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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाषध विधिः प्रकरण दसहिं एगारहहि बारहहिं तेरहहि चउदहहि पनरहहि सोलहहि सतरहहि अट्ठारहहि इगुणवीसहि वीसहि एकवीसहि बावीसहि त्रेवीसहि चउवीसहि समुच्चयः पंचवीसहि छाबीसहि सत्तावीसही अट्ठावीसहि एगूणवीसहि सकइ?, भगवंतु महावीरु छम्मास उक्कोसयं तपिथा कउ, तुहुं जीव पांचमास सकहि ?, गुरुनिओगु न बहई, इत्यादि, यथा छमासु तथा भणितव्यं । एवंविध परि चउथउ त्रीजउ बीजउ मास भणेवु. ततः भगवंतु ।७०॥ महावीरु छम्मास उक्कोसई तपिंथा कउ तुहं जीव एकमासु सकहि ? गुरुनिओगु न वहई, एकि दिवसिऊणउ बिहिंदिवसेहिं त्रिहिं दिवसेहि ऊणउ सकहि ?, गुरुनिओगु न वहई, चउहु पंचहि छहि सातहि आठहि नवहि दसहि एगारहि बारहि तेरहि चउदहि, बत्रीसइमु सकहि?, गुरुनिओगु न वहई, त्रीसइमुं अट्ठाविसइ, छाविस इमुं चउविसइमु बावीसइमु वीसइमु अढारसमु सालसमु चउदसमु दुवालसमु दसमु अट्ठमु छट्ट चउत्थु आंबिलु निविउ पोरसिं सकहि ?, जे कांइडं पच्चक्खिस्सइ तहिं भणइ जे सकलं इति छम्मासियस्वरूपं ॥ छ ।। तो वेलाए उचियं जिणगुरुपायाण सुमरणं काउं । अह पंडुरे पभाए जाए पडिलेहणावसरे ।। ७९ ॥ वंदिय भणेइ संदिसह इच्छक्कारेण ४ करइ पडिलेहं । पोत्तं (पुब्बिं ) पोत्तिं पेहइ तलबच्छरणाइ पेहेउं ।। ८० ॥ परिहइ पेहइ नियंसणपि परिहेतु पेहए तंपि । ठवणागुरुं पम|| ज्जइ तन्निस्सेज्जाइयं पेहे ।। ८१ ।। ठवणगुरुं तो नवकारमाइणा ठवइ सम्ममुवउत्तो । बंदिय पोति पेहइ वंदित्ता संदिसावेमो ॥ ८२ ॥ | ओहिं बंदिय आहिं पडिलेइह तो कमेण वत्थाई । संथाराई पेहइ कट्ठासणमाइयं च तहा ।।८३॥ पोसहसालं तत्तो पमज्जए उद्धरेइ कज्जाइ । लहुयतरो अन्नो वा चक्खं दाउं परिठवेई ॥८४|| समुचियभूभागमि विराहियं कहइ सेससत्थेण । इरियं पडिक्कमेई करेइ सज्झायमाईयं ॥८५।। | अह उग्गयमि सूरे समुचियवेलाएँ सूरिवसहीए । वच्चइ पोसहसामाइयाण पारावणढाए ।। ८६ ॥ सूरिसमीवे गंतुं इरियं पडिकमिय भणइ Iल॥ ७० ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020563
Book TitlePrakaran Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasinhsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1923
Total Pages133
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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