Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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मंत्रण समुचय
गाढा ।। ५१ ।। रयणप्पभाएँ पढमं रयणकंडं विभिदिउं बएि । बइरकंडांमे उवरि पइद्विओ जाणऽणवठप्पो ॥५२॥ ससिहा सवेइयंता एवं च ववट्ठिए सुणह एवं दो सरिसवा जहन्नं सखेज्जं होइ जिणभणियं ।। ५३ ।। मज्झिमसंखेज्जमिमं तु होइ तिपभीति जाव उक्कोसं । नो पावइ तस्सवि पयडणत्थ पल्ला पभन्नंति ॥ ५४ ॥ जो यऽणवद्वियपल्लो सरिसवपुन्नो पवन्निओ पुव्वि । ताओ असम्भावपकप्पणाए केणावि देवेण ★ ।। ५५ ।। उक्खिविय पक्खियंतो सरिस्सवा दीवसागरे सेवं । दीवसमुहक्वेवेण जाव सब्बेऽवि निट्ठविया ॥ ५६ ॥ तो तप्पज्जवसाणो जंबूदी
।। ६२ ।।
बाइओ हवइ पल्लो। अणवाट्ठओत्ति तत्तो एगो उ सलायपमि ॥ ५७॥ सरिसवओ परिखिप्पर पुणरवि तं सरिसवाण भरिऊणं । अणवद्वियंति पल्लं | उखेप्पइ तओ उ दीवम्मि || ५८ ॥ उयहिंमि य तो एवं पुव्वकमेणं जया य निट्ठविओ । तइया बीय सलाया पखिप्पइ सलायपमि ॥ ५९ ॥ | पुव्वकमेण खिविडं अणवट्ठियपाल्लियं भरेऊणं । उक्खिवियनिट्ठिएसुं तइय सलागा तओ पडइ ॥ ६० ॥ तम्मि सलायापल्ले एएण कमेण जाब सो पल्लो । पडिपुन्नो उसलायाहिं हवइ अणवाद्वयतयाहिं ॥ ६१ ॥ भरिओऽवि न ओखिप्पइ तइया अणवद्विओ उपल्लोत्ति । जेणं सलायपल्लो सलाइया तत्थ नो माइ ।। ६५ ।। तत्तो सलायपल्लोवि चैव उखिप्पए तओ दीवे । उयहिंमि य पक्खिप्पइ ता जा सव्वोऽवि निविओ ॥ ६३ ॥ एगा सलाइया तो पखिप्पइ पडिसलायपलंमि । पुणरवि अणवद्वियपल्लसंतियाहिं सलायाहिं ॥ ६४ ॥ भरियइ सलायपल्लो तेणेव कमेण पडिसलागक्खो । पल्लो भरियइ तम्मी भरिए अणवाद्वएण तहा ।। ६५ ।। भरिए सलायपले नो उक्खिप्पइऽणवडिओ पल्लो । नेव य सलायपल्लो जत्तो नो माइ तइयम्मि ।। ६६ ।। पले एक्कावि सलाइयत्ति तत्तो उ पडिसलागोवि । उखिप्प पुणरवि दीवउदहिखेवेण निट्टविओ ॥ ६७ ॥ जइया होई तया किल पल्लमि महासलागनाममि । पक्खिप्पर एगसलाइयत्ति तत्तो सलागक्खो || ६८|| उक्खिप्पर तम्मि य निट्ठियम्मि तत्तो उ पडिसलायम्मि । पक्खिप्पर एगसलाइयत्ति ततोऽणवट्ठियओ ।। ६९ ।। उक्खिप्पर तमि निट्टियम्मि बीए सलायपल्लमि । खिप्पर सलाइया
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सिद्धान्तो
द्धारः
॥ ६२ ॥

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