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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण समुचयः रोद्धार ॥५६॥ ACCASSES शा पणवीससयं तु सलिलाओ॥४६॥ अउणालीस सयाई बावीसहियाई वणमुहा दोवि। बावीस सहस्सा भइसाल तह दस य मेरुम्मि ॥४७॥ इय श्रीसिद्धान्त विजयनगनईणं वणमुहवणसंडमेरुसंखाणं । धरिऊण गुणह सोलस अडछगदुदुएगअंकेहिं ॥४८॥ जइया तेराहियाई बावीस सयाई विजयपरिमाणं । पढियइ तइया दुन्नि उ फेडिजहि गुणिय विजएसु ॥ ४९ ॥ बारसाहियाई जइया बावीस सयाई विजयविक्खंभो। पढियइ तइया चउद्दस खिप्पंति य गुणियविजएसु ॥५०॥ जओ पढंति-सत्तगुणे विणु सोलहहिं अट्ठहिं सागु हरेज्ज । लद्धउं विजयहं मेल उि तावहिं लक्खु करिज्ज ।। ५१ ॥ १००००० जंबूद्वीपः पूर्ववेदिकापश्चिमवेदिकामध्ये लक्षः ॥ दारं (७) ॥ माणुसखेत्ते गब्भयमाणुसमाणं अहलयं समए । भणियमिह दुगो अंको दुगुणिज्जइ तत्थ चत्तारि ॥ ५२ ॥ किल हुँति तेऽवि दुगुणा अट्ठ उ ते दुगुणिया य सोलसओ। एवं दुगुणा || दुगुणा कायव्वा छन्नवइ वारा ।। ५३ ॥ छन्नवइयंमि वारे इगूणतीसं हवंति इह अंका । तप्परिमाणाई माणुसाइं समयंमि भणियाई ।। ५४ ।। | अहवावि दुगो अंको वमिगज्जइ तत्थ हुंति चत्तारि (४)। एसो पढमो वग्गो तत्वग्गे सोलस हवंति(१६)॥५५॥ तव्वग्गे दुन्नि सया छप्पन्नऽहिया (२५६) तहा य तम्बग्गे । पणसहि सहस्साई छत्तीसहिया य पंच सया (६५५३६)॥५६।। तव्वग्गे पुण नेया पुव्वणुपुवीऍ एरिसा अंका। चउ दुन्नि नव य चउ नव छ सत्त दो नव य छच्चेव (४२९४९६७२९६)॥५४॥ एसो पंचमषग्गो एयस्सवि वग्गजाणणे अंका। पुव्वणुपुन्वीऍ इमे नेयव्वा बुद्धिमंतेहिं ॥५८॥ इग अट्ठ चउ चउ छग सत्त चउ चउर सुन्न सत्तेव । सिंग सत्त सुन्न नव पंच पंच इग छच्च इग उच्च ॥५९॥ (१८४४६७४४०७३७०९५५१६१६) एसो छट्टो वग्गो गुणियइ एएण पंचमो बग्गो । तत्थुप्पन्नं कितगुणियनीईकुसलेहि कीयेहिं ।। ६० ।। एगुप्मतीसं अंका पुम्बणुपुब्धीऍ हुँति-भावब्बा-सित नव दुमि दुन्नि य इग छग दुन्नि पंचैव ॥ ६१ ॥ इग चउर दुन्नि मा छच्च य चउ तिय तिय सत्त पंच नव तिनि । पंच चउ तिमि नव पंच सुन तिय तिमि छरुचेव ॥ ६२॥ छ ति त्ति सुं पण तिच प For Private and Personal Use Only
SR No.020563
Book TitlePrakaran Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasinhsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1923
Total Pages133
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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