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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरण समुच्चयः । ३६ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जइ सो पुंजं अह कमवि सासणो होइ ॥ २२ ॥ छावलिसेसाऍ परं अवरं इगसमयसावसेसाए । उवसमियद्धाऍ अनंत नाम कलुसोदयवसाओ ।। २३ ।। होडं सासणदिट्ठी पच्छा मिच्छत्तमेव वेएइ । खीणंमि य पुंजदुए पुणोवि तं कुणइ सो एवं ॥ २४ ॥ नवरं तप्पडिरुवाइ तस्स तिन्निषि हवंति करणाई । उवसमियसम्मदिट्ठी उवसमसेढीऍ जो पडइ ॥ २५ ॥ सो कह मिच्छद्दिट्ठी हवेज्ज नियमा ससासणो होउं । मिच्छत्तं पडिवज्जइ सासणभावे अणेगंतो ।। २६ ।। चउपि अविरयाइस संते जं आउगाई चत्तारि । भणियाणि गुणेसु तहा खाइयसम्मत्तउप्पत्ती || २७ ॥ तो बद्धाउचउक्का चउरोऽवि य खायगं लहंंतित्ति । नज्जइ नो पडिसेहो विसेसओ दसई तत्थ ||२८|| सम्मत्तप्पायविहिं भव्वा भावंतगा इमं सम्मं । निम्महियमोहजोहा हवंति संसुद्धसम्मत्ता || २९ ॥ इति सम्यक्त्वोपायप्रकरणम् ॥ ॥ अथ धर्मोपदेशकुलकम्, आर्यावृत्तम् ।। २१ । सुभावणावसाओ सोयपिसाओ (शोकपिशाचः) सुहेण जस्स तया । वसमुवगओ स वीरो सुरगिरिधीरो चिरं जयउ || १ || सोयानलकलियाणं जियाण परिगलियमणविवेगाणं णवजलहरजलसरिसं उवएस किंपि जंपेमि ||२|| पिच्छह दिणराईओ आउयमे पुणोयं पुणो धितुं । जंति नईओ इव नो कहिंवि पुण पडिनियत्तंति ||३|| अणुसमयमयं देहो खज्जतो नज्जए (ज्ञायते) न केणावि । आमघडोव जलगओ दीसइ सहसा परं भिन्नो ||४|| सह सन्निहियावाओ काओ वसणाण संपयाड पयं । सवियोगा संयोगा सव्वमहो भंगुरसरूवं || ५ || जन्म दिने किर जीवो गभे संकमइ तद्दिणप्पभि । अखलियपयाणमेसो मच्चुसमीवे समल्लिया (आश्रीयते) || ६ || वज्झद्वाणाभिमुहं जह वज्झो जाइ नियपएहिं तहा। जमसन्निहाणमेसो जाइ जणो कालगणेणं || ७ || नियमत्थओवरिगयं जइ मच्चुं पेच्छई इमो लोगो तो नाहारेऽवि रुई करेज्ज किमकज्जकरणम्मि ? || ८ || 1 For Private and Personal Use Only धर्मोपदेशं कुलकम्. आयोट • ॥ ३६ ॥
SR No.020563
Book TitlePrakaran Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasinhsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1923
Total Pages133
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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