Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
शुध्धधर्म ग्योपदेश
॥२४॥
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सबुद्धिजोगेण तो न होही, पोयणे कत्थुइ विप्पलंभो ॥२४॥ वुड्डाणुगामित्तणो णराणं, बुद्धीउ सुद्धा समुभवंति । वयं च सत्थं च । समेञ्च बुड़े, तो तुमं धीर! सया सरेज्जा ॥२५॥ अप्पाणमच्चंतविणीयभावं, ठवेज्ज धम्मो विण्यप्पहाणो। तहा ण कल्लाणमगुणमएणो, जहा विणीओ विणयादुवेइ ।। २६ ॥ कयन्नुया नाम गुणाण मूलं, दोसाण मूलं च कयप्पणासो। थेवपि मन्नेज्ज परोक्यारं, न सम्बहा निण्वमायरेज्जा ।। १७ । जम्मं च जीयं च धणं च चारु, तं चेव चिंतेज्ज सलक्खणं च । जं मे परत्थंमि समुज्जएक्कचित्तस्स साहेज्ज करं वेज्ज ॥ २८ ॥ विचिंतिऊणं निउणं वेज्जा, सव्वमि कब्जे लहु लद्धलक्खो। एवं चमुक्कारकराइ होति, किलाकिलेसेण पोयणाई ॥ २६ ॥ एए गुणे धीर! तुमं धरतो, गुणाण लोगुत्तरसंगयाणं । अप्पाणमप्पेज्ज जमन्नहा ते, तदुब्भवत्तेण न चेव होंति ॥ ३० ॥ अकारणा नत्थिह कज्जसिद्धी, न याणुवाएण वयंति तन्ना । उवायचं कारणसंपउत्तो, साहेइ कज्जाइ पयत्तवं च ॥ ३१ ॥ दुमंमि पुष्पं च फलं च पच्छा, जहा कमेणेव रसप्पसिद्धी । भब्वे तहा लोयगुणा तो य, लोगुत्तरा सिद्धिसुहं च तत्तो ॥ ३२ ॥ जहुच्छुकंडाण रसा सहावा, सीओ सिसिद्धो महुरो य होइ । एमेव एए सुकुलुग्गयाणं, भवंति पाएण गुणा जणाणं ।।३३।। जहारसो सो परिकम्मणाओ, गुडाइपज्जायपरंपराए । वरिसोलगुप्पत्तिरसावसाणं, लहेज्ज माहोज्जगुणं तहेव ॥ ३४ ॥ एयाणमेतेउवि गुणा गुरूणं, चरित्तवंताण बहुस्सुयाणं । संसग्गो पन्नवणागुणाओ, लोगुत्तरत्तेण परीणमंति ॥३५॥ लोगुत्तरे धम्मपहे पवन्ने, भवेज्जं सुप्तत्तविहिप्पहाणो । मोहंधयाराउ जियंमि लोए, न सत्थदीवादपरो पयासो ॥ ३६ ॥ जिणाणमाणाणुगमेण हीणो, धम्मो न धम्मत्तणमावहेइ। पेच्छाच्छणोकिण्णिविलोयणाणं, जहा सुचुक्खोवि न किंचिदेव ॥३७॥ तंबं जहा सिद्धरसाणुविद्धं, चएज्ज तंबत्तमसेसमेवं । भावस्सरूवं विसमंपि भव्वा !, प्राणापरीणामगुणाण जाण ।। ३८ ।। भव्वत्तमेत्थं किल तंबधाऊ, तंबत्तमक्खुद्दगुणाइभावो । आणारसो सुद्धगुरुप्पसिद्धो, सुवन्नभावो य जियाण मोक्खो ॥३६॥
२४ ।
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