Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
| मनोनिग्रह कुलकम्४२
॥१०६॥
तत्तं विभावसु ॥ ३२ ॥ असुईए अट्ठीणं सोणियकिमिजालपूईमंसाणं । नामपि चिंतियं खलु कलमलयं कुणइ हिययम्मि ॥ ३३ ॥ पच्चक्खमिण पेच्छह वन्नियमित्तं तु जइ न पत्तियह । एक्कारससोएहिं नीहरमाणं सया चेव ॥ ३४ ॥ इय तत्तभावणगओ सयावि मणनिग्गई करेमाणो । पच्चक्खरक्खसीण नारीण न गोयरो होसि ॥३५॥ जिणवयणभाविएणं सुत्तत्थसमग्गपारगेणंपि । भवभमणभीरुगेणं सुहसंसरिंग पवन्नेणं ॥३६॥ अवगयपरमत्थेणं निच्चं सुहझाणझायगेण मए । कहवि गयं चिय अपहे मणमेयं ही कह दिटुं? ॥३७॥ जह लद्धलक्खचोरो हरमाणो नेव नज्जए दविणं । तह विगयं चिय दीसइ मणंपि एयं कहं होमि? ।। ३८ ।। हु दुक्करेऽवि मग्गे विमग्गि एत्थेव अत्थि हूवाओ। खणमित्तपि न दिज्जइ मणपसरो जं पमायस्स ॥ ३९ ॥ परमत्थं जाणतो दंसियमग्गे सयावि वटुंतो । जइ खलइ कोइ कहमवि सरणं भवियब्वया तत्थ ॥ ४० ॥ कित्तियमित्तं बहुसो मणनिग्गहकारणं पयंपेमि । धन्नाण एत्तियंपिहु जायइ चिंतामणिसमाणं ॥४१॥ गुरुकम्माणं एयं पुणरवि जाणावयंपि किर कहवि । पत्तंपि वरनिहाणं वियलियपुनस्स व न ठाइ ॥ ४२ ॥ पइदियहं जइ एवं झाएमी तुह जिणिंद ! आणाए । तो जयथुयपायपउम! नाहं बीहेमि भवरन्ने ॥ ४३ ॥ सद्धासंवेगजुओ मणनिग्गहभावणं इमं जीवो। झायंतो निम्विग्धं कल्लाणपरंपरं लहइ ॥ ४४ ॥ इति मनोनिग्रहभावनाकुककम् समाप्तम् ४२ ॥ अथ धर्माचार्यबहुमानप्रकरणम् ४३ ॥
नमिउं गुरुपयपउमं धम्मायरियस्स निययसीसेहिं । जह बहुमाणो जुज्जइ काउमहं तह पयंपेभि ॥ १॥ गुरुणो नाणाइजुया महणिज्जा सयलभुवणमामि । किं पुण नियसीसाणं आसन्नुवयारहेऊहिं ? ॥ २ ॥ गरुयगुणेहिं सीसो अहिओ गुरुणो हविज्ज जइ कहवि । तहविहु आणा सीसे सीसेहिं तस्स धरियव्वा ॥ ३ ॥ जइ कुणइ उग्गदंडं रूसइ लहुएवि विणयभंगंमि । चोयइ फरुसगिराए ताडइ दंडेण जइ कहवि ।। ४ ।। अप्पसुएवि सुहेसी हवइ मणागं पमायसीलोऽवि । तहवि हु सो सांसेहिं पूइज्जइ देवयं व गुरू ॥ ५ ॥ जुम्मं । सोच्चिय
॥१०६॥
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