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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie * A प्रकरण समुच्चयः ॥७३॥ IRAHISANIRAM का पंच पंच मेरू य । तीसं अकम्मभूमी अड्राइज्जेसु दीवसुं ॥१९॥७। अंजणदहिमुहरइकरगिरिसंठियचेइयाइं जहसंखं । चउ सोलस छापदार्थस्था| बत्तीसं वंदे नंदीसरि बिवनं ॥ २०॥ ८ । सिरिउसभवद्धमाणयचंदाणणवारिसणनामाओ । चउवीसजिणपमाणा हुंती नंदीसरे दीवेलापना प्रक. | ॥ २१ ॥ सत्ताणवइ ( ८५६९७४८१ ) सहस्सा लक्खा छप्पन्न अट्ठकोडीओ । चउसय इगसी अन्ने वंतरजोइसअसंखयं वंदे ॥२२॥ | गब्भगिहमुहमंडवपेच्छणमंडवयथूभपभिईहिं । ठाणेहिं संजुयाइं इह सासयचइयाइति ॥ २३ ॥ ९। किण्हयराईमझे रिद्वावमाण चउद्दिसि | दो दो । एवं नव लोगंतियदेवविमाणा इहं नेया ॥२४॥ एवं नव लोगंतिय मज्झिमअविवक्खणा भणंतऽह। जं पुण दसलोगंतिय देवे बिंती तयं चिंत ॥२५॥ १०॥ बत्तसिं घरयाई काउं तिरियाययाहिं रेहाहिं । उड्डाययाहि काउं पंच घराई तओ पढमे ॥ २६ ॥ पन्नरस जिण | | निरंतर सुन्नदुगं तिजिण सुन्नतियगं च । दो जिण सुन्न जिणिंदो सुन्न जिणो सुन्न दुन्नि जिणा ॥ २७ ॥ दो चकि सुन्न तेरस पण चक्की सुन्न चक्की दो सुन्ना । चक्की सुन्न दुचकी सुन्नं चकी दुसुन्नं च ॥ २८ ॥ दससुन्न पंच केसव पण सुन्नं केस सुन्न केसी य । दो सुन्न केसवोऽ| विय सुन्नदुर्ग केसव तिसुन्नं ॥ २९ ॥ पढमप्पंतीऍ जिणा बीयप्पंतीय चक्विणो हुंति । तइयाएँ वासुदेवा पडिविण्हुकालो य एत्थेव ।। ३० ॥ तुरियाए देहमाणं जिणाण चक्कीण वासुदेवाणं । एएसिपि य आउयमाणं पंचमियपंतीए ॥३१॥ चक्की विण्हू केईवि जिणकाले किवि जिणंतरेसुवि 8| य । इय बत्तीसघरेहिं नेयाइं जिणंतराइंति ॥३२॥११॥ साहू १ वेमाणित्थीर साहु [साध्वी]३ तिगुवाइ अग्गिकोणम्मि। भवण४ वण५ जोइदेवी ६ तिगु चिट्टे नेरइयकोणे ॥३३॥ भवणवणजोइदेवयतिगं ७-८-९ तु उवविसइ वायवे कोणे । वेमाणिय१० नर११ नारी१२ तिगं तु ईसाणकोणमि |॥३४॥ इय बारस परिसाओ पायारेऽभितरम्मि बिइयम्मि । तिरिया तइए जाणाणि ठंति इय समवसरणम्मि ॥३५॥१२॥ अवसप्पिणीय अरया ॥७३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020563
Book TitlePrakaran Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasinhsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1923
Total Pages133
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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