Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण ॥४५॥ | सायरु जिम्ह गंभीरु । सिरी मुणिमुरि नवनाणनिहि जच्चसुवन्नसरीरु ॥ ७॥ जं संसारमहाडविहिं निवडियजणसत्थाहु । सो गुरु मुणि सुरि सुमरियई सरण विहीणइं नाहु ॥ ८ ॥ जिंव तारयहि पहाणु ससि सेलहिं मेरु पहाणु । तिंव सूरिहिं मुणिचंदमुणि गरुयउ निज्जियमाणु | ॥ ९ ॥ मोहमहाचलि कुलिससमु सुयजलपूरियऽपारु । सुविहियमुणिसिरि सेहरउ मुणिसुरि बालकुमार ॥ १० ॥ ता मज्जहि परतित्थिया जा नवि कोइ कहेइ । जिणसासणि उज्जोयकरु मुणिसुरि एत्थु वसेइ ॥ ११ ॥ ते धन्ना घरि गावडा जहिं विहरइ मुणिसूरि । हरइ मोहु फेलडइ दुरिउ संसओ घल्लइ दूरि ॥ १२॥ कुंददलुज्जलजसपसरधवालयसयलतिलोय । कम्मपयडिपयडणपवणु मुणिसुरि नमहु असोउ 1॥ १३ ॥ जिग कुग्गह फेडिय नरह पयडिवि निम्मलनाण । सो मुणिमीर मह माइ गुरु अइमणहरसंठाण ॥ १४ ॥ मुणिसूरिहिं जितणा गुणा तहिं को संख मुणेइ ? । किं रयणायरु कुवि मुणवि रयणह संख कहेइ ॥ १५ ॥ दुद्धरदप्पगइंदहरि कोइलकामलवाणि । सो मुणिचंदु नमेहु पर संजमरयणह खाणि ॥ १६ ॥ हरिभहसुरिकय गंथ जिणि वक्खाणिय नियबुद्धिं । सो मुणिचंदु नमेह पर जिव पावहु वर सुद्धि ॥ १७ ॥ जिव बोलइ तिम जो करइ सोलु अखंडु धरेइ । मुणिसुरि पंडिय तोसयरु पण्डुत्तरइ दलेइ ॥१८॥ जिंव महुयर आवई कमलि गंधाइड्डियसत्त । तिम मुणिसूरिहि सांसगण सुयमयरदासत्त ॥ १९॥ जहिं विहरइ मुणिचंदसूरि तहिं नासइ मिच्छतु । चरइ नउलु जहिं ठावडइ सप्पु कि हिंडइ तत्थुः ॥ २० ॥ जिम्ह मेहागम तोसियहिं मोरहतणा निकाय । तिम्ह मुणिसूरिहिं आगमाण भवियाणं समुदाय ॥ २१ ॥ सरयागमि जिव हंसुला हरिसिज्जंति न मंति । मुणिसुरि पडिखडिया जणा तुह आगम निभंति ।। २२ । तिह मणुयहं गउ विहल जम्मु जेहिं न मुणिमुरि विहु । किंव जच्चंधेिहि लोयणिहिं जेहिं न ससिहरु दिदु ॥२३॥ जाह पसन्ना तुह नयण तह मणुयह सय | कालु । हियइक्छिय सुह संपडहिं अनुछिंदहि दुहजालु ॥ २४ ॥ दूसमरयाणिहिं सूर जिम्ब तुह उहिउ मुणिनाह । सिरिमुणिचंदमुर्णिद पर महु * ॥४५॥ ** For Private and Personal Use Only

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