Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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मकरण समुचयः
॥२७||
गममाई खणदिवणट्ठति ॥२०॥ उब्वणपवणपणोल्लियमहल्लहुलंतजलणजालाम । गेहम्मि व मन्नेज्जा खणपि ण खमो भवे वासो ॥२१॥ | | जह दुज्जणजणसंगो भंगफलो तह दुहावसाणो य। संसारे तह तियसत्तणाइसोक्खाण परिणामो ॥ २२ ॥ एकोऽत्थ पसत्थसमत्थवत्थु. हितोपदे | वित्थारफुरियमाहप्पो । पमुहावसाणसुंदरपरिणामो नवरि जिणधम्मो ॥२३॥ तेण अलद्धं लध्दु लद्धं परिपालिउं इमे बुड़े । परिपालियं च |४| कुलक परमं वुड्डी नेउं पयत्तेज्जा ॥ २४ ।। धन्ना भवदुक्खाणं तिक्खाण असंखलक्खसंखाएं। एयं विरेयणोसहमुवएसं केइ पावेंति ॥ २५ ॥ ।। इति प्रथमा हितोपदेशकुलकपञ्चविंशतिका ॥ १ ॥ अथ द्वितीया।
सुणेह भो भव्वजणा! भवित्ता, समं समाहाणपहाणचित्ता । असारसंसारविरागहेडं, धम्मोवएसं सहलं विहेउं ॥ १ ॥ पलित्तमंदिरागारो, सच्चमच्चंतभीसणो । एसो भवोयही तिक्खदुक्खलक्खऽवलक्खिो ॥२॥ अबंभं कारणं जम्मे, मरणस्स सरीरिणो । दुरंतो य || कयंतोऽवि,कयनासो समंतओ ॥३।। परं पराभवट्ठाणं, दालिदं रोदरूवयं । अभच्छायब्व लच्छीओ, तुच्छाओ पिच्छ निच्छियं ॥४॥ जलंमि || D मच्छलुत्थल्लतुल्ला य पियसंगमो । खणं पणट्ठिया कट्ठमणिट्ठाणं समागमा ॥५॥ तहावि छिन्नवंछोहछोहवंतो जिया इहं । जहाचिंतियमत्थाणं, IX संपत्ती पुण दुल्लहा ॥६॥धम्माभिप्पायावग्घस्स, कारओ वल्लहो जणो । पायं स भावगम्भेण, पेम्मेण य विवज्जिो . ॥७॥ मग्गमेत्तगवेसश्रिो, आवयाउ खणे खणे । पच्चासन्न निसन्नो य, निच्चं मच्चू सरीरिणं ॥८॥ जोव्वणं जीवियं रूवं, विज्जुविज्जोयचंचलं । ता इत्थं पडिबंधस्स, ठाणमत्थि न किंचिवि ॥ ९ ॥ जहा महासमुद्दमि, चुए चिंतामणी तहा। दुल्लभे माणुसे जम्मे, सुद्धजाईकुलन्निए ॥ १० ॥ तं लणं महाभागाः, रागादेगंतओ तओ। पमायस्स खमो(य)काउं, तुम्हाणं धम्म उज्जमो ॥११॥ तत्थ विच्छिन्नसंसारकंतारुत्तारकारओ ।* देवो जिणो पयत्तणं, सेवणिज्जो विहाणओ ॥ १२॥ तहा भीमभवुब्बिग्गा, सम्मं मग्गाणुगामिणो। निहाणं णाणमाईणं, वंदणिज्जा
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