Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 79
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरण समुच्चयः ॥ ७५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | चभागो दुयलक्खे सहस्सद्धं ॥ ५३ ॥ ससिसूरग्गहनक्खत्ततार पंचविहजो इस सुराणं । तद्देवीण य जेट्ठ आउं पढमदुपंतीसु ।। ५४ ॥ तह तइयचउत्थियपंतियासु तेसिंपि देवदेवीणं । आउ जहन्नं नेयं तिसु एगिचाऍ गाहाए || ५५ || १८ | अणदंसनपुंसित्थी वेय छक्कं च पुरिसवेयं च । दो दो एगंतरिए सरिसे सरिसं उवसमेइ ॥ ५६ || १९| अणमिच्छमीससम्मं अट्ठ नपुंसित्थिवेयछकं च । पुमवेयं च खवेई कोहाईए य संजल || ५७ ||२०| एर्गिदियपंचविहा पत्तेयं सुहुमबायरा नेया । बायर दिट्ठीगम्मा सुहुमा पुण सव्वलोयाम्म || ५८ || केवलिगम्मा तत्थ य वणस्सई बायरा दुविहभेया । पत्तेया य अणंता सुहुमा पुणऽणतया चेव ॥ ५९ ॥ इगभेया अस्संववहारयसन्ना ( असंव्यवहारराशिः ) उते विणिद्दिट्ठा । यि गोलनिगोया हुंती सुत्ते जओ भणियं ॥ ६० ॥ गोला य असंखेज्जा असंखनिग्गोय गोलओ भणिओ । एक्केकंम | निगोए अणसंजीवा मुण्णेयव्वा ॥ ६१ ॥ गोलनिगोयट्ठवणा पन्नत्तीओ विसेसओ नेया । भूजलतेऊपवणा चडविह सुहुमा तहावने || ६२ ॥ पुव्वत्तबायरा पणविहा उ सब्वेऽवि नवविहा एए । संववहारियसत्ता निद्दिट्ठा समयकेऊहिं ।। ६३ ।। २१ । अविभागपलिच्छेययवग्गणफडेहिं ( स्पर्धकः) णंतगुणिएाई। एगं संजमठाणं अनंतचारित्तपज्जायं ।। ६४ ।। संजमठाणेहिं असंखएहिं इह भवइ कंडगं ( कंडक: ) एगं । अस्संखकंडगेहिं जायइ छट्टाणगं एगं ॥ ६५ ॥ छट्टाणएहिं अस्संखएहिं इह होइ संजमस्सेढी । एत्थ य कंडगठवणा बिंदुगबितिचउरपणगेहिं ॥ ६६ ॥ किज्जइ तत्थ उ सुन्नाण हुंति सड्डा उ वारस सहस्सा । पणवीस सया एक्काण हुंति सयपंच य दुगाणं ॥ ६७ ॥ सयमेगं च तिगाणं बिसई चउगा उ पंचग चठकं । सव्वंकमीलणम्मी एगं छट्टागं होइ ॥ ६८ ।। २२ । गंठित्ति सुदुब्भओ कक्खड ( कर्कश : ) दृढरूढगूढगंठिब्व । जीवस्स कम्मजणिओ घणरागद्दोसपरिणामो ॥ ६९ ॥ ठिइकंडगाण For Private and Personal Use Only पदार्थस्था पना प्रक. ।। ७५ ।।

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