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मकरण 18 मरमाणे य सुए तह बधू अन्नेवि पाणिणो नियई । ही परिसुन्नमणो कह ण जणो मच्चु विचिंतेइ? ॥ ९॥ ता अज्जवि आरंभा फुरंति निरव-18 धर्मोपदेश
ग्गहा जणाण मणे । जाव जममुग्गदंड चिंताविसयं न ते नेति ॥ १० ॥ होज्जा जस्स जमेणं सह मेत्ती जो वेज्ज अमरो वा । जुज्जेज्ज समुच्चयः
| तस्स वोत्तुं कल्लंमि इमं करिस्सामि ॥ ११ ॥ समजाइवओसवे मच्चुहए जंतुणो नियंतोऽवि । उबिज्जइ जं न जणो तं नूणं वज्जमयहियओ |॥ १२ ॥ पउरजराकेसरभासुरेण गुरुरोगकाणणगएणं । मच्चुहारिणा जणोऽयं समंतओ पाविओ तासं ॥ १३ ॥ तम्हा बुहो पभाए पडिबुद्धो निच्चमेव चिंतेज्जा । अज्ज विओगो रोगो मरणं वा किंपि नो पडिही (पतिष्यति )॥ १४ ॥ जह पिप्पलजललग्गो जलबिंदू पक्षणताडिओ न थिरो । तह जीवियं जियाणं अणेयवसणाउलं जाण ॥ १५ ॥ कत्थ गया रायाणो सगराई सबलवाहणा जेसिं । अज्जवि इमा मही किर | विओगसक्खित्तणं वहइ ।। १६ ॥ एवं सच्छंदचरे मच्चुम्मि चलेसु जोव्वणधणेसु । कत्थ इमो पडिबंधं परिणइपिच्छी जणो कुणइ ? ॥१७॥ इय तियसिंदसहस्सा चक्कहराईण संयसहस्साई। दीवब्व वाउणा पावियाइ कालेण निहणपयं ॥ १८ ॥ मच्चुमणागयकालेऽवि संपयं चिय उवट्ठियं जाण । जम्हा इमोऽवि कालो तव पुश्वमणागओ आसि ॥ १९ ।। जंपि कुणंतो जीवो जायइ सुहसंगओ तयं चेव । कज्जं समायरंतो | कालवसा दुक्खिओ होइ ।। २० ॥ गइपूरे पडियाणं दारूण समागमो जहा होइ । तत्तो पुणो विओगो इय जीवाणपि संसारे ॥ २१ ॥ ता | तप्पंति न हियए वीरा पत्तेऽवि पियविओगम्मि । एवंविहाच्चिय भवो किमिह अपुवं समुप्पण्णं? ॥ २२ ॥ अत्थमणतो दिवसो रविउदयंता य सव्वरी ( रात्रिः) होइ । अन्नोऽनंतरियाई सुहदुक्खाइपि जीवाणं ॥ २३ ॥ तह सोगे कीरते रूवं परिगलइ टलइ देहबलं । नासइ
नाणं मा माणसंमि सोगं जणा! कुणह ॥ २४ ॥ जह संपइ अन्नजणं मयमणुसोयसि तहा तुमंपि इमो। कयवइदिणावसाणे बंधुजणो सो- ॥ ३७ । 2 इही लग्यो ॥ २५ ॥ एत्तोच्चिय जे धीरा परम्मुहा होति सव्वसंगेसुं। जं संगमूलमेयं दुक्खं जीवाण संसारे । २६ ॥ तस्स न जसो न | 2
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