Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
॥१०३॥
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भणसु जं मुसिओ । जाणिय चोरेहिं तुमं जो गहिओ तहन किं भणिमो ? ॥ १० ॥ परजगरंजणहेउ भणेसि अन्नं करोस अवरं च । तत्थ पयर्ड कवर्ड हा दीसह तुज्झ सव्वत्थ ॥ ११ ॥ लहुएवि धम्मकज्जे तइया साहूहिं चोइओ संतो | असमत्यो भणिय ठिओ अहुणा सोएासे किं तम्हा ? ॥ १२ ॥ चिराई पासइ न कोई हवउ जह तह वऽणुद्वाणं । इय मूढ ! लोयरंजय कुगमाणो किं न लज्जेसि ? ॥ १३ ॥ गुणिएसु मच्छरत्तं वहास पओसं च निग्गुणजणम्मि | पररिद्धीए तम्मासे परपरिवार्य तह करोसि || १४ || निच्चं पमायसीलो सुहाभिलासी यचइओ कुवासे । सोहग्गमंजरीयं अप्पंमि तहावि वग्गनगो ॥ १५ ॥ इय सयलं जाणेमी काउं न तरामि भगसि गुरुकम्मो | कंठमण सोसणेणं धिरत्थु तुह मूढ ! नाणे || १६ || अज्जं करोमि कल्लं करोमि धम्मुज्जमं तुमं भणासि । इय निष्फलवद्दाहिं समाप्पिही जम्मपरिवाडी || १७ || | पेच्छंतो पच्चक्खं जियलोयं जीव ! इंदयालसमं । ठगिओ इव धुत्तेहिं हा !! चेयति किं ! न अप्पाणं ? ॥ १८ ॥ सउणाणं जह रुक्खे पछियाणं जह य देसियकुडीरे । मेलावगो अणिच्चो मणुयाणं तह कुडुंब्रेमि ॥ १९ ॥ अजवि किंपि न नटुं जइ चेयासे हंदि किंपि अप्पाणं । विलवणात्तठिओ पुण अरन्नरुन्नं समायर से || २० || सुगहाई तिरियाबिहु भोए भुंजंति भोयणं तह य । एरिभचरिय नराणं को संखं कुणइ पुरिसेसुं ? ||२१|| जे एवं जंपती पमायवेरिं छलेह भो लोया ! । तेवि छालज्जति जया तथा अहं कस्स किं काहूं ? || २२ || बाहुल्लेणं लोओ | पेच्छइ नयणेहिं नेव हियएगं । तेणं विसएहिंतो कहं विरत्तो कुगड धम्मं ? ||२३|| एयाइ दुम्मईए माहप्पं भंजिऊग रे जीव ! । धम्मा रामे रम्मे उज्जम दक्खाफलं चरसु || २४ || गुरुआ गाए सम्मं परोवयारम्भ संजमे नाणे । खाओवसमियभावे सयावि एएसु उज्जमसु ||२५|| एयं खु धम्मरज्जं कहमवि लडूण गणिय दियहाई । सपरोवयारहीणो स्वर्गपि मा सुयह वीसत्थो || २६ || अह एत्तियभणिएणवि होइ अहनाण को गुणो भगसु ? । असुई मुहूग किमी अन्नत्थ रई कह करेइ ? || २७ || एवं मुत्तूग भवं पत्तो संसार सायरे घोरे । को
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आत्महित कुलकम् ४१
॥१०३॥

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