Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 124
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण समुच्चयः ॥१२॥ R॥ १२१ ॥ विरलच्चिय इत्यादि । इय रयणसिंहसूरी वुत्तणं काऊ पाणमयमेयं । आणंदामयकुंडे विलसंतो निव्वुई लहइ ॥ १२२ ॥ गरगइति प्राकृते संवेगामृतपद्धतिः ४७॥ ॥ अथ संवेगरंगमालाप्रकरणम् ४८ ॥ |माला ४८ भावमि समाही पुण एगंतणेव चित्तविजयाओ । चित्तविजओ अ सम्भं रागहोसाण परिहरणा ॥१॥ तप्परिहारो असुहेयरेसु सद्दाइएसु विसएस । पत्तेसऽवि चित्तेसु उवि अभिसंगपओससंचागो ॥ २ ॥ तम्हा कमग्गलग्गं विवेगर उजइ चडुलतुरगं व । सुदृढं संजमिऊणं माणसpil मुस्सिंखलपयारं ॥ ३ ॥ जइयव्वं सवेगऽवि सुहत्थिणा सुपुरिसेण निच्चपि । सम्मं समाहिकरणे विसेसओ धम्मनिरएणं ॥ ४ ॥ असमाहीओ दुक्खं दुहिणो उण अट्टमेव न उ धम्मो । धम्मविहीणस्स पुणो दूरे आराहणामग्गो ॥ ५ ॥ मुत्तं समाहिमेवं असेससेसंगसंगयावि जओ । सव्वा सुहसामग्गी दावग्गी चेव पुरिसस्त ॥ ६ ॥ जं वा तं वाऽसिस्सवि जेण व केणावि पाउअस्सावि। जत्थ व कत्थ व वासिस्स जिमि कंमिवि अव काले ॥७॥ जं वा तं वा विसमं समं व संपावियस्स य अवत्यं । परममुहं चिय निच्चं समाहिमंतस्स पुण नियमा M॥८॥ सुक्खं व समाहिकयं अभयं अकिलेसजं अलज्जणिअं । परिणामसुंदर सवसमक्खयं निरुवममपावं ॥ ९॥ मजत्तमित्तएणवि सुस माहिठियस्स धीरपुरिसस्स । जं सो नरमइ कस्सवि न यावि से रमई कोऽवि परो ॥१०॥ जे सुसम हिंमि रया विरया नीसेसपावठाणाओ। सुहिसयणधण इविणासदसणेऽबि हु न तेति मणो ॥ ११ ॥ अचलव्व चलइ थेवपि न संजमाओ ममत्तचत्ताणं । सुसमाहिनिही भयवं४ रायरिसिनमीह दिटुंतो ॥ १२ ॥ समाधिद्वारम् ।। एसो अ समाही चित्तविजयजणिउवि नहु थिरो होइ । जइ नियमणं चरतं वारं वारं न* | सासेइ ॥ १३ ॥ पोअवहणं व चित्तं चिंतासागरगयं परिभमंतं । अन्नाणपवणपल्लियविसुत्तियावीइहम्मतं ॥ १४॥ पडियं मोहावत्ते कह ४ ॥१२॥ लगिज्जा समाहिवरमग्गे । जइ जोइज्ज न सम्म अणुसासणकन्नधारो से? ॥ १५ ॥ दोसाण नासणं गुणपयासणं मोणसासणं इत्तो । चित्तस्स For Private and Personal Use Only

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