Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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पोपध
प्रकरण समुच्चयः
विधिः
॥६९॥
४ पमज्जए भूमि ।। ६२ ।। अणुजाणह मज्झ गुरू जहासमाही ठामि संथारे। नवकाराई सुमरिय पसंतचित्ता सुविस्तामि ।। ६३ ।। तो पभणि
य नवकारं सामाइयदंडगं समुच्चरइ । चत्तारिमंगलं तह जइ मे छउमत्थ गाह्मओ ।। ६४ ।। खाममि सव्वजीवे इच्चाई गाहजुयलयं पढइ ।।
जइ म हुज्ज पमाओ इच्चाई पढइ गाहजुगं ॥६५।। नवकारभावियमणो सुहनिहाए सुएइ निञ्चितो । सुत्तविउद्धो धम्मज्जागरियं झायए हियए 8॥ ६६ ।। सुत्तविउद्धो चित्तं सुहुमपयत्थेसु नसइ जहसत्ति । जाए पभायसमए नवकारं भणिय उठेइ ।। ६७ ॥ पकरिय सरीरचितं सम्म इरियं
पडिकमेऊणं । कुसुभिणदुसुमिणनिग्घायणस्थसुसुमिणत्थेज्जत्थं ॥ ६८ ॥ राइयअइयारस्स य विसोहणत्थं च कुणइ उस्सग्गं । चउउज्जोयपमाणं सक्कथयं भणिय सज्झायं ।। ६५ ।। पुवमिव संदिसावइ सज्झायं करिय उचियवेलाए। राइपडिकमणट्ठाइभत्थगा (सक्कथय ) (चउ छोभणगा ) उ हुंति इमा ॥ ७० ॥ सामाइयस्स करणं इरियावहियाइ पुव्वगं नेयं । उस्सग्गो कुस्सुभिणे सज्झाओ होइ कायव्यो ॥ ७१ ॥ आयरियाई वंदण सव्वस्सुच्चारणं च सक्कथओ । उहित गाहभणणं तिन्नेव य हुंति उस्सग्गा ॥ ७२ ॥ तत्थ पढमो चरित्ते दसणसुद्धीए बीयओ होई । मुयनाणम्मिवि तइओ नवरं चिंतेइ अइयारे ॥ ७३ ॥ मुहणंतगपडिलेहा वंदणगालोयणं च सुत्तं च । अभुट्ठाणं वंदण खामणयं वंदणं चेव ।। ७४ ॥ आयरियाईगाहातिगस्स उच्चारणं च कायव्वं । छम्मासिय उस्सग्गो मुहपोत्ती वंदणं चेव ॥ ५ ॥
पच्चक्खाणं च तहा इच्छामणुसहिवयणमुच्चरणं । तिन्निथुई चीवंदण पडिक्कमणं राइयं होइ ॥ ७६ ॥ इति, राइयं पडिक्कमणं ॥ ४ राइयपडिक्कमणे किल पच्चक्खाणाय कुणइ उस्सगं। छम्मासियं विचिंतइ तस्स य पाढो इमो सुणह ॥ ७७ ।। भगवंतु महावीरु छम्मास
उक्कोसयं तपिथा कओ, तुहुं जीव छम्मास सकहि ? न सकइ, काइ न सकइ, गुरुनिउगु न वहई, एकदिवसी ऊणा सकहि ?, गुरुनिओगु न वहइ, बिहिं दिवसेहिं ऊणा सकहि?, गुरुनिओगु न वहई, त्रिहिं दिवसेहिं ऊणा सकहि?, गुरुनिओगु न वहई, चउहु पांच छहि सातहि आठहि नवहि.
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