Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 112
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie प्रकरण समुच्चयः पर्यन्ताराधना ४४ ॥१०८॥ जहाठियवत्थु वियारंति ॥ २४ ॥ समयाणुसारिणो जे गुरुणो ते गोयम व सेवेन्जा । मा चिंतह कुविकप्पं जइ इच्छह साहिउं मोक्खं ॥२५॥ | वकजडा अह सीसा केविहु चिंतति किंपि अघडतं । तहविहु नियकम्माणं दोस देज्जा नहु गुरूणं ॥ २६॥ चकित्तं इंदत्तं गणहरअरहंतपमुहचारुपयं । मणवंछियमवरंपिहु जायइ गुरुभात्तिजुत्ताणं ॥२७॥ आराहणाओ गुरुणो अवरं नहु किंपि अत्थि इह अर्मियं । तस्स य. विराहणा ओ बीयं हालाहलं नत्थि ॥ २८ ॥ एयंपिहु सोऊणं गुरुभत्ती नेव निम्मला जस्स । भवियव्वया पमाणं किं भणिमो तस्स पुण अन्नं १२९॥ | साहूण साहूणीणं सावयसङ्गीण एस उवएसो । दुण्हं लोगाण हिओ भणिओ संखवओ एत्थ ॥ ३०॥ परलोयलालसेणं किं वा इहलोयमत्तसरणेणं । हियएण अहव रोहा जह तह वा इत्थ सांसेणं ॥ ३१ ॥ जेण न अप्पा ठविओ नियगुरुमणपंकयम्मि भमरोव्व । किं तस्स जीविए णं? जम्मेणं अहव दिक्खाए ? ॥ ३२ ॥ जुम्म । जुत्ताजुत्तवियारो गुरुआणाए न जुज्जए काउं। दइवाओ मंगुलं पुण जइ हुज्जा तंपि कल्लाण ४॥३३॥ सिरिधम्मसूरिपहुणो निम्मलकित्तीऍ भरियभुवणस्स । सिरिरयणसिंहसूरी सीसो एवं पयंपेइ ॥३४॥ इति ।। गुरुबहुमानकुलकम् ४३ ।। ॥अथ पर्यन्ताराधना ४४ ॥ | . सुहियो वा दुहिओ वा थोवं जीवित्तु अहव बहु लोए । मा सो करेउ खयं जइ पावइ पडियं मरणं ॥ १॥ जे संसारे पुव्वं मणुयभवा ४ पाविया तए ऽगंता । सल्वाणवि ताण अहो एसोच्चिय लहइ तिलयत्तं ॥ २ ॥ जेणसा सामग्गी पत्ता तुमए अर्णतसुहजणणी । ता धीरत्तं काउं ठावसु चंदे नियं नाम ॥ ३॥ परहत्थगएण तए पुबि रे जीव ! किं न जं सहियं । संपइ सुहडो होउं किं न हु गिण्हेसि जयपडाय? ॥ ४ ॥ जइ पीडाए तुझ विहुरतं अस्थि जीव! अइगरुयं । तहविहु कन्नं दाउं एग चिय सुणह मह वयणं ।। ५ ।। अइकडुओऽविहु लिंबो द अच्छी निमिलित्तु साहसं काउं । खणमेग छुटिजइ जह दीहं जीवियत्थाहिं ॥ ६ ॥ तह सुहभावो होउं परमिटिं सरसु कुणसु धीरत्तं । चइडं ॥१०८॥ For Private and Personal Use Only

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