Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण
HAR
समुचयः
धर्माचार्य
बहुमान कुलकम्४३
॥१०७॥
| सीसो सीसो जो नाउं इंगियं गुरुजणस्स | वट्टइ कज्जम्मि सया सेसो भिच्चे वयणकारी ॥ ६ ॥ जस्स गुरुम्मि न भत्ती निवसइ हिययमि वज्जरहव्व । किं तस्स जीविएणं ? विडंबणामेत्तरूवेणं ॥ ७॥ पच्चक्खमह परोक्खं अवन्नवार्य गुरूण जो कुज्जा । जम्मतरेऽवि दुलहं जिजिंदवयणं पुणो तस्स ॥८॥ जा काओ रिद्धीओ हवंति सीसाण एत्थ संसारे । गुरुभत्तिपायवाओ पुप्फसमाओ फुडं ताओ ॥९॥ जलपाणदायगस्लावि उवयारो नेव तीरए काउं । किं पुण भवन्नवाओ जो तारइ तस्स सुहगुरुणो? ॥ १०॥ गुरुपायरंजणत्थं जो सीसो भणइ वयणमेत्तणं । मह जीवियपि एयं जं भत्ती तुम्ह पयमूले ।। ११॥ एयं कहं कहंतो न सरइ मूढो इमंपि दिद्वंतं । साहेइ अंगणं चिय घरस्स आभितरं लच्छि॥ १२॥ एस च्चिय परमकला एसो धम्मो इमं परं तत्तं । गुरुमाणसमणुकूलं जं किज्जइ सीसवग्गेणं ॥१३॥ जुत्तं चिय गुरुवयणं अहव अजुत्तं च होज्ज दइवाओ । तहविहु एयं तित्थं जं हुज्जा तंपि कल्लाणं ॥ १४ ॥ किं ताए रिद्धीए चोरस्स व वज्झमंडणसमाए ? । गुरुयणमणं विराहिय जं सीसा कहवि बछति ।। १५॥ कंडूयणनिट्ठीवणऊसासपमोक्खमइलहुयकज्ज । बहुवेलाए पुच्छिय अन्नं पुच्छेज्ज पत्तेयं ॥ १६॥ मा पुण एर्ग पुच्छिय कुज्जा दो तिन्नि अवरकिच्चाई । लहुएमुवि कज्जेसुं एसा मेरा सुसाहूणं ॥१७॥ काउं गुरुंपि | कज्जं न कहंति य पुच्छियावि गोविति । जे उण एरिसचारिया गुरुकुलवासेण किं ताणं? ॥१८॥ जोग्गाजोग्गसरूवं नाउं केणावि कारणवसे
। सम्माणाइविसेसं गुरुणो दसति सीसाणं ॥१९॥ एसो सयावि मग्गो एगसहावा न हुंति जं सीसा । इय जाणिय परमत्थं गुरुंमि खओ | न कायब्बो ॥२०॥ मा चिंतह पुण एवं किंपि विसेसं न पेच्छिमो अम्हे । रत्ता मूढा गुरुणो असमत्था एत्थ किं कुणिमो? ॥२१॥रयणपरिक्खगमेगं मुत्तुं समकतिवन्नरयणाणं | किं जाणंति विसेसं ? मिलिया सव्वेऽवि गामिल्ला? ॥ २२ ॥ एयं चिय जाणमाणा ते सीसा साहयंति परलोयं । अवरे उयरं भरिउं कालं वोलिंति महिवलए ॥२३॥ एयपिहु मा जंपह गुरुणो दीसति तारिसा नेव । जे मज्झत्था होउं
म
॥१०७॥
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