Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ३९ ॥
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नो मयपिसाओ || १० | वहहलोगवियोगो दुहमूलं जत्थ नत्थि तह रागो । किं बहुणा जो दोसो सब्बो जत्थाकयपदोसो ? ॥। ११ ॥ लोयालोयविलोयणलोयणसमणाणदंसणालोया । साहीणाऽणोवमसोक्खसंगया होंति तत्थ जिया ।। १२ ।। जह खज्जोओ पज्जोयणाउ तह जदभिलासमेत्ताओ । भुवणयोवि विभवो ण किंचि तेणुत्तमो मोक्खो ॥ १२ ॥ तं सदंसणणाणाइकज्जमज्जा जओ पवज्जति । तो तुब्भे एएसुं गुणे सत्तीऍ वट्टेज्जा ॥ १४ ॥ निच्चं तिकालचीवंदणेण विहिविविपूयपुवेण । चेइयकज्जाणं बहुविहाणमइनिकरणं ।। १५ ।। आयारपराण (आचारतत्पराणां) बहुत्सुयाण सुमुणीण वंदणेणं च । बहुणा बहुमाणेणं गुणीसु तह वच्छलत्तेणं ॥ १६ ॥ संकाइसल्लपडिपेलणेण सइ दंसणं विसोहेज्जा । तह जिणजम्मणठाणाइदंसणेणं जओ भागयं ॥ १७ ॥ जम्मणनिक्खमणाइसु तित्थयराणं महाणुभावाणं । एत्थ किर जिणवराणं आगाढं दंसणं होइ ॥ १८ ॥ णाणं च पुण सुतित्थे विहिणा सिद्धंतसारसवणेणं । नवनवसु अपढणेणं गुणणेणं पुञ्वपढियस्स ।। १९ ।। कालाइविवज्जयवज्जणेण तत्ताणुपेहणेणं च । परियाणियसमयाए संगेण समाण धम्मा || २०|| सोहेज्ज चरितपिहु आसवदारदढसन्निरोहेणं । सइ उत्तरुत्तराणं गुणाणमहिलासकरणेणं ॥ २१ ॥ जह सुमिणो जह मियतण्डियाउ जह इंदजालकीलाओ । जह बालधूलिहरविलसियाई तह एस जियलोओ || २२ || एत्थ विहवी अविहवी सुहीवि असुही गुणीवि किल अगुणी । बंधूवि सिय अबंधू धी अणवत्थो भवत्थजणो ॥ २३ ॥ इय भावणावलेणं सत्तीऍ तवेण पत्तदाणेणं । अइनिंदियइंदियबंदियाण निक्कंदणेण तहा ॥ २४ ॥ एए नियफलवतो सुद्धा संतो भवंति जेण गुणा । तो तेसिमसोहिसमावहाई वज्जेज्ज ठाणाई || २५ | सुज्झतेसु इमेसुं दिणम्मि कमलायव्व समकालं । सवियासा सेसगुणा भवंति अच्चब्भुयब्भूया ।। २६ ।। गंभीरत्तणसुयणत्तणाई दक्खिन्नमपरपेसुन्नं । दूरमपारं कारुन्नपु नओ तह नओ विणओ ।। २७ ।। लोयाणुवित्तिकुसलत्तमुत्तमं चिरपरूढमिच्छत्तो । एसोऽवि अज्जकालियजणो जहा मग्गमोयरइ ॥ २८ ॥
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अथोपदे
मृताख्र प्रकरण
॥ ३९

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