Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie
प्रकरण समुच्चयः
संवेगरंगमाला४८
॥१२२॥
गिहकिषं । इय आउलस्स तुह हियय! वासरा जंति अकयत्था ।। ३४ । एयं करोमि इण्हिं एवं काऊण पुण इमं कल्ले । काहं को मण ! चिंतइ सुभिणिअतुल्लांमि जियलोए ॥ ३५ ॥ कत्थ गयं होसि गयं ? मण! काउं किं व होहिास कयत्थं । थिरयाइ गच्छ कुणसु अन गयस्संतो न य कयस्स ।। ३६ ॥चिंतासंताणपरं जइ चिट्ठसि चित्त ! निच्चकालम्मि । अच्चंतदुरुत्तारे ता रे.निवडसि दुहसमुद्दे ।। ३७ ॥ हा हिअय! किं न चिंतसि जभेसरियरूवचरणछाकिलो | वित्थारियपक्खदुगो तिलोअपउमस्स सारं च ॥३८॥पिवमाणोऽवि पइदिणं अतित्तिमं चेव अखलिअप्पसरो | सव्वजगज्जीवतुल्लो इह कीलइ कालभमरल्लो ॥३९॥ जुम्मं । पवसंतो सल्लंपिव पयईएवइदिणपि पीडकरा । जे कामकोहपमुहा अभितरसत्तुगो तुज्झ ॥ ४० ॥ निच्च देहगय च्चिय चित्त तदुच्छायणे न वंछाहि । बज्झारिसु पुण धावसि अहो महामोहमाहप्पं ॥४१॥ बज्झारिसु भित्तत्तं करसि सत्तुत्तणं सरीरीसु । जइ ता हे हियय! तुमं अइग साहसि सकज्जंपि ॥ ४२ ॥ महमहरकडाववागेसु हिअय! विसएमु मा कुणमु गिर्द्धि । विहिवसविजुज्जमाणा सुतिक्खदुक्खं इमे विति ॥ ४३ ॥ जइ पढमपि न रज्जास मुहमहुरवसाणविरस| विसएसुं । ता हियय! तुम पच्छावि लहसि न कयावि संतावं ॥ ४४ ॥ विसएसु विणा न सुहं विसयावि भवंति बहुकिलेसेहिं । ता तब्बि| मुहं चिंतसु सुहंतरं किंपि हे हिययः ॥ ४५ ॥ अह आवार्य विसयाण पिच्छसे जइ तहा विवागपि । ता चित्त' एत्तिय तुमं न कयावि विडं
बणं लहसि ॥ ४६॥ विसतुल्लबिरायवंछाई कीस हे हियय ! वहसि संताव? ) तं किंपि चिंतसु तुम होइ जओ निब्बुई परमा ।।४७|| तह ४ | विसयासाछिद्देण नाणजाणआ गुणा गलिस्संति । ता ठयसु तं तुम मूढ ! हियय तेसिं थिरत्तकए ।। ४८ ॥ विसयासावाउलीजणियरओ
गुंडियं कह न हियय! । सहजायकरणवग्गस्स लजसे भमिरमणिबद्धं ॥ ४९ ॥ कामरसजजरे रे तुमंमि मणकुंभ कम्ममलहरणं । भवसंतावलाखयकरं न तइ सव्वन्नुवयणजलं ॥ ५० ॥ अह ताप ठियं कहमवि किं नो पसमइ कसायदाहो ते ? । सरसोवि किं न भिजइ जो तुह
॥१२२॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133