Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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अथप्रमाते जीवानुशा सनम्
प्रकरण हिं । एत्तोधिय पंचमहब्बयाण परिपालो पवणा ॥ १२ ॥ मणवयणकायगुत्ता पुत्ता सीमंतिणीण सव्वाणं । अनिययविहाररसिया समुच्चयः वसिया गुरुपायमूलम्मि ॥ १३ ॥ तित्थयरभाणियवयणाणुसारिसद्धम्मदेसणपहाणा। पडिखलियपंचपाणा निरंतरुल्लासिमुहझाणा ॥१४॥
सीलंगमहाभरधारणांम धुरधवलधीरिमं पत्ता। रागाइवरिवसवत्तिजंतुपरिमोयणे सत्ता ॥ १५ ॥ गुणिमणकमलवियासणपयंडमायंडसंनिह॥४४॥
सहावा । संपत्ता सुहगुरुणो दुहतरुणो खंडना धीरा॥ १६ ॥ ता जीव तं क्रयत्थो कयपुन्नो मंगलाण आवासो । माणुसजम्मस्स फलं तुम्भश्चिय करयले चडियं ।। १७ । जं तुमए रयणत्तयमिणमो संपावियं महाभागा! । नहि पुत्रविहीणाणं निहाणलामो जए. होइ ॥१८॥ ता तह करेसु संपङ मोक्षणं मोहणिज्जमचिरेणं । जह, संसारसमुब्भवदुक्खाण जलंजलि देसि ॥ १९॥ रयणायरंमि पत्ते जह पुनो कोऽवि
लेइ रयणाई। तह, गिण्ह तुम लद्धयमाणुस्लो भावरयणंपि ॥ २० ॥ जइ कुणास पुण पमायं जाणंतोऽविहु जिणिदधम्ममि । ता नूण18 मयाणुय करगयाई सोक्खाई हारिहिसि ॥ २१॥ इयचिंतामयसंसिच्चमाणमणनंदणाण जीवाण । आचिरेण सग्गसिवसुहफलाई सिति
विउलाई ।।२२।। मुणचंदसूरिराणहरविपोयसिरिदेवसूरिक्यणाई। मोहंधयाण जंतूण होति विमलाई नयणाई॥२शा इति । अथ दोहा. ॥२६॥
___ . नाणु चरणु संमत्तु जसु रयणत्तउ सुपहाणु । जय सु मुणिसुरि इत्थु जगि मोडियवम्महरवाणु ॥ १ ॥ उवसमरयणसमुद्दसमु x विहलियजणमाहारु । वंदउ मुणिसुरि भवियजण जिम छिंदउ संसार ॥ २ ॥ असियमहुरदेसणसिण भवियण रुंखमुलाई । जिंक सिंचइ
मुणिचंदह सूरि तिअ तुंवि कुवि काई ॥ ३ ॥ वक्खाणंतउ जिणवयणु सिरिमुणिचंद मुणिंद । चादसि मुणिपरिवारियउ, नावइ पुन्निमचंदु ॥ ४ ॥ जिणि छट्ठट्ठमिमाइतवि सोसीउ हहुँ निय देहु । वरकरुणाजलणीरुनिहि सो गुरु मुणिधुरिलेहु ॥ ५ ॥ जो पिहि पक्खसमुद्धरणु, पंचमहव्वयधारु । सो नंदउ मुणिचंसुरि, जिणी वूहउ तिव भारु ॥ ६ ॥ मेरुहु जिंव विरु पभ गुरु,
RASARAN
MESSEN
॥४४॥
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