Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण पौषध समुच्चयः | विय कमुक्कम बायर भावपरट्टो मुणेयब्बो ॥९॥ अणुभागबंधठाणे सव्वत्थवि मरइ कहवि जइ पढमे । तयणतरं च बीए मरइ तओऽणतरं तइए | |॥ २१० ॥ एएण कमेण पुणो सब्वेसुवि मरइ बंधठाणेसु । सुहुमो भावपरट्टो एसो नेओ समासेण ॥ २११ ॥ इय गणियविसयपगरणमिणमो गाहाहिं सुहअपोहाहिं । रइयं सिरिचकेसरसूरीहिं परोवयारत्थं ॥ २१२ ॥ नामं पुण सिद्धंतुद्धारसारो भणंतु एयस्स । मोक्खत्थियो बुहजणा सोहिंतु सुणंतु चिंतंतु ॥ २१३ ॥ इति श्रीवर्द्धमानसूरिपादपद्मोपजीविश्रीमच्चक्रेश्वरसूरिविरचितं सिद्धान्तोद्धारप्रकरणं समाप्तम् ॥ ॥ अथ पोसहविहिपगरणं ॥ सव्वविरएहिं जेहिं सावजं सव्वहा परिच्चत्तं । तेसिं गुरूण पाए नमामि सव्वेण भावेणं ॥ १ ॥ धम्मत्थसवणकंखिहिं धम्मकरणुजएहि सत्तेहिं । सुस्सावियसयसाहारोद्दट्टज्झाणरुक्खहि ॥ २ ॥ वावारविगहपरिवज्जिएहिं सव्वेहिं सुद्धच्चित्तीहं । अट्ठमिचउदसिचउमासपज्जुसवणाइपव्वेसु ॥ ३ ॥ उबहाणतवं च तहा वहमाणेहिं सपोसहं किच्चा । भणियं समयंमि तओ भणामि पोसहविहिं एत्तो ॥४॥ कत्थइ तहिं पोसहविही तय अहोरत्तकिरियकणं च । तह पोसहपारावणविहिं च संखेवओ सुणह ॥ ५ ॥ तहिं पोसहं पगिण्हइ साहुसमीवम्मि चेइयहरे वा । पोसहसालाएँ गिहेगदेसठाणम्मि वा विहिणा ॥ ६ ॥ तत्थ नियावासाओ गुरुवसहिं गंतु वंदिऊण गुरुं । इरियं पडिक्कमेइ कट्ठासणयं च गिण्हेइ ॥७॥ तत्तो पुणोऽभिवंदिय मुहपत्तिं पहिऊण वंदित्ता । संदिसह इच्छाकारेण पोसह संदिसावेमि ॥ ८॥ | वंदिय इच्छाकारेण पोसहे ठामी भणइ उद्वित्ता । नवकार ओच्चरित्ता तो पोसहदंडयं भणइ ।।९।। तत्थ करोमि भंते! पोसहं आहारपोसहं देसओ (सम्वओ) सरीरसक्कारपोसहं सव्वओ बंभचेरपोसहं सव्वओ अव्वावारपोसहं सव्वओ चउविहेवि पोसहे ठामि सावजं जोगं पच्चक्खामि जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करोमि न कारवेमि तस्स भंते ! पाडेक्कमामि निंदामि | For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133