Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 114
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण समुच्चयः उपदेश कुलकं ४५ ॥११०॥ RECARRRRRC ॥ ८ ॥ निसुणतो जिणधम्मं हुंकारं देसि वायरहिउल्व । थेवपि जन कज्जे वट्टसि तं अहह मूढत्तं ॥ ९॥ पेच्छसि तुच्छे भोए नो पाससि नरयगरुयदुक्खाई । जीव! बिरालोव्व तुम पेच्छसि दुद्धं न उण लाहि ॥ १०॥ अन्नभवे विहुरमणो कंपतो दुस्सहाय वेयणए । हा हा करुणसरेणं पच्छा बहुयं विझूरिहिसि ॥ ११ ॥ सव्वोऽवि तुहुवएसो दिन्नो तत्तंसि जाइ जह बिंदू । पेरिजतो सययं नहु चेयसि कीस अप्पाणं? ॥ १२ ॥ दूरे सहणं दंसणमच्छउ नरउन्भवाए वियणाए । सुव्वंतीएवि जिए उकंपो जायए गरुओ ॥ १३ ॥ सावि तए सहियव्या कहं तए हियय ! कहमु सम्भावं । कंटेणवि परिभग्गे जं कंदतो तहा दिट्ठो ॥ १४ ॥ जइ वियरसि परपीडं नाऊणवि दुक्खकारणं | विउलं | तं जाणिय पाणहरं हा परि जसि विसं मूढ ! ॥ १५॥ इह काउगं पावं संपत्तो घोरणरयठाणेपुं। नो दणिं विलवंतो छुट्टसि || चोरो इव सलोत्तो ॥ १६ ॥ भणसि मुहेणं सव्वं तत्तं अइसुंदरं तुम जीव ! । जंन कुणसि काऊणं तं मन्ने गायकम्मोऽसि ॥ १७॥ जाव य इंदियगामो वट्टइ आणाएँ तुज्झ रे जीव! । ता सुमरसु अप्पाणं मा तम्मसु अहव पच्छा उ ॥ १८ ॥ रे गिहकज्जेसु सया दक्खो छेओ अईव सूरोऽसि | भविरं कायरदेहो सुत्तोऽविय सुणसि गुरुवयणं ॥ १९ ॥ किं चिंताए किं पलविएण किं तुज्झ जीव ! रुन्नण ? । नो कत्थइ कल्लाणं धम्माउ विगा तुम लहसि ॥ २० ॥ देहमिणं गेहंपिव जं गहियं भाडएण पणादियह । झरइ सया सव्वत्थवि पडिपुन्नं असुइधाऊहिं ॥ २१ ॥ निच्चं अपोसियं पुण जं मेल्लइ झत्ति निययमज्जायं । तत्थवि का तुज्झ रई ? रे जीव ! निल्लक्खणसहाव ! ॥२२॥ जं जं भणामि अयं सयलंपि बहिं पलाइ तं तुझ | भरियघडयस्स उवारं जह खिवियं पाणियं किंपि ॥ २३ ॥ इय जीय ! मुणसि परलोयसंसारे तं विडंबणं सयलं | मन्ने जं न विरज्जास तं वंछास नरयदुहाई।। २४ ।। वयणेणं भणिउमिणं तरामि नो सिक्खिउं चवेडाए । | सम्मं विभाविऊणं जं जुत्तं तं करेज्जासु ॥ २५ ॥ एवं उवएसकुलं जो पढइ सुणेइ अहव सद्धाए । सो उवमिज्जइ तेए दुहणेण रयणासिंहे ॥११॥ For Private and Personal Use Only

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