Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 130
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरण समुच्चयः ॥ १२६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भयंमि | मरणस्सवि देइ उरं अपत्थणिज्जंपि पत्थेइ ॥ ५ ॥ लंघति समुहं भीसणंपि साहंति घोरवेयालं । किं बहुणा ? विसयकए पविसंति जमाणणेवि नरा || ६ || गरुयंपिहु परिवज्जिय कज्जं विसयाउरो मुहुत्तेणं । तं कुणइ जेण हासो जावज्जीवं जए होइ ||७|| ववसइ पिउणोवि वह बंधुं सत्तुं व मन्नई मूढो । होइ अनिद्धकज्जो विसयगहपरिंगओ पुरिसो || ८ || विसया अणत्थपंथो विसया माहप्पलंपगा पावा । विसया लहुत्तपयडी अकंडविहुरकया विसया ॥ ९ ॥ विसया अवमाणपयं विसया मालिन्नकारणमवग्गं । विसया दुहिकहेऊ इहपरभवबाहगा विसया ||१०|| खलइ मणो गइ मई परिहायइ पोरिसंपि पुरिसस्त । विसयासत्तस्स गुरुव:ट्ठमिट्ठपि वीसरइ || ११|| सा जाई तं च कुलं सा कित्ती भुवणभूसणपयंडा । जइ ता विसयपसत्ती ता फुसिआ वामपाएण || १२ || जिणवयणदक्खचक्खुवि पिक्खए पिक्खणिज्जभावे ता | जा न ज्जवि विसयपसत्तिलक्खगा नीलिमा न भवे ।। १३ || धम्माभिप्पायपईवओ मणोमंदिरांम ता फुरइ । जावज्जवि विसयपसत्तिलक्खणा नेइ बाऊली || १४ || सव्वन्नुवयणपोओ ता भवजलहिउत्तारणसमत्थो । विसयप्पसंगपवणो जाव वि नावकूलेइ || १५ || विमलंपि जीवसंखे पइट्ठियं सहइ ताव सीलजलं । विसयाभिनिवेसासुइसंगा कलुसिज्जइ न जाव ॥ १६ ॥ निम्मलविवेयरयणं तावज्जवि दिप्पए, पयासे वा । विसयप्पसंगपंसू जावज्जवि नावगुंडेइ ॥ १७ ॥ धम्मं का मसत्ता विसयपसत्ता निहीणतमसत्ता । अत्ताणं अंशाण न मुणंति हियं च न कुणति ।। १८ ।। सन्नाणमणिपुरतं पवित्तचारित्तरयणचंचइयं । ओ ! विसयचंडचरडा लुंटती जीवभंडारं ।। १९ ।। सा तुंगिमा स तेओ तं विनाणं गुणावि ते चैव । सव्वं खणेण नहं धिरत्थु विसयाभिलासस्स ॥ २० ॥ हद्धी अलद्वपुव्वं जिणवयणरसायणंपि घंटेडं । विसयमहाहालाहल हल्लोहलिएहिं उग्गिलियं ।। २१ ।। सुचारए अप्पाणं पावा पावासवेसु अप्पाणं । ( आप्यायन्तम् ) अप्पानं अप्पाणं ( अप्राणं ) विसयाण कए कयत्थंति ।। २२ ।। छुहियं सीहं कुविअं च पन्नगं सुबहुमच्छियं च महुं । आहणइ सो णणज्जो जो विसएसुं For Private and Personal Use Only संवेगरंगमाला ४८ ॥१२६॥

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