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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie करण टीप्पन मुच्चयः ५२॥ रुक्खाणं । निव्वाहववच्छेए जयणा फलमाइविकिणणे ॥ ३६ ॥ अहिंगरणाणं सगडाइयाण विक्कयकए विवज्जेमि । दंतनहसंखमुत्ताह | द्वादशव्रत लाइं न किणेमि आगरओ ॥ ३७ ॥ सक्कुरुडलोहलक्खामणसिलगुलियाइ गोयरे वज्जे । वाणिज्जे लहणिज्जे जयणा लद्धाण विक्किणणे || ॥ ३८ ॥ रसवाणिज्जे मज्जाइविक्यं तह चएमि वरिसंतो । चउण्हं चउप्पयाणं मोषणं केसवाणिज्जं ॥३९॥ वज्जे अइसावज्जं विसवाणिज्जं च दुवितिविहेणं । जंताण पीलणं गोरुयाण निल्लंछणीकरणं ॥ ४० ॥ तह दवदाणं भवदुहनिहाणमुज्झेमि दुविहतिविहेणं । सोसं जलासयाणं पोसं असईण वज्जेमि ।। ४१ ॥ एत्तो अणत्थदंडे नियमा पुण घायवइरिमरणाई। पहरद्धाओ परओ अणुबंधाओ न चिंतेमि ॥ ४२ ॥ मज्ज विसया य कसाय पमाय निद्दा कहा तह विरुद्धा । इय पंचहा पमाओ पुरावि मज्ज मए चत्तं ॥ ४३॥ अव्वाहांम सरीरे सुयामि रयणी मुहुत्त मज्झण्हे । विकहाकसायावसए चएमि जिणमंडवस्संतो ।। ४४ ॥ निदक्खिन्नमि चए सत्थग्गिहलाइयाण दाणं च। बज्जे पावुवएसं थूलं गोणाइदमणाई ॥ ४५ ॥ एयाई पंच अणुव्वयाई तिन्नि य गुणव्वयाई च । अणवज्जकज्जनिरया जावज्जीवं पवज्जामि ॥ ४६॥ सयले परिग्गहमि दिसिपरिमाणमि भोगउवभोगे। तहऽणत्थदंडविसए नियमा एगविहतिविहेणं ॥४७॥ मासे सामाइयाई चउरो सज्झायसयमहोरत्ते । दिवसंमि जोयणाई थलप्पहे होंति पन्नरस ॥ ४८ ॥ भोगत्थण्हाणनियमो कंडण दलणं च मोतु वावारं। सावज्जे वज्जेमी अहमि| माई पव्वेसु ॥४९॥ पोसहपणगं काहं चउपहरं वरिसमज्झयारंमि । मासतेऽवि गमिस्सं पोसहसालाई दो वारा ॥५०॥ जइ कहवि पमायवसा भंगो नियमेसु होज्ज एएसुं । सज्झाय सया पंच उ निव्वीयतवे व काहामि ॥५१॥ तह अतिहिसंविभागा चउरो वरिसंमि साहुसब्भावे । एगविहेगविहेण नियमा भोगव्वयाईसु ॥ ५२ ॥ सव्वसिपि जिणाणं कल्लाणदिणेसु मोतु गेलनं। काहं चिइवंदणमाइयाण निच्चं ॥५२॥ | चिय विसेसं ।। ५३ ।। मोतुं रायभिओगं गणाभिओगं बलाभिओगं च । देवाभिओग गुरुनिग्गहं च तह वित्तिकतारं ।। ५४ ॥ सयलाइयारसुद्धो For Private and Personal Use Only
SR No.020563
Book TitlePrakaran Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasinhsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1923
Total Pages133
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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