Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकरण समुच्चयः ॥ ७१ ॥ *xx. www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमणं । आलोयंतो वंदिय पोसहपारावणे पोत्तिं ॥ ८७ ॥ पेहइ वंदइ संदिसह इच्छाकारेण पोसहं अम्हे । पारावह भइ गुरू पुण काव्यं भद्दा ! ||८८ ॥ वंदिय भणेइ पोसहु पारहं गुरु भगइ भद्द! तुब्भेहिं । नो भो मोक्तव्वो इह आयरोत्ति ते उट्टिउं भणइ ।। ८९ ।। नवकारं तो बंदिय भूमितले निहिय जाणुकरकमलो । छउमत्थो इच्चाई वंदिय गाहं इमं भणइ ॥ ९० ॥ बंदणयाई दाउं तो गच्छ सावओ नियावासं । तत्थ य स कीयजोगेहिं पकुणइ गिहि गेहकिचाई ।। ९९ ।। जो किर अट्ठमिमाइसु सड्डो अहरत्तपोसह कुणइ । तस्सेसो किर | भणिओ दिणकिचविही इमो सव्वो ।। ९२ ।। सामान्यतः पौषधविधिः समाप्तः ॥ छ ॥ अथ उपधानपौषधे किंचिद्विशेषमाह जो पुण उवहाणस कारणा कुणइ पोसहं सड्रो । किंचि तव्विसए निच्चकिञ्चसेसं पवक्खामि || १ || तहिं उवहाणतवं किर काउमणो पूइऊण देवगुरू | सुहलग्गे चंद्रबले सुगुरुसमीवम्मि आगंतुं ।। २ ।। वंदिय भणेइ इच्छाकारेणं अम्हि कारवह भयवं । उवहाणतवं तो सुहगुरूवि अभिमंतिए वासे || ३ || तम्मत्थए त्रिवेई तो बंदिय पडिकमित्त सो इरियं । गिन्हइ पोसहसामाइयाई तह तत्थ असणयं ||४|| संदिस्सावइ पकरइ सज्झायं तेवियं चवीकम्मं (नेइयं च कीकम्म) । आलोयणाइ पुव्वकमेण दाऊण वंदणयं ||५|| तत्तो कट्ठासणयं संदिस्सावेइ वंदिउं भणइ । कट्ठासणए ठायहं वंदित्ता पुणरवि भणेइ || ६ || पव्वेयणं पवेयह इच्छाकारेण संदिसह अम्हे । वंदिय अमुगुवहाणस्स कए य तं उद्दिसावणियं || ७ || अमुगं तवं करेमी एत्थ य वयणाइ जाइ किर भणइ । ताईं गद्दसरेहिं ( सुत्तेहिं ) भणामि मंदाववोत्थं ॥ ८ ॥ ( इतस्त्रुटितमिदं प्रकरणं न च लब्धाऽन्या प्रतिरिति न पूर्णीकृतम् ) अथ श्रीवर्द्धमानक्रमकमलोपजीवि श्रीचक्रेश्वरसूरिविरचितं पदाथस्थापनासंग्रहप्रकरणम्, आर्यावृत्तम् । धम्माधम्मंबरजियपुग्गलदुव्वाइं सव्वपज्जाए । पेक्खइ पइक्खणं जो जिणेसरो जयउ सो देवो || १ || पायाले नेरइया सत्तविह। १ दसविहा For Private and Personal Use Only पौषधविधिः 11 192 11

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133