतिका ॥ १६ ॥ भो भो भव्वा! सवणंजलीहि दुहदाहपसमणसमत्थं । उवएसामयमेयं पिबह खणं मोक्खसोक्खकए ॥ १॥ गंभीरनीरनीरहिनिहित्तमुत्ताहलं व मणुयत्तं । लर्बु सधम्मकम्मायरेण सहलं विहेयव्वं ।। २ ॥ तस्स य सुधम्मकप्पडुमस्स सुरणरसमिद्धिकुसुमस्स । निव्वुइसुहविउलफलोहसालिणो मूलममियाइं ॥३॥ सिद्धंतसुई सुमुणीण संगमो मच्चुणो सया चिंता । तह दुकडसुकडाणं कडाण फलचिंतणं चित्तं ॥ ४॥ समयसुइसलिलसित्ता कसायदवदूमियावि भव्वदुमा । जायंति बहलवेरग्गपल्लवुल्लासिणो झत्ति ।।५।। मोहविसोवसमखमं जमोसहं|
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॥ २८
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प्रकरण समुच्चयः
॥ २९॥
विसमकम्मरोगाणं । तस्स सपुरण समयामयस्स रसपाइणो होति ॥ ६॥ निम्मलनाणपहाण जलनिहिणणे चरणकरणारयणार्य । कप्प-15 उपदेशामृत दुमव्व सययं सुसाहुणो सेवणिज्जत्ति ॥ ७॥ निच्चं च खलियसीलहिं संथवं सव्वहा विवज्जेज्जा । जं जीवो संसग्गेण तम्मश्रो होइप्रकरणम् अचिरेणं ॥८॥ होज्ज व ण वा पहुत्तं दोसाययणेसु वट्टमाणस्स । भूयफलदोसदरिसी भूयच्छायं विवज्जेइ ॥6॥ पिप्पलदलग्गलम्गो | व्व जललवो चंचलं विचिंतेज्जा । जीयममुणियागमणं मरणं अइदारुणसहावं ॥१०॥ अनिवाराणज्जमेयं सयणधणाईण भावहेऊ य ।
ता एयंमि अपत्ते जुत्तं हियमप्पणो कार्ड ॥ ११ ॥ चिंतेज दुकडा पमायचारियाण विरसमवसाणं । दुस्सहदुरंतसयसंखदुक्खरुवं जओ | भणियं ॥ १२॥ न तहा विसं न सत्थं न बिसहरो दारुणो हयासो य। जह जीवाण पमायो अणत्यसयसाहणो होइ ॥ १३ ॥ सवसा || चिणंति कम्मं पमायो तेण परवसा होति । सवसो दुरुहइ रुक्खं निवडेइ परव्यसो तत्तो ॥१४॥ श्रमलं भावेज फलं धम्माईणं विहाणविहियाणं । सुकुलुग्गमाइसग्गापवग्गसुहसंपयारूवं ॥१५॥ कप्पा मोवि चिंतामणीवि जीवाण कामधेरावि । न तहा कप्पति फलं जहप्पणी सुद्धचरियाई ॥१६॥ कप्पदुमं तणेण व काणकवडेण कामधेणू व । चिंतामणिमुवलेण व किणेज्ज देहेण धम्मधणं ॥ १७ ॥ इहइंपि | सज्जणाणं सलाहणिज्जो सय सुही चेव । सुविसुद्धधम्मकम्मे समुज्जओ जायए जीवो ॥ १८॥ ता सम्वहा जएज्जा तह जह मसुयत्तसाईसामग्गी । एसा जिणाखमाणाऽऽराहणो फलबई होई ॥१६॥ तत्थ सिवसाहणाणं चिइवंदणमाइयाण सव्वेसिं । आवस्सयाण हाणी थेवीविय रक्खणिज्जत्ति ॥ २०॥ तहउणुव्वयमाईणं पडिवनगुणाण पालणे जत्तो। करणिज्जो अइयारा दूरं परिवज्जाणिज्जा य ॥ २१ ॥ पसमामएस जह जह कसायविसमुवसमं पवज्जेइ । चिट्ठणभासणसचिंतणाणि तह तह विजेयाणि ॥२२॥ तुसखंडणं व मयमंडणं व
४ ॥ २९॥ तह सुन्नरन्नस व । संपुग्नपि य जमुवसमसुम्नं मन्नेज्ज ऽणुद्वाणं ॥२३ ॥ किं बहुणा? कुसलासयकप्पतरू पडियरणीश्रो तहाउपमत्तेहिं । जह
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मकरण समुच्चयः
धर्मोपदेशामामत प्रकरण
॥३०॥
COCOCOCCARECRACROCAL
न कुरियप्पदुक्कयदूसिनो निष्फलो होई ॥२४॥धन्ना हिओवएसाण भायणं पाणिणो परं होति । तं एवं अनंपि यजं जुत्तं तं विहेयब्वं ॥२५॥ ॥ इत्युपदेशामृतपञ्चविसतिका सभाप्ता ।। १६ ॥.
॥ अथ धर्मोपदेशामृतपश्चविंशतिका, आर्यावृत्तम् ॥ १७ ॥ विसमो विसयविसदुमो वेरमाकरण जेण मूलाओ। उम्मूलिओ सुहत्थी सो जयइ जिणे महावीरो ॥ १॥ विसयासुइलोलाणं विसयविसावेसपरवसमणाणं । अणुसासणं जियाणं इणमो भव्वा! निसामेह ॥ २ ॥ जह मंसं कुट्ठीणं अहषा जह जरपराण घयपाणं । जह विदलं | मूमीणं तह विसया मोहबहुलाणं ॥ ३॥ ते पुण पंच पयारा सदा रूवा रसा य गंधा य । फासा य भावरोगो अणाइमं तेसु जा मुच्छा ॥४॥
खीणे इमम्मि सं नथि जन्म दुक्खं जियाण किल झीणं । तं नत्थि किंपि कल्लाणमेत्थ भुवणे न जं पत्तं ॥५॥ विसयविवागनिहालणमिह | विसयबिरखसत्तसरणं च । संतोसभावणं चिय इमस्स खमणे निमित्ताई॥६॥ जो रोगो जो सोगो खेओ भेओ य जो य जीवाणं । जं काहन्न
रुनं च कारखं तस्थ विसयविसं ॥ ७॥ ज णारगाण दुक्खं जं च तिरिक्खाण जं च मणुयाणं । देवाण जं च तंपि य विसयपिवासुब्भवं सव्वं In विसया विसं व विसमा विसया बडिसामिसं व मरणकरा । विसया सेविज्जता छलबहुला तह मसाणं व ॥९॥ निसियग्गखग्गपंजरघरं व सवंगछेइणो विसया। किंपागपागसरिसा विसया मुहमहुरभावेणं ॥१०॥खणदिवा खणनट्ठा खणजणमणमीलणोवमा विसया । किं बहुणा सव्वेसिं विसया मूलं अणत्थाणं ॥ ११॥ कोसासंसग्गीए अम्गीइ व जो तया सुवन्नं व । उच्छालयबहलतेश्रो स धूलभद्दो मुणी जयइ ॥ १२ ॥ धन्नो सो वइरारिसी भिन्नो वरं व जो ण तारुन्ने । लायन्नपुनकनापत्थणघणघायघडणाहिं ॥ १३ ।। कस्स ण चोज्ज अज्जा राइमई विजणगिरिगुहामज्झे । रहनेमिमत्तहत्थी सुमग्गमोयारिओ जीए ॥ १४ ॥ अज्जावि पुष्फचूला सीलुज्जलमहिलपुप्फचूलब्ध
॥ ३०॥
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मकरण समुच्चयः
॥ ३१ ॥
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|| पुब्वपियब्भासांमवि केवलमाशाहिये जीएं ॥ १५ ॥ भुवणे सुंदंसणो खलु सुदंसणो सावधवि जो तइया । अभयाए पाडेमाटेओ न खोभियो मरणवसणेऽवि ॥ १६ ॥ ते धन्ना समणोवासयावि जे दूरविरयविसयरसा । जणपत्थाज्जचारिया सिवजम्मे जंबुणामोव्व ॥ १७ ॥ स त्र सुंदरी सुंदारीत्त विसएस निप्पिबासाए । सट्ठि वाससहस्सा आयाममरगुट्टियं जीए । १८ ॥ भुवपत्तयपञ्चक्खं उम्मीलियविमलसीलमाहप्पा । जयवंदणिज्जचलणा सीया सुलसा सुभद्दा य ॥ १९ ॥ अइदुग्गमविसयग्गामसामिउद्दाम काममयमलणे । अनेवि महासत्ते सत्ते निचे चिय सरेज्जा | २० || संतोसरसामयपरिणइबसेण निम्महियविसमबिसयतिसा । परमानंदमया इव इपि सुहिणो जणा होति ।। २१ ।। संतोसनंदवणे कत्तो चित्तस्स संचरंतस्स । संसारमरुस्थलभमणविसयत हुन्भवो दाहो ? ॥ २९ ॥ संतो सपासपडिओ न परं मणमक्कडो तडप्फडइ । अइविसमविस धुमसंनिभेसु विसपसु बद्धरसो ॥ २३ ॥ एसो सो अमयरसो परमाणंदो इमं परं तत्तं । जं बिसयलालसारा विणिग्गहो इंदियमणाणं ।। २४ ।। विसउम्मग्गविलग्गो वि एयमगुसासणंकुलं सिरसा । धरमाणो नियमेणं करीब मग्गं जिओ जाइ ॥ २५ ॥ इति धर्मोपदेशामृतपंचविंशतिका समाप्ता ॥
॥ अथ सामान्यगुणोपदेशकुलकम्, आर्यावृत्तं ॥ १८ ॥
निक्षारयविससरं वीरं बंदिसु वित्तरुइपसरं । दिन्नजियदिक्खसिक्खं भणामि सामन्नगुणसिक्खं ॥ १ ॥ ववहारसुद्धिजणादाण - ज्जवावारचागणिष्पन्ना व्यापारत्यागनिष्पन्ना ) । कालुचिय ऽवियल सम्मम्म परिपालय सरूवा ॥ २ ।। संखाणं धवलपहा गभीरयाविव महासमुद्दाणं । चंदारण सिसिरजोरहन्न जयणसोहव्व दरिणीणं ।। ३ ।। उच्छू महुरयाविव धम्मियकुलजाइधम्मसन्भावो । अइविहु सिद्धा सा तेसिं तद्दवि एवं समवसेया ॥ ४ ॥ णाणवयवुड्डुसेवा सत्यन्भासो परोवयारितं । सच्चरियजणपसंसा दक्खिन्नपरा
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सामान्य
गुणोपदेश कुलकम् -
॥ ३१ ॥
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NCR
प्रकरण समुच्चयः
सामान्य गुणोपदेश
कुलकम्.
॥ ३२ ॥
CROSONAGAUR
| यणत्तं च ॥ ५ ॥ उत्तमगुणाणुरागो अणुस्सुगत्तं श्रखुद्दभावो में । परलोयभीरुयत्तं सव्वत्थ अणस्थपरिहासे ॥ ६॥ गुरुदेवाविहिपूर्यणमपक्खवाएण णायदरिसितं । असदग्गवजणया सपणयपुव्याभिभासित्तं ॥७॥ वसमि सुधीरत्तं संपत्तीए असुब्बलचं च । सगुणपसंसानुग्जामत्तकरिसस्स परिहारो ॥ ८ ॥ नयविक्कमसालित्तं लज्जालतं सुदीहदरिसित्वं । उसमकमवत्तित्तं पडिवनभरेणधवलत्तं ॥ ९ ॥ उचियहिइपरिवालणमदुराराहत्तणं जणपियत्तं । परपीडापरिहारो थिरया संतोससारतं ॥ १० ॥ अणवरब गुणब्भासो परत्य संपाडणिकरसियत्तं । पयईए विणीयत्तं हिओवएसोवजीवितं ॥ ११ ॥ गुरुजणरायाईणं अवन्नवायाहकारिपरिहरणं । इहपरलोयावायाइचिंतणं चेव अइनिउणं ॥१२॥ एमाइगुणगणो उत्तमेहिं इहपरभवे हि हियहेऊ । अप्पासयंमि णिच्चं णिवेसियव्वो पयत्तणं ॥ १३ ॥ इय गुणजोगाराहिय सामन्नावहिं गिही अजत्तणं । साहेइ विसेसविहिपि नूणं तदवंझहेउत्ति ॥ १४ ॥ सामन्नगुणाऊसत्तो किमन्नं धरि नरो विससगुणे? । नहु सरिसवंपि वोढुं असमत्थो मंदरं धरिही ॥ १५ ॥ इय सामन्त्रगुणज्जमजुत्तो धीरो जगज्ज नियंपि। सुत्तोजग समणोचियगुणेसु तम्मूलगा जंते ॥ १६ ॥ तत्थ पुण विसेसगुणा अणुव्वयाई उ सावयाणुचिया । साहूण खमा मद्दव अज्जव मुत्ती पहागाओ ॥१७|जह दुद्धं घेणूओ दुमाउ पुप्फ जलाउ जह कमलं'। आयारपरबहुस्सुयगुरुसिक्खाओ तह गुणावि ॥ १८ ॥ जं दक्खोकि न पेक्खइ गुरुसिक्खापज्जिओ गुणविससं । जह निम्मलावि चक्खू पयासरहियाण घडपडाइ ॥ १६॥ विउलोवि हेममउलो (सुवर्णमुकुटः) सुवनगारं विणा न हेमत्तं । जह लहइ तहा भव्वो गुरुरहिओ भणियगुणनियहं ।। २०॥ कल्लाणमेत्तमेकं गुणपालणपावणोवत्रयहेऊ । गिरिगुरुयगुणं सुगुरुं निशं ता पज्जुवासिज्जा ॥२शा इय गुणरयणपहाणा सकयत्था (सकृतार्थाः) एत्थ चेव जम्ममि । सरयससिसरिसजसमरभरियदियंस जियंति सुहं ॥२२॥ परलोए पुण कल्लाणमालियामालिया कमेणेव । अणुभूयचोक्खसोक्खा लहवि मोक्वंपि खीणरया
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धर्मोपदेश कुलकम्
पकरण 18॥ २३ ॥को नाम किर सकन्नो गुणेसु सुइजत्तमेत्तसज्झेसु ? । अप्पाणमगुणसंभावणामसीमीसियं कुणइ ॥२४॥ इय उवएसरसायणमुवीय समुच्चयः आयरेण भव्वजणा! । पिब णिञ्चमजचरियं जइ काउमणा मणागंपि ॥ २५ ।। इति श्रीसामान्यगुणोपदेशकुलकं समाप्तम् ।।
॥ अथ धम्मोपदेशकुलकम् ॥ १९ ॥ भुवणजणवंदणिज्ज वंदिय दियमाणमच्छरं वीरं । धम्मोवएसलेसं समासओ किंपि जपेमि ॥ १ ॥ इह भीमे भवरन्ने सन्नाणविवज्जिओं ४ इमो जीवो । भमिओ चिरं न पत्तो कहिंवि जिणदेसियं धर्म ॥२॥ ता पाविओ इह तइ संपइ विवरेण असुहकम्माणं । दहगयकच्छभगीवाहै ससिबिंबालोयणसमाणो ॥ ३ ॥ एसो मणकप्पियकप्पपायवो साहिओ जिणिदेहि । कल्लाणकामिणा तो जणेण एसोच्चिय विहेओ ॥ ४ ॥ एयस्स | मूलहेऊ जीवदयाई परूविओ दसहा । ता एयंमि गुणगणे निकचं जत्तो विहेयव्वो ॥ ५ ॥ जह सेलाण सुमेरू सयंभुरमणो जहा जलनिहीणं । जह चंदो ताराणं गुणाण सारा तहेह दया ॥ ६ ॥ सच्चेण जणपसिद्धी धम्माविसुद्धी य होइ सच्चेणं । सच्चेण सुगइलाभो सच्चसरिच्छं परं नत्थि ।।७॥ एगंतविरत्तमणा जे परदवावहारकरणाओ। किं तेसिमिह न सोक्खं ? को न जसो किं व कल्लाणं ? ॥ ८॥ जे बंभवयपहाणा पुरिसा बंभावि तेसि- पणमेइ । नत्थि असझं (असाध्यं) कज्ज तेर्सि सयलेऽवि भुवणेऽवि ।।९॥ तेसिं न अस्थि अपिओ न पिओ ते सयलदुक्खदूरचरा । जे सयलपरिग्गहनिग्गहण सव्वत्थ वटुंति ॥ १०॥ कयकल्लाणकलावा ते इह नूर्ण नरा न उण अन्ने । विसहरविसरोगसमं मिच्छत्तं जेहि परिचत्तं (परित्यक्तं) ॥ ११ ॥ कोहो कद्दमकोहोव्व ( कर्दमकोत्थकः ) कस्स नहु होइ पत्तवित्थारो ( प्राप्तविस्तारः)। उब्बेयकारणं दारुणाण दुक्खाण मूलखणी ।। १२ ॥ माणो विणयविणासो माणो दुक्खदुमोद्गसमाणो ।
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किरण
धर्मोपदेश कुलकम्.
मुच्चयः
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माणो अभाणवसणो माणा नाणाइगुणहाणी ॥१३॥ माया य वाउलीविव (उद्धमवात्येव) उच्छालइ दोसधूलिमइबहलं। जीएँ परद्धा (प्रारब्धाः) जीवा न दोसगुणदंसिणो होंति ॥ १४ ॥ लोहो भुयंगमोविव लद्धपयारो ( लब्धप्रचारः ) विसंठुलं (शिथिलं ) कुणइ । उद्दामदोसविसवेगदूसियं कं न जियलोए? ॥१५॥ एवंविहा कसाया कसिणा निक्कासिया मणगिहाओ (मनोगृहात्) । निम्मलसमाहिजोगा जेहिं सुहं ते जियंति जए ॥ १६ ॥ एयगुणाराहणओ जो जो धम्मो जया जया कोई । कीरइ सो परिणामे अमयं व सुहावहो होइ ॥१७॥ तिहुयणजणनमणिज्जो जिणो सया परमभत्तिमंतेहिं । पुज्जो नमंसणिज्जो संभरणिज्जो विहाणेणं ॥ १८ ॥ पंचविहायारपरा परोवयारुज्जया सया कालं । गुणिणो | मुणिणो य मणे गुरुत्तणेणं ठवेयव्वा ॥ १९ ॥ संझादुगसज्झाओ पच्चक्खाणं खणे खणे परमं । चित्तमलपावणाओ ( मनोमलपाविन्यो ) य भावणाओ सरेयब्वा ॥ २० ॥ दुईतेंदियदमणं समणं कामाइवइरिवग्गस्स । पियपुव्वाभासित्तं सुयणत्तमकित्तिमं चेव ।। २१ ॥ साहम्मिय-| वच्छल्लं सत्तीइ तवो सुपत्तदाणं च। सीलविसुद्धी सद्धा सययं सद्धम्मकरणम्मि ॥ २२ ॥ नवनवसत्थन्भासो नवनवगुणअज्जणे असंतोसो । अप्पसमाहिय (आत्मसमाधित) गुणगामधामजणमज्झसंवासो (गुणग्रामधामजनमध्ये संवासः) ॥ २३ ॥ सीलंगसंगसुहगं समणत्तणमप्पमत्तचित्तेणं । कइया णु मए कज्ज? खणे खणे इय विचिंतेज्जा ॥ २४ ॥ मुणिचंदायारियाणं उवएसाणं इमाण कयपुन्ना । भविया हवंति भायण-| मकलंकगुणा परं केई ॥ २५ ॥ इति धर्मोपदेशकुलकम् ॥ अथ सम्यक्त्वोपायप्रकरणम् ॥ २० ॥
भुवणजणवंदणिज्ज बंदिय दिय (दित ) माणमच्छरं वीरं । सम्मत्तुप्पायविहिं भणामि समयाणुसारेणं ॥ १॥ दुविहं सिद्धतमयं | सम्मुप्पायंमि बिंति मुणिवसभा। तत्थ किल कोइ जीवो अहापवत्तेण करणेणं ॥२॥ सुज्झिन्तो (शुध्यमानः) जा गंठी अपुब्वकरणं तओ पवज्जेइ।
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प्रकरण
समुच्चय:
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ते भितो मिच्छत्तमोहाणिज्जं तिहा कुणइ || ३ || सुद्धं अद्धविसुद्धं अविसुद्ध चैव करणकालं जा । तत्तोऽनियट्टिकरणं अंतमुहुत्तं पवज्जित्ता ॥ ४ ॥ तप्पज्जेते सुद्धं पुंजं समुदीरिऊण वेयंतो । खाओवसमियसम्मत्तधारगो होइ सो पच्छा ||५ || अंतोमुहुत्तमवरं छावाईं सागराई उक्कोसं । चउगइगओऽवि एवं सम्मत्तं लहइ भव्वजिओ || ६ || अन्नोऽवि तव्विहो किचय नवरि तिपुंजं करेइ नापुत्र्वे । करणमि सुज्झइ च्चिय ठिइरसघायाइ| ३५ ॥ ४९ करणं ॥ ७॥ तत्तोऽनियट्टिकरणे वट्टित्ता सुज्झिऊण ( शुधोभूत्वा ) य तव । तव्विरमे विक्खंभियमिच्छत्रुदयं तओ भवइ ॥ ८ ॥ उवसमसम्मदिट्ठी अंतमुत्तं तओ स नियमेणं । वेयइ मिच्छत्तं चिय तदुवरमे कलुसपरिणामो || ९ || कोई पुण सासाणो होडं उवसामिगंतभागम्मि । वेयइ मिच्छत्तं चिय तं चिय जं तस्स संतं तु ॥ १० ॥ उवसमियसम्मकाले तस्स पएसोदएण मिच्छत्तं । केई भणति भणियं एवं पुण कप्पभासम्म (कल्पभाष्ये) ॥ ११ ॥ जो अन्नया उ सम्मं अतिपुंजो लहइ अद्धसुद्धं सो । पुंजं करिडं तव्वेयगो य सुद्धं तओ कुणइ ॥ १२ ॥ अद्धविसुद्धाओ काड्डेऊण केई तहाविद्दे बंधे । पच्छा खाओवसमिगसम्मदिट्ठी जिओ होइ ।। १३ ।। जे कम्पयडिपाहुड वियक्खणा ते भांति पुण एवं । उवसमियसम्मकाले सम्मत्तमहापवत्तेणं ॥ १४ ॥ तत्थ पढमं विसुज्झिय अभवजियाओ अनंतगुणणाए । तत्तो अपुव्वकरणं भिन्नमुत्तं पवज्जेई ।। १५ ।। ठिघाओ रसघाओ गुणसेढी तह अपुव्वठिइबंधो । तत्थ पवत्तंती पढममेव गुणसंकमो न उण ॥ १६ ॥ तत्तोऽनियट्टिकरणे गयाम्म तह चैव नवरि सेसंभि । संखेज्जइमे भागे अंतमुहुत्तं अहो मुच्चा ॥ १७ ॥ करणोवरि अंतमुहुत्तमित्तियाओ ठिईड मिच्छस्स । उक्किरइ भावविसओ तं दलियमहोवरिं च खिवे ।। १८ ।। एवं अंतरकरणे कयम्मि खीणेऽनियट्टिकालंमि । अंतरकरणपवेसे उबसमियं लहइ सम्मं सो ||१९|| सम्मत्तगुणेण तओ विसोहई कम्ममेस मिच्छत्तं । सुज्झति कोदवा जह मयणा ते ओसहेणेव ॥ २० ॥ गुणसंकमेण पढमं अंतमुहुत्तं तओ तदंतम्मि । विज्झायनामगेणं संक्रमभेषण सुशंति ॥ २१ ॥ अंतरकरणस्संते अज्झवसाणाणुरूवमेगयरं । पडिव
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सम्यक्त्वो
पायप्रकर०
॥ ३५ ॥
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प्रकरण समुच्चयः
। ३६ ।।
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जइ सो पुंजं अह कमवि सासणो होइ ॥ २२ ॥ छावलिसेसाऍ परं अवरं इगसमयसावसेसाए । उवसमियद्धाऍ अनंत नाम कलुसोदयवसाओ ।। २३ ।। होडं सासणदिट्ठी पच्छा मिच्छत्तमेव वेएइ । खीणंमि य पुंजदुए पुणोवि तं कुणइ सो एवं ॥ २४ ॥ नवरं तप्पडिरुवाइ तस्स तिन्निषि हवंति करणाई । उवसमियसम्मदिट्ठी उवसमसेढीऍ जो पडइ ॥ २५ ॥ सो कह मिच्छद्दिट्ठी हवेज्ज नियमा ससासणो होउं । मिच्छत्तं पडिवज्जइ सासणभावे अणेगंतो ।। २६ ।। चउपि अविरयाइस संते जं आउगाई चत्तारि । भणियाणि गुणेसु तहा खाइयसम्मत्तउप्पत्ती || २७ ॥ तो बद्धाउचउक्का चउरोऽवि य खायगं लहंंतित्ति । नज्जइ नो पडिसेहो विसेसओ दसई तत्थ ||२८|| सम्मत्तप्पायविहिं भव्वा भावंतगा इमं सम्मं । निम्महियमोहजोहा हवंति संसुद्धसम्मत्ता || २९ ॥ इति सम्यक्त्वोपायप्रकरणम् ॥
॥ अथ धर्मोपदेशकुलकम्, आर्यावृत्तम् ।। २१ ।
सुभावणावसाओ सोयपिसाओ (शोकपिशाचः) सुहेण जस्स तया । वसमुवगओ स वीरो सुरगिरिधीरो चिरं जयउ || १ || सोयानलकलियाणं जियाण परिगलियमणविवेगाणं णवजलहरजलसरिसं उवएस किंपि जंपेमि ||२|| पिच्छह दिणराईओ आउयमे पुणोयं पुणो धितुं । जंति नईओ इव नो कहिंवि पुण पडिनियत्तंति ||३|| अणुसमयमयं देहो खज्जतो नज्जए (ज्ञायते) न केणावि । आमघडोव जलगओ दीसइ सहसा परं भिन्नो ||४|| सह सन्निहियावाओ काओ वसणाण संपयाड पयं । सवियोगा संयोगा सव्वमहो भंगुरसरूवं || ५ || जन्म दिने किर जीवो गभे संकमइ तद्दिणप्पभि । अखलियपयाणमेसो मच्चुसमीवे समल्लिया (आश्रीयते) || ६ || वज्झद्वाणाभिमुहं जह वज्झो जाइ नियपएहिं तहा। जमसन्निहाणमेसो जाइ जणो कालगणेणं || ७ || नियमत्थओवरिगयं जइ मच्चुं पेच्छई इमो लोगो तो नाहारेऽवि रुई करेज्ज किमकज्जकरणम्मि ? || ८ ||
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धर्मोपदेशं
कुलकम्. आयोट •
॥ ३६ ॥
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मकरण 18 मरमाणे य सुए तह बधू अन्नेवि पाणिणो नियई । ही परिसुन्नमणो कह ण जणो मच्चु विचिंतेइ? ॥ ९॥ ता अज्जवि आरंभा फुरंति निरव-18 धर्मोपदेश
ग्गहा जणाण मणे । जाव जममुग्गदंड चिंताविसयं न ते नेति ॥ १० ॥ होज्जा जस्स जमेणं सह मेत्ती जो वेज्ज अमरो वा । जुज्जेज्ज समुच्चयः
| तस्स वोत्तुं कल्लंमि इमं करिस्सामि ॥ ११ ॥ समजाइवओसवे मच्चुहए जंतुणो नियंतोऽवि । उबिज्जइ जं न जणो तं नूणं वज्जमयहियओ |॥ १२ ॥ पउरजराकेसरभासुरेण गुरुरोगकाणणगएणं । मच्चुहारिणा जणोऽयं समंतओ पाविओ तासं ॥ १३ ॥ तम्हा बुहो पभाए पडिबुद्धो निच्चमेव चिंतेज्जा । अज्ज विओगो रोगो मरणं वा किंपि नो पडिही (पतिष्यति )॥ १४ ॥ जह पिप्पलजललग्गो जलबिंदू पक्षणताडिओ न थिरो । तह जीवियं जियाणं अणेयवसणाउलं जाण ॥ १५ ॥ कत्थ गया रायाणो सगराई सबलवाहणा जेसिं । अज्जवि इमा मही किर | विओगसक्खित्तणं वहइ ।। १६ ॥ एवं सच्छंदचरे मच्चुम्मि चलेसु जोव्वणधणेसु । कत्थ इमो पडिबंधं परिणइपिच्छी जणो कुणइ ? ॥१७॥ इय तियसिंदसहस्सा चक्कहराईण संयसहस्साई। दीवब्व वाउणा पावियाइ कालेण निहणपयं ॥ १८ ॥ मच्चुमणागयकालेऽवि संपयं चिय उवट्ठियं जाण । जम्हा इमोऽवि कालो तव पुश्वमणागओ आसि ॥ १९ ।। जंपि कुणंतो जीवो जायइ सुहसंगओ तयं चेव । कज्जं समायरंतो | कालवसा दुक्खिओ होइ ।। २० ॥ गइपूरे पडियाणं दारूण समागमो जहा होइ । तत्तो पुणो विओगो इय जीवाणपि संसारे ॥ २१ ॥ ता | तप्पंति न हियए वीरा पत्तेऽवि पियविओगम्मि । एवंविहाच्चिय भवो किमिह अपुवं समुप्पण्णं? ॥ २२ ॥ अत्थमणतो दिवसो रविउदयंता य सव्वरी ( रात्रिः) होइ । अन्नोऽनंतरियाई सुहदुक्खाइपि जीवाणं ॥ २३ ॥ तह सोगे कीरते रूवं परिगलइ टलइ देहबलं । नासइ
नाणं मा माणसंमि सोगं जणा! कुणह ॥ २४ ॥ जह संपइ अन्नजणं मयमणुसोयसि तहा तुमंपि इमो। कयवइदिणावसाणे बंधुजणो सो- ॥ ३७ । 2 इही लग्यो ॥ २५ ॥ एत्तोच्चिय जे धीरा परम्मुहा होति सव्वसंगेसुं। जं संगमूलमेयं दुक्खं जीवाण संसारे । २६ ॥ तस्स न जसो न | 2
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ३८॥॥
BREAKERALACE
धम्मो न चेव अत्थो न किंपि कल्लाणं । अन्नंपि अस्थि नहुँ जो मूढमणो विचिंतेइ ।। २७ । सोगो नासेइ मई सुबहुंपि सुयं विणासई सोगो । अथोपदे सोगो धीनासकरो सोगसरिच्छो रिवू णत्थि ॥ २८ ॥ मइमं सुयसच्छच्छो जो होइ जिइंदिओ दमियचित्तो। सोच्चिय दुक्खकरालं जणो
मृताख्र |जिणइ सोगबेयालं ॥ २९ ॥ ता उझियसोगभरा तुम्भे होऊण जिणमयं सरह । जेण न रोगो सोगो इट्टवियोगो पुणो होइ ॥ ३० ॥ वय-ICIप्रकरणा | सुद्धी सज्झाओ झाणं दाणं जिणिंदपूया य । एमाइकुसलकजुजमेण दियहा (दिवसाः) गमेयव्वा ।। ३१॥ ते धुयकिलेसलेसा न सोयबसवत्तिणो दढं होति । एवं उबएसामयमणुदिवसं जे पियंति जणा ॥ ३२ ॥ मुणिचंदायरियाणं उवएसाणं सुहासरिच्छाणं । एयारिसाण विरला केइ परं भायणं होंति ॥ ३३ ॥ इत्युपदेशकुलकम् ॥अथोपदेशामृताख्यप्रकरणम् ॥ २२ ॥
वरहेमसमसरीरो वीरो संपत्तमोहमलतीरो । साहियसिवनयरपहो सुरविहियमहामहो जयइ ॥ १ ॥ लद्धे माणुसजम्मे रम्मे निम्मल-10 कुलाइगुणकलिए । घडियव्वं मोक्खकए णरेण बहुबुद्धिणा धणियं (बाढं) ॥२॥ धम्मो अत्थो कामो जओ न परिणामसुंदरा एए। किंपागपागखललोयसंगविसभोयणसमाणा ॥ ३॥ जमिन संसारभयं जंमि न मोक्खाभिलासलेसोऽवि । इह धम्मो सो मेव उ विणा कओ जो जिणाणाए ॥४॥ पावाणुबंधिणो चिय मायाइमहल ( महत्) सल्लदोसेणं । एत्तो भोगा भुयगव्व भीसणा वसणसयहेऊ ॥५॥ जो पुण खमापहाणो परूविओ पुरिसपुंडरीएहिं । सो धम्मो मोक्खोच्चिय जमक्खओ तप्फलं मोक्खो ॥ ६॥ पञ्चक्खमेव अत्थो कामो य अणत्थहेउभावेणं । दीसंति परिणमंता किमहियमिय भाणियबमओ? ॥ ७ ॥ इयविवरीओ मोक्खो जमेत्थ नो मच्चुकेसरिकिसोरो। हिंडइ उदंडमकंडखंडियासेसजीवमिओ ( उडमकाण्डखंडिताशेषजीवमृगः) ॥ ८॥ जोव्वणवणदावानलजालामाला ण एत्थ अस्थि जरा। नो दुद्धरो समुन्दुरमयरद्धय ( मकरध्वजः ) सरविसरपसरो ॥९॥ नो लोभभुयंगमसंगमोऽवि नो कोहकोहउच्छालो । तह नो अन्नकसाओ ण विसाओ
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ३९ ॥
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नो मयपिसाओ || १० | वहहलोगवियोगो दुहमूलं जत्थ नत्थि तह रागो । किं बहुणा जो दोसो सब्बो जत्थाकयपदोसो ? ॥। ११ ॥ लोयालोयविलोयणलोयणसमणाणदंसणालोया । साहीणाऽणोवमसोक्खसंगया होंति तत्थ जिया ।। १२ ।। जह खज्जोओ पज्जोयणाउ तह जदभिलासमेत्ताओ । भुवणयोवि विभवो ण किंचि तेणुत्तमो मोक्खो ॥ १२ ॥ तं सदंसणणाणाइकज्जमज्जा जओ पवज्जति । तो तुब्भे एएसुं गुणे सत्तीऍ वट्टेज्जा ॥ १४ ॥ निच्चं तिकालचीवंदणेण विहिविविपूयपुवेण । चेइयकज्जाणं बहुविहाणमइनिकरणं ।। १५ ।। आयारपराण (आचारतत्पराणां) बहुत्सुयाण सुमुणीण वंदणेणं च । बहुणा बहुमाणेणं गुणीसु तह वच्छलत्तेणं ॥ १६ ॥ संकाइसल्लपडिपेलणेण सइ दंसणं विसोहेज्जा । तह जिणजम्मणठाणाइदंसणेणं जओ भागयं ॥ १७ ॥ जम्मणनिक्खमणाइसु तित्थयराणं महाणुभावाणं । एत्थ किर जिणवराणं आगाढं दंसणं होइ ॥ १८ ॥ णाणं च पुण सुतित्थे विहिणा सिद्धंतसारसवणेणं । नवनवसु अपढणेणं गुणणेणं पुञ्वपढियस्स ।। १९ ।। कालाइविवज्जयवज्जणेण तत्ताणुपेहणेणं च । परियाणियसमयाए संगेण समाण धम्मा || २०|| सोहेज्ज चरितपिहु आसवदारदढसन्निरोहेणं । सइ उत्तरुत्तराणं गुणाणमहिलासकरणेणं ॥ २१ ॥ जह सुमिणो जह मियतण्डियाउ जह इंदजालकीलाओ । जह बालधूलिहरविलसियाई तह एस जियलोओ || २२ || एत्थ विहवी अविहवी सुहीवि असुही गुणीवि किल अगुणी । बंधूवि सिय अबंधू धी अणवत्थो भवत्थजणो ॥ २३ ॥ इय भावणावलेणं सत्तीऍ तवेण पत्तदाणेणं । अइनिंदियइंदियबंदियाण निक्कंदणेण तहा ॥ २४ ॥ एए नियफलवतो सुद्धा संतो भवंति जेण गुणा । तो तेसिमसोहिसमावहाई वज्जेज्ज ठाणाई || २५ | सुज्झतेसु इमेसुं दिणम्मि कमलायव्व समकालं । सवियासा सेसगुणा भवंति अच्चब्भुयब्भूया ।। २६ ।। गंभीरत्तणसुयणत्तणाई दक्खिन्नमपरपेसुन्नं । दूरमपारं कारुन्नपु नओ तह नओ विणओ ।। २७ ।। लोयाणुवित्तिकुसलत्तमुत्तमं चिरपरूढमिच्छत्तो । एसोऽवि अज्जकालियजणो जहा मग्गमोयरइ ॥ २८ ॥
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अथोपदे
मृताख्र प्रकरण
॥ ३९
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प्रकरण समुच्चयः
शार्दूल विक्रीडिर
॥ ४० ॥
| परमिह संतोसमुहं कल्लाणमुहं समुज्जला कित्ती । पेचा अचंतसुहो सग्गो तत्तोऽपवग्गो य ॥ २९ ॥ सइंसणाइरयणत्तयस्स लाभे पलालपूलनिभा । चिंतामणिसुरतरुकामधेणुनिहिणो खगा होति ।। ३० । सो च्चिय जए सुजाओ सो च्चिय संपन्नपात्थयत्थो य । नीसेसगुणसमग्गो सिवमग्गो जेण संपत्तो ॥ ३१ ॥ सुब्भे उवएसाऽमयमे पाऊण सयलमुणिचंदा । होउमजरामरपयं जह लहह तहा जएज्जाह ।। ३२ ॥
॥ इत्युपदेशामृतकुलकम् ।। अथोपदेशकुलक, शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ॥ २३ ॥ लध्दूणुत्तममाणुसत्तणमिणं कत्तोऽवि पुण्णोदया, धम्मं तित्थयराण तत्थवि तहा पाविसु तुब्भेहि भो ! । नीहारेंदुसमुज्जलेण मणसा देवो जएकप्पहू, पूयापुव्वगमादरेण महया सम्माणणिज्जो जिणो ॥१॥ पच्चक्खाणमणुक्खणं जलहरासारोवमाणो तहा, कामक्कोहदवाग्गिनासणकए सग्गापवग्गावहो । सज्झाओ पडिवन्नपुननियमाणऽच्चंतमभुज्जमो, कायव्वो जिणदेसिएण विहिणा दीणाइदाणेऽविय ।। २ ।। बाद नायपरायणत्तणि रई नीहारहारुज्जले, लोलत्तं जमसंगहम्मि गुरुई दक्खिन्नबुद्धीविय । निच्चं मच्चुकडप्पवाहतसणं तप्पेल्लणे जो सुए, मग्गो तस्स निरूवणं सुनिउणं पज्जंतकालोचियं ।। ३ ।। वच्छल्लं समधम्मियाण परमं जीवाण रक्खा दढा, वेरग्गं विसएसु दुग्गइपुरीपंथेसु लोलेसु य । अन्नोऽवित्थ विही जिणिंदसमए जो बंभचेराइओ, पन्नत्तो सुपवित्तसंपयकरो सो सेवणिज्जो सया ॥ ४ ॥ लब्भो कप्पतरूवि कप्पियफलो चिंतामणी चिंतिओ, घेणू कामदुहा निहाणमणहं दिव्योसहीओऽविय । नो लभंति सुहेण धम्मगुरवो सन्नाणनीरागरा, सुद्धायारपरा सुदेसणसुहाकोसा अरोसा सया ॥ ५॥ जे गोसीससरिच्छसोरभभरा सीलेण लीलाएँ जे, भग्गुड्डामरवम्महारिपसरा जे बुद्धसुद्धागमा । साहूणं समधम्मियाण य तुमं मुंचेज्ज मा संगम, तेसिं दोसविसोसहाण महिमामाणिकठाणाण य ॥६॥ नो भूपालपए न रोगविलए
॥ ४०॥
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अथरत्नत्रर कुलकम् आयोवृक्ष
प्रकरण नो चव देवालए, नो चिंतामणिणो न कप्पतरुणो लाभ वियंभेज्ज सो। निम्विन्नाण भवन्नवाउ धाणयं निव्वाणकंखीण जो, संजाएज्ज समुच्चयः
गुणन्नुयांम सुयणे दिढे पमोओ मणे ॥ ७ ॥ सम्मं नाहिगयाऽऽगमा गुरुकुले सांवग्गमग्गाणुगे,नो बुच्छा पसमं सभाववसओ नो पत्तपुव्वा
तहा । तेर्सि मूढमणाण देसणगुणाजोग्गाण जा देसणा, सा दूरेण दवग्गिधूमियमहारणं व वजा ज (ओ) ॥ ८॥ नो सत्यं न विसं न ॥४१॥
साइणिवसो नो पेयभूयग्गहों, दुकालो न दुराउलं न जलणो जालाकरालो य तं । सिद्धंतो जिणभासिओ कुमइणा लोएण मिच्छागहा, संपाडेज अणत्थसत्यमिह जं देसिजमाणोऽन्नहा ॥९॥ एसो धम्मोवएसो निविडतमतमुत्तारतारप्पईवो, एसो धम्मोवएसो मयमयणमहावाहिणासोसही य । एसो धम्मोवएसो सिवसुहभवणारोहसोपाणसेणी, एसो धम्मोवएसो भवियजण! तए. णावणिज्जो मणाओ॥ १०॥ । स्रग्धरावृत्तम् । इत्युपदेशमालाकुलकम् . अथ रत्नत्रयकुलकम, आर्यावृत्तम् ॥२४॥
चंदद्धसमणिडालं झंपियनिस्सेसकुगइपायालं। मंगलकमलमरालं वंदे वीरं गुणविसालं ॥ १॥ लद्धे माणुसजम्मे रम्मे निम्मल| कुलाइगुणकालिए । घडियव मोक्खकए णरण बहुवुद्धिणा धणियं ॥३॥ देवगुरुधम्मतत्ते विनाए मोक्खसंभवो भविणो । अमुाणय| मग्गसरूवा ण इट्ठपुरगामिणो होति ॥ ३ ॥ जियरागो जियदोसो जियमोहो जो मओ स इह देवो । अरिहंतोच्चिय सो पुण नउ अन्ने हरि
हराईया ॥ ४ ॥ भवविसतरुबीयसमा दोसा रागाइणो जयस्सावि । जे सामन्नामन्नाण ताण कह होउ देवत्तं ? ॥ ५ ॥ 18|| सरयससिसोमरूवो सुरपयडियपाडिहेरमाहप्पो । परमपयसत्थवाहो भवसागरपारगो भगवं ॥६॥ एसो चिय णमणिज्जो णमंसणिज्जो दाय पूणिज्जो य । संभराणज्जो महया तोसेण निभालाणिज्जो य ॥ ७ ॥ जो जारिसओ देवो तारिसमाराहिओ फलं देई ।
न कयाइ निबरुक्खा फलंति कप्पदुमफलाइं ॥ ८ ॥ णिव्वाणसोक्खसामी सव्वन्नुच्चिय निसेविए. तम्मि। अवियप्पेण मणेढें लब्भइ
। ४१ ॥
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प्रकरण समुच्चयः
॥४२॥
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भवेहि सिद्धिसुहं ॥ ९ ॥ सयलभुवणेकबंधू अइसयसयरयणरोहणागरिंदो। देविंदचंदमहिओ धन्नाण जिणो हवइ देवो ।। १० । अथरत्नत्रर अमलियसीलसहावा उवलमजलखालयमयणवणदावा । परियाणियसब्भावा जे निम्मलफलिहसमभावा ॥ ११ ॥ चंदकिरणुज्जलाई
काकुलकम्
आर्या चिंतामणिकामधेणुसरिसाइं । पंचवि महव्वयाई सुविणेवि ण जेसि खलियाई ।। १२ ।। सेवियगुरुकुलवासा सम्मं विनायपवयणरहस्सा । | एसणगवेसणासु य जे दढमारूढपरिणामा ॥ १३ ॥ जे जीवियमरणेमुं लाभालाभेसु सुक्खदुखेसु । पूयापूयासु तहा नो विसममणा मणागपि ॥ १४ ॥ जे दूसमावसेणवि पायं पडिखलियसुयणसीलेन । दोसदुमवारिणा दारुण नो नियमाहप्पा ॥ १५ ॥ जोर्स सीलंगाई सुरनरसिवोक्खसाहणंगाई । नो पावियभंगाई कहिंचि हयमयणरंगाई ॥ १६ ॥ कारुनपुन्नहियया दक्खिन्नमहोयही महासत्ता । जे साहुगो तएच्चिय हवंति गुरुणो गाणिजणाणं ॥ १७ ॥ जेसिमकल्लागाइं निणं पत्ताई जोस सुहरिद्धी । सन्निहिया तेहि इमे गुरुणो परियाणिया होति ॥ १८ ॥ जत्थ दया जीवाणं जत्थ जिणो देवया गुरू गुणियो। सोच्चिय धम्मो धम्मियजणाण धम्मोत्ति पडिहाइ ॥१९॥ एगो तत्थ गिहणिं अन्नो साहूण तत्थ गिहिधम्मो । पूया जिणाण दाणं मुक्षिण निम्महियमोहाणं ॥ २० ॥ साहम्मियजणपीई गुरुजणसुस्सूसणं सुनिउणं च । दूरमणुव्वयसुद्धी बुद्धी सज्झायझाणेसु ॥ २१॥ नयसारो ववहारो उदारभावेण दीणदाणाई । कजाणं च क्विज्जणमइसावजाण दूरणं ॥ २२ ॥ पाणिवहाईयाणं पावट्ठाणाण जावजीवपि । जं सव्वहा विवज्जणमेसो धम्मो जईण पुणो !॥ २३ ॥ एसो देवो एसो गुरू य धम्मो य एस नउ अन्नो । इय पडिवत्तिपराणं सम्मत्तं होइ सत्ताणं ॥ २४ ॥ सम्मत्ता| उ ण अन्नो बंधू व पिया व होज्ज जीवाणं । नो मित्तं न निहाणं ण पिहाणं नरयदारस्स ।। २५ ॥ एगम्मिवि सम्मत्ते लद्धे लभंति
॥४२॥ सयलसोक्खाई। चिंतामणिम्मि एगंमि चेव जह चिंतियफलाई ।। २६ ।। इह जीवियमरणाणं अमयविसाणं जह किल विरोहो ।
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प्रकरण समुच्चय
तह सम्मत्तगुणाणं वियाण मिच्छत्तदोसाणं ॥ २७ ॥ ता मिच्छत्तपवित्तिं तिविहं विविहेण जावजीवाए । सुविणेऽवि मा कुणिज्जसुअथ प्रमाते सुंदरगुणहाणिसंजणाणं ॥ २८ ॥ धन्ना पाविति इमं धन्नयरा पावियंपि पालेति । तत्तोविय धन्नतमा निययफलेणं फलावेंति ॥ २९ ॥ जीवानुशा | पीऊसपाणसरिसो एसुवएसो मणे परिणयम्मि । एयांम कुभावविसं घिसमपि समं पवज्जेइ ॥ ३० ॥ रयणत्तयकुलयामिणं
सनम् | रइयं मुणिचंक्सूरिणा सम्मं । भव्वा भाता पुण कम्मक्खयहेउसंपत्ता ॥ ३१ ॥ इतिरत्नत्रयकुलकं समाप्तम् ।।
अथ प्रमाते जीवानुशासनम् ॥ २५॥ तिहुयणपणमियचरणं पणमित्तु जिगेसरं महावीरं । बोच्छं पभायसमए जीवस्सऽणुसासणं इणमो ॥ १॥ धन्नाणं जीवाणं संसारपरम्मुहाण सइ होई । कल्लाणकोसजणणी पभायसमयमि इइ चिंता ॥२॥ धन्नोऽहं. जेण मए संसारमहनवमि बुड्डेणं । नीरंधपवहणसमो पत्तो जिणदोसओ धम्मो ॥ ३ ॥ चिंतारयणं करयलमल्लीणं अज्ज मज्झ पुन्नहिं । कामदुहाविय घेणू सयमेव घरंगणे पत्ता ॥ ४ ॥ फलभरविणमियसालो सुरदुमात्तग्ग (आग) ओ घरदुवारे। सच्चंकारो दिनो सग्गसिवसुहाण मे अज्ज ॥ ५॥ | हिंडतेण भववणे जं पत्तो कहवि सत्यवाहसमो । भवसयसहस्सदुलहो जिणिंदवरदेसिओ धम्मो ॥ ६॥ अन्नं च मए लद्धो अइदुलहो लोयलोयणसमाणो । माणगिरिकुलिसदंडो पयंडपासंडनिद्दलणो ॥ ७ ॥ अइसयरयणजलनिही दुजणजणदुलहदसणो धणियं ।
भावियाजियकमलसूरो सासयसुहनीरवरपूरो ॥ ८ ॥ कम्मकलंकविमुक्को कसायदवतवियभवियजलवाहो । तिहुयणलच्छीवच्छत्थलंमि | अइनिम्मलो हारो ॥ ९ ॥ उग्गतवतेयतरणी पुड(र)पयडियमोक्खपवरपुरसरणी । चंदकरधवलकित्ती लीलाए दिन्नजियमुती ॥ १०॥ * केवलपईवपयडियजीवाजीवाइवत्थुपरमत्थो । रागाइविजयवीरो देवो तित्थंकरो वीरो ॥ ११॥ जिणभणियवयणनिरया विरया सव्वहिं पावठा
॥ ४३
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अथप्रमाते जीवानुशा सनम्
प्रकरण हिं । एत्तोधिय पंचमहब्बयाण परिपालो पवणा ॥ १२ ॥ मणवयणकायगुत्ता पुत्ता सीमंतिणीण सव्वाणं । अनिययविहाररसिया समुच्चयः वसिया गुरुपायमूलम्मि ॥ १३ ॥ तित्थयरभाणियवयणाणुसारिसद्धम्मदेसणपहाणा। पडिखलियपंचपाणा निरंतरुल्लासिमुहझाणा ॥१४॥
सीलंगमहाभरधारणांम धुरधवलधीरिमं पत्ता। रागाइवरिवसवत्तिजंतुपरिमोयणे सत्ता ॥ १५ ॥ गुणिमणकमलवियासणपयंडमायंडसंनिह॥४४॥
सहावा । संपत्ता सुहगुरुणो दुहतरुणो खंडना धीरा॥ १६ ॥ ता जीव तं क्रयत्थो कयपुन्नो मंगलाण आवासो । माणुसजम्मस्स फलं तुम्भश्चिय करयले चडियं ।। १७ । जं तुमए रयणत्तयमिणमो संपावियं महाभागा! । नहि पुत्रविहीणाणं निहाणलामो जए. होइ ॥१८॥ ता तह करेसु संपङ मोक्षणं मोहणिज्जमचिरेणं । जह, संसारसमुब्भवदुक्खाण जलंजलि देसि ॥ १९॥ रयणायरंमि पत्ते जह पुनो कोऽवि
लेइ रयणाई। तह, गिण्ह तुम लद्धयमाणुस्लो भावरयणंपि ॥ २० ॥ जइ कुणास पुण पमायं जाणंतोऽविहु जिणिदधम्ममि । ता नूण18 मयाणुय करगयाई सोक्खाई हारिहिसि ॥ २१॥ इयचिंतामयसंसिच्चमाणमणनंदणाण जीवाण । आचिरेण सग्गसिवसुहफलाई सिति
विउलाई ।।२२।। मुणचंदसूरिराणहरविपोयसिरिदेवसूरिक्यणाई। मोहंधयाण जंतूण होति विमलाई नयणाई॥२शा इति । अथ दोहा. ॥२६॥
___ . नाणु चरणु संमत्तु जसु रयणत्तउ सुपहाणु । जय सु मुणिसुरि इत्थु जगि मोडियवम्महरवाणु ॥ १ ॥ उवसमरयणसमुद्दसमु x विहलियजणमाहारु । वंदउ मुणिसुरि भवियजण जिम छिंदउ संसार ॥ २ ॥ असियमहुरदेसणसिण भवियण रुंखमुलाई । जिंक सिंचइ
मुणिचंदह सूरि तिअ तुंवि कुवि काई ॥ ३ ॥ वक्खाणंतउ जिणवयणु सिरिमुणिचंद मुणिंद । चादसि मुणिपरिवारियउ, नावइ पुन्निमचंदु ॥ ४ ॥ जिणि छट्ठट्ठमिमाइतवि सोसीउ हहुँ निय देहु । वरकरुणाजलणीरुनिहि सो गुरु मुणिधुरिलेहु ॥ ५ ॥ जो पिहि पक्खसमुद्धरणु, पंचमहव्वयधारु । सो नंदउ मुणिचंसुरि, जिणी वूहउ तिव भारु ॥ ६ ॥ मेरुहु जिंव विरु पभ गुरु,
RASARAN
MESSEN
॥४४॥
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प्रकरण
॥४५॥
| सायरु जिम्ह गंभीरु । सिरी मुणिमुरि नवनाणनिहि जच्चसुवन्नसरीरु ॥ ७॥ जं संसारमहाडविहिं निवडियजणसत्थाहु । सो गुरु मुणि
सुरि सुमरियई सरण विहीणइं नाहु ॥ ८ ॥ जिंव तारयहि पहाणु ससि सेलहिं मेरु पहाणु । तिंव सूरिहिं मुणिचंदमुणि गरुयउ निज्जियमाणु | ॥ ९ ॥ मोहमहाचलि कुलिससमु सुयजलपूरियऽपारु । सुविहियमुणिसिरि सेहरउ मुणिसुरि बालकुमार ॥ १० ॥ ता मज्जहि परतित्थिया
जा नवि कोइ कहेइ । जिणसासणि उज्जोयकरु मुणिसुरि एत्थु वसेइ ॥ ११ ॥ ते धन्ना घरि गावडा जहिं विहरइ मुणिसूरि । हरइ मोहु फेलडइ दुरिउ संसओ घल्लइ दूरि ॥ १२॥ कुंददलुज्जलजसपसरधवालयसयलतिलोय । कम्मपयडिपयडणपवणु मुणिसुरि नमहु असोउ 1॥ १३ ॥ जिग कुग्गह फेडिय नरह पयडिवि निम्मलनाण । सो मुणिमीर मह माइ गुरु अइमणहरसंठाण ॥ १४ ॥ मुणिसूरिहिं जितणा गुणा तहिं को संख मुणेइ ? । किं रयणायरु कुवि मुणवि रयणह संख कहेइ ॥ १५ ॥ दुद्धरदप्पगइंदहरि कोइलकामलवाणि । सो मुणिचंदु नमेहु पर संजमरयणह खाणि ॥ १६ ॥ हरिभहसुरिकय गंथ जिणि वक्खाणिय नियबुद्धिं । सो मुणिचंदु नमेह पर जिव पावहु वर सुद्धि ॥ १७ ॥ जिव बोलइ तिम जो करइ सोलु अखंडु धरेइ । मुणिसुरि पंडिय तोसयरु पण्डुत्तरइ दलेइ ॥१८॥ जिंव महुयर आवई कमलि गंधाइड्डियसत्त । तिम मुणिसूरिहि सांसगण सुयमयरदासत्त ॥ १९॥ जहिं विहरइ मुणिचंदसूरि तहिं नासइ मिच्छतु । चरइ नउलु जहिं ठावडइ सप्पु कि हिंडइ तत्थुः ॥ २० ॥ जिम्ह मेहागम तोसियहिं मोरहतणा निकाय । तिम्ह मुणिसूरिहिं आगमाण भवियाणं समुदाय ॥ २१ ॥ सरयागमि जिव हंसुला हरिसिज्जंति न मंति । मुणिसुरि पडिखडिया जणा तुह आगम निभंति ।। २२ । तिह मणुयहं गउ विहल जम्मु जेहिं न मुणिमुरि विहु । किंव जच्चंधेिहि लोयणिहिं जेहिं न ससिहरु दिदु ॥२३॥ जाह पसन्ना तुह नयण तह मणुयह सय | कालु । हियइक्छिय सुह संपडहिं अनुछिंदहि दुहजालु ॥ २४ ॥ दूसमरयाणिहिं सूर जिम्ब तुह उहिउ मुणिनाह । सिरिमुणिचंदमुर्णिद पर महु
*
॥४५॥
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प्रकरण
समुच्चयः
11 8 11
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फेडइ कुग्गाह || २५ ।। इति श्रीमुनिचन्द्राचार्यस्तुतिः ॥ अथ श्री देवसूरिकृतवैराग्यगर्भितगुरुविरहविलापः । २७
नित्र्वागमणकलावा सरे जस्स मुकपाकारं । सुरसामिणोऽवि कंदंति वंदिमो तं जिणं वीरं ॥ १ ॥ जगगुरुगोयरनेहेण निहणिओ जस्स | केवलालोओ । कह कहवि समुब्भूओ तं गोयमगणहरं सरिमो ॥ २ ॥ गुरुचरणसरोवररायहंसलीलं धरिंसु जे सीसा । ते वइरसामिपमुहा पयओ पणमामि तिविहेणं ॥ ३ ॥ तिरिवीरजिणे सर तित्थजलहिउल्लास पुनिमायं । अइजच्चचरणतवनाणलच्छिमयरहसारिच्छं ॥ ४ ॥ मिच्छत्तमोहमंडलविहड गघणपवणपूरसंकासं । काल कुसुमालिनिम्म लजसभरपरिभरियभुवणयलं ॥ ५ ॥ भुवगयल वित्तसुपवित्तविबुह सेविज्ञमाणपथपमं । पउमदहं व पंचप्पयारआयारकमलाणं ।। ६ ।। करुणा गंगाहिमवंत सेलमणवज्जवयणमणिखाणि । वेरंग्गवर गुमग्गुष्पयजणसंद्समाणं ॥ ७ । परह्नियचिंताचंदणवगाव लीमलय सेलसमसील | गुणिलेोयविसयबहुमाणओस हीरुहणगिरिधरणी ॥ ८ ॥ चारित्तनादं सणफललालमुदिसउरु । छत्तीसगणहरगुणे सरीरलीणे सइ धरंतं ॥ ९ । दुद्धरपरीस हिंदियकलायविजओवलंद्धमाहप्पं । सत्थपरमत्थपयडणपणालियासेसजण मोहं ॥ १० ॥ हिंसाए हिंसणं दोरुदूरुणं रोरुरूरुणं वंदे । सिरिमुणिचदमुणीसर निययगुरुं गरिमजियमेरुं ॥ ११ ॥ मुभिचंदसूरि ! गणहरगुणाण अंतो न लब्भए तुम्छ । किं वा सयंभुरमणे जलप्पमाणं मुणइ कोई? || १२ || भवभीरुजीव संतोसदाइणी तुम्ह मुणिवरपवित्ती । अहह्वा चिंतारयणं केसि नहु जगइ कहाणं ? ॥ १३ ॥ जा तुम्ह धीरिमा धीर! कवि नत्थतं लोए । लच्छीक २ लपरिमलो किमन्न नलिणाई अलियइ ? || १४ || जह मच्छरस्स पसरो तुमए निहओ तहा न अत्रेण । वणगहणं जह चूरइ मत्तकरी नो तहा ससओ ।। १५ ।। उब समजलेण तुमए विज्झविओ रोसदारुगदवग्गी । विणयंकुसेण अहिमाणमयगलो निग्ग नीओ ।। १६ ।। बिसवल्लरीव्व माया पसरंती लूरिया तुमे नाह! । उभडकरालकरवालतिक्खधारापओगेण ॥ १७ ॥ बहुषि
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मुनिचन्द्र
विरह विलापः
॥ ४६ ॥
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प्रकरण समुचयः
| मुनिचन्द्र
विरह
विलापः
४ इवियप्पकलालसंकुलो लोहजलनिही सामी!। संतोसवाडवानलबसेण सोसं तुहं पत्तो ॥ १८ ॥ अन्नेऽवि भावरिउणो हासाई संघडतदढ
कलिणो । चारित्तमहामोग्गरपहारदाणण ते निहया १९ ॥ मच्छररहियं परिहासवज्जियं गलियइंदियवियारं । भवनिव्वेयपहाणं जयउ जए कलिणो । चारित्तमहामोर तुह सया चरियं ॥ २० ॥ भोगतिसापामापरिगयाण जीवाण परमविज्जेणं । रयणत्तयतिहलाए तुमए नारोगया विहिया ॥ २१ ॥ भावरिउदव.नलदूमियाई भवियाण माणसवणाई । सत्थीकयाइं तुमए धम्मामयवारिवाहेणं ॥ २२ ॥ सुविहियचरियाधरिणी |पमायपायालमूलमल्लीणा । पुरिमुत्तमेण तुमए मुणिवइ! लीलाइ उद्धरिया ॥ २३ ॥ नाणारयणाई जुगवं तुमए दावितरण | भब्वाणं । निव्वाणनयरमग्गो पायडिओ परमकरुणेणं ॥ २४ ॥ सीलालवालबंधो धम्मतरू सग्गमोक्खफलफलिरो । सुहभावणाजलेणं अहिसित्तो सो तए सामि ॥ २५ ॥ तं जयउ चिंतयकुलं जयाम्म सिरि उदयसेलसिहरं व । भव्यजियकमलबंधव ! जम्मि तुम तमहरो जाओ ॥ २६ ॥ सच्चं महग्घिया सा महग्घिया चरमजलाहिवेलञ्च । मौत्तियमणिब्ब जीए तं फुरिउ ज्यरसिप्पिउडे ॥ २७ ॥ सा दब्भनयरीनयरसेहरतं सया समुबहउ । जीए तुह पुरिससेहर ! जम्मदिणमहामहो जाओ ॥ २८ ॥ जसभद्दो सो सूरी जसं च भई च निम्मलं पत्तो । चिंतामणिव जेणं उवलद्धो नाह! तं सीसो ॥२९॥ सिरिविणयचंदअज्झावयस्स पाया जयंतु विंझस्स । जेसु तुह
आसि लीला गयकलहस्सेव भदस्स ॥ ३० ॥ आणंदसूरिपमुहा जयंतु तुह बंधवा जयप्पयडा । जे तुमए दिक्खविया सिक्खविया सूरिणो l य फया ।। ३१ ॥ अव्वो अउज्वमेयं किंपिय तुम्हाण भवियगयकुडुंब!। संसारवल्लरीलूरणम्मि जं गयकुलेण समं ॥ ३२ ॥ नीसेसं तुह
चरियं सव्वजियाणंदकारणं चेव । जे तु न नेहो कत्थवि तं मह हियए खुडुकेइ ॥३३।। मन्नामि सामि ! हिययं वज्जसिलासंपुडेण तुह घडियं । पडिबंधबंधुरांमवि सीसजणे निप्पिवासं जं॥३४॥ जाणिय अगागयं चिय मरणं संबोहि कण सीसगणं । गहियाणसणेण तए उबलद्धाऽऽराहणपडागा
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प्रकरण समुच्चयः
एनिचन्द्र विरह विलाप:
॥४८॥
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M॥३५॥ समुहेण उच्चरंतो चरिमे समयम्मि अट्ठ नवकारे । भणह भणहत्तिजापर ते धन्ना जेहिं दिट्ठोऽसि ॥ ३६॥ सासो खासो दाहो सिन्निवि रोगा
मुर्णिद! तुह खीणा । अणसणपावत्तिसमए समयं कलुसेहिं कम्मेहिं ।। ३७ ॥ चरमसमवि सुहगुरु! वियलत्तं परिहरंतएण तए । सव्वत्थ एगरूवा गुरुआ सच्चावियं वयण ॥ ३८ ॥ सचं सा कसिणधिय कत्तियमासस्स पंचमी कसिणा । खेत्ततरं व सूरो जीए तं सम्गमल्लीणो ॥३९॥४ एगारस अटुत्तर संवच्छरकाल! पडउ तुह कालो । जससेस जेण तए तं मुणिरयणं कयं पाव ॥४०॥ हा सिद्धतपियामह! हा! माए! ललियकव्क संपत्ति । हा! गणियविजसहिए हा! बंधव तकपरमत्थ ॥४१॥ हा छंदमुद्धपुत्चय हा! हाऽलंकारमझलंकारा । हा! कम्मपयडिपाहुडमाया! मह भेनिसामेह ॥ ४२ ॥ जो आसि मज जणओ मुणिचंदमुणीसरो विबुहपणओ । सो निग्घिणेण विहिणा सग्गंगणमंडणो विहिओ ॥ ४३ ।। | ते अमयजलहिउग्गारसनिहा कत्थ कोमलालावा । सुपसननयणअवलोयणाई ही ताई पुण कत्थ! ॥४४॥ इस तुझा विरहहुयवहजालावलि| कवालया रुयइ कलुगं । निस्संकं लीलाइयमणुसरइ सरस्सईदेवी ॥४५॥ हा ! चरणलच्छीवच्छे संपइ वेहव्वदुक्खमणुपत्ता । जइधम्मपुत्त! | मज्झवि संजाओ सामिणा विरहो ॥ ४६॥ ही जिणवयगपहावणकन्ने कन्नाण दुस्सहं रुयास । आनिययावहारचरिए! हुहुत्ति दूहवास रोयंति ॥ ४७ ॥ इय निययकुडुंबयमाणुसाई पत्तेयमुल्लविय दीणं । विलवइ चरित्तराओ ओ! विरहे तुज्झ मुणिनाह! ॥ ४८ ॥ को मज्झ संपर्य | साभिसाल! दाही सिराम्मि करकमलं?। अरुणपहाजाणियं सममयं व लच्छीनिवासगिहं ॥४९॥ कुवलयदलमालामणहराए अमयप्पवाहमहुराए । नेहभरमंथराए दिट्ठीऍ पसायभरियाए ॥५०॥ तह ताय! पलोएही संपइ को चरणतामरसपणयं । रोमंचंचियदेहं तुह विरहे माणुस लोयं ॥५१॥ अइदुग्गमगंधपबबसिहरोली मज्झ संपयं केणं । तुह वयणवज्जविरहे निदेयव्वा पयत्तणं ॥ ५२ ॥ अहवा-तुह नाम परममंतं अहोनिसं मज्झ झायमाणस्स | नाणचरणप्पहाणा उल्लसिही मंगलगुणाली ॥५३॥ जइ आसि मज्झ तुह पायपंकए सामि! अविरला भत्ती।
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H४८॥
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मकरण समुच्चयः
प्राभातिक जिनस्तुति
।४९ ॥
अयमविकास
orang
| तव्वसउ चिय जम्मंतरेवि तं होज्ज मज्झ गुरू ॥ ५४ । आणंदंसुणिवायं इय वयणपुरस्सरं विहेऊणं । गुरुभणियकज्जसज्जो संजाओ देव- | सूरित्ति ॥ ५५ ॥ इति कृतिर्देवसूरीणां
अथ प्रातःकालिकजिनस्तुतिः ॥ (वसन्ततिलकाछन्दः) २८ येऽर्हन् ! प्रभातसमये तव पादपद्ममापन्महार्णवसमुत्तरणैकसेतुम् । पश्यान्त नश्यति ततस्ततमाशु सर्वमेनोऽतितीव्रभवदाहसमाम्बुवाह! ॥ १ ॥ उद्भतभूरिसुकृता भविनो भवन्ति, ये केचन च्युतमदप्रसरा प्रगे ते। उत्फुल्लपङ्कजदलोपमनेत्रपात्रास्त्राणप्रदौ तव पदौ प्रविलोकयन्ते ।। २ ।। प्रातः प्रसन्नवदना भुवनावतंसमासन् सितोज्वलपदा भवदीयरूपम् । ये केचिदीक्षणपथं प्रथमं नयन्ति, ते फेनपाण्डुरयशोभवनं भवन्ति ॥ ३ ॥ उद्गूढभाग्यभवभाजनमाननीयमालोक्य भास्वदुदये चलनद्वयं ते। भव्या नयान्त वशमत्र जगत्त्रयेऽपि, भद्राणि चन्द्रकिरणोत्करनिर्मलानि ॥४॥ चिन्तामाणिर्न च न वा नवकामधेनुः, कल्पद्रमोऽपि न न भद्रघटः प्रसन्नः। आविःकरोति फलमर्कविलोककाले, | यत्ते पदाम्बुरुहमीक्षितमात्रमेव ।। ५ ॥ ताराविरामसमये कमलाकरेषु, यातेषु बोधमुदितामलसौरभेषु । धन्या विनिद्रितदृशः सुद्दशः
प्रभावमालोकयन्ति कमलाकुलमाननं ते ॥ ६॥ भिन्दन्ति दुर्गतिभयानि समानयन्ति, स्वःसम्भवानि शिवजानि च मङ्गलानि । भानूदये | तव नमन्ति नुवन्ति येऽधी, पापाम्बुराशिपरिशोषसमार! धीरः ॥ ७ ॥ तेषां न जन्म न च जीवितमीशभावमुच्चं यशश्च फलवन्न वदान्त
सन्तः । यैरुत्थितैर्बहलहर्षजलाविलाक्षीनायते क्रमकजं न तव प्रभाते ॥ ८॥ एषा प्रभातसमयस्तुतिरादरेण, पापठ्यते भगवति | प्रहितैर्मनोभिः । यैस्तेऽत्र कुन्दकलिकोज्वललामभाजो, जायन्त एव मुनिचन्द्रपदप्रपन्नाः ॥ ९ ॥ इति प्रभाते जिनस्तुतिः
ASSASSACROSAGAR
॥४९॥
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रण
[च्चयः
१०॥
॥नमः श्रीमद्देवमरिगुरुपादुकाभ्यः ॥ अथ द्वादशवतस्वरूपम् ॥ २९
द्वादशवत तिहुयणकयबहुमाणे सन्नाणे विमलगुणगणनिहाणे । नमिउं जिणे गिहिवए सम्मत्तजुए पवज्जामि ॥ १ ॥ परिहीणलोहमोहो मुक्क- टीप्पन विरोहो पसन्नमुहसोहो। देवो सुरकयसेवो गयलेवो मम जिणो चेव ॥ २॥ उद्धयमहव्वयभरे सीलंगधरे निरुद्धमयपसरे । जगसिर-14 मणिणो मुणिणो गुणिणो गुरुणो पवज्जामि ॥ ३ ॥ पयडियवत्थुसरूवो निरुवमरूवो सुरोहिं कयपूओ। नयहेउजुत्तिसुद्धो सिद्धंतो संपइ पमाणं ॥ ४ ॥ परतित्थे धम्मत्थं काहं नाहं कयावि पहाणाइ । चीवंदणं तिकालं काहमहं सुमरणेणावि ।। ५ ॥ पाणिवह १ मुसावाए २ | अदत्त ६ मेहुण ४ परिग्गहे चेव ५ । दिसि ६ भोग ७ दंड ८ समइय ९ देसे १० तह पोसह ११ विभागे १२ ॥ ६ ॥ मंसाइकए जीवे थूले संकप्पिडं निरवराहे । न णेमि नो हणावेमि मणेण वायाइ कारणं ॥ ७ ॥ जं पुण जलोयमोयणकिमिगंडोलाइपाडणं तह य । कज्ज हविज्ज जइ कहवि तत्थ मज्झं भवे जयणा ॥ ८॥ थूलमलीयं कन्नालियाइ सयलंपि दुविहतिविहेणं । नो आलवेमि वसणे जयणा पुण | कूडसरखेज्जे ॥ ९॥ थूलमदत्तं एत्तो चत्तं खत्ताइकारणं जमिह । करणकरावणविसयं सम्मं तिविहेण करणेण ॥ १० ॥ लहणिज्जदेज-8 Pा निहिसयणसुंकविसयाम्म दिन्नए जयणा । निस्सावराडिवयणे अलियंमि तहा ममं जयणा ॥ ११ ॥ दुविहतिविहेण दिव्वं एगविहं तिवि-11 हओ य तेरिच्छं । माणुस्सयंपि थूलं कारणं मेहुण वज्जे ॥ १२ ॥ धणं धन्नं गिहं खेतं, रुप्पं हेमं चउप्पयं । दुपयं कुवियं चेव, भवभेओ | परिग्गहो ॥ १३ ॥ (सिलोगो) धणधनकवियरुप्पयसुवनचउपयगिहाण सव्वेसि । इच्छापमाणमेत्तो दम्मसहस्साण अट्ठण्हं ॥१४॥ तत्थ धणं | गणिमं धरिममेव मेयं च पारिछेज्जं च । पत्तेयं पत्तेयं न धरोमि सहस्सओ परओ ॥ १५ ॥ तिल्लघयाणं घडगा पन्नासं होंति जावजीवाए ।
॥५०॥ धन्नस्स पन्न मूडा जाजीवं खेत्तविणिवित्ती ॥ १६ ॥ दो दो हट्टगिहाइं तिन्नि सयाई सुवनपरिमाणे । चालीस रुप्पपला सतिवच्छा दोन्नि
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964
द्वादशव्रत टीप्पन
करण | गावीओ ॥ १७ ॥ दो वसहा खर एगो पसुकरभाणं च मज्झ एकेक । अंकवडियस्स नियमो कम्मयरदुर्ग तहच्चेव ॥ १८ ॥ कुवियं | समुच्चयः
सहस्समोल्लं इच्छामाणाउ होज्ज एयाओ। जइ कहवि अहियभावो धम्मे ता देमि नियमेणं ॥ १९॥ बंधवभइणेज्जाणं परिग्गहो होज्ज
| तस्स जइ चिंता । भत्तिज्जाईण य पालणंमि जयणं करेस्सामि ॥ २० ॥ अणहिलवाडपुराओ चउसुपि दिसासु जोयणाण सयं । दो जोयणाणि ५१॥
उड्डे अहोदिसि पुरिसपन्नासं ॥ २१ ॥ बीयगुणब्वयविसया भोयणओऽभिग्गहा ममं एए । दुविहतिविहेण मसं मज्जं एगविहतिविहेण | ॥ २२ ॥ नायं दुभिक्खोसहिदोसीणविवज्जऽणंतकायं च । महुमक्खणपंचुंबरि गोरसमिस्सं चए विदलं ॥ २३ ॥ दुब्भिक्खमोसहं धरXणगं च मोत्तण नो निसाएवि । खाइममसणं भुंजे तहत्थियं पाउसे दुन्नि ॥ २४ ॥ अंबामलयजयंती करपढकरवंदलिंबुयकरीरे । तिंदूर
मिरियमंजरि अत्थाणं वज्जए सेसं ॥ २५ ॥ तीसं दब्वाइं सच्चित्ता, दिणस्संतो दसेव मे। विगईओ य चत्तारि, एगा धन्नस्स सेइगा ॥२६॥ अब्भंगे भोयणे चेव, घयतेल्लाण मे पलं । दक्खाई तोलि मे अट्ठा, पला सयलखाइमे ॥२७॥ (सिलोगा) अंबयदाडिमविज्झिडकविट्ठबीजउरकरुणकेलाई । नारंग मुत्तु नीलं वज्जेऽहं जाव जीवाए ॥२८॥ पाणम्मि एगो घडगो जलस्स, पूगीफला पन्नर तीस पन्ना । जाईफलंमी पलमेगमेव, सेसे पला दोन्नि उ साइमंमि ॥२९॥ कत्थूरिंगाकुंकुमचंदणाणि, कप्पूरमुत्ताहलफुल्लमाई । वज्जेमि सिंगारकए तहेव, नेवोचियं जं विहवंगणाणं | ॥ ३० ॥ (इन्द्रवाछंदः) पहाणं सव्वंगिया तिन्नि, भोगत्थं मासभंतरे । तेऽवि मे जलकुंभेणं, वज्जे सेसमहं सया ॥३१॥ पारुत्थसयमोल्लाउ, तियलीओ सत्तमे दिणे । सुवन्नसय मे दोन्नि, रुप्पस्स पल मे सयं ॥३२॥ सेज्जाकज्जेण काहामि, तूली एक परिग्गहे । वज्जे भोगब्बए सेसं, | भोगत्थं तिविहेणऽहं ॥३३॥ (सिलोगा) निग्घिणजणोचियाणं बहुसावज्जाण लोगवज्जाणं । खरकम्माणं सव्वाण मज्झ विरई उ जाजीवं ॥३४॥ | ठट्ठारभाडमुंजाइयाण बहुजलणजालणविहीए। परिकलियजीवियाणं वित्तिं वज्जेमि तिविहेणं ॥ ३५ ॥ वज्जे वणकम्ममहं छेयणछेयावणे य
॥५१॥
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करण
टीप्पन
मुच्चयः
५२॥
रुक्खाणं । निव्वाहववच्छेए जयणा फलमाइविकिणणे ॥ ३६ ॥ अहिंगरणाणं सगडाइयाण विक्कयकए विवज्जेमि । दंतनहसंखमुत्ताह
| द्वादशव्रत लाइं न किणेमि आगरओ ॥ ३७ ॥ सक्कुरुडलोहलक्खामणसिलगुलियाइ गोयरे वज्जे । वाणिज्जे लहणिज्जे जयणा लद्धाण विक्किणणे || ॥ ३८ ॥ रसवाणिज्जे मज्जाइविक्यं तह चएमि वरिसंतो । चउण्हं चउप्पयाणं मोषणं केसवाणिज्जं ॥३९॥ वज्जे अइसावज्जं विसवाणिज्जं च दुवितिविहेणं । जंताण पीलणं गोरुयाण निल्लंछणीकरणं ॥ ४० ॥ तह दवदाणं भवदुहनिहाणमुज्झेमि दुविहतिविहेणं । सोसं जलासयाणं पोसं असईण वज्जेमि ।। ४१ ॥ एत्तो अणत्थदंडे नियमा पुण घायवइरिमरणाई। पहरद्धाओ परओ अणुबंधाओ न चिंतेमि ॥ ४२ ॥ मज्ज विसया य कसाय पमाय निद्दा कहा तह विरुद्धा । इय पंचहा पमाओ पुरावि मज्ज मए चत्तं ॥ ४३॥ अव्वाहांम सरीरे सुयामि रयणी मुहुत्त मज्झण्हे । विकहाकसायावसए चएमि जिणमंडवस्संतो ।। ४४ ॥ निदक्खिन्नमि चए सत्थग्गिहलाइयाण दाणं च। बज्जे पावुवएसं थूलं गोणाइदमणाई ॥ ४५ ॥ एयाई पंच अणुव्वयाई तिन्नि य गुणव्वयाई च । अणवज्जकज्जनिरया जावज्जीवं पवज्जामि ॥ ४६॥ सयले परिग्गहमि दिसिपरिमाणमि भोगउवभोगे। तहऽणत्थदंडविसए नियमा एगविहतिविहेणं ॥४७॥ मासे सामाइयाई चउरो सज्झायसयमहोरत्ते । दिवसंमि जोयणाई थलप्पहे होंति पन्नरस ॥ ४८ ॥ भोगत्थण्हाणनियमो कंडण दलणं च मोतु वावारं। सावज्जे वज्जेमी अहमि| माई पव्वेसु ॥४९॥ पोसहपणगं काहं चउपहरं वरिसमज्झयारंमि । मासतेऽवि गमिस्सं पोसहसालाई दो वारा ॥५०॥ जइ कहवि पमायवसा भंगो नियमेसु होज्ज एएसुं । सज्झाय सया पंच उ निव्वीयतवे व काहामि ॥५१॥ तह अतिहिसंविभागा चउरो वरिसंमि साहुसब्भावे । एगविहेगविहेण नियमा भोगव्वयाईसु ॥ ५२ ॥ सव्वसिपि जिणाणं कल्लाणदिणेसु मोतु गेलनं। काहं चिइवंदणमाइयाण निच्चं
॥५२॥ | चिय विसेसं ।। ५३ ।। मोतुं रायभिओगं गणाभिओगं बलाभिओगं च । देवाभिओग गुरुनिग्गहं च तह वित्तिकतारं ।। ५४ ॥ सयलाइयारसुद्धो
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प्रकरण
समुषयः
॥ ५३॥
सेविशंतोऽणवन्जकज्जो मे । एसो सावगधम्मो सम्म कम्मक्खय कुणउ ॥ ५५ ॥ देसेणुद्धरियाई सम्म एयाई सावयवयाई । सिरिमं मुणिचंद
रम माणचदः श्रीसिद्धान्त मुणीसरेण परकजसज्जेणं ॥५६॥ जुगपवरसुयहाणं सिरिमंमुणिचंदसूरिसुगुरुणं। सीसाण देवसूरीणमंतिए वीरजिणभवणे ।। ५७ ॥
| सारोद्धारः इति कस्याश्चित् श्राविकाया व्रतनियमाः ॥अथ श्रीसिद्धान्तसारोद्धारः। नमो जिनाय ॥ ३०॥
'अइविसमरागकेसरिनरिंदनिहारणंमि जसपसरो । जस्सऽज्जवि धवलइ तिहुयणंपि नमिऊण तं वीरं ।। १ ।। जंबुद्दीव १ढाइयदीवसमुहाण २ तहय दीवाणं । जंबुपमुहाण विच्चायलस्स नंदीसरंताणं ॥२॥ विक्खंभो तह परिही गणियपयं पिहु पिहुंभणिस्सामि३ । मेरुस्सवि मूलतले भूमितले उवरिमतलंमि ॥ ३॥ विक्खंभे परिगणियं ४ मेरुस्सवि लक्खजोयणुश्चत्तं ५। जामुत्तरासु लक्खोपच्छिमपुव्वासुर | तह लक्खो७॥४॥ जंबुद्दीवस्स ७ तहा नरखित्ते माणुसाण परिमाणं ८ । वरिससयाऊयाणं उस्सासाईपरीमाणं९ ॥५॥ समयाइसीसपहेलियं| तसंखाणयं च जिणभणियं १० । संखेज्ज११मसंखज्ज१२अणतयंपि य १३ भणिस्सामि ॥ ६ ॥ पोग्गलपरियटुंपि य १४ इय चउदसदारसंजुयं भणिमो । मंदमईबोहणत्थं सिद्धंतुद्धारसारमिणं ॥ ७॥ इह तिल्लपूयपडिपुग्नचंदसंठाणसठिओ रम्मो । सव्वलोगस्स मज्झे जंबु-8 हीवो हवइ लक्खं ॥ ८॥ तं पुण दुगुणेण वित्थरेण चाहिसिं परिक्खिवइ । लवणो तंपि य धायइ तहुगुणोतं च कालोओ॥९॥ अह माणुसुत्तरेणं सेलेणं मज्झसंठिएणं तु । पुक्खरवरदीवो तहुगुणवित्थरो तं परिक्खिवइ ॥१०॥ दीवोदहिणो एवं असंखया दुगुणदुगुणिया भणिया। जावंतिमो | सयंभूरमणुदही एस सिरिलोओ ॥ ११ ॥ उद्धारयराणं जत्तियाओ अद्धाइयाण इह समया । तावइया दीवुदही हवति दुगुणा दुगुण
माणा ॥ १२ ॥ एवं ठियमि पढम जंबूदीवस्स मेरुनाभिस्स। लक्खपमाणस्स परिहापभिईगणियं भणिस्सामि ।।१३।। विक्खंभवग्गदहगुणकरणी | वहस्स परिरओ होइ । विक्खंभपायगुणिओ उ परिरओ तस्स गणिवपयं ॥ १४ ॥ परिही तिलक्ख सोलस सहस्स दो सय सत्तवीसहिया ।
RRRRRR
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करण पुच्चयः
५४ ।।
कोस तियं धणुह सयं अडवीसं तेरंगुलद्धहियं ॥१५॥ (जो० ३१६२२७ गा० ३ ध० १२८ अं० १३॥) सत्तेव य कोडिसया नउया छप्प- 1 श्रीसिद्धान्त |न्न सयसहस्साई । चउणउइं च सहस्सा सयं दिवढं च साहीयं ॥१६॥ गाउयमेगं पन्नरस धणुहसया तह धणूणि पन्नरस । सहि च अंगुलाई
सारोद्धारः जंबूदीवस्स गणियपर्य' ।। १७ ।। (जो० ७९०५६९४१५० गा० १३० १५१५ अं० ६० दारं(१)। अड्डाइजा दवा दुन्नि समुद्दा य माणुसं खत्तं । पणयाल सयसहस्सा विक्खंभायामओ भणियं ॥ १८ ॥ (जो० ४५०००००) एगा जोयणकोडी लक्खा बायाल तीसइ सहस्सा । समयक्खेत्तपरिरओ दो चेव सया अउणपन्ना ॥१९॥ (१४२३०२४९) सोलस कोडी लक्खा नव कोडीसयाई कोडीलक्खेगं । पणवीस सहस्साइं गणियपयं समयखत्तस्स ॥२०॥ (जो० १६००९०१००२५०००) दारं(२) तेवढे कोडिसयं चउरासीयं च सयसहस्साई । नंदीसरवरदीवे विक्खंभो चकवालणं ।। २१ ।। (जो०१६३८४०००००) तह एस जंबुदीवो लक्खं दो लक्ख लावणसमुहो । एवं दुगुणा दुगुणा काय| व्वा जाव पनरसमो ॥२२॥ नंदीसरवरदीवो एवपमाणाण दीवउदहीणं । पच्छिमपुरिमताणं विच्चाले एस विक्खभो ॥ २३ ॥ छक्कोडिसया पणवन्न कोडि तित्तीस लक्ख परिमाणं । इय विक्खंभा परिही गणियपयं चिय मुणेयव्वं ॥२४॥(जो०६५५३३०००००) दोन्नि य कोडि सहस्सा बावत्तरि कोडि लक्ख तेत्तीसं । चउपन्न सहस्साई नउय सयं गाउयं एगं ।। २५ ।। धणुह सहस्सं इगवन्न समाहियं अंगुलाई पन्नास । एगो य जवो परिही नंदीसर अंतिमा एसा ॥ २६ ॥ (जो ० २०७२३३५४१९० गा० १ ध० १०५१० ५०ज० १) कोडाकोडीलक्खा तिन्नि उ | तह कोडिकोडिसहसा उ । एगुणचत्ता पंच उ कोडीकोडीलया हुंति ॥ २७ ॥ कोडाकोडी पनरस एगुण नवई उ कोडिलक्खाउ । कोडिसहस्स पणवीस हुंति कोडीसया तिन्नि ।। २८ ॥ पंचाणवई कोडी छावट्ठी लक्ख सहस्स तिगसयरी। पणवीस सयं गाउयमेग धणुहाण पंचसया ॥२९॥
॥ ५४॥ छग सहिया तहवंगुलाई एगणवन्नगणियपयं । जंबूमुहदीवाणं नंदीसरआंतिमाण इमं ॥३०॥ (जो०. ३३९५१५८९२५३९५६६७३१२५
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मकरण
समुच्चयः
५५ ॥
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गा० ९ ६०५०६ अं० ४९ दारं (३) । रयणमओ मेरुगिरी जोयणसहसं च भूमिगो होइ । नवनउई उब्विद्धो नाभिसमो सव्वलोयस्स ॥ ३१ ॥ मूले दस एक्कारसभागा नउया य जोयणसहस्सा । इस एसो विक्खंभो परिही पुण जोयणसहस्सा (१००९० भा०१०) ।। ३२ ।। इंगतीसं नव सय इस सहिया तिन्नि य इगारसा भागा (३१९१० । ३-११) भूविक्खंभो दस सहस्त (१००००) परिहि इगतीस सहसा उ ||३३|| छस्सय तेवीसहिया (३१६२३) सहसं पुण होइ उवरि विक्खंभो (१००० ) । परिही बावट्ठ सवं तिन्नेव य जोयण सहस्सा ॥ ३४ ॥ (जो ३१६२) । मूले मज्जुवरिंमि य वारस अड चउर जोयणे रुंदा । चालीसुच्चा जिणभवणभूसिया मेरुवरि चूला ||३५|| दारं (४) । पंचेव जोयणसए उडूं गंतूण पंचसयपिहुलं । नंदणवणं सुमेरुं परिक्खिवित्ता ठियं रम्मं ।। ३६ ।। बावट्ठी सहस्साइं पंचेव सयाई जोयणाणं तु । सोमणसं नाम वर्ण पंचसए होइ विच्छिन्नं ॥ ३७ ॥ सोमणसाओ तीसं छच्च सहस्से विलग्गिऊण गिरिं । विमलजलकुंडगहणं होइ वर्ण पंडगं सिहरे || ३८ || हेट्ठिमसहस्ससहिओ मेरुगिरी लक्खजायणपमाणो । चूला दुवीस उच्चा समयकेऊहिं निदिट्ठा ॥ ३९ ॥ इत्थं किल पिहुलतं वणसंडाणं न होइ गणियब्वं । उच्चत्ते पुण गणिए जोयणलक्खं हवइ मेरू ||४०|| (१०००००) दारं (५) पंचसए छवी से छच्च कला वित्थड भरवासं ५२६-५ । दस सय बावन्नाहिया बारस य कला य हिमवंते (१०५२-१२) । ४१ ।। हेमवए पंचहिया इगवीस सवाउ पंच य कलाओ । (२१०५-५) दसहिय बायाल सया दस य कलाओ महाहिमवे (४२१०-१० ) ।। ४२ ।। हरिवासे इगवीसा चुलसीइया कला य एक्का य (८४२१-१) । सोलस सहस्स अट्ठय बायाला से कला निसढे (१६८४२-२ ) ।। ४३ ।। तेत्तीस च सहस्सा छच्च सया जोयणाण चउसीया। चउरो य कलासु कला महाविदेहस्स विक्खंभो (३३६८४-४) ||४४|| भरहहिमवाइएसुं छट्ठाणेसुं कएस दुगुणेसुं । खिबिए विदेहमाणे जंबूदीवो हवइ लक्खं ॥ ४५॥ (१०००००) । जंबूद्वीप: दक्षिणवेदिकोत्तरवेदिकामध्ये लक्षः । दारं ( ६ ) || विजयाणं विक्खंभो बावीस सयाई तेरसहियाई । पंचसए वक्खारा
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।। ५५ ।।
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रोद्धार
॥५६॥
ACCASSES
शा पणवीससयं तु सलिलाओ॥४६॥ अउणालीस सयाई बावीसहियाई वणमुहा दोवि। बावीस सहस्सा भइसाल तह दस य मेरुम्मि ॥४७॥ इय श्रीसिद्धान्त विजयनगनईणं वणमुहवणसंडमेरुसंखाणं । धरिऊण गुणह सोलस अडछगदुदुएगअंकेहिं ॥४८॥ जइया तेराहियाई बावीस सयाई विजयपरिमाणं । पढियइ तइया दुन्नि उ फेडिजहि गुणिय विजएसु ॥ ४९ ॥ बारसाहियाई जइया बावीस सयाई विजयविक्खंभो। पढियइ तइया चउद्दस खिप्पंति य गुणियविजएसु ॥५०॥ जओ पढंति-सत्तगुणे विणु सोलहहिं अट्ठहिं सागु हरेज्ज । लद्धउं विजयहं मेल उि तावहिं लक्खु करिज्ज ।। ५१ ॥ १००००० जंबूद्वीपः पूर्ववेदिकापश्चिमवेदिकामध्ये लक्षः ॥ दारं (७) ॥ माणुसखेत्ते गब्भयमाणुसमाणं अहलयं समए । भणियमिह दुगो अंको दुगुणिज्जइ तत्थ चत्तारि ॥ ५२ ॥ किल हुँति तेऽवि दुगुणा अट्ठ उ ते दुगुणिया य सोलसओ। एवं दुगुणा || दुगुणा कायव्वा छन्नवइ वारा ।। ५३ ॥ छन्नवइयंमि वारे इगूणतीसं हवंति इह अंका । तप्परिमाणाई माणुसाइं समयंमि भणियाई ।। ५४ ।। | अहवावि दुगो अंको वमिगज्जइ तत्थ हुंति चत्तारि (४)। एसो पढमो वग्गो तत्वग्गे सोलस हवंति(१६)॥५५॥ तव्वग्गे दुन्नि सया छप्पन्नऽहिया (२५६) तहा य तम्बग्गे । पणसहि सहस्साई छत्तीसहिया य पंच सया (६५५३६)॥५६।। तव्वग्गे पुण नेया पुव्वणुपुवीऍ एरिसा अंका। चउ दुन्नि नव य चउ नव छ सत्त दो नव य छच्चेव (४२९४९६७२९६)॥५४॥ एसो पंचमषग्गो एयस्सवि वग्गजाणणे अंका। पुव्वणुपुन्वीऍ इमे नेयव्वा बुद्धिमंतेहिं ॥५८॥ इग अट्ठ चउ चउ छग सत्त चउ चउर सुन्न सत्तेव । सिंग सत्त सुन्न नव पंच पंच इग छच्च इग
उच्च ॥५९॥ (१८४४६७४४०७३७०९५५१६१६) एसो छट्टो वग्गो गुणियइ एएण पंचमो बग्गो । तत्थुप्पन्नं कितगुणियनीईकुसलेहि कीयेहिं ।। ६० ।। एगुप्मतीसं अंका पुम्बणुपुब्धीऍ हुँति-भावब्बा-सित नव दुमि दुन्नि य इग छग दुन्नि पंचैव ॥ ६१ ॥ इग चउर दुन्नि मा
छच्च य चउ तिय तिय सत्त पंच नव तिनि । पंच चउ तिमि नव पंच सुन तिय तिमि छरुचेव ॥ ६२॥ छ ति त्ति सुं पण तिच प
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ५७॥
|त्ति ण प स ति त्ति च छ दु च ए। प दो छा ए अ बिबे ण स पढमक्खरसंतिया ठाणा ॥ ५॥ एकोनत्रिंशदकस्थानसूचिका संक्षिप्ततरेयं गाथा. श्रीसिद्धान्त
॥ ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ एवं च इमो रासी पच्छणुपुवीएँ होइ गणियब्वो। एगं दहं सयं तिय जा कोडी अट्ठमेलासाराद्धार ठाणे '। ६३ । कोडाकोडी पन्नरसमंमि कोडि कोडी उ कोडी बावीसा। कोडाकोडीकोडाकोडी गुणतीसिमे ठाणे ॥ ६४ ॥ अहवा सिरिपन्नवणावित्तीभिप्पायओ इमे अंका । कोडीकोडाकोडीहिं वावि काउं निरभिलप्पा ।। ६५ ॥ तप्परिनाणत्थं पुत्वपुव्वअंगेहिं सेसवरिसेहिं । परिसंखाणं कीरइ चउरासी तत्थ लक्खाई॥ ६६ ॥ पुव्वंगमाहु तं पि य गुणियं एएण चेव पुव्वं तु । तत्थागयमिणमो कोडि लक्ख सयरी उ वासाणं ॥६॥ छप्पन्नं च सहस्सा बोध्धव्वा हुंति वासकोडणं । पुव्वपरीमाणमिणं भागो एएण किल एत्थ ॥ ६८ ॥ हीरइ सत्तनवाईणुगुणतीसाण एत्थ अंकाणं । तत्थ इमं लद्धफलं भणिय वित्तीऍ गाहाहिं ॥ ६९ ॥ मणुयाण जहन्नपए एक्कारस पुवकोडीकोडीओ। बावीस कोडी लक्खा कोडिसहस्साई चुलसीई ।। ७० ॥ अट्ठेव य कोडिसया पुब्वाण दसुत्तरा तओ हुंति । एक्कासीई लक्खा पंचाणउई सहस्सा य ॥७१॥ छप्पन्ना तिन्नि सया पुव्वाणं पुव्ववन्निया अन्ने । एत्तो पुव्वंगाई इमाइं अहियाई अन्नाई ॥७२॥ लक्खाई एकवीसं पुव्वंगाणं व सत्तरि | सहस्सा। छच्चेवेगुणणट्ठा पुव्वंगाणं सया हुँति ।। ७३ ॥ तेसीइसयसहस्सा पन्नासं खलु भवे सहस्साई। तिन्नि सया छत्तीसा एवइया | वेगला मणुया ।। ७४ ॥ एव परीमाणाई समयक्खेत्तम्मि माणुसाइं धुवं । सव्वजियाणं मज्झे जिणेहिं थोवाइं भणियाई ।। ७५ ।। समयक्
खेत्ता बाहिं मणुयाणं नत्थि मरणउप्पत्ती । नेवन्धि बायरग्गी नेव समयाइकालोऽवि ॥७६।।दार(८)। कालपरिन्नाणंपि य वाससओवरिअणं निसामेह । | अइतुच्छ जत्थुस्सासमाइयं तंपि किल गणियं ।। ७७ ॥ नीरोगि जोब्बणत्थस्स, पसंतस्स सरीरिणो। नीसास्सुसासए एगे, पाणुओ एस भन्नईला
।। ५७॥ |॥७८॥ थोवो य सत्तपाहि, लवेणं सत्त थोवए । मुहुत्ते सत्तहत्तरिए, लवाणं जिणदोसए ॥७९॥ मुहुत्तेऽणतनाणीहिं, उस्सासाणं वियाहिया ।
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प्रकरण मुच्चयः
श्रीसिद्धान्त साराद्धारः
।। ५८॥
SAREKAR
तिसत्तरी सया सत्त, तहा य सहसत्तियं ३७७३ ।।८।। अहरत्ते ऊसासा लक्खो तेरससहस्स नउय रूयं (११३१५०) मास लक्खा तेत्तीस सहस पणनवइ सत्त सया (३३९५७०७)।। ८१ ।। चत्तारि सया अडयाल सहस सत्तेव तह य लक्खा य । चत्तारि य किल कोडी ऊसासा हंति वारसमी (४०७४८४००) ।। ८२ ।। कोडि सयाई चउरो सत्त कोडीउ लक्ख अडयाला । सहसावि य चालीसं वाससए हुंति ऊसासा (४०७४८४००००)।। ८३ ।। घडियाणं इगवीसं लक्ख सहस्ता य सहि बोद्धव्वा (२१६००००) दो लक्खा पहराणं सहसठ्ठासीइ वाससए । (२८८०००)॥८४॥ वाससयआउयाणं छत्तीस सहस्त होइ दिणमाणं ३६०००। अह समयावलियाई विससओ भन्नए कालो ।। ८५ ॥ दार(९)। कालो परमनिरुद्ध अविभागी तं तु जाण समओत्ति । संखाई आवालिया ता संखेज्जा य उस्लासो ॥ ८६ ॥ हहणाल्लुस्सासो | एसो पाणोत्ति सनिओ एको । पाणू य सत्त थोवो थोवा सत्तेव लवमाहु ॥ ८७ ॥ अट्ठत्तीसं च लवा अट्ठ लवा चेव नालिया होई। दो नालिया मुहुत्तो तीस मुहुत्ता अहोरत्तो ।। ८८ ।। पन्नरस अहोरत्ता पक्खो पक्खा य दो भवे मासो। दो मासा उउसन्ना तिन्नि य रियवो अयणमेगं | ।। ८९ ॥ दो अयगाई वरिसं तं दसगुण वडियं भवे कमसो। दस य सयं च सहस्सं दस य सहस्ता सयसहस्तं ॥९०॥ वाससयसहस्सं पुण चुलसीइगुगं हवेग्ज पुवंग। पुच्वंगसयसहस्सं चुलसीइगुणं भवे पुव्वं ।। ९१ ॥ पुव्वस्स य परिमाणं सयरी खलु होति कोडि लक्खाओ । छप्पन्नं च सहस्सा बोधब्या वासकोडाणं ॥ ९२॥ पुव्वंग पुव्वंपि य नउयंगं चेव होइ नउयं च । नालि गंगं नालणंपि य महनलिणगं महानलिणं | ॥ ९३ ॥ पउमं कमलं कुमुयं तुडियमडडमववहुहुकमंगं । अउयंग अउय पउयं तह सीसपहेलिया चेव ॥ ९४ ॥ पुब्बनउयप्पभिई य चउदस नामाउ अंगसंजुत्ता। अट्ठावीसट्ठाणा चउनउयं होइ ठाणसयं ।। ९५ ॥ पुव्वंगाईयाणं अट्ठा साइ एत्थ ठाणाणं । पच्छणुपुब्वाएँ इमे नेया पत्तेयमका उ ॥५६॥ पुव्वंगंमि पण सुन्न चउर अद्वैव तह य पुव्बंमि । दस सुन्न छ पण सुन्नं सत्तेव य तहय नउयंगे ।।९७॥ पन्नरस
CASCARSA
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॥ ५८॥
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प्रकरण
समुच्चयः
॥ ५९॥
सुन्ना चउ सुन्न सत्त दो नव य पंच तह नउए । वीसं सुन्ना छत्तिय इग सत्त य अट्ठ सत्तेव ।।५८।। नव चउ तह नलिगंगे पणसिं सुन्न चउर
श्रीसिद्धान्त दुग चउरो । नव इग इग दुग अट्ठय इग चउरो तय नलिणमि ।। ५९ ।। तीसं मुन्ना छग इग छग इग तिग मुन्न अट्ठ नव दुन्नि । इग
| सारोद्धारः पंच तिन्नि महनलिणअंगए सुन्न पगतीसं ॥ १०॥ चउ चउ सत्त य पण पण छग चउर तिय सुन्न नव य सुन्नं च । पण नत्र दो महन|लिगे नेया चालीस सुन्नाओ ।। १०१ ।। छन्नव चउ दुग अह य सुन्नं इग एग नव य अट्ठव । पण सत्त अट्ट रुत्त य चउ दुनी तहय पउमंग
॥१०२ ॥ पगयालीस सुन्ना चउ छग छग नव य दुन्नि नव सुन्नं । तिय पंच अट्ठ चउ सत्त पंच इग दुन्नि अड सुन्न ।। १०३ ॥ दुन्नि य तहा य पउमे सुन्ना पन्नास छकच सत्तेव । सतेग नव य सुन्नं अड नव पंचेव छग सत्त ॥ १०४।। अह य दुदु इग सुन्नं नव चउ सत्तंग तहय * कमलंगे। पणवनं सुन्नाई चउ अड इग नव य मुन्नं च ॥१०५॥ सत्त य नव ति दु चउरं ति छगिग दुति सुन्न सत्तिग नवव। छ चउर इगर | तह कमले सठ्ठी सुन्नाई छप्पंच ।। ६॥ चउ एग सत्त पंच य पण तिग इग छच्च सत्त दो सत्त। इग सुन्न सत्त सुन्नं तिग सुन्नं एग चउ तिन्नि
॥ ७ ॥ दुग एगं कुमुयंगे पणट्ठी सुन्न चउर सुन्न तिगं । दो सुन्न सुन्न अट्ठ य अट्ठ उ ति पण नव एग इग पंच ॥ ८ ॥ चउ नव य अट्ठ सत्त य पण छच्च य चउर छच्च छच्च तिगं । सुन्नेगं तह कुमुए सत्तरि सुन्ना छ तिग पंच ॥ ९॥ ति नविग दो नव पंच य दुगेग चउ सुन्न सुन्न नव 3 तिन्नि । इग तिग छग दुग इग तिग अड सत्त य सुन्न सत्तट्ठ ॥ १०॥ तुडिगंगे पणसत्तरि सुन्नाई चउर दुन्नि सुन्नं च । सत्त पण दुन्नि चउ चउ |
सत्त य सत्तेव पण छच्च ।। ११ ।। चउ तिग छग सत्त सगं ति सुन्न इग छच्च दुन्नि अट्ठव । सत्त पण चउर इग तिग सत्त य तुडियंमि सुन्न असी ।।। १२ ।। छग एग सुन्न सुन्नं नव पंचय सत्त एग पण सुन्न । पण दुग इग इग तिग इग अठुलू य सुन्न सत्त दुगं॥ १३ ॥ नव तिनि सत्त पंच या चउ दुग चउ चउर एग छच्चेव । अडडंगे पण असिई सुन्नं चउ चउ तिगेगं च ॥ १४ ॥ छप्पंच सत्त सत्त य चउ तिय चउ सुन्न पंच चउ एगें।
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ६० ॥
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सुन्न
तिग चडगं पण सत्तठ्ठ य नव य ( पण ) सुन्नं ।। १५ ।। दुग चउर छच्च छगिगं इग छच य एग पंच अडडांम। नवई सुन्ना छन्नव य अठ्ठ दुग सुन्न पंच इग पंच ॥ १६ ॥ इग इग दु पंच छग तिग अठ्ठिग दु ति पंच अठ्ठ ति ति पंच । नव दुग छत्तिय नव सत्त नव य सत्तेव तिग पंच ॥ १७ ॥ तिति चड अववंगंमी पणनवई सुन्न चड छग दु तिन्नि । चउरठ्ठदु सन्त सत्तेव छग दुन्नि ।। १८ ।। चड तिग सुन्नं सत्त य छग तिग चड अठ्ठ सुन्न अट्ठठ्ठ । चड छग छग दुग सुन्नं नवेग सत्तेग चड छच्च ॥ १९ ॥ तिन्नि य तह अबवंमी सुन्न सयं छच्च सत्त इग चउरो । तिग अठ्ठठ्ठगपं च य नव पंच ॥ २१ ॥ सुन्नं तिगं हुहुयंगे पणहिय सय सुन्न चउर अट्ठेब । सत्त य सुन्नं सप्त य सुन्नं दुग अट्ठ पंचेव ।। २२ ।। नव पंच दुि चड तिगं नव सत्त यति नव सत्त तिग नवगं । दु ति दुग नव नव ति ति सुन्न दुत्ति पण चउर नव छच्च ||२३|| नव पंचैव य नव छच्च पंच दो हूयमि सुन्न सयं । दस अहिय छप्पण अट्ठ पंच चउर नवति नव हयगं ||२४|| च सुन्न अट्ट ति तिनि अट्ठ चउर छग अट्ठ सत्त छच्चट्ठ । सत्त य छग छग पण पंचय ति पण पंचट्ट सुन्नं च ।। २५ ।। सत्त नव तिन्नि तिग चड इग छग चउरट्ठ पंच एग दुगं । अउयंगे सुन्न सयं पनरस अहियं चउर सुन्नं ।। २६ ।। नव एग पंच चड इग नव सुन्नेगेग छनवतिग सुन्नं । छ चउ छ सुन्न सुन्नं नव सुन्न सुन्न इग छच्च ।। २७ ।। सत्तट्ठय नव चड अड एग पण पंच तिपण चउ सुन्नं । छगसत्त सुन्निगतिगं इग अट्ठेगं तहा अउए ।। २८ ।। सुन्नसयं वीसहियं छतिनव नव पंच नविग अड छच्च । इग तिति सत्त दुग तिगं सत्त य छदु चउर पण छच्च २९ ॥ पण सत्त चड दुनव पण नव अट्ठय तिपण पंच तिन्नट्ट । नव सुन्न अट्ट सत्त य अडतिग सुन्नेग सुन्नतिगं ॥ ३० ॥ दो पंचिग पउयंगे सुन्न सयं पंचवीस अमहियं । चत्तारि दो छच्चउतिगं छ चउर अड दुन्नि इग छच्च ।। ३१ ।। अड पण नव चड पणगं पण चड अड पंच नव य चड पंच । नव सत्त छ सत्तय पंच दुन्नि सत्तेव दुगपंच ।। ३२ ।। अट्ठिग छ दु सुन्न छगं सत्तय पण दुन्नि सत्त अट्ठ दुगं । तिग नव सत्त दुगेगं पउए सुन्नाण
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सिद्धान्तो द्धारः
11 & 0 11
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प्रकरण
समुच्चयः
॥ ६१॥
CRACCORE
| तीसतयं ॥ ३३ ॥ छ इग चउ अट्ठ मुन्नं तिग नव सुन्नं च नव य सत्तेव । चउ ति दुपण छग इग छदु सुन्नं इग पण छ इग दुन्नि ॥३४॥ सिद्धान्ता
अडसुन्न पंच चर छग नव अड दुग छ पण नव नविग छट्ठ । तिग छग नव दु इग छगं तिग छग चउ सत्त मुन्नग ॥ ३५ ॥ सीसपहेलियअंगे पगीत सयं तु होइ सुन्नाणं । चउ चउ नव छग सुन्नं नवेग अड तिन्नि चउ दो दो ॥ ३६ ॥ सत्त नव सत्त अड सत्त
नविग छग अट्ट छह इग मुन्नं । नव छऽढिग सुन्न तिगं तिन्नट्ठ दुतिन्नि छग सत्त ॥३७|| मुन्न चर चउर छग नव अट्ठ ४ य चउर ति चउ दानव छ दुर्ग । सुन्नं नव सीसपहेलियाम्म सुन्नाग चालसयं ॥३८॥ छग नव दुति अट्ट इगं सुन्नट्ठय सुन्न अट्ठ चउ अट्ठ। छ छ नव अडिग
दुग छग सुन्नं चउ छन्नव छ पंच ।। ३९ ।। सत्त नव नव छ पण तिग सत्तय नब रुत्त पंच इग एग। चउ दुग सुन्निग सुन्नं तिसत्ता सुन्नं ति पण दुतिगं ॥४०॥ छ दु अट्ठ पंच सत्त य एवं चउपन्न एत्थ अंकाओ। पुव्वुत्तसुन्नजुत्ता चउनवयं होइ ठाणसयं ।।४१।। पुव्वंगाईयाणं नामविभत्ती उ अन्नहा वेसा । अणुओगद्दाराइम दीलइ नो तेसु वभिचारो॥ ४२ ॥ इय संखाणं भणियं अहुणा संखाणयस्स पत्थ वा । | संखेजम खेजं अणंतयंपि य भाणिस्सामि ॥ ४३ ॥ संखेज्जमसंखेज्ज अणंतयं तिविहमित्थ संखाणं । संखेज्जं पुण तिविहं जहन्नयं मज्झिमु
कोसं ॥ ४४ ॥ तिविहसंखेज्जं पुण परित्त जुत्तं असंखयासंखं । एकेक पुण तिविहं जहन्नयं मज्झिमुक्कोसं ॥ ४५ ॥ तिविहमणतंपि तहा | परित्त जुतं अर्णतयाणतं । एककं पुष तिविहं जहन्नयं मज्झिमुक्कोसं ॥४६॥ एवं तिभेयभिण्णं संखेज्ज एत्थ होइ नायव्वं । अस्संखेज्जं नवहा नवभेयमणंतयंपि तहा ॥ ४७ ॥ एगत्थ मीलियमी इगवीसं एत्थ हुँति ठाणाई। नवरं सिद्धतम्मि वसं ठाणा उ वगरंति ॥ ४८ ।। इगवीसइमं ठाणं उक्कोसमर्णतणतयं जंतं । नो घेत्तव्यमियाणि वीसइठाणाणहं वोच्छं ॥ ४९ ।। जंबूदीवपमागा चउरो पल्ला हवंति तहिं पढ़मो । अणवडियो उ पल्लो बीओ उ सलायपहोत्ति ॥५०॥ तइओ उ पडिसलायापल्लो तुरियो महासलायाणं । पल्ला एए चउरो जोयणसहसं च
ARKey
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मंत्रण समुचय
गाढा ।। ५१ ।। रयणप्पभाएँ पढमं रयणकंडं विभिदिउं बएि । बइरकंडांमे उवरि पइद्विओ जाणऽणवठप्पो ॥५२॥ ससिहा सवेइयंता एवं च ववट्ठिए सुणह एवं दो सरिसवा जहन्नं सखेज्जं होइ जिणभणियं ।। ५३ ।। मज्झिमसंखेज्जमिमं तु होइ तिपभीति जाव उक्कोसं । नो पावइ तस्सवि पयडणत्थ पल्ला पभन्नंति ॥ ५४ ॥ जो यऽणवद्वियपल्लो सरिसवपुन्नो पवन्निओ पुव्वि । ताओ असम्भावपकप्पणाए केणावि देवेण ★ ।। ५५ ।। उक्खिविय पक्खियंतो सरिस्सवा दीवसागरे सेवं । दीवसमुहक्वेवेण जाव सब्बेऽवि निट्ठविया ॥ ५६ ॥ तो तप्पज्जवसाणो जंबूदी
।। ६२ ।।
बाइओ हवइ पल्लो। अणवाट्ठओत्ति तत्तो एगो उ सलायपमि ॥ ५७॥ सरिसवओ परिखिप्पर पुणरवि तं सरिसवाण भरिऊणं । अणवद्वियंति पल्लं | उखेप्पइ तओ उ दीवम्मि || ५८ ॥ उयहिंमि य तो एवं पुव्वकमेणं जया य निट्ठविओ । तइया बीय सलाया पखिप्पइ सलायपमि ॥ ५९ ॥ | पुव्वकमेण खिविडं अणवट्ठियपाल्लियं भरेऊणं । उक्खिवियनिट्ठिएसुं तइय सलागा तओ पडइ ॥ ६० ॥ तम्मि सलायापल्ले एएण कमेण जाब सो पल्लो । पडिपुन्नो उसलायाहिं हवइ अणवाद्वयतयाहिं ॥ ६१ ॥ भरिओऽवि न ओखिप्पइ तइया अणवद्विओ उपल्लोत्ति । जेणं सलायपल्लो सलाइया तत्थ नो माइ ।। ६५ ।। तत्तो सलायपल्लोवि चैव उखिप्पए तओ दीवे । उयहिंमि य पक्खिप्पइ ता जा सव्वोऽवि निविओ ॥ ६३ ॥ एगा सलाइया तो पखिप्पइ पडिसलायपलंमि । पुणरवि अणवद्वियपल्लसंतियाहिं सलायाहिं ॥ ६४ ॥ भरियइ सलायपल्लो तेणेव कमेण पडिसलागक्खो । पल्लो भरियइ तम्मी भरिए अणवाद्वएण तहा ।। ६५ ।। भरिए सलायपले नो उक्खिप्पइऽणवडिओ पल्लो । नेव य सलायपल्लो जत्तो नो माइ तइयम्मि ।। ६६ ।। पले एक्कावि सलाइयत्ति तत्तो उ पडिसलागोवि । उखिप्प पुणरवि दीवउदहिखेवेण निट्टविओ ॥ ६७ ॥ जइया होई तया किल पल्लमि महासलागनाममि । पक्खिप्पर एगसलाइयत्ति तत्तो सलागक्खो || ६८|| उक्खिप्पर तम्मि य निट्ठियम्मि तत्तो उ पडिसलायम्मि । पक्खिप्पर एगसलाइयत्ति ततोऽणवट्ठियओ ।। ६९ ।। उक्खिप्पर तमि निट्टियम्मि बीए सलायपल्लमि । खिप्पर सलाइया
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सिद्धान्तो
द्धारः
॥ ६२ ॥
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CROSECSROG
| तो एएण कमेण पढमेण ॥ १७० ॥ भारयइ पल्लो बीओ तेणवि तइओ उ तेणवि चउत्यो। भरणुद्धरणविकिरणं ता कज्जं जाव चउ पुन्ना सिद्धान्ता॥ १७१ ॥ भवंतीति शेषः ॥ पढमतिपल्लुद्धारया दीवुदही पल्लचउसरिसवा य । रूबूण एस रासी सव्वोऽवुकोससंखेज्जं ।। ७२ ॥ अणवहि
द्धारः आइया ते पल्ला संपुन्नया य चत्तारि । रूवजुया य जहन्नं परित्तमसंखं तयं होइ ॥ ७३।। जं तं परितमसंखं जहन्नयं विवरिऊण पत्तेयं । एकेकोच्चिय रासी तावइओ चेव कायव्वो ।। ७४ । वग्गियसंवग्गियए परितमसखं परं अइकमियं । जुत्तासंखम्मि जहन्नगम्मि गंतूण तं पडियं, ॥ ७५ ॥ तत्तो रूवऽवहारे परित्तमसंखयं हवइ परमं । तट्ठाणाओ पच्छामुहाण सव्वाणि ठाणाणि ।। ७६ ।। मज्झिमपरित्तअस्संखयाणि | भन्नति जा असंखेज्ज। परितजहन्नं तं पुण पवन्नियं पुव्वगाहाए ॥७६।। जेत्तं जहन्नजुत्तं आवलियाए य एत्तिया समया । सइ वग्गियंमि संते | जुत्तासंखं अइक्कमियं ।। ७८ ॥ पडियमसंखासंखे जहन्नए रूवहीणयं तंपि । उक्कोसं जुत्तासंखगंति पुणरवि य तट्ठाणे ।। ७९ ॥ पच्छिममुहाई मझिमजुत्तासंखेज्जगाई भन्नति । जा जुत्तासंखेज्जं जहन्नगं जं पुरा भणियं ।। १८० ॥ तोऽसंखासखे जहन्नगस्स तियवारवग्गसंवग्गे । पक्खिविउं पक्खेवा लोगागासाइया दस उ ।। ८१ ॥ लोगागासपएसा १ धम्मा २ धम्मे ३ गजीवदेसा य ४ । दब्वट्ठिया निगोया ५] पत्तेया चेव बोद्धव्वा ६ ॥ ८२ ।। ठिइबंधावसाणा ७ अणुभागा ८ जोगछेयपलिभागा ९ । दोण्हं समाण समया १० असंखपक्खेवया | दस उ ॥ ८३ ॥ तो तिन्नि वार पच्छा वग्गियसंवग्गिओ इमो पडइ। अइक्कमिउं उकोसं परित्तणंते जहन्नाम्मि ||८४॥ तो तम्मि रूवूणे उक्कोसमसंखसंखयं होइ । मजिझमअसंखसंखं होइ उ जा पच्छिमजहन्नं ।।८५|| जहन्नपरित्तणंते वग्गियसंवग्गियांम संतम्मि । अइकमिउं उक्कोसे जुत्ताणते जहन्नम्मि ॥ ८६ ॥ जाइ तो रूवहाणी जा कज्जइ ताव होइ उक्कोसं । परितअणंतं पच्छामुहेसु सव्वेसु ठाणेसु ॥ ८७ ॥ माझि| मगपरित्ताणतयंति तं भन्नए मुर्णिदेहिं । जाव परित्ताणतं जहन्नगं पुवनिदिह ॥ ८८ ॥ जुत्ताणतजहन्ने अभब्वजीवावि एत्तिया चेव । सइ
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प्रकरण [मुच्चयः
॥ ६४॥
| वग्गियम्मि ते जुत्ताणतं अइक्कमिउं ।। ८९ ॥ पडियमणताणते जहण्णगे तस्स रूवअवहारे । उक्कोसं जुत्ताणतयंति संपज्जए तत्तो ॥५०॥ सिद्धान्तोतट्ठागाउ जहणं जुत्ताणतंति जाव विण्णेयं । माझिमजुत्ताणतणंतरठाणेसु सब्बेसुं॥९१॥ तो तमणताणतं जहण्णय तिण्णि वार वग्गाहि । संवग्गियंक द्धारः
च काउं तहबुकोसं न पावेइ ।।१२। ताहे छप्पक्खेवा अर्णतया सिद्धमाइया खिविउं । काऊण तिणि वारा वग्गियसंवग्गियं च तहा ॥ ९३ ॥ | सिद्धा १ निगोयजीवा २ वणस्सई ३ काल ४ पोग्गला ५ चेव । सव्वमलोयागासं ६ छप्पेएऽणंतपक्खेवा ॥ ९४ ॥ तहवि अणताणतं | उक्कोसं जा न पावए कहवि । ताहे केवलनाणं पखिप्पइ ईसणं चेव ॥९५॥ तहवि अणंताणतं उक्कोस नेव होइ कइयावि । एवं च ठिए जत्थ उ सिद्धते भन्नए बहुहा ।। ९६ ॥ उकोसमणताणतयंति तत्थाजहन्नगुकोसं । छत्तव्वमणताणतयंति इइ आहु सगयन्नू ।।९७|| एवं अर्णतयं पुण
पुग्गलपरियट्टएनु संभवइ । तं जाणणत्थमहुणा पुराणगाहा उ भन्नति ॥ ९८ ॥ ओरालविउव्वियतेयकम्मभासाणुपाणमणगेहिं । फासेवि | सवपोग्गल मुक्का अह बायरपरट्टो ।।९।। दल्वे सुहुमपरट्टो जाहे एगेण अह सरीरेण । लोगंमि सब्वपोग्गल परिणामेऊण ते मुका ॥२०॥ | लोगागासपएसा जया मरतेण एगजीवेणं । पुट्ठा कमुकमेणं खेत्तपरट्टो भवे थूलो ॥ १ ॥ जीवो जया य एगे खेत्तपएसम्मि जहिगए मरइ ।।
पुणरवि तस्ताणतरवीयपएसंभि जइ मरइ ॥२॥ एवं तरतमजोएण र.व्वखेत्तंभि जइ मओ होइ। सुहुमो खेत्तपरट्टो उक्कमेणं नवि गणेज्जा ॥३॥ | ओसप्पिणीए समया जावइया तत्तियाई मरणाई । जइया पत्ताई कमुक्कमहिं अह बायरपरट्टो ॥ ४ ॥ सुहुमो पुण ओसप्पिणिपढमे समय|म्मि जइ मओ होइ । अन्नाइवि समणंतर बीए समयम्मि जइ मरइ॥५॥ एएण कमेण पुणो ओसप्पिणिए उ सव्वसमएसु । जइ कुणइ पाणचायं | कालपरट्टो मुणेषब्यो ॥६॥ जे सुहुमागणिजीवा असंखलोयाण जत्तिय पएसा । जत्तिय तेउकाठिई एएसि चिय असंखगुणा ॥७॥ कायठिई
॥६४। है। एहितो अणुभागे जागि बंधठाणागि । ताजि असंखगुणाणि य संजमठाणाणि तावंति ॥८॥ अणुभागबंधठाणेसु चेव सब्वेसु जइ मओ होइ । अ
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प्रकरण
पौषध
समुच्चयः
| विय कमुक्कम बायर भावपरट्टो मुणेयब्बो ॥९॥ अणुभागबंधठाणे सव्वत्थवि मरइ कहवि जइ पढमे । तयणतरं च बीए मरइ तओऽणतरं तइए | |॥ २१० ॥ एएण कमेण पुणो सब्वेसुवि मरइ बंधठाणेसु । सुहुमो भावपरट्टो एसो नेओ समासेण ॥ २११ ॥ इय गणियविसयपगरणमिणमो गाहाहिं सुहअपोहाहिं । रइयं सिरिचकेसरसूरीहिं परोवयारत्थं ॥ २१२ ॥ नामं पुण सिद्धंतुद्धारसारो भणंतु एयस्स । मोक्खत्थियो बुहजणा सोहिंतु सुणंतु चिंतंतु ॥ २१३ ॥ इति श्रीवर्द्धमानसूरिपादपद्मोपजीविश्रीमच्चक्रेश्वरसूरिविरचितं सिद्धान्तोद्धारप्रकरणं समाप्तम् ॥
॥ अथ पोसहविहिपगरणं ॥ सव्वविरएहिं जेहिं सावजं सव्वहा परिच्चत्तं । तेसिं गुरूण पाए नमामि सव्वेण भावेणं ॥ १ ॥ धम्मत्थसवणकंखिहिं धम्मकरणुजएहि सत्तेहिं । सुस्सावियसयसाहारोद्दट्टज्झाणरुक्खहि ॥ २ ॥ वावारविगहपरिवज्जिएहिं सव्वेहिं सुद्धच्चित्तीहं । अट्ठमिचउदसिचउमासपज्जुसवणाइपव्वेसु ॥ ३ ॥ उबहाणतवं च तहा वहमाणेहिं सपोसहं किच्चा । भणियं समयंमि तओ भणामि पोसहविहिं एत्तो ॥४॥ कत्थइ तहिं पोसहविही तय अहोरत्तकिरियकणं च । तह पोसहपारावणविहिं च संखेवओ सुणह ॥ ५ ॥ तहिं पोसहं पगिण्हइ साहुसमीवम्मि चेइयहरे वा । पोसहसालाएँ गिहेगदेसठाणम्मि वा विहिणा ॥ ६ ॥ तत्थ नियावासाओ गुरुवसहिं गंतु वंदिऊण गुरुं ।
इरियं पडिक्कमेइ कट्ठासणयं च गिण्हेइ ॥७॥ तत्तो पुणोऽभिवंदिय मुहपत्तिं पहिऊण वंदित्ता । संदिसह इच्छाकारेण पोसह संदिसावेमि ॥ ८॥ | वंदिय इच्छाकारेण पोसहे ठामी भणइ उद्वित्ता । नवकार ओच्चरित्ता तो पोसहदंडयं भणइ ।।९।। तत्थ करोमि भंते! पोसहं आहारपोसहं देसओ (सम्वओ) सरीरसक्कारपोसहं सव्वओ बंभचेरपोसहं सव्वओ अव्वावारपोसहं सव्वओ चउविहेवि पोसहे ठामि सावजं जोगं पच्चक्खामि जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करोमि न कारवेमि तस्स भंते ! पाडेक्कमामि निंदामि |
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रकरण 'मुच्चयः
| गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ छ ।। दिणरत्ति पोसहमि जाव अहोरत्त पज्जुवासामि । दिवपोसहमि पभणइ जादिवस पज्जुवासामि ॥१०॥18 पोषध| रत्तित्तणयम्नि जारत्ति पज्जुवासामि भणिय तो वंदे । पोत्तिं पेहिय वंदइ सामाइय संदिसावेमि ॥ ११ ॥ वंदिय सामाइयए ठायह उठ्ठितु |
पर रिलका विधिःभणइ नवकारं । अह सामाइयदंडगमुञ्चरइ करेमिइच्चाई ॥१२|| करोमि भंते ! सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावपोसहं पज्जुवासामि दुविहंतिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करोभि न कारबेमि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदाभि गरिहाभि अप्पाणं वोसिरामि ॥छ।। वंदिय कट्ठासणयं है
संदिस्तावेभि वंदिउँ भणइ। कट्ठासणए ठाएह पुण वंदिय संदिसावेमि।।१३।। सज्झायं वंदित्ता सज्झायं करह तो नमोकारं । तिन्नि उ वारा पभाणय तो द पंचाईहिं गाहाहि ॥१४॥ सज्झायं पकरित्ता वंदिय समणाइ चउविहं संघ । सज्झायाइ पकरइ समुचियसमए गुरुसयासे ॥१५।। वंदिय पोति
पेहइ बंदणयं दाउ निच्चकिच्चाणि । पकरइ आलोयण खामणाणि जहभणियविहिणा उ ॥ १६॥ तत्तो गुरुं नमित्ता उववासाई जहासमाहीए । पच्चक्खइ गुरुवयणं अणुभासितो सणिय सणियं ॥ १७ ॥ तो वंदिऊण साहूपभिईसंघ नमित्तु गुरुपाए। पढइ गुणेइ सुणेई धम्मकहं वा परिकहेइ ॥ १८ ॥ पउ गपहरम्न पडिलेहगाएँ वंदितु पोत्तियं पेहे। अह जइ तंगणियाए वच्चइ तो इरियमाउत्तो ॥ १९ ॥ गंतुं भुवं पमज्जिय उच्चाराईणि करिय नियठाणे । ठिच्चा इरियं कमई गमणागमणं च आलोए ॥ २० ॥ तद्यथा-इच्छ कारेण संदिसह | गमणागमण आलोयह?, इच्छं आवसी करिउ गया दक्खिणदिसिहि थंडिलभूमि पडिलेही उच्चारपासवण सौ बाबार चिंतकी निसीही करिउ | पइट्ठा, आवतहिं जंतेहिं जे काइ खंडण विराहण की तस्स मिच्छामि दुक्कडं। तो चेईहरे गंतुं जिणेऽभिवीदत्तु उचियठाणम्मि । जहजोगं वक्खाणं सुणेइ तो भोयणावसरे ॥ २१ ॥ वंदिय पोत्तिं पेहइ तो बंदिय भणइ भत्तपाणेणं । पारावेमो वंदिय पारावह भत्तपाणेणं ॥२२॥ नवकारं उच्चरई अह उबवासी तओ उ पाणस्स । पारावइ तो बंदिय विहिणा आवस्सियं भगइ ॥२३॥ तो सयणगिहे गंतुं इरियं पडिक्कमइ
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ६७ ॥
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भइ सक्कथयं । भायणहत्थमुहाई पेहिय तो मुंजए विहिणा ।। २४ ।। भुतंते उद्वित्ता सकथयं भणिय गच्छए नियए । धम्मट्टाणे तत्थवि इरियं पडिकमिय आलोए ।। २५ ।। आगमणं तो बंदिय जहास माहीऍ आसणे ठिञ्चा । सज्झायाई पकरइ पोत्थयाईणि वा वाए ।। २६ । तईयपहरस्ते जाए पडिलेहणाअवसरम्मि । वंदिय इच्छाकारेण अम्हि पडिलेहणं करिमो || २७ || वंदिय भगई दंडाउँछय संदेसहत्ति तो वंदे | मुहपोत्तिं पेहेमो भणिन्तु तो पोत्तियं पेहे ।। २८ ।। तलवत्थरणाईयं पेहिय परिहेइ तो नियंसगयं । पडिलेहिय परिहेई जइ पुण उबवासओ होइ ।। २९ ।। तो सब्बुवहिपमज्जण अणंतरं परिहणं पमज्जेइ । ठवणगुरु तन्निसेज्जं तप्पट्टाई पमज्जेइ || ३० || कट्ठासण पाउंछ पोसहसाला इयं पमज्जेइ । लहुयतरो अन्नो वा कज्जं उद्धरइ पेड़ ||३१|| परिठवइ सुद्धठाणे तत्थ य जीवाइ जं विराहिययं । दीस इ तंपच्छित्तं समुदाइयलेक्खए किच्चं ॥ ३२ ॥ इरियं पडिक्कमेई एवं उच्चारपासवणमाई । भूमीए जइ करई तह हत्थतया जया बाहि ॥ ३३ ॥ गच्छ कम्मि कज्जे जलमाई वावि जइ विगिंचेइ । तहिं सव्वत्थवि कज्जे इरियं पडिकमइ उवत्तो ॥ ३४ ॥ तो ठेवणगुरु|सयासे पोति पेहेइ संदिसावेइ । अज्झायंतो वांदेय रुज्झायं करह इय भणइ ।। ३५ ।। नवकारपाभइयं तो सज्झायं करइ तोऽभिवंदित्ता । इच्छाकारेणऽम्हे ओवहियं संदिसावेमो || ३६ || वंदिय उवहिं अम्हेहिं पडिलेहिस्साह तो समुवउत्तो । कंबलअंतरकप्पाइयाई वत्थाइ पेहेइ ||३७|| वइसिय सज्झायाई करेइ तो जाइ उचियवेलाए । साहुवसहीऍ वंदिय इरियं पडिकमइ उवउत्तो ||३८|| आगमणं आलोयइ पोत्तिं हि देइ वंदणयं । पञ्चक्खाणं तो देइ वंदणं भणिय विहिणा ओ ||३९|| पच्चक्खाणं उचियं करेइ अहव काई उववासी । तो वंदणं न देइ पकरेइ नवं च संवरणं ||४०|| तो ते च्चिय वंदणयं आलोयण खामणाइ पकरेइ । साहुप्पभिई वंदिय सुणेइ वक्खाणमाईये ॥ ४१ ॥ अह नत्थि गुरू अहवा अच्छंताणवि न जाइ वसहीए । केणवि कज्जवसेणं तो निययवम्सए चैव ॥ ४२ ॥ | पडिलेहणाएँ अंते जइया पोत्तिं पमज्जिडं पकओ
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पौषधत्रिधिः
।। ६७ ।।
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पकरण मुच्चयः
S
पौषधविधिः
।६८॥
ल सज्झाओ तस्सुवरि वंदणयं पच्चक्खाणं च ।। ४३ ।। काऊण तत्थ उवाह संदिस्सावइ तो विहियचित्तो। वत्थाई पडिलोहिय सज्झाय कुणइ ४ | उवउत्तो ।। ४४ ॥ घडियदु गुहेसांम अत्यंते सूरिए गुरुं नामउं । आवस्सियं भणित्ता पोसहसालाए वच्चेइ ।। ४५॥ इरियं पडिक्कमित्ता
अंतो वसहीए वामभागमि। छत्थंडिलाई पेहे दाहणपासेऽवि एवइए ॥ ४६॥ तो काइयभूमीयवि छव्वामे दाहिणेवि छप्पेहे । पायं हत्थपमाणे दंडाउंछीण पडिलेहे ॥ ४७ ॥ एगो अन्ने चक्खू मेत्तेणं पेहयति थंडिल्ले । हरियतणाइविमुद्धे तत्तो अत्यंगए सूरे ॥ ४८ ॥ पडिकमणमंडलीए ठायंती अहक्कमेण सब्वेवि । पडिकमणं देवासयं पक्खंते पक्खियं तय ।। ४९॥ चीवंदण आयाश्याइवंदणं सव्ववयणमुच्चरणं । सामाइयस्स भणणं अइयारत्थं च उस्सग्गो ॥५०॥ चउवीसत्थयकङ्कण मुहपोत्ती वंदणं च आलोए। आलोइय उववेसिय सुत्तब्भणणं च विनयं ।। ५१ ॥ वंदणयं खामणयं वंदणयं चेव तहय दायव्वं । आयरियाई गाहा सामाइय तिन्नि उस्सग्गा ।। ५२ ।। सुयखेत्तदेवयाए उस्सग्गा
दुन्नि हुंति नायव्वा । मोहपोत्ती वंदणयं इच्छामो वयणमुच्चरणं ॥५३ ।। तिन्निथुई सकथओ छोभं तह बंदणं च दायव्वं । थोत्तं चिय विन्नेयं | तिन्नेव य छोभवंदणया ॥५४॥ इति देवसियं पडिक्कमणं । मुहपोत्ती वंदणयं संबुद्धाखामणं तहाऽऽलोए। बंदण पत्तेयं खामणाणि बंदणय सुत्तं च
॥ ५५ ।। सुत्तं अभुट्ठाणं उस्सग्गो पुत्ति वंदणं वहय । पज्जते खामणया तह चउरो छोभवंदणया ॥५६ ॥ इति पाक्षिकम् ॥ तत्तो सोहिनिमित्तं दिवसच्चरियस्स पायच्छित्तस्स । उस्सग्गं पकरिय देवसुगुरुगुणवन्नणं काउं ।। ५७॥ सज्झायं पुब्बंपिव संदिस्सावितु जह समाहीए । किच्चा | सज्झायं तो वंदिय पोतिं पमज्जेइ ॥ ५८ ॥ वंदिय राईसंथारयमि ठायह नमित्तु राइए । संथारयमि ठातह तत्तो सकत्थयं भणइ ॥ ५९॥ संथारभुवं संथारउत्तरावयं च पेहेइ । तो पोत्तियाएँ देहं पमज्जई भणिय निस्सीही ॥ ६० ॥ संथारगंमि निविसइ नवकारं सरिय जह समाहीए । अणुजाणउ मज्झ गुरु इच्चाई भणइ गाहाओ ॥ ६१।। अणुजाणह मज्झ गुरू बाहुवहाणेण वामपासेणं । कुक्कुडिपायपसारण अतरंतु
॥ ६८॥
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पोपध
प्रकरण समुच्चयः
विधिः
॥६९॥
४ पमज्जए भूमि ।। ६२ ।। अणुजाणह मज्झ गुरू जहासमाही ठामि संथारे। नवकाराई सुमरिय पसंतचित्ता सुविस्तामि ।। ६३ ।। तो पभणि
य नवकारं सामाइयदंडगं समुच्चरइ । चत्तारिमंगलं तह जइ मे छउमत्थ गाह्मओ ।। ६४ ।। खाममि सव्वजीवे इच्चाई गाहजुयलयं पढइ ।।
जइ म हुज्ज पमाओ इच्चाई पढइ गाहजुगं ॥६५।। नवकारभावियमणो सुहनिहाए सुएइ निञ्चितो । सुत्तविउद्धो धम्मज्जागरियं झायए हियए 8॥ ६६ ।। सुत्तविउद्धो चित्तं सुहुमपयत्थेसु नसइ जहसत्ति । जाए पभायसमए नवकारं भणिय उठेइ ।। ६७ ॥ पकरिय सरीरचितं सम्म इरियं
पडिकमेऊणं । कुसुभिणदुसुमिणनिग्घायणस्थसुसुमिणत्थेज्जत्थं ॥ ६८ ॥ राइयअइयारस्स य विसोहणत्थं च कुणइ उस्सग्गं । चउउज्जोयपमाणं सक्कथयं भणिय सज्झायं ।। ६५ ।। पुवमिव संदिसावइ सज्झायं करिय उचियवेलाए। राइपडिकमणट्ठाइभत्थगा (सक्कथय ) (चउ छोभणगा ) उ हुंति इमा ॥ ७० ॥ सामाइयस्स करणं इरियावहियाइ पुव्वगं नेयं । उस्सग्गो कुस्सुभिणे सज्झाओ होइ कायव्यो ॥ ७१ ॥ आयरियाई वंदण सव्वस्सुच्चारणं च सक्कथओ । उहित गाहभणणं तिन्नेव य हुंति उस्सग्गा ॥ ७२ ॥ तत्थ पढमो चरित्ते दसणसुद्धीए बीयओ होई । मुयनाणम्मिवि तइओ नवरं चिंतेइ अइयारे ॥ ७३ ॥ मुहणंतगपडिलेहा वंदणगालोयणं च सुत्तं च । अभुट्ठाणं वंदण खामणयं वंदणं चेव ।। ७४ ॥ आयरियाईगाहातिगस्स उच्चारणं च कायव्वं । छम्मासिय उस्सग्गो मुहपोत्ती वंदणं चेव ॥ ५ ॥
पच्चक्खाणं च तहा इच्छामणुसहिवयणमुच्चरणं । तिन्निथुई चीवंदण पडिक्कमणं राइयं होइ ॥ ७६ ॥ इति, राइयं पडिक्कमणं ॥ ४ राइयपडिक्कमणे किल पच्चक्खाणाय कुणइ उस्सगं। छम्मासियं विचिंतइ तस्स य पाढो इमो सुणह ॥ ७७ ।। भगवंतु महावीरु छम्मास
उक्कोसयं तपिथा कओ, तुहुं जीव छम्मास सकहि ? न सकइ, काइ न सकइ, गुरुनिउगु न वहई, एकदिवसी ऊणा सकहि ?, गुरुनिओगु न वहइ, बिहिं दिवसेहिं ऊणा सकहि?, गुरुनिओगु न वहई, त्रिहिं दिवसेहिं ऊणा सकहि?, गुरुनिओगु न वहई, चउहु पांच छहि सातहि आठहि नवहि.
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पाषध
विधिः
प्रकरण दसहिं एगारहहि बारहहिं तेरहहि चउदहहि पनरहहि सोलहहि सतरहहि अट्ठारहहि इगुणवीसहि वीसहि एकवीसहि बावीसहि त्रेवीसहि चउवीसहि समुच्चयः पंचवीसहि छाबीसहि सत्तावीसही अट्ठावीसहि एगूणवीसहि सकइ?, भगवंतु महावीरु छम्मास उक्कोसयं तपिथा कउ, तुहुं जीव पांचमास
सकहि ?, गुरुनिओगु न बहई, इत्यादि, यथा छमासु तथा भणितव्यं । एवंविध परि चउथउ त्रीजउ बीजउ मास भणेवु. ततः भगवंतु ।७०॥
महावीरु छम्मास उक्कोसई तपिंथा कउ तुहं जीव एकमासु सकहि ? गुरुनिओगु न वहई, एकि दिवसिऊणउ बिहिंदिवसेहिं त्रिहिं दिवसेहि ऊणउ सकहि ?, गुरुनिओगु न वहई, चउहु पंचहि छहि सातहि आठहि नवहि दसहि एगारहि बारहि तेरहि चउदहि, बत्रीसइमु सकहि?, गुरुनिओगु न वहई, त्रीसइमुं अट्ठाविसइ, छाविस इमुं चउविसइमु बावीसइमु वीसइमु अढारसमु सालसमु चउदसमु दुवालसमु दसमु अट्ठमु छट्ट चउत्थु आंबिलु निविउ पोरसिं सकहि ?, जे कांइडं पच्चक्खिस्सइ तहिं भणइ जे सकलं इति छम्मासियस्वरूपं ॥ छ ।।
तो वेलाए उचियं जिणगुरुपायाण सुमरणं काउं । अह पंडुरे पभाए जाए पडिलेहणावसरे ।। ७९ ॥ वंदिय भणेइ संदिसह इच्छक्कारेण ४ करइ पडिलेहं । पोत्तं (पुब्बिं ) पोत्तिं पेहइ तलबच्छरणाइ पेहेउं ।। ८० ॥ परिहइ पेहइ नियंसणपि परिहेतु पेहए तंपि । ठवणागुरुं पम|| ज्जइ तन्निस्सेज्जाइयं पेहे ।। ८१ ।। ठवणगुरुं तो नवकारमाइणा ठवइ सम्ममुवउत्तो । बंदिय पोति पेहइ वंदित्ता संदिसावेमो ॥ ८२ ॥ | ओहिं बंदिय आहिं पडिलेइह तो कमेण वत्थाई । संथाराई पेहइ कट्ठासणमाइयं च तहा ।।८३॥ पोसहसालं तत्तो पमज्जए उद्धरेइ कज्जाइ ।
लहुयतरो अन्नो वा चक्खं दाउं परिठवेई ॥८४|| समुचियभूभागमि विराहियं कहइ सेससत्थेण । इरियं पडिक्कमेई करेइ सज्झायमाईयं ॥८५।। | अह उग्गयमि सूरे समुचियवेलाएँ सूरिवसहीए । वच्चइ पोसहसामाइयाण पारावणढाए ।। ८६ ॥ सूरिसमीवे गंतुं इरियं पडिकमिय भणइ Iल॥ ७० ॥
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ७१ ॥
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आगमणं । आलोयंतो वंदिय पोसहपारावणे पोत्तिं ॥ ८७ ॥ पेहइ वंदइ संदिसह इच्छाकारेण पोसहं अम्हे । पारावह भइ गुरू पुण काव्यं भद्दा ! ||८८ ॥ वंदिय भणेइ पोसहु पारहं गुरु भगइ भद्द! तुब्भेहिं । नो भो मोक्तव्वो इह आयरोत्ति ते उट्टिउं भणइ ।। ८९ ।। नवकारं तो बंदिय भूमितले निहिय जाणुकरकमलो । छउमत्थो इच्चाई वंदिय गाहं इमं भणइ ॥ ९० ॥ बंदणयाई दाउं तो गच्छ सावओ नियावासं । तत्थ य स कीयजोगेहिं पकुणइ गिहि गेहकिचाई ।। ९९ ।। जो किर अट्ठमिमाइसु सड्डो अहरत्तपोसह कुणइ । तस्सेसो किर | भणिओ दिणकिचविही इमो सव्वो ।। ९२ ।। सामान्यतः पौषधविधिः समाप्तः ॥ छ ॥ अथ उपधानपौषधे किंचिद्विशेषमाह
जो पुण उवहाणस कारणा कुणइ पोसहं सड्रो । किंचि तव्विसए निच्चकिञ्चसेसं पवक्खामि || १ || तहिं उवहाणतवं किर काउमणो पूइऊण देवगुरू | सुहलग्गे चंद्रबले सुगुरुसमीवम्मि आगंतुं ।। २ ।। वंदिय भणेइ इच्छाकारेणं अम्हि कारवह भयवं । उवहाणतवं तो सुहगुरूवि अभिमंतिए वासे || ३ || तम्मत्थए त्रिवेई तो बंदिय पडिकमित्त सो इरियं । गिन्हइ पोसहसामाइयाई तह तत्थ असणयं ||४|| संदिस्सावइ पकरइ सज्झायं तेवियं चवीकम्मं (नेइयं च कीकम्म) । आलोयणाइ पुव्वकमेण दाऊण वंदणयं ||५|| तत्तो कट्ठासणयं संदिस्सावेइ वंदिउं भणइ । कट्ठासणए ठायहं वंदित्ता पुणरवि भणेइ || ६ || पव्वेयणं पवेयह इच्छाकारेण संदिसह अम्हे । वंदिय अमुगुवहाणस्स कए य तं उद्दिसावणियं || ७ || अमुगं तवं करेमी एत्थ य वयणाइ जाइ किर भणइ । ताईं गद्दसरेहिं ( सुत्तेहिं ) भणामि मंदाववोत्थं ॥ ८ ॥ ( इतस्त्रुटितमिदं प्रकरणं न च लब्धाऽन्या प्रतिरिति न पूर्णीकृतम् )
अथ श्रीवर्द्धमानक्रमकमलोपजीवि श्रीचक्रेश्वरसूरिविरचितं पदाथस्थापनासंग्रहप्रकरणम्, आर्यावृत्तम् । धम्माधम्मंबरजियपुग्गलदुव्वाइं सव्वपज्जाए । पेक्खइ पइक्खणं जो जिणेसरो जयउ सो देवो || १ || पायाले नेरइया सत्तविह। १ दसविहा
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पौषधविधिः
11 192 11
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ७२ ॥
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भवणवासी २ । अट्ठावह वंतरसुरा ३ भूमुवरिं जंबुदीबाई || २ || अस्संखेज्जा हुती दीवसमुद्दा४ उ लोगमज्झभि । जंबू मज्झे मेरू५ उवरिं पंचविह जोइसिया ६ || ३|| बारस दिवलोगा ७ नव गेवेज्जा ८ पंचऽणुत्तरविमाणा९ । लोगंते सिद्धी १० दस इय ठाणा लोगनाली ए ॥ ४ ॥ १ ॥ तिरियं चउरो दोसुं छ होसुं अट्ठ दस य एकेका । बारस दोसुं सोलस दो वीसा य चउसुं च ।। ५ ।। पुणरवि सोलस दोसुं बारस दोसुं च हुंति नायव्वा । तिसु दस तिसु अट्ठ य छा य दोसु दोसुं च चत्तारि ॥ ६ ॥ ओयरिय लोयमज्झा चउरो चउरो य सव्वा नेया । तिय | तिय दुय दुय एक्केकगो य जा सत्तमीए उ || ७ || उड्डुं तिन्नि सयाई चड अमहियाई खंडुयाणं तु । सोलुत्तर अट्ठसया अहलोए लोगनालेसा || ८|| २ | सुरलोय गेबेज्जाणुत्तरेसु बासट्ठि पत्थडा हुंति । ते मज्झे इंदयवट्टरूवया हुंति बासट्ठी || ९ || तेसिं चउद्दिसिंपि व तंसा चउरंसवट्टयतसाईं । चड चउ आवलियाओ चउगुण बाबढि परिमाणा || १० || नरगपुढवीसु सत्तसु एगुणवन्नास पत्थडा हुति । तंमज्झे तस्संखा गुणवन्नं पाहुति ॥ ११ ॥ तेसिंपि चउद्दिसिं अट्ठ अट्ठ हुंतेव आवलीयाओ । चउहि गुणे गुणवन्नं परिमाणा ताओऽवि भवंति ।। १२ ।। इगुणवन्नास पत्थड अहम्मि तिरियंमि जंबूदीवत्ति । उवरि बावट्ठि पत्थडजुत्ता गुरुलोगनालेसा || १३|| ३ | वेसाहद्वाणद्वियकडित्थकरजयपुरिस आगारं । निक्खुड [ कोणकः ] जुयपत्थडरहिय लोगनालीऍ ठवियाए ।। १४ । विग्गगइमावन्नगजियाण पणसमयविग्गहाईए । पणसमयाए विग्गहगईऍ एसो कमो भणिओ ।। १५ ।। विदिसाउ दिसिं पढने बीए पसरइ लोगमज्झमि । तइए उनीहरइ उत्थए पंचमे ठाइ || १६ || ४ | वरभदसालतरुजयनंदणसोमणसपंडगवणेहिं । सतरसहि चेइएहिं जुत्तो मेरू हवइ लक्खं ॥ १७ ॥ ५ । नउयसयं खंडाणं भारहखेत्तप्पमाणमेत्ताणं । जंबुद्दीवो होई सिरि ( छहि ) गिरिवासेहिं संजुत्तो ।। १८ ।। ६ । भरहेरवयविदेहा पत्तेयं
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पदार्थस्था
पना प्रक.
।। ७२ ।।
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* A
प्रकरण समुच्चयः
॥७३॥
IRAHISANIRAM
का पंच पंच मेरू य । तीसं अकम्मभूमी अड्राइज्जेसु दीवसुं ॥१९॥७। अंजणदहिमुहरइकरगिरिसंठियचेइयाइं जहसंखं । चउ सोलस छापदार्थस्था| बत्तीसं वंदे नंदीसरि बिवनं ॥ २०॥ ८ । सिरिउसभवद्धमाणयचंदाणणवारिसणनामाओ । चउवीसजिणपमाणा हुंती नंदीसरे दीवेलापना प्रक. | ॥ २१ ॥ सत्ताणवइ ( ८५६९७४८१ ) सहस्सा लक्खा छप्पन्न अट्ठकोडीओ । चउसय इगसी अन्ने वंतरजोइसअसंखयं वंदे ॥२२॥ | गब्भगिहमुहमंडवपेच्छणमंडवयथूभपभिईहिं । ठाणेहिं संजुयाइं इह सासयचइयाइति ॥ २३ ॥ ९। किण्हयराईमझे रिद्वावमाण चउद्दिसि | दो दो । एवं नव लोगंतियदेवविमाणा इहं नेया ॥२४॥ एवं नव लोगंतिय मज्झिमअविवक्खणा भणंतऽह। जं पुण दसलोगंतिय देवे बिंती
तयं चिंत ॥२५॥ १०॥ बत्तसिं घरयाई काउं तिरियाययाहिं रेहाहिं । उड्डाययाहि काउं पंच घराई तओ पढमे ॥ २६ ॥ पन्नरस जिण | | निरंतर सुन्नदुगं तिजिण सुन्नतियगं च । दो जिण सुन्न जिणिंदो सुन्न जिणो सुन्न दुन्नि जिणा ॥ २७ ॥ दो चकि सुन्न तेरस पण चक्की
सुन्न चक्की दो सुन्ना । चक्की सुन्न दुचकी सुन्नं चकी दुसुन्नं च ॥ २८ ॥ दससुन्न पंच केसव पण सुन्नं केस सुन्न केसी य । दो सुन्न केसवोऽ| विय सुन्नदुर्ग केसव तिसुन्नं ॥ २९ ॥ पढमप्पंतीऍ जिणा बीयप्पंतीय चक्विणो हुंति । तइयाएँ वासुदेवा पडिविण्हुकालो य एत्थेव ।। ३० ॥
तुरियाए देहमाणं जिणाण चक्कीण वासुदेवाणं । एएसिपि य आउयमाणं पंचमियपंतीए ॥३१॥ चक्की विण्हू केईवि जिणकाले किवि जिणंतरेसुवि 8| य । इय बत्तीसघरेहिं नेयाइं जिणंतराइंति ॥३२॥११॥ साहू १ वेमाणित्थीर साहु [साध्वी]३ तिगुवाइ अग्गिकोणम्मि। भवण४ वण५ जोइदेवी
६ तिगु चिट्टे नेरइयकोणे ॥३३॥ भवणवणजोइदेवयतिगं ७-८-९ तु उवविसइ वायवे कोणे । वेमाणिय१० नर११ नारी१२ तिगं तु ईसाणकोणमि |॥३४॥ इय बारस परिसाओ पायारेऽभितरम्मि बिइयम्मि । तिरिया तइए जाणाणि ठंति इय समवसरणम्मि ॥३५॥१२॥ अवसप्पिणीय अरया
॥७३॥
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प्रकरण समुच्चयः
| पदार्थस्था पना प्रक
॥ ७४॥
छच्चेव हवंति कालसमयम्मि । सूसमसूसम पढमा बीया सूसमत्ति नायव्वा ॥३६॥ सूसमदुसमा य तइया दूसमसुसमा चउत्थिया भाणिया । दुसमा य पंचमी छट्ठिया य तह दुसमदुसमत्ति ॥३७॥ दुसमदुसुमाइ अरया ओसप्पिणीएवि छच्च विवरीया। हुंति इय बारसारं कालचक्कं सया वहइ ॥३८॥ १३। आसाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया । चित्तासोएसु मासेसु, तिपया हवइ पोरिसी॥ ३९ ॥ अंगुलं सत्तरत्तेणं, पक्खणं तु दुरंगुलं । वड्डए हायए वावि, मासेण चउरंगुलं ॥४०॥ जेट्ठामूले आसाढ सावणे छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा [बहुपडिपुन्नापोरास] अट्ठहि बीयतियांम तइए दस अट्ठ य चउत्थे ॥४१॥ १४ । नियतणुछायाएँ नवहि उ पएहिं पोसांम पोरिसी सड्डा । पयएक्केका हाणी जावासाढे पया तिन्नि ॥४२॥ अठ्ठाइयदिवसेहिं पडई चडई य अंगुलं एकं । आसाढाओ पोसो पोसाओ जाव आसाढो॥ ४२ ॥ १५। करणाई तिनि जोगा मणवइकाचा उ करणसन्नत्ति । आहाराई सन्ना सोत्ताइं इंदिया पंच ॥४४॥ पुढवी आऊ तेऊ वाउ वणस्सइ तहा य बेइंदी । तेइंदी चउरिंदी पंचिंदी अजीवदसमाओ॥४५॥ खंती महव अज्जव मुत्ती तव संजमे य बोध्धव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बभं च जइधम्मो ॥४६।। एसो सीलंगरहो पंचनमोकारसारहिनिउत्तो । नाणतुरंगमजुत्तो नेइ परं परमनेव्वाणं ॥४७ ॥ १६ । भावा छच्चोवसमियखइया खओव| समियउदयपरिणामा । दुनवट्ठारिंगवीसातिगभेया सन्निवाओ य ॥ ४८ ॥ उदइयखओवसमियपरिणामेहिं चउरो गइचउक्के । खइयजुएहिं | चउरो तदभावे उवसमजुएहिं ।। ४९ ॥ एकेको उवसमसेढिसिद्धकेवलिसुं एयमविरुद्धा । पन्नरस सन्निवाइयभेया वीसं असंभविणो ॥ ५० ॥ दुगजोगो सिद्धाणं केवलिसंसारियाण तिगजोगो । चउजोगजुयं चउसुवि गईसु मणुयाण पणजोगो ॥५१॥ इगदुगतिगसंजोगे चउसंजोगे य पंचसंजोगे। सम्बेवि य अडसट्ठी भावा जंताउ नेयव्वा ॥५२॥१७॥ तिसु एग अट्ठपाओ तियद्धसाहिय चउट्ठभागो य। चउजुयले
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॥७४।।
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ७५ ॥
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| चभागो दुयलक्खे सहस्सद्धं ॥ ५३ ॥ ससिसूरग्गहनक्खत्ततार पंचविहजो इस सुराणं । तद्देवीण य जेट्ठ आउं पढमदुपंतीसु ।। ५४ ॥ तह तइयचउत्थियपंतियासु तेसिंपि देवदेवीणं । आउ जहन्नं नेयं तिसु एगिचाऍ गाहाए || ५५ || १८ | अणदंसनपुंसित्थी वेय छक्कं च पुरिसवेयं च । दो दो एगंतरिए सरिसे सरिसं उवसमेइ ॥ ५६ || १९| अणमिच्छमीससम्मं अट्ठ नपुंसित्थिवेयछकं च । पुमवेयं च खवेई कोहाईए य संजल || ५७ ||२०| एर्गिदियपंचविहा पत्तेयं सुहुमबायरा नेया । बायर दिट्ठीगम्मा सुहुमा पुण सव्वलोयाम्म || ५८ || केवलिगम्मा तत्थ य वणस्सई बायरा दुविहभेया । पत्तेया य अणंता सुहुमा पुणऽणतया चेव ॥ ५९ ॥ इगभेया अस्संववहारयसन्ना ( असंव्यवहारराशिः ) उते विणिद्दिट्ठा । यि गोलनिगोया हुंती सुत्ते जओ भणियं ॥ ६० ॥ गोला य असंखेज्जा असंखनिग्गोय गोलओ भणिओ । एक्केकंम | निगोए अणसंजीवा मुण्णेयव्वा ॥ ६१ ॥ गोलनिगोयट्ठवणा पन्नत्तीओ विसेसओ नेया । भूजलतेऊपवणा चडविह सुहुमा तहावने || ६२ ॥ पुव्वत्तबायरा पणविहा उ सब्वेऽवि नवविहा एए । संववहारियसत्ता निद्दिट्ठा समयकेऊहिं ।। ६३ ।। २१ । अविभागपलिच्छेययवग्गणफडेहिं ( स्पर्धकः) णंतगुणिएाई। एगं संजमठाणं अनंतचारित्तपज्जायं ।। ६४ ।। संजमठाणेहिं असंखएहिं इह भवइ कंडगं ( कंडक: ) एगं । अस्संखकंडगेहिं जायइ छट्टाणगं एगं ॥ ६५ ॥ छट्टाणएहिं अस्संखएहिं इह होइ संजमस्सेढी । एत्थ य कंडगठवणा बिंदुगबितिचउरपणगेहिं ॥ ६६ ॥ किज्जइ तत्थ उ सुन्नाण हुंति सड्डा उ वारस सहस्सा । पणवीस सया एक्काण हुंति सयपंच य दुगाणं ॥ ६७ ॥ सयमेगं च तिगाणं बिसई चउगा उ पंचग चठकं । सव्वंकमीलणम्मी एगं छट्टागं होइ ॥ ६८ ।। २२ । गंठित्ति सुदुब्भओ कक्खड ( कर्कश : ) दृढरूढगूढगंठिब्व । जीवस्स कम्मजणिओ घणरागद्दोसपरिणामो ॥ ६९ ॥ ठिइकंडगाण
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पदार्थस्था
पना प्रक.
।। ७५ ।।
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प्रकरण समुच्चयः
॥७६॥
है उवरि बहुइ सहस्सा अइच्छिया जाहे । संखेज्जइमे भागे सेसे अनियाट्टअद्धाए॥ ७० ॥ आढवइ (आरभते ) अंतरं सो अंतमु- पदार्थस्था | हुत्तं तु हेढ उवरी य। तं पढमट्टिइ जाणसु आईए मिच्छदलियस्स ॥७१॥ अंतमुहुत्ता उवरिं किंचूणमुहुत्तगेण सरिसाओ। मिच्छत्तस्स
पना प्रक. ठिईओ उक्किरइ तमंतरं भणियं ॥७२॥ गंठिभेयस्सरूवं भूमीए ठाविउं अहपवत्तं । अहवाऽनियट्टिअंतरकरणाईयं मुणेयव्वं ।। ७३ ॥२३। पुर्व| गाईयाणं अट्ठावीसाए एत्थ ठाणाणं। अडवीस पंतियाहि विन्नेया अंकठवणाओ॥ ७४ ॥ अडवसिठाण उवरिं चउनउयं एत्थ होइ ठाणसयं ।
सुन्नाणं चालसएण अंकचउप्पन्नगणणाए॥७५॥२४। संखेज्जमसंखेज्ज अणंतयं तिविहमेत्थ संखाणं । संखेज्जं पुण तिविहं जहन्नयं मज्झिमुक्कोस || |॥७६।। अस्संखेज्जं नवहा अणंतयं नवविहं तु पंतीहिं । इगवीसाहिं इगवीसठाणगा इह ठवेयव्वा ॥७७॥२५। अणावायमसंलोए,(जीवोत्पत्तिर्यत्र न || BI स्थाने) परस्सणुवघाइए । समे अज्युसिरे यावि, अचिरकालकयाम्मि य।।७८॥ विच्छिन्ने दूरमोगाढे,नासन्ने बिलवज्जिए। तसपाणबीयरहिए,उच्चाराईणि वोसिरे ॥७९॥ दस पणयाला वीस सयं च दुन्नि य सुत्तरा चेव । दुन्नि सया यावन्ना दसुत्तरा दुन्नि य सया य॥८७।। वीससयं पणयाला दसं च इको य भंगया सव्वे । सहसो तेवीसहिओ इगखेवे सहसु चउवीसो।। ८१ ॥ उभयमुहं रासिद्गं हेडिल्लाणंतरेण भय पढमं । लद्धहरासिविहत्ते तस्सुवरिगुणं तु संजोगो।। ८२ ॥पयसमदुगमब्भासो माणं भंगाण एसमह रयणा। एगंतरिय लहुगुरु दुगुणा दुगुणा य वामासु ॥८३।।२६। अरिहंताई पंचप्पयाण उवरिं तु आणुव्वीणं । वीससयं तस्सक्खियपंतीहिं इह ठवेयव्वं ॥८४॥ पुव्वाणुपुव्वि हेट्ठा समया-||* भेएण कुरु जहाजेर्से । उवरिमतुल्लं पुरओ नसेज्ज पुव्वक्कमो सेसे ।। ८५॥ जम्मी किर पक्खित्ते पुणरवि सो चेव अंकविन्नासो। सो होइ समयमओ वज्जेयव्वो पयत्तेण ॥८६॥२७। दुविहतिविहा य छच्चेव भगया तह य हुंति तिन्नेव । तिन्नि दुगा इच्चाई नव चेव य भंगया हुंति।।८७।।
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प्रकरण समुच्चयः
॥७७॥
NREGALLERGAMANGA
छब्भागयाए उवीर इगवीसं भंगया मुणेयव्वा । नवभगियाएँ उवरि एगुणवन्नास भंगाओ ।।८८॥ एगाई एगुत्तरपत्तेयपयाम्मि उवरि पक्खेयो। सापदार्थस्था एकेकहाणिअवसाणभंगया हुंति नायव्वा ॥ ८९॥ अहवा पयाणि ठविउं अक्खे घेत्तण चारणं कुज्जा। इगदुग तिगसंजोगो भंगाणं संख
पना प्रक. | नायव्वा ॥९॥ छन्भंगी नवभंगी इगवीसं इगुणवन्नभंगीहिं । वयउवरि पत्तेयं देउलिया बारस हवंति ॥९१।।२८। तेरसपएसियं खलु तावइएसुं भवे पएसेसुं। जं दव्वं ओगाढं जहन्नग तं दसदिसागं ।। ९२ ॥ तेरसपएसियं इह जंतं भूमीएँ ठावेइत्ताणं । जहनावगाहदव्वं विनेयं निउणबद्धीहि।।९३॥२९। अट्ठपएसो रुयगो तिरियं लोगस्ल मजझयारम्मि । एस पभवो दिसाणं एसेव भवे अणुदिसाणं ॥९४|| दुपएसाइ दुरुत्तर एग-18 पएसा अणुत्तरा चेव । चउरो चउरो य दिसा चउराइ अणुत्तरा हुंति ॥ ९५ ।। सगडुद्धिसंठियाओ महादिसाओ हवंति चत्तारि। मुत्तावली य
चउरो दो चेव य हुँति रुयगनिभा ॥९६।। इंदग्गेई जमा य नेरई वारुणी य बोध्धव्वा । सोमा ईसाणावि य विमला य तमा य | बोद्धव्वा ॥९७।३०। उज्जुय गंतुं पच्चागई य गोमुत्तिया पयंगविही ( पतंगसदृशा)। पेडा य अद्धपेडा ( अर्धपेटकः) अभिंतर बाहि संबुक्का (कंबुकः) ॥९८॥ एएसि अट्ठण्हवि गोयरभूमीण नियनियसरुवं । भूमीएँ ठवेऊणं भावयव्वं सइ बुहेहिं ॥९९॥३१॥ परिमंडले य वट्टे तसे चउरंस आययं चेव । पंचेए संठाणा अज्जीवाणं मुणेयव्वा ॥१०॥३२। उसभाइजिणाणं पंच पंच कल्लाणगाइ ताणं तु । मिलियाणं वीससयं तेसिं पुण वरिसमझमि ॥१०१॥ चउरासीई एगासणाइ निवियाइ तेरस हवंति। दो आंबिलाइ एगो उववासो ठावणाउ पदे ॥१०२॥३३। गयवसहसीहअभिसेय दाम सास दिणयरं झयं कुंभ। पउमसर सागर विमाणभवण रयणुच्चय सिहिं च ॥१०३॥३४। दप्पण भद्दासण वद्धमाण (शरावकः) | |||७७॥ वरकलस मच्छ सिरिवच्छा। सत्थिय नंदावत्ता भणिया अट्ठठ मंगलया ॥१०४॥३५। बत्तीसलक्खणधरं समचउरंसं लिहित जिणपडिमं । तप्पा
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प्रकरण समुच्चयः
पदार्थस्था पना प्रक
॥ ७८॥
सेसु ठवेज्जा अट्ठ वरपाडिहाराई।१०५।। कंकेलिल (अशोकवृक्षः) कुसुमबुट्ठी दिव्वाणि चामरासणाई च । भावलय भेरि छत्तं इय अहउ | पाडिहेराई॥१०६॥३६। जीवा जविठ्ठाणा गुणमग्गणठाणगा उ पत्तेयं । चउदस जोगप्पभिई छयासियाओ मुणेयव्वा ॥१०७||३७। बंधे वीसुत्तरसयं बावसिसयं तु होइ उदयम्मी । उदीरणावि एवं अडयालसयं तु संतम्मि॥१०८॥ बंधोदयदीरण संत जंतचउगं च अट्ठकम्माणं । संचारणम्स सव्वं कम्मथवपडाउ विन्नेयं ॥१०९॥३८-३९-४०-४१। कणगावलिरयणावलि तह मुत्तावली य गुणरयणो । जवमझो वज्जमझो लहु गुरुओ सब्बओ भरं ।।११०॥ तह गुरु लहु भद्दोत्तर तवोत्ति इच्चाइ तवविसेसाण। ठवणाओ सिद्धता बुहेहिं सम्मं मुणेयब्वा ॥१११।।५।लोगना| लीण चउगं४ मेरू ५ जंबू ६ य माणुसं खेत्तं । नंदीसर ८ सासयचेइयाइं९ तह किण्हराई १० य॥११२॥ जिणअन्तर ११ ओसरणं १२ कालचकं १३ च पहरचकं च १४ । सडपहरस्स चक्कं १५ सीलंगरहो १६ य तह भावा १७ ॥ ११३ ।। जोइसियाणं आउं १८ उवसमसेढी य खवगसेढी २० य। गोला २१ फगरूवं २२ गंठिमेयस्सरूवं च २३ ॥११४॥ पुवंगाई २४ पल्लय (संखेज्ज)२५ परूवणा थंडिला २६णुपुम्वि २७ वया २८ । तेरसपएसिय २९ अडपएसिय ३० गोयरवणी (गई) य ३१ ॥११५॥ संठाणाई ३२ कल्लाणगाइ ३३ सुमिणाइ ३४ मंगलाई च ३५। पाडिहेर ३६ छयासिय ३७ कम्मत्थयठावणं ४२ चेव॥ ११६ ।। कणगावलि ४३ रयणावली ४४ तहेव मुत्तावली४५ य गुणरयणो४६। जवमझ४७ जमज्झो४८ तह लहु गुरु सव्वओ भद्दो४९ ॥११७॥ तह गुरु लहुओ भद्दोत्तरोत्ति ५० एवं पयत्थठवणाओ। सब्वाओवि पन्नास भणियाओ पयत्थसंगहणे ॥ ११८ ॥ एवं पयत्थठावणसंगहअभिहाण पगरणं रम्मं । सिद्धताओ सिरिमं चक्केसरसूरिणा लिाहियं ॥ ११९ ॥ इति श्रीवर्द्धमानक्रमकमलोपजीविश्रीचक्रेश्वरसूरिविरचितं पदार्थस्थापनासंग्रहाख्यं प्रकरणम् समाप्तम् ॥
॥ ७८॥
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सूक्ष्मार्थसप्ततिः
प्रकरण
॥ अथ सूक्ष्मार्थसत्तरीप्रकरणप्रारंभः ॥ आर्यावृत्तम् ।। समुच्चयः सिद्धो बुद्धो अणतो बंभो सोमो सिवो गुरू तवणे । भयवं सिरिरिसहजिणो अणाइनिहणो चिरं जयउ॥१॥ कृत्वाऽन्त्यपदस्य कृति शेषपदे
| द्विगुणमन्त्यमभिहन्यात् । उत्सार्योत्सार्य पदाच्छेषं चोत्सारयेत् कृतये ॥ २ ॥ सदृशद्विराशिघातो रूपादिद्विचयपदसमासेवी । ग्राह्यो नयुतवधो ॥७९॥ | वा(?) तदिष्टवर्गानितो 'वर्गः ॥ ३ ॥ वर्गोदाहरणानि-१।२।३। ४।५।६। ७।८।९।
श२।३।४।५।६।७।८।९। एतेषां क्रमेणागतं-०४।९।१६।२५।३६।४९।६४।८।
तथा--२।४।१६। २५६ । ६५५३६/
२।४।१६। २५६ । ६५५३६।
एतेषां क्रमेणागतानि-४।१६।२५६।६५५३६।४२९४९६७५९६ दि इत्याद्यनेकानि बग्गोंदाहरणानि द्रष्टव्यानि, वर्गः समाप्तः१। विषमात्पदतस्त्यक्त्वा वर्गस्थानच्युतेन मूलेन। द्विगुणन भजेपछेषं लब्धं विनिवेशये
पंक्त्यां ॥४॥ तद्वगर्ग संशोध्य द्विगुणीकुति पूर्ववलब्धम् । उत्सार्य ततो विभजेच्छेषं द्विगुणीकृतं दलं यन् ॥ ५ ॥ वर्गमूलतदुदाहरणानि १।४।९।१६।२५।३६।४९।६४।८।एतेषां क्रमेणागतानि-१।२।३।४।५ ६।७८।९।
४।१६।२५६१६५५३६१४२९४९६७५९६) अत्रागतं-२४ । १६ । २५६ । ६५५३६।
॥७२॥
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प्रकरण समुच्चयः
सूक्ष्मार्थसप्ततिः
।। ८०॥
इत्याद्यनेकानि वर्गमूलोदाहरणानि द्रष्टव्यानि२ ॥छ।।वर्गमूलं समाप्तम् । विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वट्टस्स परिरओ होइ । विक्खंभपाय- गुणिओ परीरओ तस्स गणियपयं ।।६।। परिही तिलक्ख सोलस य सहस्स दो य सय सत्तवीसहिया । कोसतियं धणुहसयं अडवीस तेरंगुलद्धहियं ॥७॥ परिधिः। सत्तेव य कोडिसया नउया छप्पन्न सयसहस्साई । चउणउयं च सहस्सा सयं दिवटुं च साहीयं ॥८॥गाउयमेगं पन्नरस धणु सया तह धणूणि पन्नरस । सहि च अंगुलाई जंबुदीवस्स गणियपयं ।।९।। गणितपदम् । एगा जोयणकोडी (अढीद्वीपनी परिधिः१४२३०२४८ योजन) लक्खा बायाल तीसइसहस्सा। समयकखेत्तपरिरओ दो चेव सया अउणपन्ना ॥१०॥ सोलस (अढीद्वीपर्नु गणितपद) कोडीलक्खा नवको| डिसया तिकोडि लक्खेगं । पणवीससहस्साई गणियपयं समयखेत्तस्स ॥११॥ पणयालीसं लक्खा सीमंतय माणुसं उडु सिवं च । अपइहाणो | सव्वट्ठ सिद्धि जंबूदीवो लक्खं ॥१२॥ रयणमओ मेरुगिरी जोयणसहसं च भूमिगो होइ । नवनउईउव्बिद्धो नाभिसमो सव्वलोयस्स ॥१३।। | मेरु मूले दसिगार सभागा नउया य जोवणवहस्सा । दस एसो विक्खंभो परिही पुण जोयणसहस्सा ।। १४ ॥ इगतसिं नव सय दसहिया
य तिन्नि य इगारसी भागा। भूविक्खंभो दससहस्स परिही इगतीस सहसाओ ।।१५।। छस्सयतेवीसहिया सहसं पुण होइ उवरि विक्खंभो। | परिही बावठ्ठसयं तिन्नेव य जोयणसहस्सा ॥ १६ ॥ तेवढ़ कोडिसयं चउरासीयं च सयसहस्साई। नंदीसरस्त एसो विक्खंभो | चकवालेण ॥ १७ ॥ एत्थ य जंबूदीवो लक्खं दो लक्ख लावणसमुहो। एवं दुगुणा दुगुणी कायब्वा जाव पन्नरसो ॥ १८ ॥
नंदीसरवरदीवो एव पमाणाण दीवउदहीणं । पच्छिमपुरिमंताणं विच्चाले एस विक्खंभो ॥ १९ ॥ छकोडिसया पणवन्नकोडि तेत्तीस लक्खप| रिमाणं । इय विखंभा परिही गाणियपयं निय गणेयव्वं ॥ २० ॥ जो ६५५३३००००० दोन्नि उ कोडिसहस्सा बावत्तरि कोडिलक्ख तेतीसं । चउप्पन्न सहस्साई नउयसर्य गाउयं एगं ॥ २१ ॥ धणुहसहस्सं इगवन्नसमहियं अंगुलाई पन्नासं । एगो य जयो परिही नंदीसर
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सूक्ष्माथ
प्रकरण समुच्चयः
सप्ततिः
॥ ८१॥
अंतिमा एसा ॥ २२ ॥ जो० २०७२३३५४१५० गा० १ ध० १०५१ अं० ५० ज० १ कोडाकोडी लक्खा तिनि उ तह कोडीकोडी सहसाओ | एगुणचत्ता पंच उ कोडाकोडी सया हुंति ॥ २३ ।। कोडाकोडी पन्नरस एगुणनवईउ कोडि लक्खाओ। कोडिसहस्सा पणवीस हुति कोडी सया तिन्नि ।। २४॥ पंचाणवई कोडी छावट्ठी लक्ख सहस तिगसयरी | पणवीससयं गाउयमेगं धणुहाण पंच सया ॥ २५ ॥ छस्समहियाइ तहेवंगुलाई एगूणवन्न गणियपयं । जंबूमुहदीवाणं नंदीसरअंतिमाणेवं ॥ २६ ॥ जो ३३९५१५८९२५३९५६६७३१२५ गो० १ ध०५०६ अं०४९ । दारं ॥ जोयणसयदीहाई पन्नासं वित्थडाई सम्माई । बावत्तरूसियाई तहिं चेइहराई बावन्नं ॥ २७ ॥ मणुआण जहन्नपए एगुणतीसं हवंति ठाणाई । तहियं पंचमवग्गो गुणिज्जए छट्ठवग्गेणं ॥ २८ ॥ छन्नवई वाराओ अहव गुणिज्जइ दुगो उ तो तत्थ । गुणतीसठाणसंखा हवंति मणुया जहन्नेणं ॥ २९ ॥ दुग अंको दुगुणिज्जइ वारा छन्नवइ तत्थ दुइयमि । रासिम्मि पढमवग्गो चउरूवो होइ नायब्वो ॥ ३० ॥ रासिम्मि चउत्थम्मि वग्गो सोलस य बीयओ होइ । अह रासीए तइओ वग्गो छप्पन्न तह दुसया ।। ३१ ॥ पणसहि सहस पणसय छत्तीसा सोलसम्मि रासिम्मि । तुरिओ वग्गो बत्तीसमम्मि रासिंमि पणवग्गो ॥३२॥ तत्थ य अंका दाहणहुंता चउ दु नव चउ नवं छ सत्त । दुग नव छग इय रूवा इय अंको पंचमे वग्गे ॥३३॥ तह चउसहिमरासीएँ छट्ठवग्गो उ होइ नायव्वो । तत्थ य अंका दाहिणहुंताओ कमेणिमे हुंति ॥३४॥ इग अठ्ठ चउ चउ छग सत्त य चउ चउर सुन्न सत्तेव । तिग सत्त सुन्न नव पंच पंच इग छच्च इग छच्च ॥३५॥ एसो छट्टो वग्गो गुणियइ एएण पंचमो वग्यो । तत्थुप्पन्ना अंका गुणतीसं ते य रासिम्नि ॥३६॥ छन्नवइयंमि नेया दाहिणहुत्ता कमेणिमे सुणह । सत्त नव दुन्नि दुन्नि य अड इग छग दुन्नि पंचेव ॥३७॥ इग चउर दुनि छच्च य चउ तिय सत्त पंच नव तिन्नि । पंच चउ तिनि नव पंच सुन्न तिय तिनि छच्चेव ॥३८|एयाइ जहन्नपए समयकखेत्तम्मि माणुसाइ धुवं । सव्वजियाणं मझे
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k
प्रकरण समुच्चयः
सूक्ष्मार्थसप्ततिः
॥८२॥
जिणेहिं थोवाइं भणियाई ॥३९॥ समयक्खेत्ता बाहिं मणुयाणं नत्थि मरणउप्पत्ती। नेवऽस्थि बायरग्गी नेव य समयाइकालोऽवि॥४०॥ नीर- गिजोब्बणत्यस्स, पसंतस्स सरीरिणो । नीसासुस्सासए एगे, पाणुओ एस भन्नए ॥४१॥ थोवे य सत्त पाणूहि, लवेण सत्त थोबए । मुहुत्ते सत्तहत्तरीए, लवाणं जिणदेसिए ।॥४२॥ मुहुत्तेऽणतनाणीहि, ऊसासाणं वियाहिया । तिसत्तरी सया सत्त, तहा य सहसत्तियं ॥४३॥ अहरत्ते उसासा लक्खो तेरस सहस्स नउय सयं । मासे लक्खा तेत्तीस सहस पणनवइ सया सत्त ॥४४॥ चत्तारि सया अडयाल सहस सत्तेव तय लक्खा य । चतारि य किल कोडी ऊसासा हुंति वरिसम्मि॥४५॥ कोडिसयाई चउरो सत्त उ कोडीउ लक्ख अडयाला । सहभावि य चालीसं वाससए टुति ऊलासा ॥४६॥ घडियाणं इगवीसं लक्खा सहसा य सहि बोद्धव्वा । दो लक्खा पहराणं सहसट्ठासीइ वाससए ॥४७॥ वाससयआउयाण छत्तीससहस्स होइ परिमाणं । अह समयावलियाई विसेसओ भन्नए कालो ॥४८॥ समयावलियमुहुत्ता दिवस अहोरत्त पक्ख मासा य । संवच्छरजापलिया सागर ओसप्पिपरियट्टा ॥ ४९ ।। तह वाससय सहस्तं चुलसीइगुणं हवेज्ज पुव्वंगं । पुवंग पुग्वंगेण ताडियं होइ किर पुव्वं ॥५०॥ पुत्वस्त उ परिमाणं सयरिं खलु हुंति कोडिलक्खाओ। छप्पन्नं च सहस्सा बोद्धव्वा वासकोडीणं ॥५१|| पुब्बंपि य चउरासीलक्खेहि गुणं हविज्ज नउयंगं । एवं नउयप्पभिइसु अट्ठावीससुवि ठाणेसु ॥५२॥ चउरासीलक्खेहि गुगकारो तोऽतिमे हवइ ठाणे । चालसय सुन्नाणं अंका य हवंति छप्पन्ना ।।५३।। पुवनउयप्पभिई य चउदस नामा उ अंगसंजुत्ता । अट्ठावसिं ठाणा चउनउयं होइ ठाणसयं ।। ५४ । पुष्वंगं पुपि य नउयंगं चेव होइ नउयं च । नलिणंगंपिय नलिणं महानलिणंगं महानलिणं ॥५५॥ पउमं कमलं कुमयं तुडियं अडडं च अवव हुहुयं च । अन्नं च अज्य पउयं तह सीसपहेलिया चेव ॥५६॥ खुइभवा साहाया सत्तरस हवति एगपाणामि | पाण एगमहत्ते तिसत्तरी सत्ततीस सया ॥५७|| पणसहि लहसपणसय छत्तीसा इगमुहत्ति खड्भवा । दो य सया
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| सूक्ष्मार्थ
प्रकरण लप्पन्ना अबाले या एगखुड्भव ।।५८॥ एगमुहुत्त जखुद्दभवराप्तीए इगमुहुत्तपाणूणं । संतेण रासिणा अवहियम्मि भागंमि सत्तरस ।।५९।। हुंति || समुचयः दिभवग्गहणाई उपरि तेरससया उ पणनउया। अंसाण तेवि तणया तिसयर सगतीस सयगाण ॥६०|| एगमुहुत्तगखुल्लगभवंकरासिम्मि ताड
सप्ततिः णम्मि कए । इगखुल्लगभवसंतियआवलियारासिणो हुंति ॥६१।। सोलुत्तर दुन्नि सया सत्तत्तरि सहस लक्ख सगसट्ठी । एगा कोडी भणिया ॥८३॥ आवालियाणं मुहतमि ॥६२॥ संखेज्जमसंखेज्जं अर्णतयं तिविहमित्य संखाणं | संखेज्ज पुण तिविहं जहन्नयं मज्झिमुकोसं ॥६३॥ तिविहमसं
खेज्ज पुण परित्तजुत्ता असंखयासंखं । एककं पुण तिविहं जहन्नयं मज्झिमुक्कोसं ॥ ६४ ॥ तिविहमणतंपि तहा परित्तजुत्तंअणतयाणंतं । एकेक पण तिविहं जहन्नयं मज्झिमुकोसं ॥६५॥ एवं तिभयभिन्नं संखेज्जं एत्थ होइ नायब्वं । अस्संखेज्जं नवहा नवभेयमणतयंपि तहा ॥६६।। एगस्थ मीलियम्मी इगवीसं एत्थ हुंति ठाणाई। एएसिं वक्खाणं जीवसमासस्त वित्तीओ ॥६७।। अहवा दिवढसयाउ अहवा सिरिचकसूरिरहयाओ | सिद्धंतु द्वारभिहाणपगरणाओ मुणेयव्वं ॥ ६८॥ दव्वे खेत्ते काले भावे चउह दुह बायरो सुहुमो । होइ अणंतस्सप्पिणिपरिमाणो पोग्गलपरहो ॥६९|| चउसगुन गवइपाणतणेण परिणभिय मुयह सव्वअणू। एग जओ. भवभभिरो जत्तियकालेण सो थूलो ॥७॥ सत्तण्हऽनयरेण उ इयफुमणे सुहुमदव्वपरियट्टो। अन्ने चउतणुकमउक्कमेण तं बिंति दुविहंपि।।७२॥ लोगपएसोसप्पिणिसमया
अणभागबंधठागा य | पुट्ठा मरणेण जया कमुक्कमो बायरोत्ति तया ॥७२॥ पुट्ठाणंतरमरणण पुणो जया ते तया, हवइ सुहुमो । पोग्गलपरियट्टो x खेत्तकालभावहि इय नेओ॥७३।। पोग्गलपरियो इह अट्ठविहो जइवि वनिओ तहवि । अविलेसिवस्सरूवो उ दवओ बायरो गेज्झो॥४॥ विक्कमओ पणपनरुदसंखवरिसंमि चक्कसूरीहिं । सावयराहडवयणा लिाहेया सुहुमत्थसत्तरिया ॥७५।। इतिसूक्ष्मार्थसत्तरिणाम प्रकरणं समाप्तमिति ॥छ । श्रीवर्द्धमानसूरिपादपमोपजीविनः कृतिरियं श्रीमचकेश्वरसूरेः॥छ॥
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प्रकरण समुच्चयः
है चरणकरण
प्रकरणम्
॥८४॥
अथ चरणकरणमूलोत्तरगुणप्रकरणम् । आर्यावृत्तम् । बंदिय तिजयरारन्ने गुरुणो वरचरणकरणसंपत्ते । चरणकरणाइविसए किंचि वियारं पवक्खामि ॥१॥ वय ५ समणधम्म१० संजम १७वेयावर्ष च१० बंभगुत्तीओ९ । नाणाइतियं ३ तव १२ कोहनिग्गहाई ४ चरणमेयं ॥२॥ वयमाईणऽट्ठण्हं ठाणाण जहकमेणिमे अंका । पण दस सतरस दसनव तिग बारस चउर संखाओ ॥३॥ पाणाइवाय तह मुसावाया य अदिन्न मेहुणे चेव । सव्वं परिग्गहं चिय इय पंच वयाई नेयाई॥४॥ खंती य महवऽज्जव मुत्ती तव मंजमे य बोद्धवो । सच्चं सोय आकिंचगं च बंभं च जइधम्मो ५|| पुढवि दग अगणि मारुय वगफइ बितिचउ पगिदि अज्जीवे । पेहोप्पेह पमज्जग परिठवण मणोवईकाए ॥६॥ संजमठाणा सत्तरस पायं सुगमा तहावि किर पहा । एसा बुच्चइ सीसं जं चोयइ संजमाईसुं ॥ ७ ॥ उप्पेहा अस्संजमवावारसुं निवारई जंनु । सेसा संजमठाणा सुयाउ विउसेहि नायव्वा ॥ ८॥ दसविहवेयावच्चं सूरिउवज्झायथेरसाहूसु । बालगिलाणसधम्मियकुलगणसंधाण विसयंमि ॥९॥ वसहिकहनिरुजिदियकुइंतरपुब्वकीलियपीए । अइमायाहार विभूमणा य नव बंभगुत्तीओ ॥ १०॥ नाणाइतियं भणियं नाणं तह दसणं चरित्तं च । रयणत्तयमेयं वन्नियं तु मोक्खस्स मग्गो उ ॥ ११ ॥ अगसणमूणोरिया वित्तीसंखेवगं रसच्चाओ । कायाकलेसो संलीगया य बज्झो तवो होइ ॥ १२ ॥ पायच्छित्तं विणओ, वेंयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं रस्सग्गोऽवि य अभितरओ तवो होइ ॥ १३॥ कोहोवलक्षणाओं कसायच उगस्त दुक्खमूलस्स । सोलसभेयविभिन्नस्स निग्गहो चरणमूलं तु ॥ १४॥ एवं वयमाईणं अट्ठट्ठाणाण विवरणकेसु । एगत्थ मीलिएसु चरणं सत्तरिविहं होइ ॥१५॥ पिंडविसोही समिई ५ भावण १२ पडिमा १२ य इंदिय ५ निरोहो । पडिलेहण २५ गुत्तीओ ३ | अभिग्गहा ४ चेव करणं तु ॥ १६ ॥ पिडविसोहिप्पभिईण अट्ठट्ठाणाण जहक्कमेणं तु । चउ पंच बार बारस पण पणवीसा तिय
-%A4%A4-5AHARA
॥८४॥
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प्रकरण समुच्चयः
चरणकरण.
३४
॥८५॥
चउकं ॥ १७॥ उग्गमदोसुप्पायणदोसा तह एसणार दोसा उ ! मंडलिदोसा एवं पिंडविसोही भवे चउहा ॥१८॥ सोलस उग्गमदोसा सोल- | स उप्पायणाएँ दोसा उ । दस एसणाएँ दोसा मंडलिदोसा उ पंचेव ॥१९।। इरिसमिइ भाससमिई एसगसमिई तहोवगरणम्मि । गहणट्ठावणसमिई परिट्ठावणसमिइ पंचमिया ॥२०॥ पढममणिच्चमसरणय संसारो एगया य अन्नत्तं । असुइत्तं आसव संवरो य तह निज्जरा नवमी ॥ २१ ॥ लोगसहावो बोहीऍ दुल्लहो धम्मसाहओ अरहा । एयाओ सइ बारस जहक्कम भावगीयाओ ॥ २२ ॥ मासाई सत्तता | पढना वियतइय सत्तराइदिणा । अहराइ एगराई भिक्खूपडिमाण बारसगं ॥ २३ ॥ फरिसण रसणं घागं चक्खू सोत्ता य इंदिया पंच । तन्निग्गहो जिणेहिं भगिओ करणस्स मज्झम्मि ॥ २४ ॥ देहपडिग्गहकंबलवत्थाईयं जया उ पडिलेहे । तइया ठाणा पडिलेहणाएँ पणवीसई हुति ।। २५ ।। जइविहु तणुपत्ताइसु वत्थाइसु अन्नहेव पणवीसा । समयपसिद्धा तहविहु गेज्झा एकेव पणवीसा ।। २६ ॥ सुविसुद्धमणोव. इतणुजोगा गुत्तीतिगं इमं होइ । दवे खेत्ते काले भावे य अभिग्गहा चउरो ॥ २७ ॥ पिंडस्स जा बिसोही ४२ समिईओ ५ भावणा १२ | तवो१२दुविहो । पडिमा १२ अभिग्गहावि ४ व उत्तरगुणमो वियाणाहि ॥ २८॥ पिडविसोहिप्पभिई अट्ठाणाण अंकसंखाए । एगत्थ मीलि
| याए करणं सत्तरिविहं होइ ॥२९॥ चरणं करणं दुविहपि होइ सत्तरसभेयसभिन्नं । अहवा चरणं करणं पत्तेयं सत्तरिविहं तु ॥ ३०॥वयसमPणाई अट्ठ उ पिंडविलोहियमाइ अहेव । नवरभिह संपयाया वयसमणाईयगाहाए ॥ ३१॥ यावच्चं च इहप्पयम्मि चसद्दयाउ सज्झाओ ।
|| नवमो इय संजोगो सतरसहा चरणकरणाई ।। ३२॥ चरण करणं सत्तरसविहं तु इय बकसकचकरणथं । वयगाहाएँ चसदा सज्झाओ ल आसि जो गणिओ ॥ ३३ ॥ सो इह नो गणियब्बो तत्तों वयमाइअट्ठठाणाणं । विवरम्मि सत्तरिविदं चरणं किर बेति समयन्नू ॥ ३४ ॥
सव्वं पाणइवायं सब्बं मोसं अदिन्नदाणं च | सव्वंपि मेहुणं परिग्गहंपि निसिभोयर्ण सव्वं ॥ ३५ ॥ जावज्जीवाएँ तिविहं तिविहेण तिका
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चरणकरण.
प्रकरण मुच्चयः
DIL
॥८६॥
| लियपि जं बज्जे । ते हुतिह मूलगुणा समणाण महव्वया पंच ॥३६॥ पिंडस्स जा विसोही इच्चाइ छठाणगे इमे अंका । बायाल पंच पणवीस बार तह बार चउरो य ।। ३७ || पिंडस्त जा विसोही सा बायाला इहुत्तरगुणेसुं । विन्नेया समिईओ पंच य समए पसिद्धाओ ॥ ३८ ॥ पाणाइवाइयाणं पंचण्ह महब्बयाण उवरिम्मि । हुंतीह भावणाओ पत्तेयं पंच ता य इमा ।। ३९ ।। वत्थाइठवणगहणे समिई इरिएसगाए समिई य । मगयणे गुतिदुर्ग पढनवए भावणा पंच ॥ ४०॥ कोहा वा लोहा वा भया व हासा व नो बए मोसं | अणुचिंतिय | भासेज्जा दुइयवर भावगा पंच ॥४१॥ उग्गहजायण उग्गहनिमामणं उग्गहस्स सीमा य । साहम्मिउग्गहो गुरुअणुनाए भोयणं लापंच ॥ ४२ ॥ इत्थिकह-इथिइंदिय-निरिक्षणाऽऽहार-गिद्धिपरिहारो । संथवभूसअकरणं चउथवए भावणा पंच ।। ४३ ॥ इंदियविरुए सद्दे
रूवे गंधे रले य फासे य । गहिपओसं न करे पंचमवय भावणा पंच ॥ ४४ ॥ अणसणमाई य तवो बारमहा होइ समयसंसिद्धो । मासाई सत्तता एमाई पडिमबारसगं ॥ ४५ ॥ दव्वे खेत्ते काले भावे य अभिग्गहा चउविगप्पा । नाणापयारभेया निट्ठिा समयके| अहिं ।। ४६ ।। पिंडस्ल जा विसोही इमाइ गाहाए पंजलगईए । विवरे कयम्मि होई सयमेगं उत्तरगुणाणं ।। ४७ ।। अन्नसुं किर गंयंतरेस.
छन्नवइ उत्तरगुणा उ। जं निसुणिज्जएँ वकं तहि दव्वाईचउक्कम्मि ।। ४८ ॥ यमसज्झाओ उस्सारियम्मि सेमाउ होइ छन्नबई। दव्वाइचउगमुत्तरगुणेसु भिन्नपि गणियव्वं ।। ४९ ।। तह अन्नसुं गंयंतरेसु नवनउइ उत्तरगुणा ओ । इय वकं दीसइ तत्थ सुणह एयस्स भावत्थं ॥५०॥ छन्नवइए मज्झे गुत्तित्तिगे पाडियम्मि नवनउई । होई इत्थ विभिन्नं व्वाइचउक्कयं गेझं ॥५१।। तो मूलिगगाहाए बीयपए वायणाविसेसोऽयं । भणियब्वो समिइगुत्तितिभावणाईणि तह चेव ॥ ५२ ॥ अन्नेवि य उत्तरगुणा अणागयप्पच्चख णमाईया'। भेयप डिभेयाभिन्ना सुत्ताउ बुहेहिं नायव्या ।। ५३ ।। इय उत्तरगुणविसयं विवरणमेयं समासओ लिहियं । किंची सुत्ताओ सुयहराण उवएसओ किंची ।। ५४ ॥ इय चरण
॥८६॥
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प्रकरण
समुच्चयः
सभापश्चकम् ३५
॥८७॥
RECCESCRCOACACAC
करणउत्तरगुणविसयाओ इमाओ गाहाओ । लिहियाओ चक्कसरसूरीहिं सुहवबोइत्थं ॥ ५५॥ इति श्रीचरणकरणमूलोत्तरगुणपगरणं सम्मत्तं ॥
॥अथ सभापश्चकप्रकरणम् ।। ३५ ॥ पंच सभा पन्नत्ता उववायसभा तहाभिसेयसभा । तइयाऽलंकारसभा ववसायसभा चउत्थी ओ॥ १ ॥ पंचमिया सोहम्मा देवो पढमाएँ तत्थ उववज्जे । आउस्संतो ! देवा बीयाएँऽभिसिञ्चई ते उ ॥२॥ तइयाएऽलंकरिजइ ववसायसभाएँ धम्मियं सत्थं । वायइ तत्तो उत्तरपुरच्छिमंमी दिसाभागे ॥ ३ ॥ सोहम्माए सठिय सिद्धाययणस्स वंदणनिमित्तं । चल्लइ तत्तो व्हायइ चेइयतणयाए वावीए ॥ ४ ॥ नंदापुक्खरणीए पुवदारेण पविसइ तत्तो । सिद्धाययणं तत्थवि वच्चेइ जिणाण आलाए ॥५॥ आलोयाम्म पणामं करेइ पडिलेह लोमहत्थेणं ।
ताओ पमज गंधोदएण न्हावेइ सुरहेणं ॥ ६॥ कासाईए गायाइं लूहई चंदणेण लिंपइ य । अहयाई जुयलयाई नियंसई देवदूसाणं ॥ ७ ॥ *पकरइ पुप्फारुहणं मल्लारुहणं च गंधआरुहणं । पुन्नाणं कलसाणं वत्थाभरणाण आरुहणं ।। ८ । पकरेइ सुविउलघणपमाणमालाउलं च
फुल्लहरं । करयलपभट्ठदसअद्धवन्नकुसुमुक्करं किरइ ।। ९ ।। जिणपडिमाणं पुरओ रययामयएहि सण्हअच्छेहिं । अच्छरसतंदुलेहिं तुसारगोखीरसेपहिं ॥ १० ॥ दप्पण १ भद्दासण २ बद्धमाण ३ वरकलस ४ मच्छ ५ सिरिवच्छा ६ । सोस्थिय ७ नंदावत्ते ८ लिहेइ अट्ठट्ठमंगलए ॥ ११ ॥ धूवकडुच्छुयएणं धूवं दाऊण जिणवरिंदाणं । अट्ठसएणं सुविसुद्धगंथवित्तहि संथुणइ ॥ १२॥ (जहा ) देवाहिदेव परमेसर! वीयराय, सवण्णु तित्थयर सिद्ध महाणुभाव । तेलोकनाह मुणिपुंगव वद्धमाण, गंभीरधीर सुचिरं जय देवदेव ॥१३॥ सत्तट्ठपयाई ओसरितु अंचेइ वामजाणुं तु । दाहिणजाणुं धरणीयलांस किच्चा सुभत्तीए ॥१४॥ तिक्खुत्तो मुद्धाणं भूमिएँ निहित्तु ईसि नमइत्ता । अंजलिमउलियहत्थो | सकथयं भणिय वंदेइ ।। १५ ॥ वंदित्ता नीहरई दाहिणदारेण गभगेहाओ । दाहिणमुहमंडवमज्झभाययं तत्थ पूएइ ॥ १६ ॥ पच्छिमदारं
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प्रकरण तत्तो दाहिणमुहमंडवस्स पूएइ । तो उत्तारल्लखंभे पूयइ तम्मंडवाइयओ ॥१.७॥ पुव्वं दारं पूयइ दाहिणमुहमंडवस्स तणयं तु । मुहमंडवस्स || सभापञ्चसमुच्चयः
Dil वाणयं दाहिणबारंपि पूएइ ॥ १८ ॥ तेणं चिय नीहरई तो दाहिष्णपेच्छमंडवयमझं । पच्छिमदारं तत्तो उतरिलखंभे उ पविल्लं ॥१९॥ दारं॥3
|| तत्तो दाहिणदारं पूएइत्तुं च नीहरइ तेणं । तत्तो दाहिणचे इयथभं पूएइ संतप्पा ॥ २० ॥ थुभाभिमुहीओ चउदिसिपि [ तत्थ ] चत्तारि || ॥८८॥
| संति जिणपडिमा । तासि पढम पञ्चिस्थिमिल्लपडिमं नमसेइ ।। २१ ॥ तो उत्तरिल्लपडिमं वंदइ तत्तो उ पुव्वतणयं तु । तत्तो दाहिणपडिमं ।
थूयइ अंचेइ वंदेइ ॥ २२ ॥ दाहिणचेइयरुक्खे दाहिणचेइयधयं च दाहिणया । नंदा पुक्खरणीविय पूयइ अंचेइ संतप्पा ॥ २३ ॥ | तत्तो सिद्धाययणं पयाहिणीकरिय जाइ उत्तरियं । नंदा पुक्खरणी चेइयरुक्ख चेइयधयं रम्मं ॥ २४ ॥ चेइयथूभं तस्संमुहाउ पडिमाउ पुव्व| नाईए । वंदित्ता पविसेई उत्तरपेच्छणयमंडवए ॥ २५ ॥ तत्थवि पुव्वकमेणं पूयइ दाराई पाविसइ तत्तो । उत्तरमुहमंडवए तत्थवि पुव्वं व दाराई ॥ २६ ।। पूइत्ता नीहरई सिद्धाययणस्स पुष्वदारेणं । पविसेइ पुवमुहमंडवंमि पूएइ तम्मज्झं ।। २७ ।। दाहिणदारं थंभाण पंतिया पच्छिमाइ उत्तरियं । दारं पूयइ पुव्वं दुवारयं तंपि पूएइ ।। २८ ॥ तेणं चिय नीहरई पुवपेच्छणयमंडवे सब्वे । पुवमुहमडवे इव करेइ तो एइ पुग्विल्ले ।। २९ ॥ चेइयथूभे तत्थवि पुब्बकमेणं जिणाण पडिमाउ । पूइत्ता चिइरुक्खं चेइधयं नंदवावी य ॥ ३० ॥ सोहम्माएँ सभाए पुव्वद्दारेण पविसई तत्तो । मज्झ धयचेइखंभे वइरामयगोलवट्टेसु ।। ३१ ।। जिणसकहाओ पूयइ थंभं पूइत्तु देवसयणीयं । खुड्डागमहिंदज्झय पहरणके सं च सुंवालं ।। ३२ ॥ सोहम्मसभागम्भं पूइत्ता जाइ तत्थ पडिमाए । उववायसभाएँ तओ हरगं चित्तु बीयाए ॥ ३३ ॥ अभिसेयाए वच्चइ तत्तोऽलंकारियाए तइयाए । तत्तो ववसायाए सभाएँ पूएइ वरपोत्थं ।। ३४ ॥ तत्तो सोहम्मसभापुराच्छमिल्लाए नंद-13 नामाए । पुक्खरिणीए मज्जिय रज्जो बलिसज्जणं करइ ।। ३५ ॥ देवा देवीओऽविय सिंघाडगमाइ तत्थ पूयंति । ताम्म कए सम्माणे पवि-13
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सूक्ष्मार्थ
सप्त-टी.३१
प्रकरण सइ पुब्बिल्लदारेणं ॥ ३६ ।। सोहम्माएँ सभाए निसीय सिंहासणमि रम्माम्म । पुवाभिमुही तत्तो सामाणियपभिद परिवारो ॥ ६७ ॥ पुरओ | समुच्चयः IC
निसीयइ पहरणवावडहत्थो पसंतमुहसोहो । जयजयनंदा जयजयभद्दा इइ जंपिरो रम्मो ॥ ३८ ॥ इय पुवसुकयकम्माणुभावजणिय
विसिट्ठविसयसुहं । भुंजतो वरसरसच्छराहिं सद्धिं गमइ कालं ॥ ३९ ॥ सिद्धाययणगमेणं मुहमंडवपभिइ वित्थरी सव्वो । पायं. पंचसभा॥ ८९॥
सुवि उववायाईसु विन्नेओ ।। ४० ।। सम्बसि दुवाराणं तह चिइरुक्खाइयाण उवरिम्मि । छत्ताइछत्तधयमंगलाई सम्वत्थ नेयाई ॥४१ ।। एसो सुरकिकचविही उबंगरायप्पलेणईयाओ। भणिओ अहिणवजायाण सव्व इंदाण देवाणं ॥ ४२ ॥ सिग्विद्धमाणसूरीण पायकमलेमु भमरसरिसेहिं । सिरिचकेसरसूरीहि भासियमिणं पगरणममेयं ।। ४३ ॥ इति देवोपपत्तिस्वरूपप्रकरणं संमत्तं ।।
. अथ सूक्ष्मार्थसप्ततिटीप्पनम् ३६ ॥ नत्वा जिनं समीचीनवस्तुसद्भावभाषकम् । सूक्ष्मार्थसप्ततेः किश्चिट्टिप्पणकमभिधीयते ॥ १॥ विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वट्टस्स परिरओ होइ । विक्खंभपायगुणिओ परिरओ तस्स गणियपयं ॥ २ ॥ अनया करणगाथया जम्बूद्वीपस्य परिधेः गणितपदस्य चानयनार्थ गणितप्रक्रिया उच्यते, यथा जम्बूद्वीपविष्कम्भः लक्षं १००००० अस्य वर्गे तस्याने बिन्दुदशकं दीयते, दशगुणे तदने एकादशमो बिन्दुर्दीयते, अस्य करणीतिवर्गमूले लब्धं योजन ३१६२२७ एष जम्बूद्वीपपरिधियोजनराशिः, अत्रोद्धरितराशिरयं ४८४४७१, एष योजनराशि: गव्यूतकरणाय चतुर्भिर्गुण्यते, तत्रागतं १९३७८८४ अस्य राशेरधो द्विगुणितपरिधेर्योजनराशिर्धियते स इत्थं १९३७८८४।६३२४५४ ततः अनया अधोराशिना उपरिराशेर्भागः, तत्र लब्धं गा३, अत्रोद्धरितराशिः ४०५२२ एष गव्यूतराशिः धनुःकरणार्थ सहस्रद्वयेन गुण्यते, तत्रा| गतं ८१०४४०००।६३२४५४ अस्य राशेः पूर्ववत् द्विगुणीकृतपरिधियोजनराशिना भागे लब्धं १२८ अत्रोद्धरितराशिः ८९८८८ एवं
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प्रकरण समुच्चयः
सूक्ष्मार्थसप्त-टी-३६
॥९०॥
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राशिः अंगुलकरणार्थ षण्णवत्या गुण्यते तत्रागतं ८६२९२४८६६३२४५४ अस्य राशेः पूर्ववत् परिधियोजनराशिना भाग लब्धं अंगुल १३ | अत्रोद्धरितराशिः ४०७३४६ एषोऽङ्गुलराशिरोगुलकरणार्थ द्विकेन गुण्यते, तत्रागतं८१४६९२--६३२४५४अस्य राशेः पूर्ववत् परिधियोजन- राशिना भागे लब्धं अंगुलं १ तच्च अागुलं द्रष्टव्यं, अत्रोद्धरितराशिः अद्धांगुला १८२२३८ अनयोद्धरितराशिना न किमपि प्रयोजनं, अत्रै-4 | तावनमात्रस्यैव विवक्षितत्वात्, यदा तु यवयूकादिरपि कोऽपि आनेतुमिच्छति ततस्तत्रेयं प्रक्रिया-उद्धरितांगुलराशिः अष्टाभिर्गुणनीयः, परमि-1
ह अ गुलराशिरुद्धरितस्तिष्ठति, ततः सोऽगुलकरणार्थ अर्धीक्रियते, तत्र जातोऽयं अंगुलराशिः ९१११९, एषोऽगुलराशिर्यवीकरणार्थ अष्ट| भिर्गुण्यते, तत्रागतं ७२८९५२१६३२४५४ अस्य राशेोर्द्वगुणितपरिधियोजनराशिना भागः लब्धं जवु १ अत्रोद्धरितराशिः ९६४९८ इत्यादि | उद्धरितराशिपु सर्वत्र अष्टभिर्गुणकारः आगतेषु सर्वत्र द्विगुणितपरिधियोजनराशिना भागे लब्धं यूका लिक्षा वालाग्रादिर्भवति ॥ सुखार्थ पुनरपि परिधित आगतं लिख्यते योजन ३१६२२७ गा ३ ध १२८ अंगुल १३ उपरि अर्धागुलं ॥ परिही तिलक्ख सोलस सहस्स दो य सय सत्तबीसहिया । कोसतियं धणुह सयं अडवीस तेरंगुलद्धहिया ॥१॥ ( जम्बूद्वीपपरिधिः ) अथः जम्बूद्वीपगणितपदानयनाथ गणित| प्रक्रिया उच्यते-तत्र प्रथमं अद्धांगुलं एककस्वरूपं पञ्चविंशतिसहस्ररूपेण विष्कम्भपादेन गुण्यते, एकगुणं तत्तियं चेवत्ति जातं अद्धांगुल |
२५००० अस्य राशेरंगुलकरणार्थ राशिद्विकेन भागः तत्र लब्धं १२५००, एतानि च विष्कम्भपादगुणितत्रयोदशांगुल १३ स्वरूपराशौ मध्ये | क्षिप्यंते, स च राशिरयं ३२५००० एतन्मध्ये द्विभागलधांगुलझेपे जातं अंगुल ३३७५०० अस्य राशेर्धनुष्करणार्थ षण्णवत्या भागे लब्धं धनूंषि ३५१५ उद्धरितगणितपदे अंगुल ६० एतानि च (धषि ) विष्कम्भपादगुणितअष्टाविंशत्यधिकशत १२८ रूपराशिमध्ये क्षिप्यंते, स च राशिरयं ३२००००० एतन्मध्ये षण्णवतिभागलब्धधनुःक्षेपे जातं धनुः ३२०३५१५ अस्य राशेर्गब्यूतकरणार्थ
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IMil॥९
॥
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प्रकरण समुच्चयः
मूक्ष्मार्थसप्त-टी.३१
॥९१॥
Accc
सहस्रद्वयन भागे लब्धं गव्यूतानि १६०१, उद्धरितं च गणितपदे धनुः १५१५ एतानि च पाश्चात्यगव्यूतानि विष्कम्भपादगुणितगव्यूतत्रय३रूपराशिमध्ये मिप्यन्ते, स च राशिरयं ७५००० एतन्मध्ये सह्यद्वयभागलब्धगब्यूतक्षेपे जातं गत्र्यूतं ७६६०१,
| अस्य राशेर्योजनकरणार्थ चतुष्टयेन भागे लब्धं योजन १९१५० उद्धरितगणितपदे गा १ ततः यः पूर्व कथितः ३१६२२७ एवंविधपरिधिसकायोजनराशिः स विक्कम्भपादन गुण्यते, तत्र जातं ७९०५६७५००० ततः एतन्मध्ये पाश्चात्यस्य ७६६०१ गव्यूतराशेः चतुर्भागेन लब्धं १९१५० एवंविधयोजनक्षेपे जातं गणितपदे योजन ७९०५६९४१५० ॥ छ। सुखार्थं पुनरपि गणितपदं आगतं & लिख्यते ७९०५६५४१५० गा १ धनुः १५१५ अं. ६० सत्तेव य कोडिसया नउया छप्पन्न सयसहस्साई। चउणबई य सहस्सा सयपनासं च बोद्धव्वं ॥१॥ गाउयमेगं पणरस पनरसअहियं धणूण नायव्वं । सहि च अंगुलाई जंबुद्दीवस्स गणियपयं ।।२।। जंबूद्वीपगणितपदं । | विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वदृस्स परिरओ होइ । विक्खंभपायगुणिओ परीरओ तस्स गणियपयं ॥१।। अनया गाथया समयक्षेत्रस्य परिधेः
गणितपदस्य चानयनाथं गणितप्रक्रियोच्यते, तत्र पञ्चचत्वारिंशल्लक्षा: समयक्षेत्रस्य विष्कम्भः४५०००००अस्य वगर्गे२०२५०००००००००० | दशगणे एतदप्रतः एकादशमो बिन्दुर्दीयते, करणीति वर्गमूले लब्धं परिधिः योजन १४२३०२४९ अत्रोद्धरितराशिः १३३९७९९९ एष | नगण्यते, परिधिगाथाऽत्र चैषा-एगा जोयण कोडी लक्खा बायाल तीसइसहस्सा । समयक्खेत्तपरिरओ दो चेव सया अउणपन्ना ॥शा समयक्षेत्रपरिधिः । अथ गणितपदविधिरुच्यते-समयक्षेत्रविष्कम्भपादन समयक्षेत्रपरिधियोजनानि गुण्यंते, तद्विष्कम्भपादश्चायं ११२५००० अनेन १४२३०२४९ एवंविधपरिधियोजनरशिगुण्यते, तत्रागतं गणितपदे १६००६०३०१२५००० अत्र गाथा-सोलस कोडी लक्खा नव कोडी सयाई तिकोडीलक्खेगं । पणवीससहस्साई गणियपयं समयखेत्तस्स ॥ १॥ समयक्षेत्रगागितपदं ॥ विक्खंभवग्गदहगुणकरणी
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प्रकरण समुच्चयः
सूक्ष्मार्थसप्त-टी.३६
॥९२॥
| वट्टस्स परिरओ होइ इति गाथार्द्धन मेरोमूलतले भूमितले उपरितले च परिधः आनयनाथं गणितप्रक्रियोच्यते, तत्र मरुभूमितले दशसहस्रा | नवत्यधिकाः योजनैकादशभागानां च दश भागाः विष्कम्भः १००९०-११-१. अत्र संपूर्णराशिः एकादशभिर्गुण्यते, दश च भागामध्ये क्षिप्यन्ते, जातं १११००० अस्य वर्गे १२३२०००००० दशगुणे तदने सप्तमो बिन्दुर्दीयते, करणीति वर्गमूले लब्धं परिधियोजनलमत्रयं एकपञ्चाशत् सहस्रा द्वादशाधिकाः,संप्रदायात् न्यूनयोजनस्य संपूर्णस्य विवक्षणात् त्रयोदशाधिकाः द्रष्टव्याः३५१०१३ अत्रोद्धरितराशि:५७५८५६ एष न गण्यते, लब्धयोजनराशेः एकादशभिर्भागः लब्धं एकत्रिंशत्सहस्राः नव शतानि दशाधिकानि योजनैकादशभागानां च भागत्रयं ३-११ मेरोर्मूलतले परिधिः, तथा मेरोभूमितले विष्कम्भः सहस्रा दश १००००, अस्य वर्गे एककस्यापे बिन्दुअष्टकं दीयते, दशगुणे तदप्रतो नवमो बिन्दुीयते, करणीतिवर्गमूले लब्धं एकत्रिंशत्सहस्राः षट् शतानि द्वाविंशत्यधिकानि, संप्रदायात् न्यूनयोजनस्य संपूर्णस्य विवक्षणात् त्रयोविंशत्यधिकानि द्रष्टव्यानि ३१६२३, अत्रोद्धरितराशिः ४९११६, एष न गण्यते, तथा मेरोरुपरितले विष्कम्भः सहस्रं १०००, अस्य वर्गे | एककस्याने बिन्दुषट्कं दीयते, दशगुणे तदग्रतः सप्तमो बिन्दुर्दीयते, करणीति वर्गमूले लब्धं सहस्रत्रयं शतं द्विषष्ट्याऽधिकं ३१६२, अत्रोद्ध| रितराशिः१७५६,एष न गण्यते, मेरोरुपरितलपरिधिः।। विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वट्टस्स परिरओ होइ। विक्खंभपायगुणिओ परीरओ तस्स गणियपयं ॥ १॥ अनया गाथया जम्बूद्वीपादितः पञ्चदशमनन्दीश्वराभिधद्वीपान्तरालवर्तिक्षेत्रस्य परिधेः गणितपदस्य चानयनाथ गणितप्रक्रियोच्यते, तत्र प्रस्तुतक्षेत्रस्य विक्खम्भोऽयं षट्कोटिशतानि पंचपंचाशत्कोटयः त्रयत्रिशल्लक्षाः ६५५३३००००० अस्य वर्गे ४२९५७४०८९, ११ बिन्दवः, दशगुणे पाश्चात्यअंकानां अप्रे बिन्दुीयते, अस्य करणीति वर्गमूले लब्धं योजन २०७२३३४५१९० प्रस्तुतक्षेत्रस्य एष परिधियोजनराशिः, अत्रोद्धरितराशिः १५०९४४३९०० एष योजनराशिर्गव्यूतकरणार्थ चतुर्भिर्गुण्यते, तत्रागतं ६३२३७७५-1
॥९२॥
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सूक्ष्माथेसप्त-टी.३६
समुच्चयः
प्रकरण
४६००.४१४४६७०८३८० अस्य राशेरधो द्विगुणीकृतपरिधयोजनराशर्धियते, स च एप एव, ततोऽनेन अधोराशिना उपरिमराशेर्भागः,
तत्र लब्धं गा १ अत्रोद्धरितराशिः २१७९१०६७२२० एष गव्यूतराशिर्धनुःकरणार्थ सहस्रद्वयेन गुण्यते, तत्रागतं ४३५८२१३४४४
०००००१४१४४६७०८३८०अस्य राशेः पूर्ववत् द्विगुणीकृतपरिधियोजनराशिना भागे लब्धं धनुः१०५१अत्रोद्धरितराशि:२१६४३९३२६२ ॥९३॥
४ एष धनुराशिरंगुलकरणार्थ षण्णवत्या गुण्यते, तत्र आगतं २०७७८१७५३१५२०-४१४४६७०८३८० अस्य राशेः पूर्ववत् भागे लब्धं
अंगुल५० अत्रोद्धरितराशि:५४८२११२५२० एपः अंगुलराशिर्यवकरणार्थ अष्टाभिर्गुण्यते, तत्रागतं४३८५६९००१६०१४१४४६७०८३८० अस्य राशेः पूर्ववत् भागे लब्धं जवु १ अत्रोद्धरितराशिः २४१२१९१७८० अनेन उद्धरितराशिना न किमपि प्रयोजनं, यदि तु कोऽपि यूकादिरपि आनेतुमिच्छति ततः अष्टाभिः सर्वत्र गुणकारः पूर्ववत् भागे लब्धं यूकादिर्भवति, सुखार्थ पुनरपि परिधिसंख्या लिख्यते, परिघियोजनानि २०७२३३५४१९० गा १ धनुः १०५१ अंगुल ५० जवु १, अत्र गाथे-दुन्नि उ कोडिसहस्सा बापत्तरिलक्खकोडितेत्तीस । चउपन्न सहस्साई नउयसयं गाउयं एगं ॥ १ ॥ धणुह सहस्सं इगवन्न समहियं अंगुलाई पन्नासं । एगो यवो य परिही नंदीसर अंतिमा एसा ॥२॥ नंदीसर परिधिः । अथ प्रस्तुतक्षेत्रस्य गणितपदानयनप्रक्रियोच्यते- तत्र प्रस्तुतक्षेत्रसत्केन १६३८३२५००० एवंविधविष्कम्भपादेन . एको जवो १ गुण्यते, तत्र 'एगगुणं तत्तियं चेव' इति वचनात् विष्कम्भपादसम एव जवराशिर्भवति १६३८३२५००० अस्य जवरोशरगुलकरणाथ अष्ट| भिर्भागः, तत्र लब्धं अंगुला २०४७९०६२५ एतानि च विष्कभपादगुणितपञ्चाशतरूपांगुलराशिमध्ये क्षिप्यन्ते, स च राशिरयं ८१९१६२५०००० एतन्मध्ये अष्टभागलब्धांगुलक्षेपे जातं अंगुल ८२१२१०४०६२१ अस्य राशेः धनुःकरणार्थ पण्णवत्या भागः लब्धं धषि | ८५५४२७५०६ तत्रोद्धरितं गणितपदे अंगुल ४९, एतानि च विष्कभपादगुणितएकपश्चाशदधिकसहस्ररूप १०५१ धनराशिमध्ये
NORMA
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ९४ ॥
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क्षिप्यन्ते, स च राशिरयं १७२१८७९५७५०००, एतन्मध्ये षण्णवतिभागलब्धधनुः क्षेपे जातं धनुः १७२२७३५००२५०६ अस्य राशे|र्गव्यूतकरणार्थं सहस्रद्वयेन भागः, लब्धं गव्यूतानि ८६१३६७५०१, अत्रोद्धरितं गणितपदे ५०६ एतानि विष्कम्भपाद गुणितगव्यूतकराशिमध्ये क्षिप्यन्ते, स च राशिः एककस्य विष्कम्भपादगुणने विक्खंभपादसम एव भवति, गब्यूतानि स चायं १६३८३२५०००, एतन्मध्ये सहस्रद्वय भागलब्धगव्यूतक्षेपे जातं गणितपदे गव्यूत २४९९६९२५०१ अस्य राशेः योजनकरणार्थं गव्यूतचतुष्टयेन भागे लब्धं योजन ६२४९२३१२५ उद्धरितं गा १ ततः यः पूर्वकथितः २०७२३३५४१९० एवंविधपरिधिसत्को योजनराशः स विष्कम्भपादेन गुण्यते, तत्र जातं |३३९५१५८९२५३३३१७५०००० एतन्मध्ये चतुर्भागलब्धयाजनक्षेपे जातं गणितपदे योजन ३३९५१५८९२५३९५६६७३१२५ गणितपदसंख्या सुखार्थं पुनः एकत्र लिख्यते, तथा योजन ३३९५१५८९२५३९५६६७३१२५ गा १ धनुः ५०६ अंगुल ४९ अत्र गाथा: | कोडाकोडी लक्खा तिनि उ तह कोडिकोडि सहसा ओ । एगुणचत्ता पंच उ कोडाकोडी या हुंति ॥ १ ॥ कोडाकोडी पनरस एगुणनवई उ कोडिलक्खाओ । कोडीसहस्सा पणवीस हुंति कोडी सया तिन्नि || २ || पंचाणवई कोडी छावडी लक्ख सहस तिगसयरी । पणवी - समयं गाउयमेगं धणुहाण पंचसया || ३ || छस्सयमहिया तह अंगुलाई एगूणवन्न गणियपयं । जंबूमुहदीवाणं नंदसिरअंतिमाण इमं ॥४॥ | नंदीश्वरगणितपदं । सूक्ष्मार्थप्रतिपादकसप्ततिकोपरि गुरूपदेशेन गणितविधिश्चक्रेश्वरसूरिवरैरभिहितो रम्यः ॥ १ ॥ जंबूद्वीपपरिधेर्गणितपदस्य समयक्षेत्रस्य परिधिर्गणितपदस्य च मेरोर्मूलतले ३ परिधेनंदीश्वरद्वीपस्य परिधेर्गणितपदस्य च विस्तरतो गणितप्रक्रियेति ॥ छ ॥ इति सूक्ष्मार्थसप्ततिका कतिपयपदगणितटिप्पणमिदं, कृतिः श्रीचक्रेश्वरसूरेरिति ॥ छ ॥ ॥ अथ आत्मतत्त्वचिन्ताभावनाचूलिका ३७ ॥ कल्याणशस्यपाथोदं, दुरितध्वान्तभास्करम् । श्रीमत्पार्श्वप्रभुं नत्त्वा, किञ्चिज्जीवस्य दिश्यते ॥ १ ॥ नाहं वक्ता कविर्नैव सतां नाक्षप
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सूक्ष्मार्थसप्त. टी. ३६
॥ ९४ ॥
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प्रकरण समुच्चयः
ज
३७
॥९५॥
कः कचित् । अपूर्व नैव भाषिध्ये, श्रव्यं किञ्चित्तथाऽपि मे ॥ २॥ व्युत्पत्तेर्भाजनं काव्यं, रसप्राणस्य मन्दिरम् । वक्रोक्तेः परमं धाम, बैद
आत्मतभ्ा लास्यमण्डपः ।। ३ ।। शब्दार्थयोः परो गुम्फः, प्रसत्तेस्तु सुधारसः । गुरोस्तुल्येन केनाऽपि, दृभ्यते लीलया स्फुटम् ॥ ४ ॥ सर्वमे
Xचचिन्ता | तद् वृथा मन्ये, तत्वबुदया विवेचयन् । यतः कर्तु भवोच्छेद, चेतश्चेन्न प्रगल्भते ॥ ५ ॥ संसारानित्यता धन्य ! , त्वया स्वतोऽन्यतोऽपि वा।। | दृश्यते ज्ञायते भूयः, श्रूयते चानुभूयते ॥ ६॥ भोगदृष्टौ कृतध्यानैरसंपूर्णमनोरथैः । जलबुदबुदसादृश्य, प्राप्य कैः कैर्न गम्यते ॥ ७ ॥ | जैनधर्मगुणोपेतां, सामग्री प्राप्य निर्मलाम् । धर्मोद्यमस्तथा कार्यः, प्रमादो न यथा भवेत् ॥८॥ भावितात्मा क्षणं भूत्वा, स्थित्वैकान्ते सगा हितः । नाशावंशे दृशौ धृत्वा, भावयार्थ [भाव्यमर्थ ] मुहुर्मुहुः ॥९॥ आयातोऽस्मि कुतः स्थानाद्न्तव्यं क पुनर्मया। सुखदुःखविधौ हेतुः, को वा तत्र भविष्यति ? ॥१०॥ पुण्यं पापमिहोपात्तं, ध्रुवं परत्र भुज्यते । इति मत्वा महाभाग! , प्रमादो नैव युज्यते ॥११।। केदं ते मानुषं जन्म, चिन्तितार्थप्रसाधकम् । धर्मसाधनसामग्री,काऽसौ सर्वापि हस्तगा? ॥ १२ ॥ तूण तूर्णं तु धावंस्त्वं, कृत्यकोटिसमाकुल: । विस्मृत्य पृष्ठतः | कोटी, पुरः पश्यसि काकिनीम् ।।१३। सूरः कातरतां यातो, जैनैरूचे (जघन्यश्च) स उत्तमः । एतद्वयविहीनस्तु, मध्यमः प्रणिगद्यते ॥१४॥ मिध्याहग श्रावको भाव्यश्चारुचारित्रवान् यतिः । जानीहि व्यवहारेण, मध्यमोत्तमहीनकान् ॥ १५॥ के के वैराग्यसंवेगौ, नाऽऽख्यान्ति घोषयन्ति च? । व्यङ्ग्यौ तौ बाष्परोमाञ्चैः , पुण्याद् हर्षेऽपि कस्याचित् ॥१६॥ हर्षेऽपि बहुशः स्याता, नित्यं तौ वा महात्मनः । उत्थायो| त्थाय तस्यास्य, द्रष्टव्यं पुण्यमिच्छुभिः ॥१७॥ जानन्तः शतशोऽप्यर्थ, शमादेबहवो जनाः । यतो वैराग्यसंवेगौ, तंमर्थं तु न जानते॥१८॥ | दैवादात्मन्नहं जाने, प्रमादीति यदि स्वकम् । तथाप्युद्धर्तुमासेव्यः, सदा स्वान्तेन कन्दलः ।। १९॥ मा वधीरय मे वाचं, कुरु किश्चित्तथाविधम् । जन्मान्तरं गतो येन, वत्स वत्स ! न शोचासि ॥२०॥ हंहो चित्त! प्रकटविकटं मोहजालं किमेतच्छून्यालापैः प्रलपितामिदं कार्य-|
HANE
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आत्मानुशास्तिः३८
॥ ९६॥
&ाहीनं विजाने । स्मारं स्मारं किमिति मुषितं सुप्रसिद्धं यदेतत्, लोभातस्य क्षुदपगमनं दृष्टमात्रे न भोज्ये ॥ २१ ॥ (मंदाक्रान्ताछंदः) | मज्जिह्वायै ततश्वेतो, यच्छादेशं सदाशय ! । हित्वा कंडूलतां वक्तुं, मूकत्वं येन सेवते ॥२२॥ भावनां तत्त्वतः कर्तु, न शक्तश्चेत्तथाप्यहम् । रित्नधान्येषु (रत्नधारिषु) मन्ये स्वं, यत्तस्यां व्यसनी सदा ॥२३॥ श्रीरत्नोपपदाः सिंहाः, सूरयो धर्ममङ्गलम् । तत्तत् किश्चित्तथाss| चख्युः , प्राप्यते निवृतियथा ।। २४ ॥ इत्यात्मतत्त्वचिन्ताभावनाचूलिका ॥ ॥ अथाऽऽत्मानुशास्तिसंज्ञिका पञ्चावंशतिका ३८॥ ।
प्राकृतः संस्कृतो वाऽपि, पाठः सर्वोऽप्यकारणम् । यतो वैराग्यसंवेगौ, तदेव परमं रहः ॥ १॥ अहो मूढ! जगत्सव, भ्राम्यत्येतदहिर्बहिः । आकुलव्याकुलं नित्यं, धिकिमाश्रित्य धावति ॥ २ ॥ संप्राप्य शासनं जैन, युक्तं किं मे न नार्ततुम् । किं वा प्रमाद्यतो युक्तं, रोदितुं मे मुहुर्मुहुः ।। ३ ।। आत्मन्नहो न ते युक्तं, कत्तुं गजनिमीलिकाम् । प्रातर्गतं तु सन्ध्यायां, स्थातुं कस्तव निश्चयः ॥ ४ ॥ एनं भवं परत्राहो, तव स्मृत्वा प्रमादिनः । बाढमाक्रन्दतो मूढ ! , मूर्द्धा यास्यति खण्डशः॥५॥ कस्मैचिन्नाऽस्मि रुष्यामि, रुष्याम्यात्मन एव हि । यद्वच्मि | तन्न जानामि, तत्सम्बोध्यः परः कथम् ? ॥ ६॥ ये वाचा ख्याति वैराग्य, यान्ति भेदं न मानसे । हहा हा का गतिस्तेषां, कारुण्यास्पदभागिनाम् ।। ७ ।। किं करोमि क गच्छामि, कतिष्ठामि शृणोमि किम् । संसारभयभीतस्य, व्याकुलं मे सदा मनः ॥ ८॥ ध्यात्वा किं वच्मि किं तूष्णीकोऽहं भीतोऽपि निर्भयः । अहो मे नटविद्येयं, हहाहुं काप्यलोकिकी ॥ ९ ॥ विमुच्य निष्फलं खेद, धर्मे यत्नं ततः कुरु । एवं जातं न चेत्किचिच्छतो दैवं न लवितुम् ॥ १० ॥ यः कोऽपि दृश्यते कश्चित् , श्रद्धानुष्ठानबन्धुरः । तत्रानुमोदनं युक्तं, कर्तुं त्रेधाऽपि नित्यशः ॥ ११ ॥ आत्मारामं मनो यस्य, मुक्त्वा संसारसंकथाम् । अमोघामृतधाराभिः, सर्वाङ्गणिं स सिच्यते ॥ १२ ॥ एवं ध्यानरता | येऽत्र, तेऽपि धन्या गुणोन्मुखाः । वेषमात्रेण ये तुष्टास्ते ऽनुकम्प्या मनस्विनाम् ।। १३ ।। उद्यमे धर्तुमात्मानं, ध्येयं स्मर्तु प्रतिक्षणम्। हितवा-
॥९६ ।
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आत्म
प्रकरण समुच्चयः
॥९७॥
छो जनः सर्वोऽप्येतद्ध्यानपरो भवेत् ॥ १४ ॥ धर्म कत्तुं यदीच्छाऽस्ति, तदा वीक्षस्व सादरम् । आत्मानुशासनं सूरेः, श्रीजिनेश्वर-| संज्ञिनः ॥१५॥ संसारानित्यतां बुध्ध्वा, ये तिष्ठन्ति निराकुलाः। ते नूनं वाहिना दीप्ते, शेरते निर्भरं गृहे ।।१६।। योवनैश्वर्य्यभूपालप्रसादप्रमुखैर्मदैः। भूयांस: स्वं स्थिरं मत्वा, कोट्या गृहन्ति काकिनीम् ॥ १७ ॥ गतानुगतिको भूत्वा, मा त्वं स्वपिहि निर्भरम् । पतन्तं वीक्ष्य | कृपेऽन्धं, सज्जाक्षस्तत्र किं विशेत् ॥१८॥ देहो यन्त्रमिदं मूढा, बह्वपायं प्रतिक्षणम् । दृष्टान्तं शकटं दृष्ट्वा, बुध्यध्वं किं न सत्वरम्।।१९।।
हुँ हुँ हा! दैव! धिग् धिग मे, जानतोऽपि न चेतना । बद्धायुः श्रेणिकः किं वा, नागच्छत्प्रथमां महीम् ? ॥ २० ॥ भुक्त्वाऽद्यावधि धिम् | भोगान्महद्भिर्निन्दितं तथा । यथा देही विदेहः सन् , निवृत्तौ निर्वृतः कुतः॥२१॥राकाशशाङ्कसङ्काशं, प्राप्य जैनेश्वरं वचः। जन्तो ! सद्भावपी
यूषस्ततेान्तं विनाशय ।। २२ ।। दृष्टादृष्टैर्मम त्रैध, क्षन्तव्यं सर्वजन्तुभिः । स्वल्पेनाप्यपराधेन, सिद्धा मे सन्तु साक्षिणः ॥ २३ ॥ | सर्वमप्येतदाख्यातमयोग्यो नैव सेवते । क्षुत्क्षामापि जलौकाः किं, पाषाणं चुम्बितुं स्पृशेत् ? ॥ २४ ॥ सूरिः श्रीरत्नसिंहाख्यः , संवेगा| मृतभावनाम् । चक्रे स्वस्योपकारार्थमात्मानुशास्तिसंज्ञिकाम् ॥ २५ ॥ इत्यात्मानुशास्तिसंज्ञिका पञ्चविंशतिका ।। अथ आत्मविज्ञप्तिः ३९ ॥
जय जय भुवणदिवायर! तिहुयणगुणरयणसायर! जिर्णिद! । सिरिरिसहनाह! सामिय विनत्ति मज्झ निसुणेहि ॥११॥ जोऽसि तुम जयबंधव थुणिओ सुररायफणिवइगुरूहिं । तस्स तुहं नियहिययं पयडतो किंपि जपमि ॥२॥ भवभमणभीरुओऽहं कपिरगत्तो जिणिद! तुह् पुरओ। सरिउंपिहु अतरंतो हिययदुहं तहवि साहमि ॥ ३ ॥ नरयाईण दुहाणं अच्छउ दूरे कहावि किर ताव । गभंमिवि जाऽवत्था कलमलयं |भावितं जणई ॥ ४ ॥ जेण न पावेमि रहं कत्थवि लीणो खणंपि हे नाह! । ता अहह कुण परित्तं अणंतसामत्थकारुणिया! ॥ ५ ॥ तुह | संपत्तिरहंगीराहओऽहं नाह! चकवाउच । संसारसार सुइरं भमिओ दीणाई विलवंतो॥ ६॥ मह मणउदयगिरिम्मी सूराम्म व संपयं तए
3456055-4545545512
॥९७॥
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प्रकरण मुच्चयः
V
।९८॥
फुरिए । आसासिओ तहाऽहं जह पुब्वि नेव कइयावि ॥ ७॥ सिद्धतभावणाहिं भावितोऽविहु सयावि अप्पाणं । भूएण व रागणं होहामि कहा
आत्मछलिज्जतो? ॥८॥ वइरसिलाए नूगं मह हिययं नाह ! निम्मियं विहिणा । जं मरणं नाऊणं सयखंडं फुडइ न तडत्ति ॥ ५ ॥ जम्मंतरसयदु
विज्ञप्तिः३९ लई सासणमेयं जिणंद! तुह पत्तं । पत्तंपि पुण न पत्तं पमायरिउकिंकरो जमहं ॥ १० ॥ भवकूवमझगेणं हत्थालम्बो मए तुम पत्तो । मोहवसा उच्छलि निवडतं अहह में रक्ख ।। ११ ।। जइ सम्मं मह सामियः सव्वंग फुरइ भवदुहसरुवं । ता नीरपि न पाउं कमइ मणे किं * पुण उनकहा ? ॥ १२ ॥ तुह आणाए साभिय! एगत्तो अम्ह माणसं फुरइ । अन्नत्तो विसएसुं डमरुयगंठिव्व किं करिमा ? ॥ १३ ॥ पवणपणुल्लिरनीरे रविपडिविंबंकचंचलं भुवणं । अणुसमयपि नियंतो जं नवि रज्जामि ही विसया ।। १४ ॥ अवहीरिओऽवि तुमए पत्थेमी तहवि कलुणवयणेहिं । पइमुक्को अहह भवे सामिय! होहं कहमहंति ? ॥१५।। अहह अहं नो सामिय! सरणागयवच्छलेऽवि तई पत्ते । मह जं न परित्ताणं ताऽहं दीणो कहं होइं? ॥ १६ ॥ कत्थ कया कह पुणरवि इमाइ सव्वाइं नाह! तं दच्छं । तो मज्झ हे दयालुय ! दिटिपसायं पणामेसु ॥ १७ ॥ जं किंपिहु संसारे पगरिसपत्तं मणम्मि सुहझेयं । तह जीहाइ थुणिज्जतंपिहु मह नाह! तं चेव ॥ १८ ॥ तुह पयसेवं मुत्तुं | नह अवरं किंपि नाह! पत्थेमि । ता किंमं अवहीरसि ? करुणाभरमंथरं नियसु ॥ १९ ॥ जइ तुडिवसेण तुम्हं नयणबुयकरपरायपिंजरिओ। होहं कहमवि ता जिण! धन्नो धन्नो जए नूणं ॥ २० ॥ तुह सिद्धंतरहस्सं नाउं संवेगसंगयमणोऽवि । विसएसु जं घुलावी तं सल्लं हल्लइ महलं ॥२१॥ वहृतोवि उवाए जमहं न तरामि लंघिउं देव्वं । का तत्थ मज्झ अरइ? पुणो पुणो तहवि मज्जामि ॥२२॥ तुह समयसमुद्दाओ मइमंदरमंथणेण सामि मए । उवसगरयणं लद्धं बद्धं नियहिययगंठीए ॥ २६॥ तिहुअणरज्जाओविहु अहिओ मह अज्ज फुरइ आणंदो । विसयाइतक्करोहिं ता हीरइ ही नियंतस्स ॥२४॥ ता किं करोमि कस्स व कहोम इय पुण पुणोवि रुंटतं । दुक्खपलित्तं धावइ मह हिययं दस.
॥९
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प्रकरण
आत्मानुशासनं ४०
समुच्चयः
॥ ९९॥
सुवि दिसासु ॥ २५ ॥ दीणो सुसंतजीहो भमंतनयणो घुलंतसव्वंगो । विसयतिसातविओऽहं हरिणोव्व न निवडिओ कत्थ ॥ २६ ॥ दुहदावभावियंगो नहम्मि सुन्ने करे भमाडतो । कत्थवि रइमलहंतो तुह विरहे नाह! कह होहं?।।२७।। एयपि वियाणंतो ज न सहो रंजिउं खणंपि मणं । ता नाह! कालडको हीही पविसामि कत्थ अहं? ॥२८।। इय विन्नत्तिं सोउं जइ अप्पा आरुहई खणं रंगे । जह नवणीयं जलणे तह ता विलयइ फुडं कम्मं ॥ २९ ॥ इय तिहुयणभाल रयणसूरीहिं जिणिंद विन्नविज्जतं । निरुवमकल्लाणनिहिं कुणसु असेसंपि जियलोयं ॥३०॥
॥इति आत्मविज्ञप्तिः ।। अथ आत्मानुशासनकुलकम् ४०॥ सिरिधम्मसूरिसुगुरुं पुणो पुणो पणमिऊण भावेणं । तिहुयणसारं तत्तं अप्पहियं किंपि जंपेमि ॥ १॥ गीयं अमियं इह नहु मिटुं किंपि जीवलोगमि । पुरिसविसेसस्स मुहे जह मिट्ठा भारईदेवी ॥२॥ उवसमविवेयसंवरपयाण अत्थं न कोइ सुणइ किमु । सुव्वइ न | कोइ अवरो चिलाइपुत्तो जहा भयवं ।। ३ ॥ तरतमजोगा भेए रसो पयासेइ धाउविसयम्मि। ता जाव सहवेहे अओ परं नत्थि रससिद्धी
॥४॥ धाउध्व उवसमाई रसोव्व चित्तं इमाण संजोओ। ता जाव सिद्धी सिद्धी सो भन्नइ सहवेहविही ॥ ५॥ वक्खाणंति मुणीयो सुणंति तत्तं सिरपि धूर्णति । रोमंचं वहइ दढं भिज्जइ न मणो न तो किंपि ॥६॥ जो पुण विरत्तचित्तो भावणवंसग्गसंठिओ होउं । अप्पाणं | झूरंतो स इलापुत्तो धुवं होइ ॥ ७ ॥ मुतण लोयाचिंतं जइ जिय! झाएसि अप्पणो तत्तं । ता तुह जम्मो सहलो अहवा झूरेसि बहु पच्छा ॥ ८ ॥ भवचारयवेरग्गं विसयाइदुगुंछणं च इच्चाई । वयणच्चिय सल्वेसि हियए केसिंचि धन्नाणं ॥ ९॥ जे एवं जपंति पमायवेरि छलेह भो लोया ! । तोवे छलिज्जंति जया तया अहं तस्स किं काहं ? ॥१०॥ अन्नोऽन्नं जायंता मन्नंता अत्तणो य धन्नत्तं । संसारइंदयालं दरिसंता जे भणंति इमं ॥ ११॥ वेइ य न कोइ हियए वयणेहिं अणिच्चयं भणइ सम्बो । अन्नह मणबइकाए अन्नोऽन्नं कह विसंवाओ?॥१२॥
॥ ९९
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प्रकरण समुच्चयः
॥१०॥
एएवि कह कहगा अत्तपमायं न चिंतयंति फुडं । जं दूसमाइ सव्वं छोढुं वदति वज्जसिरा ॥ १३॥ परगरिहं मुत्तर्ण अहवा चिंतेसु अत्तणोऽआत्मानुअत्तं । अन्नह तुमंपि होहिसि पुब्वाणं मूढ! सारिच्छो ॥ १४ ॥ जा न विहाई रयणी तावय चिंतेसु जीव किंपि तुमं । अन्नह आउंमि गए शासन ४० कीणा चिंताइ तुज्झ कहा? ॥ १५ ॥ कामवियारविहूणो धन्नो इह चिंतए परं तत्तं । जइ पत्तोऽवि वियारं चिंतइ धन्नाण सो राओ ॥ १६ ॥ काऊण गुरुपइन्नं मणमोहणकरिवरम्मि जह चडिओ । चुक्कइ नियवयणाओ धन्नोऽवि तहा वियारगओ ॥ १७ ॥ ता पढमंपि वियारं मणमोहणकरिवरस्स सारिच्छं । वारह दुहसयमूलं जइ इच्छह सुहसमिद्धीओ ॥१८॥ पंचहिवि इंदिएहिं अणंतसो नत्थि जं किर न भुत्तं । तहवि न जाया तत्ती ता चेययसि हा कया मूढः ।।१९।। अह चेययसि कइयाविहु थेवोऽविह जत्थ नत्थि कोइ गुणो । एसा पुण सामग्गी कयायि | होहित्ति को मुणइ? ॥ २० ॥ सयलंपि भवसरूवं नाऊणं गुरुमुहाओ मुणिणोवि । वर्ल्डति जे अकज्जे अहह महामोहविप्फुरियं ॥ २१ ॥ भणसि मुहेणं सव्वं तत्तं अइसुंदरं तुम जीव ! । जं न कुणसि कारणं तं मन्ने गरुयकम्मोऽसि ॥ २२ ॥ चिट्ठइ राई पासइ न कोइ हवउ | जह तहवऽणुट्ठाणं । इय मूढ ! लोयरंजय कुणमाणो किंपि न लहसि ॥२३॥ जइ एगोच्चिय रागो निग्गहिओ होज्ज जीव ! संसारे । अट्ठण्हवि | कम्माणं ता उच्छेओ कओ झत्ति ॥२४॥ को दिव्वं लंघेउं अहवा सका वियाणमाणोऽवि । तहबिहु उज्जमसीलो होज्ज सया रायविजयम्मि ||२५|| जो चिंतइ न परतत्तं देइ कुबुद्धिं वयाउ भंसेइ । तेण समं संसग्गी वज्जह दूरेण मणसावि ।।२६॥ पाएण दूसमाए धम्मे संसग्गिया इह पमाणं । तेण सुमित्तेहिं समं संसरिंग कुणसु जाजीवं ॥ २७ ॥ जइ पुच्छह निच्छयओ न गिही साहूवि पावइ भवंतं | भावेण केवलंपिडु लधुणं जाइ निव्वाणं ॥ २८ ॥ गाहाण सिलोगाणं अत्यं नाऊण सव्वभंगेहिं । तत्थवि तं महुनायं भावण अमियं जओ झरइ ॥२९॥ अवहियहियओ होउं खणे खणे अप्पयं विभावसु । कत्तो अहमायाओ गंतूण कहिं कमणुहोहं ॥ ३०॥ सव्वगुणाणं जोग्गं अप्पाणं | ॥१०॥
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प्रकरण मुच्चयः
॥१०॥
जिय ! पमाइगं नाउं । किं न रुयंतो विरमसि सत्तीए उज्जम काउं? ॥३१॥ धम्मं परमरहस्सं रे जिय ! संवेगचायणासारं । चूरिय जुयलं आत्मानुझायसु जइ अप्पा वेरिओ नेव ॥ ३२ ॥ धम्मुज्जमाम सत्ती जइ जिय! तुह नस्थि काइ किर ताव । अप्पाणं झूरंतो मा विरमसु तहवि
शासन४० कइयावि ॥ ३३ ॥ एएणवि बीएणं कयावि धम्मुज्जमोऽवि तुह होज्जा । अन्नह दुहसयबुडो पायालं जासि सत्तमयं ।। ३४ ॥ कीयं आहा| कम्मं नीयावासो गिहीसु पडिबंधो । अमिओ परिग्गहो तह हुंति जईणं इमे दोसा ॥ ३५॥ एक्ककोविहु गरओ मिलिया सव्वेऽवि जइ पुणो हुंति । अहंसणेण तेर्सि साहू गं मह नमोकारो ॥ ३६ ॥ नामेणं चिय साहू साहूसु न ताण होइ अवयारो । किं परविकत्थणेणं? अहवा चिंतेस अप्पाणं ॥ ३७॥ अइयंपिं एरिसो अह सुदूं मग्गं च इह परूवंतो । संविग्गपक्खियत्ता धनं मन्नामि अप्पाणं ॥ ३८॥ एवं ठियस्सर | सययं मम मणभावस्स पत्तियइ को वा? । पच्चाइएण किं वा? अप्पच्चिय सक्खिओ एत्थ ॥ ३९ ।। जं पुण वायाए च्चिय भणामि काएण
किंपि न करेमि । तत्थस्थि गरुयदुक्खं मणमंदिरसाठय मज्झ ॥ ४०॥ सुद्धालोयणदाणं काउं मितिं च सबसत्तेसुं। अप्पाणं गरिहंतो MI भावेमु अहं कया तत्तं ।। ४१ ॥ एग चिय मह सल्लइ जन्न सहाए लहामि मणइढे । एवं झायंतस्स उ को जाणइ किंपि होहित्ति ॥ ४२ ॥
आणंदं दाऊणं समग्गसंघस्स गहियआसीसो । अप्पाणं भावेतो विहरेमु जया तया अहयं ॥ ४३ ॥ अह कहवि जाइ दियहं रत्ती न हु जाइ
अप्पचिंताए । थोवजले मच्छस्सव तल्लोवल्लि कुणतस्स ॥ ४४ ॥ चेयहु ! चेयहु !! चेयहु !!! हं हो मूढमइ ! , कहिय कहाणिय सव्वप्पयारेहिं | तुम्ह मइ । हियडइ ताविय पुण पुण सोढे सहु धराण, परित न कोणवि होसइ तहिं पत्तइ मरणि ॥ ४५ ॥ हियडइ रंगु न जाह तहं सउं बकुसु पडिहाइ । जइ पुण केवइं रंगु तउ नयणिहिं नीरु न माइं ॥ ४६ ॥ जलमसमं कामीणं नीरसलोयाण तुसवुससमाणं । विरयाणं अमि- ॥१० यसमं एवं सब्बांपे जं भणियं ॥४७॥ गंतव्वं कत्थ मए कहि एसो वंदिणो य जियेलोआ। कह माइसयणविहवो इय झूरसि हा !
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प्रकरण समुच्चयः
॥१०२॥
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हयासतया || ४८ ॥ एयाए भावणाए जइ अवसाणंपि मज्झ किर होज्जा । ता अयं चिय धन्नो नहु अन्नं पत्थणिज्जति ।। ४९ ।। भावणअमियं अहवा कम्मवसा मा समुल्लसउ मज्झ । अन्नस्सवि दहूणं एयं घुंटेसु किं कइया ? ।। ५० ।। वेरग्गभावणाए किंवा वच्चंतु मज्झ | दिहाई । निययियचिंतियाई लब्भंति नवत्ति को मुगइ ? ।। ५१ ।। एयं भावणतत्तं सव्वंगं तुज्झ जीव ! जइ फुरइ | पंचुत्तरवासीणवि सोक्खं मन्नामि ता तुच्छं ॥ ५२ ॥ एगंते होऊणं मुहुत्तमेत्तं विसिद्धमंत व । पइदियहं झाएज्जह एवं उवएसवरतत्तं ।। ५३ ।। जह दीवाओ दीवो बोहिज्जइ भावणाऍ तह भावो । इय पढछ गुणह झायह भविया एयं सया सत्यं ॥ ५४ || सिरिरयणसिंहसूरी भावणसिह रम्मि | आरुहेऊणं । अप्पाणुसासणं भो जंपइ जिणसासणे सारं ॥ ५५ ॥ बारसअउणत्ताले ( १२४९) वइसाहे सेयपंचमिदिणम्मि । अणहिलवाडजयरे विहियमिणं अप्पसरणत्थं ।। ५६ ।। इति आत्मानुशासनकुलकम् ४० ॥ ॥ अथ आत्महितकुलकम् ४१ ॥
निगुरुपायपाया नाउं संसारविलसियविवागं । सम्मं विरत्तचित्तो अप्पहियं किंपि चिंतेमि ॥ १ ॥ कालोचिय जिणआणं काउं तण्हालुयस्स मह् सययं | हा ! जिय ! पमायवेरी न देइ धम्मुज्जमं काउं ॥ २ ॥ जइ एवं सामाग्गिं धम्मे लहिऊण कहवि हारोसे। ता तं पच्छायावा वि हलं विलवेसि परलोए || ३ || रागंधो मोहंधो कज्जाकज्जं न याणासे हयास ! । धत्तूर भाभिओ इव सव्वं पिच्छति सुवन्नमहो ॥ ४ ॥ वेर|ग्गमग्गलीणं खगमेगं जइ करेमि अप्पाणं । चंचलचितेण पुणो विहलिज्जइ ही नियंतस्स || ५ || एक्को चेव दुरंतो नियचरियं जो वियाणई अप्पा । सो ताव रंजियवो जइ इच्छसि साहि धम्मं ॥ ६ ॥ जइ इच्छसि अप्पसुई खिन्नोऽसि दुहाण ता कुग उवायं । मा कांदेवे ववंतो | सालीण गवेसणं कुणसु ॥ ७ ॥ जं आसि धम्मबीयं पुत्र्वभवे वावियं तए जीव ! । तं इह लुगालि संपइ वावियमिहि लुगासे अग्गे ॥८॥ इय नाऊण अकज्जं दूरे वज्जेसि किं ? नहु अणज्ज ! | अह कालपासबद्धो जुत्ताजुतं कह मुणेसि ? ॥ ९ ॥ इंदियचोरेहिं अहं मा भवन्न
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आत्महित कुलकम् ४१
॥१०२॥
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प्रकरण समुच्चयः
॥१०३॥
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भणसु जं मुसिओ । जाणिय चोरेहिं तुमं जो गहिओ तहन किं भणिमो ? ॥ १० ॥ परजगरंजणहेउ भणेसि अन्नं करोस अवरं च । तत्थ पयर्ड कवर्ड हा दीसह तुज्झ सव्वत्थ ॥ ११ ॥ लहुएवि धम्मकज्जे तइया साहूहिं चोइओ संतो | असमत्यो भणिय ठिओ अहुणा सोएासे किं तम्हा ? ॥ १२ ॥ चिराई पासइ न कोई हवउ जह तह वऽणुद्वाणं । इय मूढ ! लोयरंजय कुगमाणो किं न लज्जेसि ? ॥ १३ ॥ गुणिएसु मच्छरत्तं वहास पओसं च निग्गुणजणम्मि | पररिद्धीए तम्मासे परपरिवार्य तह करोसि || १४ || निच्चं पमायसीलो सुहाभिलासी यचइओ कुवासे । सोहग्गमंजरीयं अप्पंमि तहावि वग्गनगो ॥ १५ ॥ इय सयलं जाणेमी काउं न तरामि भगसि गुरुकम्मो | कंठमण सोसणेणं धिरत्थु तुह मूढ ! नाणे || १६ || अज्जं करोमि कल्लं करोमि धम्मुज्जमं तुमं भणासि । इय निष्फलवद्दाहिं समाप्पिही जम्मपरिवाडी || १७ || | पेच्छंतो पच्चक्खं जियलोयं जीव ! इंदयालसमं । ठगिओ इव धुत्तेहिं हा !! चेयति किं ! न अप्पाणं ? ॥ १८ ॥ सउणाणं जह रुक्खे पछियाणं जह य देसियकुडीरे । मेलावगो अणिच्चो मणुयाणं तह कुडुंब्रेमि ॥ १९ ॥ अजवि किंपि न नटुं जइ चेयासे हंदि किंपि अप्पाणं । विलवणात्तठिओ पुण अरन्नरुन्नं समायर से || २० || सुगहाई तिरियाबिहु भोए भुंजंति भोयणं तह य । एरिभचरिय नराणं को संखं कुणइ पुरिसेसुं ? ||२१|| जे एवं जंपती पमायवेरिं छलेह भो लोया ! । तेवि छालज्जति जया तथा अहं कस्स किं काहूं ? || २२ || बाहुल्लेणं लोओ | पेच्छइ नयणेहिं नेव हियएगं । तेणं विसएहिंतो कहं विरत्तो कुगड धम्मं ? ||२३|| एयाइ दुम्मईए माहप्पं भंजिऊग रे जीव ! । धम्मा रामे रम्मे उज्जम दक्खाफलं चरसु || २४ || गुरुआ गाए सम्मं परोवयारम्भ संजमे नाणे । खाओवसमियभावे सयावि एएसु उज्जमसु ||२५|| एयं खु धम्मरज्जं कहमवि लडूण गणिय दियहाई । सपरोवयारहीणो स्वर्गपि मा सुयह वीसत्थो || २६ || अह एत्तियभणिएणवि होइ अहनाण को गुणो भगसु ? । असुई मुहूग किमी अन्नत्थ रई कह करेइ ? || २७ || एवं मुत्तूग भवं पत्तो संसार सायरे घोरे । को
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आत्महित कुलकम् ४१
॥१०३॥
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मनोनिग्रह कुलकम्४२
प्रकरण कइया गुरुपाएहिं लहिस्सामि ? ॥ २८ ॥ ओ! तं जीव! अलज्जि ! भाणओ धम्मोवएसलक्खेहिं । जइ नेव किंपि लग्गं ता सरणं मज्झ किर समुच्चयः मोणं ॥ २९॥ विसयविरत्ता मुणिणो कालोचियसंजमंमि जे निरया । आजम्मंपि तिसंझं पयधूलि वंदिमो ताणं ॥ ३०॥ पइदियहं पइसमयं ॥१०४॥
खणंपि मा मुयसु एयमुबएसं । जइ भवदुहाण तित्तो तिसिओ उण परमसोक्खाणं ।। ३१ ॥ सिरिधम्मसूरिपहुणो निम्मलकित्तीइ भरियमुवण|स्स । सीसलवेहिं कुलयं रइयं सिरिरयणसूरीहिं ॥ ३२ ॥ इति श्रीआत्महितकुलकम् ४१॥ अथ मनोनिग्रहभावनाकुलकम् ४२ ॥
सिरिधम्मसूरिपहुणो उवएसामयलवं मुणेऊणं । तं चेव तिहा नामिउं मणनिग्गहभावगं भणिमो ॥ १ ॥ संसारभवणखंभो नरयानलपादावणमि सरलपहो । मणमाणिवारियपसरं किं किं दुक्खं न जं कुणइ? ॥२॥ वायाए काएगं मणरहियाणं न दारुणं कम्मं । जोयणसहस्सMमाणो मुच्छिममच्छो उयाहरणं ॥ ३ ॥ वइकायाविरहियाणवि कम्माणं चेत्तमेत्तविहियाणं । अइघोरं होइ फलं तंदुलमच्छोव्व जीवाणं ॥४॥
मलियाविवेयाण मणो निग्गहिउं दुकरं फुडं ताव । संजायविवेगाणवि दुक्करमयंपि किर होति ।। ५ ।। करयलगयमुत्तीणं तित्थयरसमाण चरणभावाणं | ताणंपि हुजं दुकरमेयमहो मह मच्छरियं ॥ ६॥ मणनिग्गहवीसासो कइयावि न जुज्जए इहं काउं । अप्पडिवायं नाणं उप्पन्नं ज़ा न.जीवाणं ॥ ७॥ येवमणदुक्खियस्सवि जाणतो अइवदारुणविवागं | जइ कहवि खंचिय मणं धारेमी एगवत्थुमि ॥ ८॥ पाणिपुडनिविडपीडियरसं व पेच्छामि तहवि उत्तिगयं । अह ओवायं पुणरवि करिसमन्नं अणुसरामि ॥ ९॥ मयमत्तपिव हत्थिं धम्मारामं पुणोऽवि भं| जंतं । दटुं विवेयमिठो सुहझाणक्खंभमल्लियइ ॥ १० ॥ उल्लसिओ आणंदो खणमेगं जाव ताव चिंतेमि । ता सिद्धमंतिओ इव दसिइ अन्न
त्य किं करिमो? ॥ ११॥ मणमकडेण सुइरं मह देहं तावियं अहो बाढं । ता कह निग्गहिऊणं होहामि अहं सुही एत्थ ? ॥१२॥ सिद्धिपुलारीए सिद्धी जाव फुडं तुज्झ होइ रे जवि ! । ता मणराएण समं मा विग्गहउवरमं कुणसु ॥ १३ ॥ अह विग्गहंमि चत्ते पत्ते निकंटगम्मि र
॥१०४॥
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प्रकरण समुच्चयः
॥ १०५ ॥
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1
ज्जम्मि । एस तुहं तं काही सयावि जह दुक्खिओ होइ ॥ १४ ॥ जह इंदजालिएणं काउं मुट्ठीइ दासयं वत्थू । धरिओ जणेण मुट्ठी दिडं नट्ठ तयं वत्थू ।। १५ ।। एवं चिय मणवत्थू संजममुट्ठीइ धारियं कहवि । सुहभावलोयधरिओ ही नहं हीनपुन्नस्स ॥ १६ ॥ न हु अस्थि किंपि नूर्ण चंचलमन्नं मणाउ भुवणाम्म । तं पुण उवमामेत्तं पवणपडागाइ जं भणियं ॥ १७ ॥ साहूण सावगाण य धम्मे जो कोइ वित्थरो भणिओ । सो मणनिग्गहसारो जं फलसिद्धी तओ भणिया ॥ १८ ॥ जत्थ मणो तरलिज्जइ सो संगो दूरओऽवि चइयव्वो । बहुरयणसणाहेणं दुज्जयचोराण जह पंथो ।। १९ ।: जिय! अज्जं अह कल्ले परलोए तुह पयाणयं होही । दीहरसंसारकए निरंकुस कह मणं कुणास ? ||२०|| किमहं करोमि कस्स व कहेमि चिंतेम अहव किं तत्तं ? । जेण मणो पसरतं धारेमी मत्तहत्थिव्व ॥ २१ ॥ संपइ सत्थसरीरे सुमरंति न जीव ! पुव्वदुक्खाई । कह एसु न उब्वेओ कह होहिसि तं न याणामि ? ।। २२ ।। जाणिय तत्तंपि मणो धारिज्जइ दुकरं सरलमग्गे । दुक्खं च सिक्खविज्जइ एसो अप्पा दुरप्पा हु ||२३|| आवाडए जिय! दुक्खे जाणसि किर संजमो हवइ धम्मो । संपइ पुण गयधम्मो परलोए होसि अहह कहं ? || २४ || इंदियलोलो कोऽविहु बट्टइ सहाइएसु विसएसुं । तहविहु न होइ तित्ती तहाच्चय वित्थरइ नवरं || २५ | इंदियधुत्ताण अहो तिलतुसमित्तंपि देसु मा पसरं । अह दिनो तो नीओ जत्थ खणो वरिसकोडिसमो ।। २६ ।। धतूरभामिओ इव ठगधुत्तेणं व धुत्तिओ संतो। भूएण व संगठिओ वाएण व दिट्टिमोहेणं ॥ २७ ॥ जह एए अवरेहिं जुत्तिसहस्सेण पन्नावज्जंता । ताणंविय गहिलत्तं अवियप्पं वाहति सया || २८ ।। तह रागाइवसत्तो न मुणसि थेवंपि कज्जपरमत्थं । अह मुणास तो पर्यापह चरिएणं कह विसंवयसि ? ॥२९॥ दुग्गंधअसुइपुन्नो बाहिं सव्वत्थ चित्तिओ करगो । पट्टसूयनन्त (ढंक) णयं दाडं पिहिओ य पुष्फेहिं ॥३०॥ दिट्ठो हरेइ चित्तं गंधो असुईऍ सरइ तं चैव । मूढोऽवि तं न गहिउं कुणइ मणं किं पुण विवेगी ? ॥ ३१ ॥ एवं चिय नारीसुं वत्थालंकारभूसियंगी | आवायमेत्तरूवं पेच्छिय
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॥१०५॥
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प्रकरण समुच्चयः
| मनोनिग्रह कुलकम्४२
॥१०६॥
तत्तं विभावसु ॥ ३२ ॥ असुईए अट्ठीणं सोणियकिमिजालपूईमंसाणं । नामपि चिंतियं खलु कलमलयं कुणइ हिययम्मि ॥ ३३ ॥ पच्चक्खमिण पेच्छह वन्नियमित्तं तु जइ न पत्तियह । एक्कारससोएहिं नीहरमाणं सया चेव ॥ ३४ ॥ इय तत्तभावणगओ सयावि मणनिग्गई करेमाणो । पच्चक्खरक्खसीण नारीण न गोयरो होसि ॥३५॥ जिणवयणभाविएणं सुत्तत्थसमग्गपारगेणंपि । भवभमणभीरुगेणं सुहसंसरिंग पवन्नेणं ॥३६॥ अवगयपरमत्थेणं निच्चं सुहझाणझायगेण मए । कहवि गयं चिय अपहे मणमेयं ही कह दिटुं? ॥३७॥ जह लद्धलक्खचोरो हरमाणो नेव नज्जए दविणं । तह विगयं चिय दीसइ मणंपि एयं कहं होमि? ।। ३८ ।। हु दुक्करेऽवि मग्गे विमग्गि एत्थेव अत्थि हूवाओ। खणमित्तपि न दिज्जइ मणपसरो जं पमायस्स ॥ ३९ ॥ परमत्थं जाणतो दंसियमग्गे सयावि वटुंतो । जइ खलइ कोइ कहमवि सरणं भवियब्वया तत्थ ॥ ४० ॥ कित्तियमित्तं बहुसो मणनिग्गहकारणं पयंपेमि । धन्नाण एत्तियंपिहु जायइ चिंतामणिसमाणं ॥४१॥ गुरुकम्माणं एयं पुणरवि जाणावयंपि किर कहवि । पत्तंपि वरनिहाणं वियलियपुनस्स व न ठाइ ॥ ४२ ॥ पइदियहं जइ एवं झाएमी तुह जिणिंद ! आणाए । तो जयथुयपायपउम! नाहं बीहेमि भवरन्ने ॥ ४३ ॥ सद्धासंवेगजुओ मणनिग्गहभावणं इमं जीवो। झायंतो निम्विग्धं कल्लाणपरंपरं लहइ ॥ ४४ ॥ इति मनोनिग्रहभावनाकुककम् समाप्तम् ४२ ॥ अथ धर्माचार्यबहुमानप्रकरणम् ४३ ॥
नमिउं गुरुपयपउमं धम्मायरियस्स निययसीसेहिं । जह बहुमाणो जुज्जइ काउमहं तह पयंपेभि ॥ १॥ गुरुणो नाणाइजुया महणिज्जा सयलभुवणमामि । किं पुण नियसीसाणं आसन्नुवयारहेऊहिं ? ॥ २ ॥ गरुयगुणेहिं सीसो अहिओ गुरुणो हविज्ज जइ कहवि । तहविहु आणा सीसे सीसेहिं तस्स धरियव्वा ॥ ३ ॥ जइ कुणइ उग्गदंडं रूसइ लहुएवि विणयभंगंमि । चोयइ फरुसगिराए ताडइ दंडेण जइ कहवि ।। ४ ।। अप्पसुएवि सुहेसी हवइ मणागं पमायसीलोऽवि । तहवि हु सो सांसेहिं पूइज्जइ देवयं व गुरू ॥ ५ ॥ जुम्मं । सोच्चिय
॥१०६॥
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प्रकरण
HAR
समुचयः
धर्माचार्य
बहुमान कुलकम्४३
॥१०७॥
| सीसो सीसो जो नाउं इंगियं गुरुजणस्स | वट्टइ कज्जम्मि सया सेसो भिच्चे वयणकारी ॥ ६ ॥ जस्स गुरुम्मि न भत्ती निवसइ हिययमि वज्जरहव्व । किं तस्स जीविएणं ? विडंबणामेत्तरूवेणं ॥ ७॥ पच्चक्खमह परोक्खं अवन्नवार्य गुरूण जो कुज्जा । जम्मतरेऽवि दुलहं जिजिंदवयणं पुणो तस्स ॥८॥ जा काओ रिद्धीओ हवंति सीसाण एत्थ संसारे । गुरुभत्तिपायवाओ पुप्फसमाओ फुडं ताओ ॥९॥ जलपाणदायगस्लावि उवयारो नेव तीरए काउं । किं पुण भवन्नवाओ जो तारइ तस्स सुहगुरुणो? ॥ १०॥ गुरुपायरंजणत्थं जो सीसो भणइ वयणमेत्तणं । मह जीवियपि एयं जं भत्ती तुम्ह पयमूले ।। ११॥ एयं कहं कहंतो न सरइ मूढो इमंपि दिद्वंतं । साहेइ अंगणं चिय घरस्स आभितरं लच्छि॥ १२॥ एस च्चिय परमकला एसो धम्मो इमं परं तत्तं । गुरुमाणसमणुकूलं जं किज्जइ सीसवग्गेणं ॥१३॥ जुत्तं चिय गुरुवयणं अहव अजुत्तं च होज्ज दइवाओ । तहविहु एयं तित्थं जं हुज्जा तंपि कल्लाणं ॥ १४ ॥ किं ताए रिद्धीए चोरस्स व वज्झमंडणसमाए ? । गुरुयणमणं विराहिय जं सीसा कहवि बछति ।। १५॥ कंडूयणनिट्ठीवणऊसासपमोक्खमइलहुयकज्ज । बहुवेलाए पुच्छिय अन्नं पुच्छेज्ज पत्तेयं ॥ १६॥ मा पुण एर्ग पुच्छिय कुज्जा दो तिन्नि अवरकिच्चाई । लहुएमुवि कज्जेसुं एसा मेरा सुसाहूणं ॥१७॥ काउं गुरुंपि | कज्जं न कहंति य पुच्छियावि गोविति । जे उण एरिसचारिया गुरुकुलवासेण किं ताणं? ॥१८॥ जोग्गाजोग्गसरूवं नाउं केणावि कारणवसे
। सम्माणाइविसेसं गुरुणो दसति सीसाणं ॥१९॥ एसो सयावि मग्गो एगसहावा न हुंति जं सीसा । इय जाणिय परमत्थं गुरुंमि खओ | न कायब्बो ॥२०॥ मा चिंतह पुण एवं किंपि विसेसं न पेच्छिमो अम्हे । रत्ता मूढा गुरुणो असमत्था एत्थ किं कुणिमो? ॥२१॥रयणपरिक्खगमेगं मुत्तुं समकतिवन्नरयणाणं | किं जाणंति विसेसं ? मिलिया सव्वेऽवि गामिल्ला? ॥ २२ ॥ एयं चिय जाणमाणा ते सीसा साहयंति परलोयं । अवरे उयरं भरिउं कालं वोलिंति महिवलए ॥२३॥ एयपिहु मा जंपह गुरुणो दीसति तारिसा नेव । जे मज्झत्था होउं
म
॥१०७॥
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प्रकरण समुच्चयः
पर्यन्ताराधना ४४
॥१०८॥
जहाठियवत्थु वियारंति ॥ २४ ॥ समयाणुसारिणो जे गुरुणो ते गोयम व सेवेन्जा । मा चिंतह कुविकप्पं जइ इच्छह साहिउं मोक्खं ॥२५॥ | वकजडा अह सीसा केविहु चिंतति किंपि अघडतं । तहविहु नियकम्माणं दोस देज्जा नहु गुरूणं ॥ २६॥ चकित्तं इंदत्तं गणहरअरहंतपमुहचारुपयं । मणवंछियमवरंपिहु जायइ गुरुभात्तिजुत्ताणं ॥२७॥ आराहणाओ गुरुणो अवरं नहु किंपि अत्थि इह अर्मियं । तस्स य. विराहणा
ओ बीयं हालाहलं नत्थि ॥ २८ ॥ एयंपिहु सोऊणं गुरुभत्ती नेव निम्मला जस्स । भवियव्वया पमाणं किं भणिमो तस्स पुण अन्नं १२९॥ | साहूण साहूणीणं सावयसङ्गीण एस उवएसो । दुण्हं लोगाण हिओ भणिओ संखवओ एत्थ ॥ ३०॥ परलोयलालसेणं किं वा इहलोयमत्तसरणेणं । हियएण अहव रोहा जह तह वा इत्थ सांसेणं ॥ ३१ ॥ जेण न अप्पा ठविओ नियगुरुमणपंकयम्मि भमरोव्व । किं तस्स जीविए
णं? जम्मेणं अहव दिक्खाए ? ॥ ३२ ॥ जुम्म । जुत्ताजुत्तवियारो गुरुआणाए न जुज्जए काउं। दइवाओ मंगुलं पुण जइ हुज्जा तंपि कल्लाण ४॥३३॥ सिरिधम्मसूरिपहुणो निम्मलकित्तीऍ भरियभुवणस्स । सिरिरयणसिंहसूरी सीसो एवं पयंपेइ ॥३४॥ इति ।। गुरुबहुमानकुलकम् ४३ ।।
॥अथ पर्यन्ताराधना ४४ ॥ | . सुहियो वा दुहिओ वा थोवं जीवित्तु अहव बहु लोए । मा सो करेउ खयं जइ पावइ पडियं मरणं ॥ १॥ जे संसारे पुव्वं मणुयभवा ४ पाविया तए ऽगंता । सल्वाणवि ताण अहो एसोच्चिय लहइ तिलयत्तं ॥ २ ॥ जेणसा सामग्गी पत्ता तुमए अर्णतसुहजणणी । ता धीरत्तं
काउं ठावसु चंदे नियं नाम ॥ ३॥ परहत्थगएण तए पुबि रे जीव ! किं न जं सहियं । संपइ सुहडो होउं किं न हु गिण्हेसि जयपडाय?
॥ ४ ॥ जइ पीडाए तुझ विहुरतं अस्थि जीव! अइगरुयं । तहविहु कन्नं दाउं एग चिय सुणह मह वयणं ।। ५ ।। अइकडुओऽविहु लिंबो द अच्छी निमिलित्तु साहसं काउं । खणमेग छुटिजइ जह दीहं जीवियत्थाहिं ॥ ६ ॥ तह सुहभावो होउं परमिटिं सरसु कुणसु धीरत्तं । चइडं
॥१०८॥
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प्रकरण समुच्चयः
॥१०९॥
मा कुटुम्बमोहं परिभाविसु एरिसं तत्तं ॥७॥ जुम्मं । जिणधम्मो मह सरणं गुरुचलणे भावओ नमसामि । सम्बजिएK मित्तिं नियदुच्चरियं च उपदेश द गरिहामि ॥ ८ ॥ आजम्मं जं तुमए तीसुवि संझासु मग्गियं भह ! । राहावेहसमं तं साहिय गिण्हेसु जयपडायं ॥९।। जइ जिय! तुह नव- कुलकं ४५
कारो होहिइ हिययंमि भावणासाहेओ । ता सग्गासवसुहं मह जाणसु करसंठियं अज्ज ॥ १० ॥ एयं परमरहस्सं तं निसुण महाणुभाव ! एक्कमणो । जिणमयभावियचित्तो जं अज्ज करेसि सुहडतं ॥ ११॥ दाणं दाऊण बहुं तवपि तविउ सुदीहरं कालं। सलं चरिऊण चिरं | पडिउं तह णेगसत्थाई ।। १२ ।। कारिय जिणभवणाई सद्धाए सेविऊण गुरुपाए । सवस्सवि फलमेयं जं अज्ज करेसि धीरत्तं ॥ १३ ॥ एयं काऊण तुम मा पत्थसु मणुयसग्गरिद्वीओ। मग्गसु पुणोऽवि एवं सुहाण सव्वंगवरबीयं ॥ १४ ॥ मंगलनिहिपायपउमनाहांम जिण
हवेज्ज पडिवित्ती । जिणधम्ममि गुरूसु य चिंतिज्ज तुम इमं जीव ! ॥ १५ ॥ इय तं पंडियविहिणा काउं आराहणं चरिमसमए । तं नत्थि M. किंपि नूणं कल्लाणं जं. न पाविहिसि ॥ १६ ॥ ॥ इति पर्यन्तसमयाराधनाकुलकम् ४४ ॥ ॥अथोपदेशकुलकम् ४५॥
चिंतसु उवायमेयं संसारे गरुयमोहनियलाओ । चिरकालसेवियाओ रे मुच्चसि इह कहं ? जीव! ॥ १॥ मोहविस अवणेउं गुरुदेसणमंतसंगमवसाओ। परिभावितो तत्तं उवएसामयरसं पियसु ॥२॥ कुणसु दयं भणसु पियं मुंच परधणं चएसु परमहिलं। इच्छं निरुभिऊणं इंदिय-14 | पसरं तह जिणेसु ॥ ३ ॥ सयलंपि हु सामगि धम्मे लहिऊण करवि रे जीव । सययं चोइज्जंतो मा हारह एरिसं जम्मं ॥४॥ कह एवं
मणुयत्तं कह एसो तुज्झ जीव! जिणधम्मो । हद्धी पमायजडिओ मा वच्चह घोरसंसारं ॥ ५॥ का माया को य पिया को पुत्तो पणइणीवि ४. का तुज्झ ? । जह विज्जुल्लाजुको दीसइ एयं तहा सयलं ॥ ६ ॥ किं नेहं किं दविणं देहंपिहु तुज्झ जीव! किं एयं ?। नडपेच्छणयसरूवं|
नाउं तं चयसु गयमोहो ।। ७॥ एकोरिचय जीव! तुम भमिओ अइदुक्तिओ अणाहो य । तो तुज्झ परित्ताणं विहियं कणइ मणागपि ||
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उपदेश कुलकं ४५
॥११०॥
RECARRRRRC
॥ ८ ॥ निसुणतो जिणधम्मं हुंकारं देसि वायरहिउल्व । थेवपि जन कज्जे वट्टसि तं अहह मूढत्तं ॥ ९॥ पेच्छसि तुच्छे भोए नो पाससि नरयगरुयदुक्खाई । जीव! बिरालोव्व तुम पेच्छसि दुद्धं न उण लाहि ॥ १०॥ अन्नभवे विहुरमणो कंपतो दुस्सहाय वेयणए । हा हा करुणसरेणं पच्छा बहुयं विझूरिहिसि ॥ ११ ॥ सव्वोऽवि तुहुवएसो दिन्नो तत्तंसि जाइ जह बिंदू । पेरिजतो सययं नहु चेयसि कीस अप्पाणं? ॥ १२ ॥ दूरे सहणं दंसणमच्छउ नरउन्भवाए वियणाए । सुव्वंतीएवि जिए उकंपो जायए गरुओ ॥ १३ ॥ सावि तए सहियव्या कहं तए हियय ! कहमु सम्भावं । कंटेणवि परिभग्गे जं कंदतो तहा दिट्ठो ॥ १४ ॥ जइ वियरसि परपीडं नाऊणवि दुक्खकारणं | विउलं | तं जाणिय पाणहरं हा परि जसि विसं मूढ ! ॥ १५॥ इह काउगं पावं संपत्तो घोरणरयठाणेपुं। नो दणिं विलवंतो छुट्टसि || चोरो इव सलोत्तो ॥ १६ ॥ भणसि मुहेणं सव्वं तत्तं अइसुंदरं तुम जीव ! । जंन कुणसि काऊणं तं मन्ने गायकम्मोऽसि ॥ १७॥
जाव य इंदियगामो वट्टइ आणाएँ तुज्झ रे जीव! । ता सुमरसु अप्पाणं मा तम्मसु अहव पच्छा उ ॥ १८ ॥ रे गिहकज्जेसु सया दक्खो छेओ अईव सूरोऽसि | भविरं कायरदेहो सुत्तोऽविय सुणसि गुरुवयणं ॥ १९ ॥ किं चिंताए किं पलविएण किं तुज्झ जीव ! रुन्नण ? । नो कत्थइ कल्लाणं धम्माउ विगा तुम लहसि ॥ २० ॥ देहमिणं गेहंपिव जं गहियं भाडएण पणादियह । झरइ सया सव्वत्थवि पडिपुन्नं असुइधाऊहिं ॥ २१ ॥ निच्चं अपोसियं पुण जं मेल्लइ झत्ति निययमज्जायं । तत्थवि का तुज्झ रई ? रे जीव ! निल्लक्खणसहाव ! ॥२२॥ जं जं भणामि अयं सयलंपि बहिं पलाइ तं तुझ | भरियघडयस्स उवारं जह खिवियं पाणियं किंपि ॥ २३ ॥ इय जीय ! मुणसि परलोयसंसारे तं विडंबणं सयलं | मन्ने जं न विरज्जास तं वंछास नरयदुहाई।। २४ ।। वयणेणं भणिउमिणं तरामि नो सिक्खिउं चवेडाए । | सम्मं विभाविऊणं जं जुत्तं तं करेज्जासु ॥ २५ ॥ एवं उवएसकुलं जो पढइ सुणेइ अहव सद्धाए । सो उवमिज्जइ तेए दुहणेण रयणासिंहे
॥११॥
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प्रकरण समुचयः
संवेगामृतपद्धतिः संस्कृते४
॥११॥
णं ॥ २६ ॥ ॥ इत्युपदेशकुलकम् ४५॥ ॥ अथ संवेगामृतपद्धतिम् ४६ ।।
शिष्याः श्रीधर्मसूरीणां, श्रीरत्नसिंहसूरयः । कुर्वते स्वान्तरङ्गाय, संवेगामृतपद्धतिम् ॥ १॥ निद्रामुद्रा समुच्छिद्य, द्रव्यभावविभेदतः।। Piसावधानः क्षणं भूत्वा, किश्चिदात्महितं शृणु ॥ २॥ धम्माहम्मे आउं पल्लसरूवेण किंपि भन्नंतं । एगंते होऊगं परिभावसु निउणबुद्वीए ॥३॥
येनासंख्यातकेनात्र, केशः क्रियेत खण्डशः । श्रद्धानं तत्र गच्छामि, जिनोक्तादेव नान्यथा ॥ ४ ॥ आयु: सागरदृष्टान्ताद्, यत्पूर्व भाषितं जिनैः । दूरे तिष्ठतु तत्तावदत्यन्ताश्चर्यकारकम् ॥ ५॥ पल्योद्धारेऽपि मे चित्रमायुषः परिचिन्तनम् । अत्रायुषि कथं तस्मादल्पानल्पत्वचिन्तनम् ॥ ६ ॥ अणव ट्ठियपल्लाओ नाऊणमसंखयं तओ पल्लं । चिंतंतो नरयदुहं कह पावं जीव ! आयरसि ? ॥ ७ ॥ यतःपुण्याच्छ्रियः सर्वाः, प्रत्यहं हन्त भाषसे । तत्रापि त्वं निराकांक्षो, मूढानां भासि भूपतिः ॥ ८॥ बाहये रूपे दृशा दृष्टे, यथा चेत: प्रगल्भते । स्वस्यांतश्चेत्तथा पश्यन् , धर्मे खिद्येत कोऽपि किम् ? ।। ९ ॥ संवेगामृतसंपूर्णाः, स्फूर्जद्वाष्पाम्बुलोचनाः । वैराग्यातः स्खलद्वाचो, धिग् धिग् मुह्यन्ति तेऽपि यत् ॥ १०॥ धिगस्त्वाहारनीहारी, धर्म विनेह दुःखदौ । वंशाग्रे यद्बदारोहावरोही स्तः पुनः पुनः ॥ ११ ॥ वक्तुं | जानंति भूयांसस्तत्वं जैनं मुहुर्मुहुः । कार्य्यतः कोऽप्यनुष्ठातुं, धन्यः शक्तो महीतले ।। १२ ॥ फल्गुवल्गुनरूपाभिर्वाग्भिस्ताभिने किश्चन ।
कर्णजाहं न याः प्राप्त श्वेतो विध्यन्ति धीमताम् ॥ १३ ॥ प्रायेणामङ्गलं मत्त्वा, न पृच्छेत्प्रेत्यसंकथाम् । ज्योतिर्विदात्थ किं मे स्यादैषमस्त्वायह मूढधीः ॥ १४ ॥ चपेटातोऽपि सिंहस्य, मृत्योर्नाम्नोऽपि भीयते । तथाप्यात्मगतां चिन्ता, शक्तः कत्तुं न कोऽप्यलम् ॥ १५ ॥ मेषो
न्मेषसमे सौख्ये, संरम्भस्तेऽत्र कीदृशः? । मोक्षं विनापि कल्पादौ, गंतुं धर्म समाचर ॥ १६ ॥ तालां दत्त्वा क्षणेनैव, मूढ ! यास्यसि पश्यताम् । अत्यर्थ भण्यमानोऽपि, किं न निरप! बुध्यसे ? ॥ १७ ॥ ज्ञात्वा चक्रे मनःपाणौ, दीपिका ज्ञानरूपिकाम् । पश्यन्नपि न
॥११॥
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प्रकरण समुच्चयः
॥११२॥
पश्यामि, हहा मे कर्मचित्रता ॥१८॥ हस्तप्राप्यः पुरो याति, मृगोऽसौ कनकच्छविः। यथा मे नैति संयोग, धर्माप्तिस्तत्त्वतस्तथा ॥१९॥ र संवेगामृत शृण्वन्तोऽपि न शृण्वन्ति, जानन्तोऽपि न जानते । पश्यन्तोऽपि न पश्यन्ति, धर्मतत्वं भवे रताः ॥ २० ॥ शून्यं शून्येन गुण्यं स्यात् , । पद्धतिः शून्येन भागहारकः । युक्तेदूरे यथैवैतदयोग्ये शिक्षणं तथा ॥ २१॥ धर्मजागरिकां नित्यं, यां करोमि निशि क्षणम् । मन्येऽहं तामपि |संस्कृते४ प्रीति, प्रमादं यद्यपि श्रितः ।। २२ ।। अहो ध्यान्ध्यमहो ध्यान्ध्यं, जनानां जगतीतले । नाज्ञासिपुः क यास्याम, इत्यन्तर्मुखया धिया ॥२३॥ नापि निद्रां च तन्द्रां च, भोज्यं नापि सुरङ्गतः । जानन्ति चेत्तदा चिन्हं, धर्मादन्यन्न रोचते ॥२४॥ वक्तैवार्थस्य चेदस्य, तदा धिग् मेऽस्तु जीवितम् । धन्योऽस्मि वाञ्छयाऽन्यत्र, वाच्यं स्याकिं पुनः कृतौ ! ॥ २५ ॥ यःकश्चित् पृच्छ्यते ऽस्मामिः, साम्प्रतं स्थीयते कथम् ? । अत्यन्तमात एवेति, सर्वस्याप्येकमुत्तरम् ॥ २६ ॥ ऋणरोगकुटुम्बेन, राजतस्करगोत्रजैः । दारिद्रयधनरक्षादिव्यापारैर्दुस्थितो जनः ॥२७॥ जानन्नपि न जानाति, बहत्येव हि केवलम् । सर्वमेतदहो मूढः, स्वार्थ कर्तुमनादरः ॥ २८ ॥ प्रतिभान्ति स्त्रियो दृष्टा, निर्विकारेण चेतसा ।
केषां प्रस्तरसङ्काशाः, केषां विष्टैकभस्त्रिकाः ॥ २९ ॥ दासीकृतैकपीयूषाः, वैकारिणां पुनः स्त्रियः । विकारतस्तो बैरी, नान्यः कश्चन देहिनाम् P॥ ३० ॥ यात्यवश्यमवशः सन्नखर्वगर्वपर्वतम् । स गन्ता दुर्गतिं सर्वापर्वार्वाग्भागगाविनीम् ॥ ३१ ॥ निश्चयव्यवहागभ्यां, साक्षाद् दृष्ट्वापि | कोटिशः । संसारमिन्द्रजालं धिग्बुध्यन्ते नैव जन्तवः ॥३२॥ बुवाऽलीकभ्रमं सौख्ये, संवेगापूर्णमानसः । तथापि कोऽपि कामेभ्यः, पुण्या
त्मा विनिवर्त्तते ॥ ३३ ॥ धर्मसर्वस्वमाख्याय, शिक्षा जीव! वदामि ते । यावजीवं त्वयाऽध्येयमेतत् श्लोकचतुष्टयम् ॥ ३४ ॥ औषधं नेत्र४ा दानं च, विरेकश्चित्रकर्मकः । यथैव पृष्ठतो रम्यं, धर्माख्यानमिदं तथा ॥ ३५ ॥ संसारनाटकं सर्व, पश्यत्युत्फुल्ललोचनः । स्वदेह- ॥११२॥ | नाटकं स्पष्टं, कश्चिन्नेक्षेत मूढधीः ।। ३६ ॥ बाल्यतारुण्यवृद्धत्वहास्यरोदनखेदनम् । विषादानन्दकोपादि, कोटिशः पश्य कौतुकम् ।। ३७ ॥
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प्रकरण
समुच्चयः
॥११३॥
R-ॐॐॐॐ
रहस्यं भण्यसे वत्स!, मा भूच्छिद्रघटोपमः । मा कार्षीः पृष्ठतः खेद, कालदष्टो न चेच्छृणु ॥ ३८ ॥ स्वस्थोऽपि वत्स! नो वेत्सि, मयाऽऽ | प्राकृते संख्यातं मुहुर्मुहुः । जातजातिस्मरः प्रेत्य, कर्ताऽसि हस्तघर्षणम् ॥ ३९ ॥ कल्याणं मङ्गलं कर्तुमिहामुत्र च मानवैः । मन्यमानैः सुधापानं, | श्रोतव्या धर्मादेशना ॥ ४० ॥ सुलभा धर्मवक्तारो, यथा पुस्तकवाचकाः। ये कुर्वन्ति स्वयं धर्म, विरलास्ते महीतले ॥ ४१ ॥ ( अयं
कादतिः४५ अन्यकृतः) कुर्वन्तोऽपि विलोक्यन्ते, सामग्रीवशतः क्वचित् । ये दृश्यास्ते पुनः केऽपि, संवेगामृतपूरिताः ॥ ४२ ॥ संवेगामृतहीनोऽपि, धर्मरत्नविनाकृतः । विधत्तेऽमीषु यः श्रद्धां, सोऽपि धन्यः कलौ किल ॥ ४३ ॥ त्रिभिःकुलकम् ।। इति संवेगामृतपद्धतिः ४६ ॥छ ।
॥ अथ प्राकृते संवेगामृतपद्धतिः ४७॥ शिष्याः श्रीधर्मसूरीणां, श्रीरत्नसिंहसूरयः । कुर्वते प्राकृतैः पद्यैः, संवेगामृतपद्धतिम् ॥१॥ वेरग्गरंगसंगो लग्गइ सव्वंगचंगिमाचंगो । कस्सइ धन्नस्स जए जणयंतो जयजयारावं ॥ २ ॥ जिणसासणसव्वस्सं जाणंतोविहु जईविं सो विरलो । जो संवेगं जंतो पुणो पुणो वहइ मी रोमंचं ॥ ३ ॥ जो आममल्लगंपिव भिज्जइ भावणजलेण सव्वंगं । तेणं चिय विनाओ मन्नेऽहं सत्थपरमत्थो ॥ ४ ॥ जो कूडकवडनडिओ
नडोव्व पयडेइ कोइ रोमंचं । बेरग्गरंगरहियं तंपि हु छेया वियाणंति ॥५॥ ज सव्वेऽवि वियारे सव्वपयारेहिं सव्वया नाउं । भाविय* मइणो मुणिणो विसएसु घुलंति तं चोज्जं ॥ ६ ॥ जह अब्भगब्भलीणा विज्जुलया झलझलेइ पुणरुत्तं । पायं धम्मे भावो एसोवि हु केसि
धन्नाणं ॥ ७ ॥ हा पुत्तो हा घरणी दविणपियासाइवाउलो तहय । मरणभएणं भासंतंपिहु गिण्हइ जहा लोओ ॥ ८ ॥ ता कह धम्मं सोउं पत्थावो होउ मंदपुन्नस्सा? | मन्ने तस्स निबुड्डो पुण दुलहो धम्मबोहित्थो ॥ ९॥ दाऊण हासियाई भूयाविद्धोव्य कहवि जं छूढो । मंदगुरुमंतियाणं सो दोसो अहब कम्मस्स ॥ १० ॥ सट्ठी चिय घडियाओ ठविया धम्मत्थकामभोगेसु । अभयपमा(सा)एण सया जह तह भविया
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प्रकरण समुच्चयः
॥११४॥
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हवह तुभे ॥ ११ ॥ दारुमइउब्व होउं पायं अहुणा जगो सुणइ धम्मं । जेण न भावणइंध दीसह केणावि अंगेणं ॥ १२ ॥ धाउसु सुवन्नधाऊ संवेगरसोव्व दीसए थोवो | परदेद्देवि निविट्ठो तेण न दिट्ठो पिओ कस्स ? ॥ १३ ॥ धाऊसु कणय थोवं परदेहठियंपि जणइ जह हरिसं । सव्वरसेसु तहच्चिय संवेयरसोऽवि पुण दुलहो ||१४|| संवेगभावणाए रसचव्वणमणुरवणंपि कुणमाणो । पावेमि जं न तत्ति मुत्तिसुहं तं मह इहंपि ॥ १५ ॥ इय वयणमणुसरंती किरियाविहु जह मणं सुहावेइ । तिहुयणसिरीवि ता नणु करपंकयगोयरं पत्ता ॥ १६ ॥ निद्दाघुम्मिरहियओ मन्ने लोओ सुणेइ धम्मझुाणं । जेणुज्झियसंसारो पव्वज्जं नो पवज्जेइ ॥ १७ ॥ गहियाइवि दिखाए अज्जवि मन्नामि तं तहच्चेव । जं उल्लसंतचित्तो नियसत्तिं नो तुलइ धम्मे ॥ १८ ॥ सेविज्जतं निच्चं सक्करपमुहंपि जणइ उत्र्वेयं । वन्नसरेणं सव्वं धम्मं | मुण सुहजगयं ॥ १९ ॥ निरवच्चाविहु धूया दूवविहवा सवत्तिसंजुत्ता । गयसीला मयपुत्ता धिरत्थु जा एरिसी महिला ॥ २० ॥ हा दिव्त्र ! दिव्व! तुमए ईसे महिलाइ किं कओ जम्मो ? । किं न विलीणा गन्भे जं न अखंडो कओ धम्मो ॥ २१ ॥ भणवि भणावि जो इय धम्मु न कान धरोस । जीवि तुट्टंति धणुह जिम्व, बहु पच्छा झूरेसि ॥ २२ ॥ एउ तहारु एउ महु, एउ करंतु म अच्छि । समहि पलोयणि गुणनिह, जइ इच्छहि विलच्छि ॥ २३ ॥ मणवयणह संवाओ तुहं, जइ जिय ! धमि करेसि। ता मह माण बद्धावणडं, अज्जइ जणु रंजेसि ॥ २४ ॥ एयं झायंतस्स उ पइदियहं जस्स बोलए जम्मो । जिणवयणसवणरत्तो धन्नाण सिरोगणी सोडवि || २५ || वायावित्यरु मत करहु मा बहुत्तरु देहु । जीविय जम्मण गुरुतणड, लहु लहु लाइ उ लेहु ॥ २६ ॥ जं बालसुतकुंपली जोवणु विहसिउ फुल्लु । जाइ मिलाणी बुड्डाणु कइ जिय ! विसइहिं भुल्लु ? ।। २७ ।। को को न गणेइ मए सपणे अन्ने य संखयं काउं । मूढो न गणेइ पुणो | अप्पाणं तत्थ पविसंतं ॥ २८ ॥ अवियारो बालत्तं होइ वियारो य जुव्वणं पुरिसे। जो उ विवेयपवासो सो बुडत्तं अहन्नाणं ॥ २९ ॥
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प्राकृते संबंगामृतपद्धतिः ४७
॥११४॥
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प्रकरण
समुच्चयः
॥११५॥
hế độ
गाहं पढइ वियड्डो पुच्छिज्जंतो न याणई अत्थं । कह दुद्धं कह दहियं कह महियं कांजिय होई ! ॥३०॥ दुद्धं होइ कुमारी दहियं उम्मत्त-1 प्राकृते संजुव्वणा नारी | मज्झत्था पुण महियं वुड्डा पुण कंजियं होइ ॥३१॥ (अन्यकृतमेतत् गाथाद्वयम् ) कह दुद्धं कह दहियं कह महियं कजियंति वगामृतपरागंधा । हं पुण भणामि महिला सव्वाओ कंजियं चेव ॥३२।। जंमि दिणे इय बुद्धी महिलामुं तुज्झ जीव! किर होही । तंमि दिणे जाणि
दतिः ४७ जपु मोक्खाभिमुहो अहं जाओ ॥३३॥ एयाण कए पायं पावं पाविति पाणिणो भुवणे । तह सल्लंपिव तम्हा उद्धर एयासु इयबुद्धिं ॥३४॥ विज्जुझुलुक्का मंनिहह, एकह जम्म हरेसि । चिंतहि किंपि न अप्पहिउ, बहु पच्छा झूरेसि ॥ ३५ ॥ नाणं विणओ किरिया पियवयणं उज्जमो खमा सीलं । एयाई जस्स निचं सकयत्थं जीवियं तस्स ॥३६॥ निद्दा वत्ता तत्ती भवणं मित्ताणि को उगं जस्स । अइपन्नस्सवि विज्जा सिविणेऽवि न संमुहा तस्स ॥ ३७ ॥ उज्जमतुरयारूढो पइदिणपढणं कसं व जो एइ । पावइ जडोऽवि सो इह पंडिच्चपुरं जयपसिद्धं
॥ ३८॥ सव्वरसाणं लवणं धम्मस्स पभावणा जहा सारं । तह गुरुभत्ति मत्तं नह अन्नं तिहयणे सारं ॥ ३९॥जिणसासणनवणीयं धम्म-|| | रहस्सं इमं परं तत्तं | जीवदया गुरुभत्ती परउवयारुत्ति सव्वमयं ॥ ४०॥ सयलोऽवि गुणकलावो अच्चंतमहग्घदुल्लहसरूवो। गयनयणं या वयणंपिव न सोहए सीलपरिमुक्को ।। ४१ ॥ माणिमंतमूलियाहिं मूंढा जंपति इह वसीकरणं । मन्नेऽहं पुण नूर्ण जीहाविन्नाणसंभूयं ।। ४२॥
वत्तालो झंखालो बहुबोल्लो होइ इत्थ जो पुरिसो । उचियपि तस्स वयणं पायं धिप्पड़ न केणावि ॥ ४३ ॥ एयं सोउं कहिउँ अहवा को को | न पंडिओ एत्थ ? | विष्फुरइ तस्स सिक्खा सुकयं परभवकयं जस्स ॥४४॥ इंगु मणु सारहि देहु रहु, इंदियतुरय नभंति । जीउ चडेविणु जाई तहिं, जइ कम्माइ भणंति ॥४५॥ जीव! पराइयतत्तडिय लांबिय नलिय करहिं । घरधंधइ पुग माहियइ अप्पं माणं न धरेहिं ।। ४६॥
॥११५॥ अज्जह कल्लु व नीयडउ इहजम्मह परजम्मु । इय जाणंतुवि कई करहिं दुग्गइगमणह कम्मु ? ॥४७॥ हुलुहुलु रोइ म अंसुइहि, भवभीर
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ११६॥
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य तुहु जीव ! । समइ वहतइ किंपि करि जिंत्र न झूरहि कवि ! || ४८ || धम्भुवएसं दारं अहं जणे संभवतवयणेहिं । चित्त लिहिउव्व होउं | संपइ मूयत्तणं पत्तो ॥ ४९|| धम्मगिरं सुणिरेहिं अंतोहसिरेहिं हुंतिभणिरेहिं । विउसित्तिगव्विरेहिं इह केहिवि पयडिओ भावो || ५० || अप्पं निंदहिं परु थुणहि, ईण विरंगु म काहि । कज्जदुवारिं रंगु जइ तो जिय ! तुट्ठउ थाहि ॥ ५१ ॥ किं चिंताए किं पलविएण किं तुज्झ जीव ! रुन्नेणं । नो कत्थइ कल्लाणं धम्माउ विणा तुमं लहसि ॥ ५२ ॥ जाणतो सिक्खविओ अवायदसीहिं सुयहरेहिंपि । दुक्खं खु संठविज्जइ एसो अप्पा दुरप्पा हु || ५३ || धम्मह सारु परूवियं दंसिउ सिवपुरमग्गु । निद्दलंतिहिं लोयाणिहिं, हियडइ किंपि न लग्गु ॥ ५४ ॥ ओ ! ताण दुरंताणं धी धी जीवाण जीवियव्वेणं । परगेहपेसणरओ जाणं जम्मो कओ विहिणा || ५५ ॥ हियडइ भाउ समुच्छलिओ, जिणि लंघेउ संसारु जइ मण होइवि थिरु कवि चिंतइ एक्कु जि सारु || ५६|| भाववियक्खाणि गुरुवयणि, विलसंतइ सव गेहिं । गुरुयचमक व मक्कियहिं इय चिंतिउं भविएहि ॥५७॥ जह जह जिज्झइ हियडुलं, कयकज्जिहिं छन्नेहिं । किं गुरु अइसयनाणियउ, किं कहिओ अन्नेहिं ? ।। ५८ ।। मई अवगन्नि गुरुवयणु, धम्मि न दिन्निय दिट्ठि । अहह गयउ चिरकालु महु, कीय कुटुंबह विट्ठि ॥ ५९॥ ललि करेविणु पल्लिकरि, सीसं खल्लीकरेहि । विल्लीदुद्देविणु अस्थिकरि | विणु पुन्निहि न लहेहिं ॥ ६० ॥ मंगलमुहलो लोओ दहुं सोउंपि मंगलं महइ । ईहेइ मंगलाई कुणइ पुण अमंगलं सयलं ॥ ६१॥ अंचणरहियं दुर्द्ध नहु जम्मइ भूरिमंगलेहिंपि । तह हयधम्मे न सुहं धम्मे पुण मंगलं सउणो ।। ६२ ।। लिहियं लब्भइ लोइ, काहुं देहिं ऊरियइ । अप्पसमाणा जोइ, जइ पुणु काई धीरियहं ।। ६३ ।। परभवि जिन किय धम्मुला, तह एत्तिउ एउ जोइ । हिवहिं पुत्ता ! चग्गियइ, मन रोवइ तुहुं रोइ || ६४ || मन्नइ न चेव चोरो चोरियवत्थूणि पुच्छिओ संतो । जाव न जज्जरियंगो विहिओ घोरेहिं घाएहिं | | ६५ || धम्मुज्जमं न काउं | मन्नइ साहूहिं चोइओ एत्थ । जाव न नरयं पत्तो विहलं पुणे तत्थ मन्तयणं ॥ ६६ ॥ खइरहलट्ठि न फरहरइ जणुहुं उप्परि जाव । खरिहिं
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॥ ११६ ॥
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प्रकरण समुच्चयः
॥११७॥
M
| पियारिहिं जोइ पउ, मूढ कि वेयहि ताव ॥ ६७ ।। कर जोडिवि अब्भत्थिया, संघह यह हियकार | कान्नं चहुट्टिय चोयणहु, महु दिज्जउहु सइ
मप्राकृते संवार ॥ ६८ ॥ तुहुवि न चेयहिं रे कहग, जइ पुच्छहि परमत्थु । एउ सउ सव्वह नीरिय, चरहु जु रुच्चइ वत्थु ॥ ६९॥ इय
& वेगामृतपसंसारह दाविउ, दीसइ निच्चु बहंतु । परजिउ कोइ न उब्बियइ, तर पुणु जणइ महंतु ॥ ७० ॥ निरुचु विहाणइ मूढ ! जिय, मई
दतिः ४७ तह दिन्निय सिक्ख | अप्पं परुवि न रंजियं, इंवई सेवियदिक्ख ॥ ७१॥ हूअ वलक्खी जीहडी, महु जपिर सिवमग्गु । किं मह कण्णु किं | जणहु, कसुवि ज किंपि न लग्गु ।। ७२ । भारियकम्मउ जीव ! तुहूं, जइ बुज्झइ ता बुझ । सयलु कुटुंबं खाइसइ, मत्थइ पडिसइ तुज्झ
७३ ॥ ( अन्यकृतेयं) । नीयचउक्किहिं मइ भणिओ, धम्मि न लग्गिउ भद्द। घोररउद्दिहि ठाणिं गओ, करुण म काहिसि सद्द ॥७४॥ विउसह अंचलु दक्खियइ, एहुव ए विणु मग्गु । फुडवि पयंपिउ धम्मु मइ, पुणु कणियावे न लग्गु ।। ७५ ॥ हा हुलि करिवि मिलेइ जणु, देउलि जोयइ कोडु । जिम्ब उरकुडइ तहिं न किं, तेम्ब कुटुंबिनि कोडु ॥ ७६ ॥ तियलोएऽवि न नज्जइ दुल्लहलंभ कयाणयं अन्नं । संवेगं मुत्तणं नऽन्नो जम्हा सिवोवाओ ॥ ७७ ।। किं सोया गुरुकम्मो किं वा भणिरो अहं अणाइज्जो । किं वाऽहमसमयन्नू किं परिवाओ न दइवस्स ॥ ७८ ॥ एयपि हु सोऊणं संवेगामयरसं पियंतोऽवि । जं न जणो अंसुजलं मेल्लंतो उज्जमइ धम्मे ॥ ७९ ॥ युग्मं ॥ निययमणेणं तं | जिय! पंडियवग्गं तणं व मन्नेति । उम्मग्गगामिओ तह जह सिक्खाए पुण न जोग्गो ॥ ८० ।। जइ सच्चं चिय भीओ भवाउ हिययट्ठियंपि ता भाव । असुजलेणं दंसह कइयाविहु जइ न निच्चंपि ॥ ८१ ॥ आयरणंपिहु दंसह पइदियह गुणगणेहिं वद्दुतं । अन्नह पलावयमत्तं एवं सयलंपि मन्नेमि ॥ ८२ ॥ धम्मपरस्सवि चिंताउरस्स दिन्नोऽवि धम्मउवएसो । सुन्नघरे दीवो इव सुनिष्फलो तस्स नायव्वो ॥ ८३ ॥ अणुवट्ठियस्स धर्म मा हु कहिज्जाहि सुट्ठवि पियस्स । विच्छार्य होइ मुहं विज्झायरिंग धर्मतस्स ॥८४॥ ( अन्यकृतेयं ) गरुयासणे न गरुओ
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॥११॥
आ & नहु गुरुओ चारुविविहवत्यहि । जइ पुण गुणेहिं गरुओ ता गरुयं मुणसु अप्पाणं ।। ८५ ॥ मा लंघसु ववहारं जइ अप्पा भाविओ फुडं ले प्राकृते सं
धम्मे | जम्हा लोयविरुद्धं धम्मपराविहु परिहरंति ॥ ८६ ॥ दुलहपि वयं घेत्तुं विज्जो नेमित्तिओ य जोइसिओ । जइ होसि गिहत्थेसुं धी | वेगामृतपधी जम्मो तया तुज्झ ॥ ८७ ॥ जोइसिओ नेमित्ती वेज्जो तह मंतिओ य साउणिओ। जो होज्ज गिहासु जई हा तेणं हारिओ जम्मो द्धतिः ४७ ॥ ८८ ॥ सूईवेहसमाणे अववातपए कयावि कहजुत्तो । तुरियकसायवसट्टा मुसलाइ खिवंति नामजई ।। ८९॥ आवडिए मालिन्ने कयावि पुण दंसणस्स अइगुरुए । एयपि पजंतो पभावगो वइरसामिव्व ॥ ९॥ मह परेहि किज्जइ पायपणामो न तेण तूसामि । अप्पाण| मप्पणच्चिय पणमेसु जया तया तोसो ॥ ९१ ॥ तइया वद्धावयण रससिद्धीविय महंतया जाया | कयकिच्चं मन्नतो अमियरसेणं च सित्तोऽहं
॥ ९२ ॥ किं लज्जेसि परेसिं लज्जह नियईदियाण पंचण्हं । वज्जंतो य अकज्जं सज्जो सज्जोऽसि जइ सुहेसु ।। ९३ ।। रयगाओ गुरुकम्मा जे साहू सोहयति वत्थाई । सरिसबमेरुवमाण ताणं सङ्केहि विवरीयं ॥ ९४ ॥ सामायारि मुत्तुं कयविक्कयधंधांम जे पंडिया । किं न ठिया | गिहवासे ते साहू जइ विसीयंता ॥ ९५ ।। पूगीफलपत्ताई भुत्तुं निसि पाणियं धरिय मुहं । घरसियभमीरमुणीण धिरथु पाणे धरंताणं ॥९६॥ * ओगाहिमाइदव्वं निसि धरित्रे भुंजिराण बीयदिणे । मुणिवेसविडंबीणं किं ताणं नामगहणेण ॥ ९७ ॥ ताउ वहंत जि मुणिवरह, कारिवि
आणेहिं भोज्ज | तिहिं मुणिहिवि तत्थ जइ, तो गोमंसितुलिज्ज ।। ९८ ॥ एउ जहहिउ मई कहिउ, मुणिजणु दिक्खि कुणंतु । अवरु कहतह |पुण हवइ, फुडु संसार अणंतु ॥९९॥ जिणमयरहमि जुत्ता दो उसग्गाववाय वरतुरया । संविग्गो जाइ तहिं जाहिं निज्जइ गीयसारहिणा ॥११८॥
॥ १०॥ विहिलइयहिं जइ जिय भमिसि,ता तुह कज्जह सिद्धि | बलिएण विपुण एकलइ, करिसि न चिंतिय सिद्धि ॥ १.१॥बालत्तरूव| जुब्वणधणवंतपि हु खिवंति भूमीए । गयजीव नाऊण पुत्तावि धिरत्थु संसारो ॥ १०२ ॥ अप्पाणमप्पणच्चिय बोहेउं भावगम्भवयणहि ।
RECARबर
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प्राकृते सं
प्रकरण समुच्चयः
गामृतपदतिः ४७
॥११९॥
जइ तह काहं किरियं तो मन्ने जम्मसहलत्तं ॥ १०३ ।। कट्ठकडकडंतहिययं जलं व महभवदुइग्गिसंतवियं । किरियारहियस्स व वाहियस्स विरमइ न भावणं ॥१०४।। सत्वपयारिहिं ओलखहि जिव दिट्ठओ परलोउ । तिंव जइ अप्प ओलखहि, ता सिद्धउ परलोउ ॥ १०५ ॥ ताहं जडु किं पंडियउ, पहुवि मुणहि न भेओ । इंवई लोइ पयासियं, जिव हउ पंडिय देओ ।। १०६ ॥ सत्तितुलंत धम्मु करि,मणवावारह मोक्खु । हुं बलियउ हुं दुब्बलउ, एउ म काहिसि दुक्खु ॥ १०७ ॥ इहकिओ दुकिओ ते पुणि, विसहता तुहु देहु । सुमरावंतह जं न भणहि, पड़ियइ पन्ह म देहु ।। १०८ ॥ जं जह दिहिं जिणवरिहि, तं पर तारिसु होइ । एउमवि चेतिमि दुक्खु जे, हूओ कहंतु न कोइ ॥१०९।। | अखंडियाहं दुलंति जलि, भणइ कडेवरु एओ । इह जिय हुहुंतइ मह तणुं, मुणिइउ न पई फलु लेई ।। ११० ।। जीव तहारी चिंतडी, मज्झनि पसरि वियालि । हउं अच्छिसु जाएसि तुई पुण मेलउ कहिं कालि ॥ १११ ॥ अन्यकृतेयं । दिण पाणिय जिम मच्छली तल्लोविल्लि करेइ । विणु पुन्निाहिं तिव देहडी,कोडी गुणिय करेइ ॥ १२॥ संपुन्नसंजमोऽविहु सुब्बंतो धम्मिएहिं पुन्नकए । तइयावि जइ न तोसं अहं वहिस्सं फुडम| धन्नो ॥ ११३ ॥ गायंतपढ़तेहिं लोएहि विविहकव्वबंधेहिं । केहिवि निंदंतेहिं समचित्तो होसुऽहं कइया ॥ ११४ ॥ वणपिंडी आहारो वत्थं | पुण जं व तं व धम्मकए । पाणं च आरनालं संजमजोगं पसाहंतो ॥ ११५ ।। निंदाए नहु रोसो तोसो नेव परकयप्पसंसाए। गामाइसु विहि|रंतो कइया होहं इयचरित्तो ॥११६।। तं तीए निदाए पुणो पुगो चोइओवि जह सुयइ । तह तंदासेवाए धम्मत्थं चोइओऽवि जिओ ॥११॥ विरलच्चिय केइ जई नामजईणं तु नत्थि इह संखा । मुत्तुं परपरिवायं तम्हा चिंतेसु अप्पाणं ॥ ११८ ॥ सूहवदूहवनामा लच्छिअलच्छी य तिजयविक्खाया । तहय सलूणअलूणा सलक्खण अलक्खणा अवरा ॥.११९ ॥ अट्ठावि हु भज्जाओ धम्माहम्मेण हुंति एयाओ । एयं सुणेइ सव्वो धम्माहम्मं न तं सरइ ॥ १२० ॥ जइ तं सरज्ज पायं पुणो अहम्मं न कोइ सेविज्जा | पुन्वभवअसरणाओ बहुओ तेणं अहम्मपरो
॥११९॥
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प्रकरण
समुच्चयः
॥१२॥
R॥ १२१ ॥ विरलच्चिय इत्यादि । इय रयणसिंहसूरी वुत्तणं काऊ पाणमयमेयं । आणंदामयकुंडे विलसंतो निव्वुई लहइ ॥ १२२ ॥
गरगइति प्राकृते संवेगामृतपद्धतिः ४७॥ ॥ अथ संवेगरंगमालाप्रकरणम् ४८ ॥
|माला ४८ भावमि समाही पुण एगंतणेव चित्तविजयाओ । चित्तविजओ अ सम्भं रागहोसाण परिहरणा ॥१॥ तप्परिहारो असुहेयरेसु सद्दाइएसु विसएस । पत्तेसऽवि चित्तेसु उवि अभिसंगपओससंचागो ॥ २ ॥ तम्हा कमग्गलग्गं विवेगर उजइ चडुलतुरगं व । सुदृढं संजमिऊणं माणसpil मुस्सिंखलपयारं ॥ ३ ॥ जइयव्वं सवेगऽवि सुहत्थिणा सुपुरिसेण निच्चपि । सम्मं समाहिकरणे विसेसओ धम्मनिरएणं ॥ ४ ॥ असमाहीओ दुक्खं दुहिणो उण अट्टमेव न उ धम्मो । धम्मविहीणस्स पुणो दूरे आराहणामग्गो ॥ ५ ॥ मुत्तं समाहिमेवं असेससेसंगसंगयावि जओ । सव्वा सुहसामग्गी दावग्गी चेव पुरिसस्त ॥ ६ ॥ जं वा तं वाऽसिस्सवि जेण व केणावि पाउअस्सावि। जत्थ व कत्थ व वासिस्स जिमि कंमिवि अव काले ॥७॥ जं वा तं वा विसमं समं व संपावियस्स य अवत्यं । परममुहं चिय निच्चं समाहिमंतस्स पुण नियमा M॥८॥ सुक्खं व समाहिकयं अभयं अकिलेसजं अलज्जणिअं । परिणामसुंदर सवसमक्खयं निरुवममपावं ॥ ९॥ मजत्तमित्तएणवि सुस
माहिठियस्स धीरपुरिसस्स । जं सो नरमइ कस्सवि न यावि से रमई कोऽवि परो ॥१०॥ जे सुसम हिंमि रया विरया नीसेसपावठाणाओ। सुहिसयणधण इविणासदसणेऽबि हु न तेति मणो ॥ ११ ॥ अचलव्व चलइ थेवपि न संजमाओ ममत्तचत्ताणं । सुसमाहिनिही भयवं४ रायरिसिनमीह दिटुंतो ॥ १२ ॥ समाधिद्वारम् ।। एसो अ समाही चित्तविजयजणिउवि नहु थिरो होइ । जइ नियमणं चरतं वारं वारं न* | सासेइ ॥ १३ ॥ पोअवहणं व चित्तं चिंतासागरगयं परिभमंतं । अन्नाणपवणपल्लियविसुत्तियावीइहम्मतं ॥ १४॥ पडियं मोहावत्ते कह
४ ॥१२॥ लगिज्जा समाहिवरमग्गे । जइ जोइज्ज न सम्म अणुसासणकन्नधारो से? ॥ १५ ॥ दोसाण नासणं गुणपयासणं मोणसासणं इत्तो । चित्तस्स
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प्रकरण समुच्चयः
॥१२१॥
बुच्चइ तयं एवं सुसमाहिओ कुज्जा ॥ १६ ॥ हंभो चित्त ! विचित्तं निच्चं च तुमंपि वहस बहुभावे । किंतु परे तंतेहिं मोहेइ तुमं तु | संवेगरंगणप्पाणं ॥ १७ ।। सइ रूईयगीयनच्चियहसियाइवियारओ जणं दहूं। मत्तं व हिअय तह तं कहेसु जह नासि हसणीयं ॥ १८ ॥ मोहभुयं
| माला४८ गमदह सुविसंतुलचिट्ठियं जयमसंतं । किं न पुरत्थं पिच्छसि ? विवेयमंतं न जं सरसि ॥ १९ ॥ जम्मजरमरणसिहिणा भवभवणे सव्वओ पलितमि | नाणोदहिमवगायि सुत्थत्तं लहसु हिअय ! तुमं ॥ २०॥ हियय! तुमे एस कओ भववासणवागुराइ मह बंधो । ता तह पसिय इयाणिं जह तब्विगमो लहुं होइ ॥ २१ ॥ किं चित्त! चिंतिएहिं विहवेहिं अत्थिरेहिं अह न तुमं । तत्तण्हाविगमो ता संतोसरसायणं पिबसु
॥ २२ ॥ मित्तामित्तेसु समा चित्त ! पवित्ती जया तुम होही । लहिहिसि तं तइयाच्चिय सुहमवगयसयलसंतावं ॥ २३ ॥ नरतिदिववरि| मित्ते भवमुक्खे दुहसुहे तणमणीसु । जइ लिहुकंचणेसु अ सममसि ता मण! कयत्थमास ॥ २४ ॥ दुच्चारमिमं मच्चु पच्चासन्नीभवंतमणुसमयं । हे हिअय ! चिंतसु तुम कि सेसवियप्पजालेणं? ॥ २५ ॥ हे हियय ! चिंतसि तुमं नाऽणज्जजराइ जज्जरिज्जंति । नियतणुकुडिंपि एयं अहह महामोहमहिमा ते ॥ २६ ॥ जत्थ जरमरणदारिद्दरोगसोगाइदुहगणो लोए । तत्थवि कहं तुमं मूढ ! हिअय! न विराग-2 मुबहसि ॥ २७ ।। जीयपि तणुंमि गयागयाइं सासच्छलेण कुणमाणं । किं न मण! मुणास जेणं चिट्ठसि अजरामरं व तुमं ॥ २८ ॥ सह | रागेण मण! तुमं सुहाभिमाणाउ भमडिअं सुइरं । चय तं भय तदुवसमं इयाणि जं मुणसि सुहभे ॥ २९ ॥ अविवेअत्ता बालत्तणम्मि | विलयत्तणाउ बुद्धत्ते । मण! धम्मचित्तविरहे लडुवि विहलो नरभवो ते ॥३०॥ मयरद्वइक्कमित्तं कुगइमहादुक्खसंतइनिमित्तं । विसयाणुगामि
चिसं मोहुप्पत्तहि हेउं च ।। ३१ ।। अधिवेअविडविकंदं चंदणरुक्खव्व दप्पसप्पस्स | नीरंधमेहपडलं सन्नाणमयंकबिंबस्स ॥३२॥ तारुन्नपि Pil हु तुहु मण! उम्मायपरस्स निच्चकालंपि । सव्वाणत्यकए चिअ न धम्मगुणसाहगं पायं ।। ३३ ।। एयं कयं इमं पुण करेमि काहं इमं च
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प्रकरण समुच्चयः
संवेगरंगमाला४८
॥१२२॥
गिहकिषं । इय आउलस्स तुह हियय! वासरा जंति अकयत्था ।। ३४ । एयं करोमि इण्हिं एवं काऊण पुण इमं कल्ले । काहं को मण ! चिंतइ सुभिणिअतुल्लांमि जियलोए ॥ ३५ ॥ कत्थ गयं होसि गयं ? मण! काउं किं व होहिास कयत्थं । थिरयाइ गच्छ कुणसु अन गयस्संतो न य कयस्स ।। ३६ ॥चिंतासंताणपरं जइ चिट्ठसि चित्त ! निच्चकालम्मि । अच्चंतदुरुत्तारे ता रे.निवडसि दुहसमुद्दे ।। ३७ ॥ हा हिअय! किं न चिंतसि जभेसरियरूवचरणछाकिलो | वित्थारियपक्खदुगो तिलोअपउमस्स सारं च ॥३८॥पिवमाणोऽवि पइदिणं अतित्तिमं चेव अखलिअप्पसरो | सव्वजगज्जीवतुल्लो इह कीलइ कालभमरल्लो ॥३९॥ जुम्मं । पवसंतो सल्लंपिव पयईएवइदिणपि पीडकरा । जे कामकोहपमुहा अभितरसत्तुगो तुज्झ ॥ ४० ॥ निच्च देहगय च्चिय चित्त तदुच्छायणे न वंछाहि । बज्झारिसु पुण धावसि अहो महामोहमाहप्पं ॥४१॥ बज्झारिसु भित्तत्तं करसि सत्तुत्तणं सरीरीसु । जइ ता हे हियय! तुमं अइग साहसि सकज्जंपि ॥ ४२ ॥ महमहरकडाववागेसु हिअय! विसएमु मा कुणमु गिर्द्धि । विहिवसविजुज्जमाणा सुतिक्खदुक्खं इमे विति ॥ ४३ ॥ जइ पढमपि न रज्जास मुहमहुरवसाणविरस| विसएसुं । ता हियय! तुम पच्छावि लहसि न कयावि संतावं ॥ ४४ ॥ विसएसु विणा न सुहं विसयावि भवंति बहुकिलेसेहिं । ता तब्बि| मुहं चिंतसु सुहंतरं किंपि हे हिययः ॥ ४५ ॥ अह आवार्य विसयाण पिच्छसे जइ तहा विवागपि । ता चित्त' एत्तिय तुमं न कयावि विडं
बणं लहसि ॥ ४६॥ विसतुल्लबिरायवंछाई कीस हे हियय ! वहसि संताव? ) तं किंपि चिंतसु तुम होइ जओ निब्बुई परमा ।।४७|| तह ४ | विसयासाछिद्देण नाणजाणआ गुणा गलिस्संति । ता ठयसु तं तुम मूढ ! हियय तेसिं थिरत्तकए ।। ४८ ॥ विसयासावाउलीजणियरओ
गुंडियं कह न हियय! । सहजायकरणवग्गस्स लजसे भमिरमणिबद्धं ॥ ४९ ॥ कामरसजजरे रे तुमंमि मणकुंभ कम्ममलहरणं । भवसंतावलाखयकरं न तइ सव्वन्नुवयणजलं ॥ ५० ॥ अह ताप ठियं कहमवि किं नो पसमइ कसायदाहो ते ? । सरसोवि किं न भिजइ जो तुह
॥१२२॥
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प्रकरण समुच्चयः
॥ १२३ ॥
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अविवेयमलगंठी ? || ५१ ।। हि हियय ! सुंदराविहु सदा रुवाणि रसविसेसा य गंधा फासा य वरा तावच्चिय तरलयंति तुमं ॥ ५२ ॥ जाव न सम्मं अवगाहिओ तए तत्तबोहरयणिल्लो | सुहसलिलपूरपुन्नो सुअनाणं अगाहमयर हरो || ५३ || जुम्मं । किं बहुणा दाणेणं? किंवा बहुणा तवेण तविएणं १ । कट्ठाणुट्ठाणेणावि बज्झेण किमत्थ बहुणावि१ || ५४ ॥ किं व पढिएण बहुणा जइ ता मण! मुणाम अप्पणो पत्थं । ता रागाइपयाओ विरमसु रमसु अ अरगपए || ५५ ॥ कासेणाहिबिलसमीवे बहुछिद्दं चारुचंदणदलेहिं । काउं गिहं तदतो अ मालईकुसुमसयणिज्जे ॥ ५६ ॥ निहं जिगीससि तुमं जं सुहमेयंति कहु हे हियय ! । अहिलससि विसयसंग नीरागत्तं विमुतणं ॥ ५७|| जुम्मं ॥ हियय ! सकिले विहवेहिं सुहकए कामिएहिं किं मूढ ! । अप्पाणं संतोसे निवेसिडं होसु तं सुहि ॥ ५८ ॥ जणयंति किलेसं अज्जणंमि मोहं सगज्जिआओ अ । श्रवं परं च नासे पयइएच्चिय विभूईओ || ५९ || ता तासु कुगइगमणवत्तिणीसु रायगिचोरसज्जासु । हे चित्त! तत्तर्चितणपुरस्सरं चयसु पडिबंध ॥ ६० ॥ इंदियगेज्झं जं किंचि कत्थई इत्थ अस्थि वत्थु न तं । थिरमह तत्थवि जइ रमसि मण! तुमं चेव ता मूढं ।। ६१ । इक्कं निययाणुभावा बीयं पुण जिणवदिवयणाओ । करिकलहकन्नपालीतरलतरत्तं खु पराईए || ६२ || संसारसमुत्थस मत्थवत्थुसत्थस्स मण ! मुणित्ताणं । मा पडिबंधं बंधसु खणमत्तंपि तुमं तत्थ ।। ६३ || जुम्मं ॥ तह अत्थऽज्जणरक्खणवयणकयं वेयणं न पावेसि । मण ! परमानिब्बु ते भवेऽवि संतोसओ होही ॥ ६४ ॥ संतोसामयरससिंचमाणमाणससुहं सया जं ते । तमसंतुट्ठे कत्तो ? इओ तओ चिंतणाssसत्ते ॥ ६५ ॥ तमुदारत्तं तं चिअ गुरुत्तणं तह तमेव सोहग्गं । सा कित्ती तं च सुहं संतोसपरं तुमं मण ! जं ॥ ६६ ॥ दीणत्तमसि अत्थी लद्धत्थं गव्वमपरितो ं च । नट्टधणं पुण सोगं सुहेण चिट्ठसु मण ! निरासं ॥ ६७ ॥ संजोगा सवियोगा विसं व विसयावि परिणईविरसा । काओ अ बहुअवाओ रूवं खणभंगुरसरूवं ।। ६८ ।। एवं परोवएस दिंतस्स जहा महं फुरइ वयणे । तह जई चित्त !
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संवेगरंगमाला ४८
॥ १२३ ॥
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॥ १२४॥
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तुममिवि एवं ता किं न पज्जत्तं ? ॥ ६९ ॥ किंपि निष्फज्जंतंपि किंपि निष्पन्नमिह परं सुक्खं । अकयपि कीरमाणं परं च विहडइ जहा भंड || ७० || तहगभाइ अवत्थं विविहं पावित्सु पाणिणो ऽणेगे । विहडते मुणिडं चित्त ! चिंतेसुं किंपि सुहाचितं ॥ ७१ ॥ जुम्मं । इक्कंपि तुमं बहुवत्थुचिंतणा चित्त ! पाविसेि बहुत्तं । तह भूयं पुण पत्तिय कस्स न दुक्खस्स होसि पयं ! || ७२ || सयलन्नवत्थुचितं चतु ता चित्त! चिन्तसु परं तं । इक्कपि किंपि वत्युं जेण परं निव्वुई लहासे ॥ ७३ ॥ लच्छीहिं जइ न मज्जासे नयावि रागाइयाण वसमेसि । रमणिहिं न हिग्ज्जिसि तरलिज्जासि नेव विसएहिं ॥ ७४ ॥ संतासेण न मुज्झसि आलिंगिज्जसि य जइ न इच्छाए। पावं च जइ न चिंतास तह चैव न मुच्छता | चित्ता ! ॥ ७५ ॥ जं नियमिय अप्पाणं न रागदोसाइनिग्गहो विहिओ । न य सुहझाणग्गीए दड्डी कम्मणपबंधो ॥७६॥ विसएहिंतो खंचिय धरिओ सारे न इंदिअग्गामो । तं किं न तुज्झ हे चित्त! मुत्तिसुक्खमि वंद्यावि ? || ७७ || चउहिं विसेसयं । सज्जिज्जति न करिणो न पक्खरिज्जति तुरयघट्टाई | नायासिज्जइ अप्पा व वारिज्जइ न खग्गंपि ॥ ७८ ॥ किंतु सुहज्झाणेणं अरिणो रागाइणो हणिज्जीत । तहवि तुमं | माणस ! कीस परिभवं सहास तेहितो || ७९ || जुम्मं । गुरुकहिओवाएणं पढमं सालंबणं पयत्तेणं । अब्भसिऊणं जोगं वियलियनीसेसपच्चूहे ॥ ८० ॥ जइ वज्जसि सयचिंता वावारविवज्जणा निरालंबे । तत्ते परे निलीयसि ता चित्त! न चैव चरसि भवे ॥ ८१ ॥ चिररिसिसुभासियाई अणेगसो पढास सुणासे तह निच्चं । भावेसि य अइनिडणं तप्परमत्थं च बुज्झिसिय ॥ ८२ ॥ न उण अणुभवसि पसमं न य संवेगं नयावि निव्वेअं । न मुद्दत्तमित्तमवि तह तन्भावत्थेण परिणमासे ॥ ८३ ॥ नियवाहबाहगेणं हे हियय! कहिंपि जिणम एणावि । मउलाविज्जसि बाढं मूढ! तुमं सव्वहावि जओ || ८४ ॥ कइयवि सहसि नहोयलएगंतुस्सग्गतरालयं संतं । कइयवि वससि रसायलमबवाइच्चिय निलीनं तु ॥ ८५ ॥ उस्सग्गदिट्टिणो तुह अववायांठ्या न चैव रुच्चति । अववायदिद्विणो उण उस्सग्गठिया न शेअंति ॥ ८६ ॥ तह दव्वखेत्त
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॥१२४॥
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कलाइयाणमणुसारओ जहाविसयं । उभयपयसेवगा जे अ तेऽवि नो तुज्झ रोयंति ॥ ८७ ॥ उस्सग्गष्पमुहसमत्थनयमयम यमरो अमाणस्स । कह नज्जइ निरवज्जा मण ! जिणमयपरिणई तुज्झ ? ॥ ८८ ॥ तव्विसए सुअनिहिणो बहु पुच्छसि विकि (जे विकी) रएतत्तं । नायंति किंपि दंसं निरुवसमं चित्त ! घिराणं ॥ ८९ ॥ एवं च तुज्झ न गिलाणकज्जविसया णु जायए चिंता । कालागुरूवगुणिगोअरं च न पमोअकरणं च ॥ ९० ॥ वच्छल्लथिरीकरणोववूहणाइवि न चैव सव्वत्थ । अविगाणेणं चिंतसि साहिप्पाया जइ कहिंपि ॥ ९१ ॥ जुम्मं ॥ एवंविहं च कुग्गहचकं हित्तुं विवेअचक्केणं । सकोवाहिसुद्धं सद्धम्मे कुणसु पडिबंधं ॥ ९२ ॥ (आत्मानुशास्तिद्वारं) जइ ता तत्तगबेसी ता अणणुभवि माणिअं सव्वं । अह् न तहा ता तम्माणणेऽवि सव्वं अणणुभूओ ।। ९३ ।। हियइच्छियाइं जह जह संपज्जतीह कह वे जीवाणं । तह तह विसेसतिसियं चित्तं दुहियं चिय वरायं ॥ ९४ ॥ रागाई हि यवत्थं इओ तओ साहिउं किलेसबसा । जह जह तमणुभवेइ तह तह परिबुड्डूई रोगो |||१५|| उबभोगोवायपरो पसमेउं महइ विसयतण्डं जो । नियछायकमणकए एरोऽवरहे पहावे || ९६ ॥ मुट्ठवि भुत्ता भोगा सुडुबि रमियं पिएहिं सह निच्चं । सुविपियं सरीरं हा ! जिय! कइयावि मुत्तव्वं ।। ९७ ।। जम्हा उ विसेसेणं सीयंति इमेसु कयमणा मणुआ। एएण कारणेणं विसयत्ति निरुत्तमे सिं ॥ ९८ ॥ एए उ महासलं इमे महासत्तुणो परं लोए । एए उ महाबाही एए य परमदारिदं ॥ ९९ ॥ सल्लं हिअयनिहित्तं न सुहल्लं देइ देहिणो उ जहा । अंतो विचितिआ तह विसयाबि दुहावहा चैव ॥ १०० ॥ जह नाम महासत दावेइ कयत्थणाविविहाओ । एमेव य विसयाविद्दु अहवा एए परभवेऽवि ॥ १०१ ॥ जह नाम महावाही विहरत्तं कुणइ इहभवंमि तहा । विसयावि नवरमेए भवंतरेसुवि अनंतगुणं ॥ २ ॥ ठाणं पराभवाणं सव्वाण जहेह परमदारिदं । विसयावि किर तहचिअ पराभवाणं परं ठाणं ॥ ३ ॥ पत्ताई पार्श्विती पाविज्जंसी य बहूणि बहवोऽवि । परिभवपयाई पुरिसा ते जे विसयामिसपसत्ता ॥ ४ ॥ मन्नइ तणंपिव जगं संदेहपयमि पविसइ
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।। १२५ ।।
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॥ १२६ ॥
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भयंमि | मरणस्सवि देइ उरं अपत्थणिज्जंपि पत्थेइ ॥ ५ ॥ लंघति समुहं भीसणंपि साहंति घोरवेयालं । किं बहुणा ? विसयकए पविसंति जमाणणेवि नरा || ६ || गरुयंपिहु परिवज्जिय कज्जं विसयाउरो मुहुत्तेणं । तं कुणइ जेण हासो जावज्जीवं जए होइ ||७|| ववसइ पिउणोवि वह बंधुं सत्तुं व मन्नई मूढो । होइ अनिद्धकज्जो विसयगहपरिंगओ पुरिसो || ८ || विसया अणत्थपंथो विसया माहप्पलंपगा पावा । विसया लहुत्तपयडी अकंडविहुरकया विसया ॥ ९ ॥ विसया अवमाणपयं विसया मालिन्नकारणमवग्गं । विसया दुहिकहेऊ इहपरभवबाहगा विसया ||१०|| खलइ मणो गइ मई परिहायइ पोरिसंपि पुरिसस्त । विसयासत्तस्स गुरुव:ट्ठमिट्ठपि वीसरइ || ११|| सा जाई तं च कुलं सा कित्ती भुवणभूसणपयंडा । जइ ता विसयपसत्ती ता फुसिआ वामपाएण || १२ || जिणवयणदक्खचक्खुवि पिक्खए पिक्खणिज्जभावे ता | जा न ज्जवि विसयपसत्तिलक्खगा नीलिमा न भवे ।। १३ || धम्माभिप्पायपईवओ मणोमंदिरांम ता फुरइ । जावज्जवि विसयपसत्तिलक्खणा नेइ बाऊली || १४ || सव्वन्नुवयणपोओ ता भवजलहिउत्तारणसमत्थो । विसयप्पसंगपवणो जाव वि नावकूलेइ || १५ || विमलंपि जीवसंखे पइट्ठियं सहइ ताव सीलजलं । विसयाभिनिवेसासुइसंगा कलुसिज्जइ न जाव ॥ १६ ॥ निम्मलविवेयरयणं तावज्जवि दिप्पए, पयासे वा । विसयप्पसंगपंसू जावज्जवि नावगुंडेइ ॥ १७ ॥ धम्मं का मसत्ता विसयपसत्ता निहीणतमसत्ता । अत्ताणं अंशाण न मुणंति हियं च न कुणति ।। १८ ।। सन्नाणमणिपुरतं पवित्तचारित्तरयणचंचइयं । ओ ! विसयचंडचरडा लुंटती जीवभंडारं ।। १९ ।। सा तुंगिमा स तेओ तं विनाणं गुणावि ते चैव । सव्वं खणेण नहं धिरत्थु विसयाभिलासस्स ॥ २० ॥ हद्धी अलद्वपुव्वं जिणवयणरसायणंपि घंटेडं । विसयमहाहालाहल हल्लोहलिएहिं उग्गिलियं ।। २१ ।। सुचारए अप्पाणं पावा पावासवेसु अप्पाणं । ( आप्यायन्तम् ) अप्पानं अप्पाणं ( अप्राणं ) विसयाण कए कयत्थंति ।। २२ ।। छुहियं सीहं कुविअं च पन्नगं सुबहुमच्छियं च महुं । आहणइ सो णणज्जो जो विसएसुं
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॥१२६॥
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संवेगरंग| माला४८
कुणइ गिद्धिं ॥ २३ ॥ उवविसइ स सूलाए पविसइ य जलंतजउहरस्संतो। कुंतग्गंमि अ नञ्चइ करेइ विसएसु जो गिद्धिं ॥ २४ ॥ अहवा प्रकरण समुच्चयः
साइपमुहा हुंति विणासाय तब्भवे चेव । एए पुण हयविसया अणतभवदारुणविवागा ।। २५ ॥ विमए सेवंति जडा अरईदुक्खस्स पसमण
निमित्तं । तं पुण तेहिं दढयरं उच्छलइ घएण जलणुब्ब ॥२६॥ सूरावि विसर्या द्धा मुहजोआ हुंति महिलियाणंपि । जे पुण ताण विरत्ता ॥१२७|| ते देवाणंपि पणइपयं ॥ २७ ॥ मोहमहागहगहिओ सहिओ अरईइ धम्मरइरहिओ । विसयवसो वावारस्स मणवयकाए अविसएवि ॥२८॥
दुलहं चरित्तरयणं खंडियामिक्कासि कहिचि विसयवसो। पावइ दुगुंछिअत्तं जावज्जीवंपि सयलजणे ॥ २९ ॥ आवायमित्तसुयावि किंपि | बहुभाविभवनिमितत्ता । विसया सप्पुरिसाणं सेविज्जतावि दुहजणया ॥ ३० ॥ हा धी विलीणबीभत्थकुच्छाणिज्जमि रमइ अंगमि | किमउव्व | एस जीवो दुहंपि सुक्खंति मन्नंतो ॥ ३१ ॥ ता ताण कए दुहसयनिबंधणं कुणइ बहुविहं जीवो । आरंभमहापरिग्गहमओ उ बंधपि पावाणं ॥ ३२ ॥ तो नरयवेयणाओ पिरियगईओ पाउणइ बहुसो । इय जरियजंतुणो मज्जियाइपाणोवमा विसया ॥ ३३ ॥ जइ हुज्ज गुणो विसयाण कोइवि ता नहु जिणिंदचकिबला । दूरुज्झियविसयसुहा धम्मारामे तह रमंता ॥३४॥ ता एवं नाऊणं पसत्थपरमत्थदिट्ठिणो होउं । चयह मियं विसयसुहं अपरिमियं भयह पसमसुई ॥ ३५॥ जेणमकिलेससाणमलज्जणायं विवागसुंदायं । पसममुहमिमाहितो ताणंतेहिं संगुणियं
॥ ३६ ।। ता सकयत्था इत्थेव गाढपडिबद्धमाणसा धीरा । धन्ना तिच्चिय परमत्थसाहगा साहुणी निचं ॥ ३७॥ अणवरयमरणरणरणय| भीसणं पिच्छिऊण संसारं । चत्तुं विसं व विसमं विसयसुहं जेहिं दूरेणं ।। ३८ ॥ विसयासासंदाणिअचित्ता य अपत्तविसय सुक्खावि । हिंडंति | सैकंडरीउव्य तओ मओ घोरसंसारे ।। ३९ ।। संवेगगब्भसुपसत्थसत्थसवणं हि होइ धन्नाणं । सवणेऽवि धन्नतरगाण चेव तस्सासमापत्ती
॥ ४० ॥ जह तह संवेगरसो वन्निज्जइ तह तहेव धन्नाणं । भिज्जंति खित्तजलामम्मयामकुंभब्व हिययाई ॥ ४१ ॥ सारोऽविय एसुच्चिय
॥१२७||
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प्रकरण समुच्चय:
संवेगरंगमाला४८
॥१२८॥
MI दीहरकालंपि चिन्नचरणस्स । जम्हा तंचिय कंडं जं विंधइ लक्खमज्झेऽवि ॥ ४२ ॥ रूवे चक्खू पडिमा य देउले रसवईई जह लवणं । तह मा परलोगविहीइ सारो संवेगरसफासो ॥ ४३ ।। सुचिरंपि तवो तविउं चिन्नं चरणं मुअंपि बहु पांढरं । जइ नो संवेगरसो ता तं तुसखंडण | सव्वं ॥ ४४ ॥ तह संवेगरसो जइ खणंपि न समुच्छलिज्ज दिवसंतो। ता विहलेण किमिमिणा बज्झाणुट्ठाणकठ्ठणं ? ॥ ४५ ॥ पक्खंतो | मासंतो छम्मासंतोऽवि वच्छरस्संतो । जस्स न हुज्जा तं जाण दूरभव्यं अभव्वं वा ॥४६॥ एसो पुण संवेगो संवेगपरायणहिँ परिकाहओ । | परमं भवभीरुत्तं अहवा मुक्खाभिकखित्तं ॥ ४७ ॥ संवेगभावियमई जवेलं होइ संपविठ्ठो । अग्गीव पवणसहिओ समूलजालं दहइ कम्म
॥ ४८ ॥ जीवियजलंमि झीणे सरीरसस्समि परिब्भसंतमि । कोऽवि हु नत्थि उवाओ तहवि जणो पावमायरइ ।। ४९ ॥ इठ्ठजणं धणधन्नं | विसया पंचगवल्लहं देहं । इक्कपए मुत्तब्वं तहावि दीहास जीवाणं ॥ १५० ॥ इति संवेगरंगमाला सग्मत्ता ।।
॥अथ श्रावकवर्षाभिग्रहाः४९॥ ___ वर्षाचतुर्मासकाभिग्रहा यथा-वारचतुष्टयं चैत्यवन्दना दिनमध्ये कार्या, वारमेकं पूर्णा, मासमध्ये ऽष्टविधपूजा वारचतुष्टयं कार्याः, चतुर्मा| समध्ये एकावस्त्रपूजा कार्या, गृहे देवगृहे वा स्नानमेकं कार्य, अष्टम्यां चतुर्दश्यां च देवालयप्रमार्जनं प्रदक्षिणा च देया, जिनभवनमध्ये आ| शावनाशकं रक्षणीयं, ग्रामस्थेन प्रतिदिनं धोतिर्विधेया, ज्ञानपश्चर्माषु विशेषपूजा कार्या, एका पुस्तकपूजा च, चतुर्मासकेऽपूर्वपाठे गायाः ५०० पठनीयाः, तथा चतुर्मासके प्रतिक्रमणं षोडश वारा कर्त्तव्यं षोडश सामायिकानि ग्राह्यानि,मासमध्ये पञ्चदश वन्दनकानि दातव्यानि, उभयकालं प्रत्याख्यानं देशावकाशिकं च कार्य, मासे स्वाध्यायसहस्रत्रयं कार्य, मासे कायोत्सर्गचतुष्टयं विधेयं, चातुर्मासकमध्ये वात्रिंशतं३०
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण व्याख्यानश्रवणं कार्य, सम्प्राप्तौ दिनमध्ये वारमेकं साधुवन्दना, मासमध्ये सम्भवे सति साधोर्विश्रामणा वारद्वायं कार्या, स्थूलप्राणातिपातस्य श्रावकवष . समुच्चयः द्विविधं त्रिविधेन नियमः, स्थूलमृषाबादस्य द्विविधं त्रिविधेम नियमः, स्थूलअदत्तादानस्य द्विविधं त्रिविधेन नियमः, चतुर्थव्रतविषये परस्त्री परसीमाभिग्रहाः४ // 129 // सम्भोगस्य कायेन नियमः, धणधन्नखेत्तवत्थूरुप्पसुवन्नदुपयचउप्पयविषये मितं प्रमाणं कार्य, दिग्व्रतविषये पूर्वस्यां योजनदशकं मुत्कलं, पश्चिमायां योजनदशकं दक्षिणस्यां योजनपञ्चाशत् मुत्कलानि,उत्तरस्यां योजनदशकं,एतद्गमनं मुत्कलं नाधिकं,उपभोगपरिभोगव्रते मद्यमांसनवनीतानां नियमः, मधु नवनीतं च औषधं मुक्त्वा न परिभोग्य, अज्ञातं सचित्तानंत कायं च, दिनप्रति द्रव्य२५ विगइ 4 सचित 6, दीपोत्सवादि पर्व मुक्त्वा दिने 2 पान२० पूग 5, क्रीत्वा शतपत्रिकापुष्पाणां नियमः, लब्धानां शतद्वयं मुत्कला, कणमाणां 3 स्नेहकर्ष 2 सूषडीया 2 जलपाने पानीयकरक 3 मपितफलमाणं 1 गणितफल 16 जंबू 50 तोलियवस्तु पल 8 वीरत्रीयलि 7 / आथाणा 2 योजन 8 मासे स्नान 3 पानीय घडओ // 1 // अंगोहलि 30 पानीयसो 5 स्नानाभ्यङ्गे स्नेहक 1 सर्वविलेपनेषु 4, द्विविधस्य रात्रिभोजनस्य धरणादिकं मुक्वा नियमः, स्थूलकादाननिवृत्तिः 9, ' इंगाली वणसाडी' प्रभृतयः, चतुर्विघेऽनर्थदण्डे यत्नो विधेयः, पोषधव्रते पञ्चम्यामष्टम्यां चतुर्दश्यां एकभक्तं अस्नानं ब्रह्मचर्य च, चतुर्मासकपर्युषणादिने विकृतिपरिहारः, एतेषु पर्वसु स्वयंकरणेन क्रियाया नियमः, अतिथि | संविभागे ग्रामे मासमध्ये ऽतिथिसंविभागो वारचतुष्टयं कार्यः, पूर्णस्नाने रात्रौ नियमः, नारङ्गकरुणां सर्वनियमः, पक्षमध्ये खाण्डुगुडु दुग्धं 10वारचतुष्टयं मुत्कलं, वीरवार 2 द्विप्रक्षालाप्यानि बदराणां कोटी भडाणां च दीपोत्सवं यावन्नियमः // इति श्रावकवर्षाभिग्रहाः // 49 // // इति श्रीमन्मुनिचन्द्राचार्य प्रभृतिम्ररिपुरन्दर विहित एकोनपञ्चाशत्प्रकरणमयः प्रकरण समुच्चयः समाप्तः॥ // 129 // ESSERS 65454545455 BARASAR For Private and Personal Use Only