Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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रण
[च्चयः
१०॥
॥नमः श्रीमद्देवमरिगुरुपादुकाभ्यः ॥ अथ द्वादशवतस्वरूपम् ॥ २९
द्वादशवत तिहुयणकयबहुमाणे सन्नाणे विमलगुणगणनिहाणे । नमिउं जिणे गिहिवए सम्मत्तजुए पवज्जामि ॥ १ ॥ परिहीणलोहमोहो मुक्क- टीप्पन विरोहो पसन्नमुहसोहो। देवो सुरकयसेवो गयलेवो मम जिणो चेव ॥ २॥ उद्धयमहव्वयभरे सीलंगधरे निरुद्धमयपसरे । जगसिर-14 मणिणो मुणिणो गुणिणो गुरुणो पवज्जामि ॥ ३ ॥ पयडियवत्थुसरूवो निरुवमरूवो सुरोहिं कयपूओ। नयहेउजुत्तिसुद्धो सिद्धंतो संपइ पमाणं ॥ ४ ॥ परतित्थे धम्मत्थं काहं नाहं कयावि पहाणाइ । चीवंदणं तिकालं काहमहं सुमरणेणावि ।। ५ ॥ पाणिवह १ मुसावाए २ | अदत्त ६ मेहुण ४ परिग्गहे चेव ५ । दिसि ६ भोग ७ दंड ८ समइय ९ देसे १० तह पोसह ११ विभागे १२ ॥ ६ ॥ मंसाइकए जीवे थूले संकप्पिडं निरवराहे । न णेमि नो हणावेमि मणेण वायाइ कारणं ॥ ७ ॥ जं पुण जलोयमोयणकिमिगंडोलाइपाडणं तह य । कज्ज हविज्ज जइ कहवि तत्थ मज्झं भवे जयणा ॥ ८॥ थूलमलीयं कन्नालियाइ सयलंपि दुविहतिविहेणं । नो आलवेमि वसणे जयणा पुण | कूडसरखेज्जे ॥ ९॥ थूलमदत्तं एत्तो चत्तं खत्ताइकारणं जमिह । करणकरावणविसयं सम्मं तिविहेण करणेण ॥ १० ॥ लहणिज्जदेज-8 Pा निहिसयणसुंकविसयाम्म दिन्नए जयणा । निस्सावराडिवयणे अलियंमि तहा ममं जयणा ॥ ११ ॥ दुविहतिविहेण दिव्वं एगविहं तिवि-11 हओ य तेरिच्छं । माणुस्सयंपि थूलं कारणं मेहुण वज्जे ॥ १२ ॥ धणं धन्नं गिहं खेतं, रुप्पं हेमं चउप्पयं । दुपयं कुवियं चेव, भवभेओ | परिग्गहो ॥ १३ ॥ (सिलोगो) धणधनकवियरुप्पयसुवनचउपयगिहाण सव्वेसि । इच्छापमाणमेत्तो दम्मसहस्साण अट्ठण्हं ॥१४॥ तत्थ धणं | गणिमं धरिममेव मेयं च पारिछेज्जं च । पत्तेयं पत्तेयं न धरोमि सहस्सओ परओ ॥ १५ ॥ तिल्लघयाणं घडगा पन्नासं होंति जावजीवाए ।
॥५०॥ धन्नस्स पन्न मूडा जाजीवं खेत्तविणिवित्ती ॥ १६ ॥ दो दो हट्टगिहाइं तिन्नि सयाई सुवनपरिमाणे । चालीस रुप्पपला सतिवच्छा दोन्नि
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