Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 70
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir रकरण 'मुच्चयः | गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ छ ।। दिणरत्ति पोसहमि जाव अहोरत्त पज्जुवासामि । दिवपोसहमि पभणइ जादिवस पज्जुवासामि ॥१०॥18 पोषध| रत्तित्तणयम्नि जारत्ति पज्जुवासामि भणिय तो वंदे । पोत्तिं पेहिय वंदइ सामाइय संदिसावेमि ॥ ११ ॥ वंदिय सामाइयए ठायह उठ्ठितु | पर रिलका विधिःभणइ नवकारं । अह सामाइयदंडगमुञ्चरइ करेमिइच्चाई ॥१२|| करोमि भंते ! सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावपोसहं पज्जुवासामि दुविहंतिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करोभि न कारबेमि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदाभि गरिहाभि अप्पाणं वोसिरामि ॥छ।। वंदिय कट्ठासणयं है संदिस्तावेभि वंदिउँ भणइ। कट्ठासणए ठाएह पुण वंदिय संदिसावेमि।।१३।। सज्झायं वंदित्ता सज्झायं करह तो नमोकारं । तिन्नि उ वारा पभाणय तो द पंचाईहिं गाहाहि ॥१४॥ सज्झायं पकरित्ता वंदिय समणाइ चउविहं संघ । सज्झायाइ पकरइ समुचियसमए गुरुसयासे ॥१५।। वंदिय पोति पेहइ बंदणयं दाउ निच्चकिच्चाणि । पकरइ आलोयण खामणाणि जहभणियविहिणा उ ॥ १६॥ तत्तो गुरुं नमित्ता उववासाई जहासमाहीए । पच्चक्खइ गुरुवयणं अणुभासितो सणिय सणियं ॥ १७ ॥ तो वंदिऊण साहूपभिईसंघ नमित्तु गुरुपाए। पढइ गुणेइ सुणेई धम्मकहं वा परिकहेइ ॥ १८ ॥ पउ गपहरम्न पडिलेहगाएँ वंदितु पोत्तियं पेहे। अह जइ तंगणियाए वच्चइ तो इरियमाउत्तो ॥ १९ ॥ गंतुं भुवं पमज्जिय उच्चाराईणि करिय नियठाणे । ठिच्चा इरियं कमई गमणागमणं च आलोए ॥ २० ॥ तद्यथा-इच्छ कारेण संदिसह | गमणागमण आलोयह?, इच्छं आवसी करिउ गया दक्खिणदिसिहि थंडिलभूमि पडिलेही उच्चारपासवण सौ बाबार चिंतकी निसीही करिउ | पइट्ठा, आवतहिं जंतेहिं जे काइ खंडण विराहण की तस्स मिच्छामि दुक्कडं। तो चेईहरे गंतुं जिणेऽभिवीदत्तु उचियठाणम्मि । जहजोगं वक्खाणं सुणेइ तो भोयणावसरे ॥ २१ ॥ वंदिय पोत्तिं पेहइ तो बंदिय भणइ भत्तपाणेणं । पारावेमो वंदिय पारावह भत्तपाणेणं ॥२२॥ नवकारं उच्चरई अह उबवासी तओ उ पाणस्स । पारावइ तो बंदिय विहिणा आवस्सियं भगइ ॥२३॥ तो सयणगिहे गंतुं इरियं पडिक्कमइ For Private and Personal Use Only

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