Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
॥४२॥
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भवेहि सिद्धिसुहं ॥ ९ ॥ सयलभुवणेकबंधू अइसयसयरयणरोहणागरिंदो। देविंदचंदमहिओ धन्नाण जिणो हवइ देवो ।। १० । अथरत्नत्रर अमलियसीलसहावा उवलमजलखालयमयणवणदावा । परियाणियसब्भावा जे निम्मलफलिहसमभावा ॥ ११ ॥ चंदकिरणुज्जलाई
काकुलकम्
आर्या चिंतामणिकामधेणुसरिसाइं । पंचवि महव्वयाई सुविणेवि ण जेसि खलियाई ।। १२ ।। सेवियगुरुकुलवासा सम्मं विनायपवयणरहस्सा । | एसणगवेसणासु य जे दढमारूढपरिणामा ॥ १३ ॥ जे जीवियमरणेमुं लाभालाभेसु सुक्खदुखेसु । पूयापूयासु तहा नो विसममणा मणागपि ॥ १४ ॥ जे दूसमावसेणवि पायं पडिखलियसुयणसीलेन । दोसदुमवारिणा दारुण नो नियमाहप्पा ॥ १५ ॥ जोर्स सीलंगाई सुरनरसिवोक्खसाहणंगाई । नो पावियभंगाई कहिंचि हयमयणरंगाई ॥ १६ ॥ कारुनपुन्नहियया दक्खिन्नमहोयही महासत्ता । जे साहुगो तएच्चिय हवंति गुरुणो गाणिजणाणं ॥ १७ ॥ जेसिमकल्लागाइं निणं पत्ताई जोस सुहरिद्धी । सन्निहिया तेहि इमे गुरुणो परियाणिया होति ॥ १८ ॥ जत्थ दया जीवाणं जत्थ जिणो देवया गुरू गुणियो। सोच्चिय धम्मो धम्मियजणाण धम्मोत्ति पडिहाइ ॥१९॥ एगो तत्थ गिहणिं अन्नो साहूण तत्थ गिहिधम्मो । पूया जिणाण दाणं मुक्षिण निम्महियमोहाणं ॥ २० ॥ साहम्मियजणपीई गुरुजणसुस्सूसणं सुनिउणं च । दूरमणुव्वयसुद्धी बुद्धी सज्झायझाणेसु ॥ २१॥ नयसारो ववहारो उदारभावेण दीणदाणाई । कजाणं च क्विज्जणमइसावजाण दूरणं ॥ २२ ॥ पाणिवहाईयाणं पावट्ठाणाण जावजीवपि । जं सव्वहा विवज्जणमेसो धम्मो जईण पुणो !॥ २३ ॥ एसो देवो एसो गुरू य धम्मो य एस नउ अन्नो । इय पडिवत्तिपराणं सम्मत्तं होइ सत्ताणं ॥ २४ ॥ सम्मत्ता| उ ण अन्नो बंधू व पिया व होज्ज जीवाणं । नो मित्तं न निहाणं ण पिहाणं नरयदारस्स ।। २५ ॥ एगम्मिवि सम्मत्ते लद्धे लभंति
॥४२॥ सयलसोक्खाई। चिंतामणिम्मि एगंमि चेव जह चिंतियफलाई ।। २६ ।। इह जीवियमरणाणं अमयविसाणं जह किल विरोहो ।
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