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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनोनिग्रह कुलकम्४२ प्रकरण कइया गुरुपाएहिं लहिस्सामि ? ॥ २८ ॥ ओ! तं जीव! अलज्जि ! भाणओ धम्मोवएसलक्खेहिं । जइ नेव किंपि लग्गं ता सरणं मज्झ किर समुच्चयः मोणं ॥ २९॥ विसयविरत्ता मुणिणो कालोचियसंजमंमि जे निरया । आजम्मंपि तिसंझं पयधूलि वंदिमो ताणं ॥ ३०॥ पइदियहं पइसमयं ॥१०४॥ खणंपि मा मुयसु एयमुबएसं । जइ भवदुहाण तित्तो तिसिओ उण परमसोक्खाणं ।। ३१ ॥ सिरिधम्मसूरिपहुणो निम्मलकित्तीइ भरियमुवण|स्स । सीसलवेहिं कुलयं रइयं सिरिरयणसूरीहिं ॥ ३२ ॥ इति श्रीआत्महितकुलकम् ४१॥ अथ मनोनिग्रहभावनाकुलकम् ४२ ॥ सिरिधम्मसूरिपहुणो उवएसामयलवं मुणेऊणं । तं चेव तिहा नामिउं मणनिग्गहभावगं भणिमो ॥ १ ॥ संसारभवणखंभो नरयानलपादावणमि सरलपहो । मणमाणिवारियपसरं किं किं दुक्खं न जं कुणइ? ॥२॥ वायाए काएगं मणरहियाणं न दारुणं कम्मं । जोयणसहस्सMमाणो मुच्छिममच्छो उयाहरणं ॥ ३ ॥ वइकायाविरहियाणवि कम्माणं चेत्तमेत्तविहियाणं । अइघोरं होइ फलं तंदुलमच्छोव्व जीवाणं ॥४॥ मलियाविवेयाण मणो निग्गहिउं दुकरं फुडं ताव । संजायविवेगाणवि दुक्करमयंपि किर होति ।। ५ ।। करयलगयमुत्तीणं तित्थयरसमाण चरणभावाणं | ताणंपि हुजं दुकरमेयमहो मह मच्छरियं ॥ ६॥ मणनिग्गहवीसासो कइयावि न जुज्जए इहं काउं । अप्पडिवायं नाणं उप्पन्नं ज़ा न.जीवाणं ॥ ७॥ येवमणदुक्खियस्सवि जाणतो अइवदारुणविवागं | जइ कहवि खंचिय मणं धारेमी एगवत्थुमि ॥ ८॥ पाणिपुडनिविडपीडियरसं व पेच्छामि तहवि उत्तिगयं । अह ओवायं पुणरवि करिसमन्नं अणुसरामि ॥ ९॥ मयमत्तपिव हत्थिं धम्मारामं पुणोऽवि भं| जंतं । दटुं विवेयमिठो सुहझाणक्खंभमल्लियइ ॥ १० ॥ उल्लसिओ आणंदो खणमेगं जाव ताव चिंतेमि । ता सिद्धमंतिओ इव दसिइ अन्न त्य किं करिमो? ॥ ११॥ मणमकडेण सुइरं मह देहं तावियं अहो बाढं । ता कह निग्गहिऊणं होहामि अहं सुही एत्थ ? ॥१२॥ सिद्धिपुलारीए सिद्धी जाव फुडं तुज्झ होइ रे जवि ! । ता मणराएण समं मा विग्गहउवरमं कुणसु ॥ १३ ॥ अह विग्गहंमि चत्ते पत्ते निकंटगम्मि र ॥१०४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020563
Book TitlePrakaran Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasinhsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1923
Total Pages133
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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