Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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अथरत्नत्रर कुलकम् आयोवृक्ष
प्रकरण नो चव देवालए, नो चिंतामणिणो न कप्पतरुणो लाभ वियंभेज्ज सो। निम्विन्नाण भवन्नवाउ धाणयं निव्वाणकंखीण जो, संजाएज्ज समुच्चयः
गुणन्नुयांम सुयणे दिढे पमोओ मणे ॥ ७ ॥ सम्मं नाहिगयाऽऽगमा गुरुकुले सांवग्गमग्गाणुगे,नो बुच्छा पसमं सभाववसओ नो पत्तपुव्वा
तहा । तेर्सि मूढमणाण देसणगुणाजोग्गाण जा देसणा, सा दूरेण दवग्गिधूमियमहारणं व वजा ज (ओ) ॥ ८॥ नो सत्यं न विसं न ॥४१॥
साइणिवसो नो पेयभूयग्गहों, दुकालो न दुराउलं न जलणो जालाकरालो य तं । सिद्धंतो जिणभासिओ कुमइणा लोएण मिच्छागहा, संपाडेज अणत्थसत्यमिह जं देसिजमाणोऽन्नहा ॥९॥ एसो धम्मोवएसो निविडतमतमुत्तारतारप्पईवो, एसो धम्मोवएसो मयमयणमहावाहिणासोसही य । एसो धम्मोवएसो सिवसुहभवणारोहसोपाणसेणी, एसो धम्मोवएसो भवियजण! तए. णावणिज्जो मणाओ॥ १०॥ । स्रग्धरावृत्तम् । इत्युपदेशमालाकुलकम् . अथ रत्नत्रयकुलकम, आर्यावृत्तम् ॥२४॥
चंदद्धसमणिडालं झंपियनिस्सेसकुगइपायालं। मंगलकमलमरालं वंदे वीरं गुणविसालं ॥ १॥ लद्धे माणुसजम्मे रम्मे निम्मल| कुलाइगुणकालिए । घडियव मोक्खकए णरण बहुवुद्धिणा धणियं ॥३॥ देवगुरुधम्मतत्ते विनाए मोक्खसंभवो भविणो । अमुाणय| मग्गसरूवा ण इट्ठपुरगामिणो होति ॥ ३ ॥ जियरागो जियदोसो जियमोहो जो मओ स इह देवो । अरिहंतोच्चिय सो पुण नउ अन्ने हरि
हराईया ॥ ४ ॥ भवविसतरुबीयसमा दोसा रागाइणो जयस्सावि । जे सामन्नामन्नाण ताण कह होउ देवत्तं ? ॥ ५ ॥ 18|| सरयससिसोमरूवो सुरपयडियपाडिहेरमाहप्पो । परमपयसत्थवाहो भवसागरपारगो भगवं ॥६॥ एसो चिय णमणिज्जो णमंसणिज्जो दाय पूणिज्जो य । संभराणज्जो महया तोसेण निभालाणिज्जो य ॥ ७ ॥ जो जारिसओ देवो तारिसमाराहिओ फलं देई ।
न कयाइ निबरुक्खा फलंति कप्पदुमफलाइं ॥ ८ ॥ णिव्वाणसोक्खसामी सव्वन्नुच्चिय निसेविए. तम्मि। अवियप्पेण मणेढें लब्भइ
। ४१ ॥
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