Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रकरण समुच्चयः
॥ ३८॥॥
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धम्मो न चेव अत्थो न किंपि कल्लाणं । अन्नंपि अस्थि नहुँ जो मूढमणो विचिंतेइ ।। २७ । सोगो नासेइ मई सुबहुंपि सुयं विणासई सोगो । अथोपदे सोगो धीनासकरो सोगसरिच्छो रिवू णत्थि ॥ २८ ॥ मइमं सुयसच्छच्छो जो होइ जिइंदिओ दमियचित्तो। सोच्चिय दुक्खकरालं जणो
मृताख्र |जिणइ सोगबेयालं ॥ २९ ॥ ता उझियसोगभरा तुम्भे होऊण जिणमयं सरह । जेण न रोगो सोगो इट्टवियोगो पुणो होइ ॥ ३० ॥ वय-ICIप्रकरणा | सुद्धी सज्झाओ झाणं दाणं जिणिंदपूया य । एमाइकुसलकजुजमेण दियहा (दिवसाः) गमेयव्वा ।। ३१॥ ते धुयकिलेसलेसा न सोयबसवत्तिणो दढं होति । एवं उबएसामयमणुदिवसं जे पियंति जणा ॥ ३२ ॥ मुणिचंदायरियाणं उवएसाणं सुहासरिच्छाणं । एयारिसाण विरला केइ परं भायणं होंति ॥ ३३ ॥ इत्युपदेशकुलकम् ॥अथोपदेशामृताख्यप्रकरणम् ॥ २२ ॥
वरहेमसमसरीरो वीरो संपत्तमोहमलतीरो । साहियसिवनयरपहो सुरविहियमहामहो जयइ ॥ १ ॥ लद्धे माणुसजम्मे रम्मे निम्मल-10 कुलाइगुणकलिए । घडियव्वं मोक्खकए णरेण बहुबुद्धिणा धणियं (बाढं) ॥२॥ धम्मो अत्थो कामो जओ न परिणामसुंदरा एए। किंपागपागखललोयसंगविसभोयणसमाणा ॥ ३॥ जमिन संसारभयं जंमि न मोक्खाभिलासलेसोऽवि । इह धम्मो सो मेव उ विणा कओ जो जिणाणाए ॥४॥ पावाणुबंधिणो चिय मायाइमहल ( महत्) सल्लदोसेणं । एत्तो भोगा भुयगव्व भीसणा वसणसयहेऊ ॥५॥ जो पुण खमापहाणो परूविओ पुरिसपुंडरीएहिं । सो धम्मो मोक्खोच्चिय जमक्खओ तप्फलं मोक्खो ॥ ६॥ पञ्चक्खमेव अत्थो कामो य अणत्थहेउभावेणं । दीसंति परिणमंता किमहियमिय भाणियबमओ? ॥ ७ ॥ इयविवरीओ मोक्खो जमेत्थ नो मच्चुकेसरिकिसोरो। हिंडइ उदंडमकंडखंडियासेसजीवमिओ ( उडमकाण्डखंडिताशेषजीवमृगः) ॥ ८॥ जोव्वणवणदावानलजालामाला ण एत्थ अस्थि जरा। नो दुद्धरो समुन्दुरमयरद्धय ( मकरध्वजः ) सरविसरपसरो ॥९॥ नो लोभभुयंगमसंगमोऽवि नो कोहकोहउच्छालो । तह नो अन्नकसाओ ण विसाओ
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