Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण समुच्चय तह सम्मत्तगुणाणं वियाण मिच्छत्तदोसाणं ॥ २७ ॥ ता मिच्छत्तपवित्तिं तिविहं विविहेण जावजीवाए । सुविणेऽवि मा कुणिज्जसुअथ प्रमाते सुंदरगुणहाणिसंजणाणं ॥ २८ ॥ धन्ना पाविति इमं धन्नयरा पावियंपि पालेति । तत्तोविय धन्नतमा निययफलेणं फलावेंति ॥ २९ ॥ जीवानुशा | पीऊसपाणसरिसो एसुवएसो मणे परिणयम्मि । एयांम कुभावविसं घिसमपि समं पवज्जेइ ॥ ३० ॥ रयणत्तयकुलयामिणं सनम् | रइयं मुणिचंक्सूरिणा सम्मं । भव्वा भाता पुण कम्मक्खयहेउसंपत्ता ॥ ३१ ॥ इतिरत्नत्रयकुलकं समाप्तम् ।। अथ प्रमाते जीवानुशासनम् ॥ २५॥ तिहुयणपणमियचरणं पणमित्तु जिगेसरं महावीरं । बोच्छं पभायसमए जीवस्सऽणुसासणं इणमो ॥ १॥ धन्नाणं जीवाणं संसारपरम्मुहाण सइ होई । कल्लाणकोसजणणी पभायसमयमि इइ चिंता ॥२॥ धन्नोऽहं. जेण मए संसारमहनवमि बुड्डेणं । नीरंधपवहणसमो पत्तो जिणदोसओ धम्मो ॥ ३ ॥ चिंतारयणं करयलमल्लीणं अज्ज मज्झ पुन्नहिं । कामदुहाविय घेणू सयमेव घरंगणे पत्ता ॥ ४ ॥ फलभरविणमियसालो सुरदुमात्तग्ग (आग) ओ घरदुवारे। सच्चंकारो दिनो सग्गसिवसुहाण मे अज्ज ॥ ५॥ | हिंडतेण भववणे जं पत्तो कहवि सत्यवाहसमो । भवसयसहस्सदुलहो जिणिंदवरदेसिओ धम्मो ॥ ६॥ अन्नं च मए लद्धो अइदुलहो लोयलोयणसमाणो । माणगिरिकुलिसदंडो पयंडपासंडनिद्दलणो ॥ ७ ॥ अइसयरयणजलनिही दुजणजणदुलहदसणो धणियं । भावियाजियकमलसूरो सासयसुहनीरवरपूरो ॥ ८ ॥ कम्मकलंकविमुक्को कसायदवतवियभवियजलवाहो । तिहुयणलच्छीवच्छत्थलंमि | अइनिम्मलो हारो ॥ ९ ॥ उग्गतवतेयतरणी पुड(र)पयडियमोक्खपवरपुरसरणी । चंदकरधवलकित्ती लीलाए दिन्नजियमुती ॥ १०॥ * केवलपईवपयडियजीवाजीवाइवत्थुपरमत्थो । रागाइविजयवीरो देवो तित्थंकरो वीरो ॥ ११॥ जिणभणियवयणनिरया विरया सव्वहिं पावठा ॥ ४३ CARRORECRUCCESCO For Private and Personal Use Only

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