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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरण समुच्चयः ॥ ६७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भइ सक्कथयं । भायणहत्थमुहाई पेहिय तो मुंजए विहिणा ।। २४ ।। भुतंते उद्वित्ता सकथयं भणिय गच्छए नियए । धम्मट्टाणे तत्थवि इरियं पडिकमिय आलोए ।। २५ ।। आगमणं तो बंदिय जहास माहीऍ आसणे ठिञ्चा । सज्झायाई पकरइ पोत्थयाईणि वा वाए ।। २६ । तईयपहरस्ते जाए पडिलेहणाअवसरम्मि । वंदिय इच्छाकारेण अम्हि पडिलेहणं करिमो || २७ || वंदिय भगई दंडाउँछय संदेसहत्ति तो वंदे | मुहपोत्तिं पेहेमो भणिन्तु तो पोत्तियं पेहे ।। २८ ।। तलवत्थरणाईयं पेहिय परिहेइ तो नियंसगयं । पडिलेहिय परिहेई जइ पुण उबवासओ होइ ।। २९ ।। तो सब्बुवहिपमज्जण अणंतरं परिहणं पमज्जेइ । ठवणगुरु तन्निसेज्जं तप्पट्टाई पमज्जेइ || ३० || कट्ठासण पाउंछ पोसहसाला इयं पमज्जेइ । लहुयतरो अन्नो वा कज्जं उद्धरइ पेड़ ||३१|| परिठवइ सुद्धठाणे तत्थ य जीवाइ जं विराहिययं । दीस इ तंपच्छित्तं समुदाइयलेक्खए किच्चं ॥ ३२ ॥ इरियं पडिक्कमेई एवं उच्चारपासवणमाई । भूमीए जइ करई तह हत्थतया जया बाहि ॥ ३३ ॥ गच्छ कम्मि कज्जे जलमाई वावि जइ विगिंचेइ । तहिं सव्वत्थवि कज्जे इरियं पडिकमइ उवत्तो ॥ ३४ ॥ तो ठेवणगुरु|सयासे पोति पेहेइ संदिसावेइ । अज्झायंतो वांदेय रुज्झायं करह इय भणइ ।। ३५ ।। नवकारपाभइयं तो सज्झायं करइ तोऽभिवंदित्ता । इच्छाकारेणऽम्हे ओवहियं संदिसावेमो || ३६ || वंदिय उवहिं अम्हेहिं पडिलेहिस्साह तो समुवउत्तो । कंबलअंतरकप्पाइयाई वत्थाइ पेहेइ ||३७|| वइसिय सज्झायाई करेइ तो जाइ उचियवेलाए । साहुवसहीऍ वंदिय इरियं पडिकमइ उवउत्तो ||३८|| आगमणं आलोयइ पोत्तिं हि देइ वंदणयं । पञ्चक्खाणं तो देइ वंदणं भणिय विहिणा ओ ||३९|| पच्चक्खाणं उचियं करेइ अहव काई उववासी । तो वंदणं न देइ पकरेइ नवं च संवरणं ||४०|| तो ते च्चिय वंदणयं आलोयण खामणाइ पकरेइ । साहुप्पभिई वंदिय सुणेइ वक्खाणमाईये ॥ ४१ ॥ अह नत्थि गुरू अहवा अच्छंताणवि न जाइ वसहीए । केणवि कज्जवसेणं तो निययवम्सए चैव ॥ ४२ ॥ | पडिलेहणाएँ अंते जइया पोत्तिं पमज्जिडं पकओ For Private and Personal Use Only पौषधत्रिधिः ।। ६७ ।।
SR No.020563
Book TitlePrakaran Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasinhsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1923
Total Pages133
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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