SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie अथप्रमाते जीवानुशा सनम् प्रकरण हिं । एत्तोधिय पंचमहब्बयाण परिपालो पवणा ॥ १२ ॥ मणवयणकायगुत्ता पुत्ता सीमंतिणीण सव्वाणं । अनिययविहाररसिया समुच्चयः वसिया गुरुपायमूलम्मि ॥ १३ ॥ तित्थयरभाणियवयणाणुसारिसद्धम्मदेसणपहाणा। पडिखलियपंचपाणा निरंतरुल्लासिमुहझाणा ॥१४॥ सीलंगमहाभरधारणांम धुरधवलधीरिमं पत्ता। रागाइवरिवसवत्तिजंतुपरिमोयणे सत्ता ॥ १५ ॥ गुणिमणकमलवियासणपयंडमायंडसंनिह॥४४॥ सहावा । संपत्ता सुहगुरुणो दुहतरुणो खंडना धीरा॥ १६ ॥ ता जीव तं क्रयत्थो कयपुन्नो मंगलाण आवासो । माणुसजम्मस्स फलं तुम्भश्चिय करयले चडियं ।। १७ । जं तुमए रयणत्तयमिणमो संपावियं महाभागा! । नहि पुत्रविहीणाणं निहाणलामो जए. होइ ॥१८॥ ता तह करेसु संपङ मोक्षणं मोहणिज्जमचिरेणं । जह, संसारसमुब्भवदुक्खाण जलंजलि देसि ॥ १९॥ रयणायरंमि पत्ते जह पुनो कोऽवि लेइ रयणाई। तह, गिण्ह तुम लद्धयमाणुस्लो भावरयणंपि ॥ २० ॥ जइ कुणास पुण पमायं जाणंतोऽविहु जिणिदधम्ममि । ता नूण18 मयाणुय करगयाई सोक्खाई हारिहिसि ॥ २१॥ इयचिंतामयसंसिच्चमाणमणनंदणाण जीवाण । आचिरेण सग्गसिवसुहफलाई सिति विउलाई ।।२२।। मुणचंदसूरिराणहरविपोयसिरिदेवसूरिक्यणाई। मोहंधयाण जंतूण होति विमलाई नयणाई॥२शा इति । अथ दोहा. ॥२६॥ ___ . नाणु चरणु संमत्तु जसु रयणत्तउ सुपहाणु । जय सु मुणिसुरि इत्थु जगि मोडियवम्महरवाणु ॥ १ ॥ उवसमरयणसमुद्दसमु x विहलियजणमाहारु । वंदउ मुणिसुरि भवियजण जिम छिंदउ संसार ॥ २ ॥ असियमहुरदेसणसिण भवियण रुंखमुलाई । जिंक सिंचइ मुणिचंदह सूरि तिअ तुंवि कुवि काई ॥ ३ ॥ वक्खाणंतउ जिणवयणु सिरिमुणिचंद मुणिंद । चादसि मुणिपरिवारियउ, नावइ पुन्निमचंदु ॥ ४ ॥ जिणि छट्ठट्ठमिमाइतवि सोसीउ हहुँ निय देहु । वरकरुणाजलणीरुनिहि सो गुरु मुणिधुरिलेहु ॥ ५ ॥ जो पिहि पक्खसमुद्धरणु, पंचमहव्वयधारु । सो नंदउ मुणिचंसुरि, जिणी वूहउ तिव भारु ॥ ६ ॥ मेरुहु जिंव विरु पभ गुरु, RASARAN MESSEN ॥४४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020563
Book TitlePrakaran Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasinhsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1923
Total Pages133
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy