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प्रकरण
समुच्चयः
सभापश्चकम् ३५
॥८७॥
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करणउत्तरगुणविसयाओ इमाओ गाहाओ । लिहियाओ चक्कसरसूरीहिं सुहवबोइत्थं ॥ ५५॥ इति श्रीचरणकरणमूलोत्तरगुणपगरणं सम्मत्तं ॥
॥अथ सभापश्चकप्रकरणम् ।। ३५ ॥ पंच सभा पन्नत्ता उववायसभा तहाभिसेयसभा । तइयाऽलंकारसभा ववसायसभा चउत्थी ओ॥ १ ॥ पंचमिया सोहम्मा देवो पढमाएँ तत्थ उववज्जे । आउस्संतो ! देवा बीयाएँऽभिसिञ्चई ते उ ॥२॥ तइयाएऽलंकरिजइ ववसायसभाएँ धम्मियं सत्थं । वायइ तत्तो उत्तरपुरच्छिमंमी दिसाभागे ॥ ३ ॥ सोहम्माए सठिय सिद्धाययणस्स वंदणनिमित्तं । चल्लइ तत्तो व्हायइ चेइयतणयाए वावीए ॥ ४ ॥ नंदापुक्खरणीए पुवदारेण पविसइ तत्तो । सिद्धाययणं तत्थवि वच्चेइ जिणाण आलाए ॥५॥ आलोयाम्म पणामं करेइ पडिलेह लोमहत्थेणं ।
ताओ पमज गंधोदएण न्हावेइ सुरहेणं ॥ ६॥ कासाईए गायाइं लूहई चंदणेण लिंपइ य । अहयाई जुयलयाई नियंसई देवदूसाणं ॥ ७ ॥ *पकरइ पुप्फारुहणं मल्लारुहणं च गंधआरुहणं । पुन्नाणं कलसाणं वत्थाभरणाण आरुहणं ।। ८ । पकरेइ सुविउलघणपमाणमालाउलं च
फुल्लहरं । करयलपभट्ठदसअद्धवन्नकुसुमुक्करं किरइ ।। ९ ।। जिणपडिमाणं पुरओ रययामयएहि सण्हअच्छेहिं । अच्छरसतंदुलेहिं तुसारगोखीरसेपहिं ॥ १० ॥ दप्पण १ भद्दासण २ बद्धमाण ३ वरकलस ४ मच्छ ५ सिरिवच्छा ६ । सोस्थिय ७ नंदावत्ते ८ लिहेइ अट्ठट्ठमंगलए ॥ ११ ॥ धूवकडुच्छुयएणं धूवं दाऊण जिणवरिंदाणं । अट्ठसएणं सुविसुद्धगंथवित्तहि संथुणइ ॥ १२॥ (जहा ) देवाहिदेव परमेसर! वीयराय, सवण्णु तित्थयर सिद्ध महाणुभाव । तेलोकनाह मुणिपुंगव वद्धमाण, गंभीरधीर सुचिरं जय देवदेव ॥१३॥ सत्तट्ठपयाई ओसरितु अंचेइ वामजाणुं तु । दाहिणजाणुं धरणीयलांस किच्चा सुभत्तीए ॥१४॥ तिक्खुत्तो मुद्धाणं भूमिएँ निहित्तु ईसि नमइत्ता । अंजलिमउलियहत्थो | सकथयं भणिय वंदेइ ।। १५ ॥ वंदित्ता नीहरई दाहिणदारेण गभगेहाओ । दाहिणमुहमंडवमज्झभाययं तत्थ पूएइ ॥ १६ ॥ पच्छिमदारं
(Mal||८७॥
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