Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
॥७६॥
है उवरि बहुइ सहस्सा अइच्छिया जाहे । संखेज्जइमे भागे सेसे अनियाट्टअद्धाए॥ ७० ॥ आढवइ (आरभते ) अंतरं सो अंतमु- पदार्थस्था | हुत्तं तु हेढ उवरी य। तं पढमट्टिइ जाणसु आईए मिच्छदलियस्स ॥७१॥ अंतमुहुत्ता उवरिं किंचूणमुहुत्तगेण सरिसाओ। मिच्छत्तस्स
पना प्रक. ठिईओ उक्किरइ तमंतरं भणियं ॥७२॥ गंठिभेयस्सरूवं भूमीए ठाविउं अहपवत्तं । अहवाऽनियट्टिअंतरकरणाईयं मुणेयव्वं ।। ७३ ॥२३। पुर्व| गाईयाणं अट्ठावीसाए एत्थ ठाणाणं। अडवीस पंतियाहि विन्नेया अंकठवणाओ॥ ७४ ॥ अडवसिठाण उवरिं चउनउयं एत्थ होइ ठाणसयं ।
सुन्नाणं चालसएण अंकचउप्पन्नगणणाए॥७५॥२४। संखेज्जमसंखेज्ज अणंतयं तिविहमेत्थ संखाणं । संखेज्जं पुण तिविहं जहन्नयं मज्झिमुक्कोस || |॥७६।। अस्संखेज्जं नवहा अणंतयं नवविहं तु पंतीहिं । इगवीसाहिं इगवीसठाणगा इह ठवेयव्वा ॥७७॥२५। अणावायमसंलोए,(जीवोत्पत्तिर्यत्र न || BI स्थाने) परस्सणुवघाइए । समे अज्युसिरे यावि, अचिरकालकयाम्मि य।।७८॥ विच्छिन्ने दूरमोगाढे,नासन्ने बिलवज्जिए। तसपाणबीयरहिए,उच्चाराईणि वोसिरे ॥७९॥ दस पणयाला वीस सयं च दुन्नि य सुत्तरा चेव । दुन्नि सया यावन्ना दसुत्तरा दुन्नि य सया य॥८७।। वीससयं पणयाला दसं च इको य भंगया सव्वे । सहसो तेवीसहिओ इगखेवे सहसु चउवीसो।। ८१ ॥ उभयमुहं रासिद्गं हेडिल्लाणंतरेण भय पढमं । लद्धहरासिविहत्ते तस्सुवरिगुणं तु संजोगो।। ८२ ॥पयसमदुगमब्भासो माणं भंगाण एसमह रयणा। एगंतरिय लहुगुरु दुगुणा दुगुणा य वामासु ॥८३।।२६। अरिहंताई पंचप्पयाण उवरिं तु आणुव्वीणं । वीससयं तस्सक्खियपंतीहिं इह ठवेयव्वं ॥८४॥ पुव्वाणुपुव्वि हेट्ठा समया-||* भेएण कुरु जहाजेर्से । उवरिमतुल्लं पुरओ नसेज्ज पुव्वक्कमो सेसे ।। ८५॥ जम्मी किर पक्खित्ते पुणरवि सो चेव अंकविन्नासो। सो होइ समयमओ वज्जेयव्वो पयत्तेण ॥८६॥२७। दुविहतिविहा य छच्चेव भगया तह य हुंति तिन्नेव । तिन्नि दुगा इच्चाई नव चेव य भंगया हुंति।।८७।।
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