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प्रकरण मुच्चयः
V
।९८॥
फुरिए । आसासिओ तहाऽहं जह पुब्वि नेव कइयावि ॥ ७॥ सिद्धतभावणाहिं भावितोऽविहु सयावि अप्पाणं । भूएण व रागणं होहामि कहा
आत्मछलिज्जतो? ॥८॥ वइरसिलाए नूगं मह हिययं नाह ! निम्मियं विहिणा । जं मरणं नाऊणं सयखंडं फुडइ न तडत्ति ॥ ५ ॥ जम्मंतरसयदु
विज्ञप्तिः३९ लई सासणमेयं जिणंद! तुह पत्तं । पत्तंपि पुण न पत्तं पमायरिउकिंकरो जमहं ॥ १० ॥ भवकूवमझगेणं हत्थालम्बो मए तुम पत्तो । मोहवसा उच्छलि निवडतं अहह में रक्ख ।। ११ ।। जइ सम्मं मह सामियः सव्वंग फुरइ भवदुहसरुवं । ता नीरपि न पाउं कमइ मणे किं * पुण उनकहा ? ॥ १२ ॥ तुह आणाए साभिय! एगत्तो अम्ह माणसं फुरइ । अन्नत्तो विसएसुं डमरुयगंठिव्व किं करिमा ? ॥ १३ ॥ पवणपणुल्लिरनीरे रविपडिविंबंकचंचलं भुवणं । अणुसमयपि नियंतो जं नवि रज्जामि ही विसया ।। १४ ॥ अवहीरिओऽवि तुमए पत्थेमी तहवि कलुणवयणेहिं । पइमुक्को अहह भवे सामिय! होहं कहमहंति ? ॥१५।। अहह अहं नो सामिय! सरणागयवच्छलेऽवि तई पत्ते । मह जं न परित्ताणं ताऽहं दीणो कहं होइं? ॥ १६ ॥ कत्थ कया कह पुणरवि इमाइ सव्वाइं नाह! तं दच्छं । तो मज्झ हे दयालुय ! दिटिपसायं पणामेसु ॥ १७ ॥ जं किंपिहु संसारे पगरिसपत्तं मणम्मि सुहझेयं । तह जीहाइ थुणिज्जतंपिहु मह नाह! तं चेव ॥ १८ ॥ तुह पयसेवं मुत्तुं | नह अवरं किंपि नाह! पत्थेमि । ता किंमं अवहीरसि ? करुणाभरमंथरं नियसु ॥ १९ ॥ जइ तुडिवसेण तुम्हं नयणबुयकरपरायपिंजरिओ। होहं कहमवि ता जिण! धन्नो धन्नो जए नूणं ॥ २० ॥ तुह सिद्धंतरहस्सं नाउं संवेगसंगयमणोऽवि । विसएसु जं घुलावी तं सल्लं हल्लइ महलं ॥२१॥ वहृतोवि उवाए जमहं न तरामि लंघिउं देव्वं । का तत्थ मज्झ अरइ? पुणो पुणो तहवि मज्जामि ॥२२॥ तुह समयसमुद्दाओ मइमंदरमंथणेण सामि मए । उवसगरयणं लद्धं बद्धं नियहिययगंठीए ॥ २६॥ तिहुअणरज्जाओविहु अहिओ मह अज्ज फुरइ आणंदो । विसयाइतक्करोहिं ता हीरइ ही नियंतस्स ॥२४॥ ता किं करोमि कस्स व कहोम इय पुण पुणोवि रुंटतं । दुक्खपलित्तं धावइ मह हिययं दस.
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