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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संवेगरंग| माला४८ कुणइ गिद्धिं ॥ २३ ॥ उवविसइ स सूलाए पविसइ य जलंतजउहरस्संतो। कुंतग्गंमि अ नञ्चइ करेइ विसएसु जो गिद्धिं ॥ २४ ॥ अहवा प्रकरण समुच्चयः साइपमुहा हुंति विणासाय तब्भवे चेव । एए पुण हयविसया अणतभवदारुणविवागा ।। २५ ॥ विमए सेवंति जडा अरईदुक्खस्स पसमण निमित्तं । तं पुण तेहिं दढयरं उच्छलइ घएण जलणुब्ब ॥२६॥ सूरावि विसर्या द्धा मुहजोआ हुंति महिलियाणंपि । जे पुण ताण विरत्ता ॥१२७|| ते देवाणंपि पणइपयं ॥ २७ ॥ मोहमहागहगहिओ सहिओ अरईइ धम्मरइरहिओ । विसयवसो वावारस्स मणवयकाए अविसएवि ॥२८॥ दुलहं चरित्तरयणं खंडियामिक्कासि कहिचि विसयवसो। पावइ दुगुंछिअत्तं जावज्जीवंपि सयलजणे ॥ २९ ॥ आवायमित्तसुयावि किंपि | बहुभाविभवनिमितत्ता । विसया सप्पुरिसाणं सेविज्जतावि दुहजणया ॥ ३० ॥ हा धी विलीणबीभत्थकुच्छाणिज्जमि रमइ अंगमि | किमउव्व | एस जीवो दुहंपि सुक्खंति मन्नंतो ॥ ३१ ॥ ता ताण कए दुहसयनिबंधणं कुणइ बहुविहं जीवो । आरंभमहापरिग्गहमओ उ बंधपि पावाणं ॥ ३२ ॥ तो नरयवेयणाओ पिरियगईओ पाउणइ बहुसो । इय जरियजंतुणो मज्जियाइपाणोवमा विसया ॥ ३३ ॥ जइ हुज्ज गुणो विसयाण कोइवि ता नहु जिणिंदचकिबला । दूरुज्झियविसयसुहा धम्मारामे तह रमंता ॥३४॥ ता एवं नाऊणं पसत्थपरमत्थदिट्ठिणो होउं । चयह मियं विसयसुहं अपरिमियं भयह पसमसुई ॥ ३५॥ जेणमकिलेससाणमलज्जणायं विवागसुंदायं । पसममुहमिमाहितो ताणंतेहिं संगुणियं ॥ ३६ ।। ता सकयत्था इत्थेव गाढपडिबद्धमाणसा धीरा । धन्ना तिच्चिय परमत्थसाहगा साहुणी निचं ॥ ३७॥ अणवरयमरणरणरणय| भीसणं पिच्छिऊण संसारं । चत्तुं विसं व विसमं विसयसुहं जेहिं दूरेणं ।। ३८ ॥ विसयासासंदाणिअचित्ता य अपत्तविसय सुक्खावि । हिंडंति | सैकंडरीउव्य तओ मओ घोरसंसारे ।। ३९ ।। संवेगगब्भसुपसत्थसत्थसवणं हि होइ धन्नाणं । सवणेऽवि धन्नतरगाण चेव तस्सासमापत्ती ॥ ४० ॥ जह तह संवेगरसो वन्निज्जइ तह तहेव धन्नाणं । भिज्जंति खित्तजलामम्मयामकुंभब्व हिययाई ॥ ४१ ॥ सारोऽविय एसुच्चिय ॥१२७|| For Private and Personal Use Only
SR No.020563
Book TitlePrakaran Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasinhsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1923
Total Pages133
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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