Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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मकरण समुच्चयः
॥ ३१ ॥
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|| पुब्वपियब्भासांमवि केवलमाशाहिये जीएं ॥ १५ ॥ भुवणे सुंदंसणो खलु सुदंसणो सावधवि जो तइया । अभयाए पाडेमाटेओ न खोभियो मरणवसणेऽवि ॥ १६ ॥ ते धन्ना समणोवासयावि जे दूरविरयविसयरसा । जणपत्थाज्जचारिया सिवजम्मे जंबुणामोव्व ॥ १७ ॥ स त्र सुंदरी सुंदारीत्त विसएस निप्पिबासाए । सट्ठि वाससहस्सा आयाममरगुट्टियं जीए । १८ ॥ भुवपत्तयपञ्चक्खं उम्मीलियविमलसीलमाहप्पा । जयवंदणिज्जचलणा सीया सुलसा सुभद्दा य ॥ १९ ॥ अइदुग्गमविसयग्गामसामिउद्दाम काममयमलणे । अनेवि महासत्ते सत्ते निचे चिय सरेज्जा | २० || संतोसरसामयपरिणइबसेण निम्महियविसमबिसयतिसा । परमानंदमया इव इपि सुहिणो जणा होति ।। २१ ।। संतोसनंदवणे कत्तो चित्तस्स संचरंतस्स । संसारमरुस्थलभमणविसयत हुन्भवो दाहो ? ॥ २९ ॥ संतो सपासपडिओ न परं मणमक्कडो तडप्फडइ । अइविसमविस धुमसंनिभेसु विसपसु बद्धरसो ॥ २३ ॥ एसो सो अमयरसो परमाणंदो इमं परं तत्तं । जं बिसयलालसारा विणिग्गहो इंदियमणाणं ।। २४ ।। विसउम्मग्गविलग्गो वि एयमगुसासणंकुलं सिरसा । धरमाणो नियमेणं करीब मग्गं जिओ जाइ ॥ २५ ॥ इति धर्मोपदेशामृतपंचविंशतिका समाप्ता ॥
॥ अथ सामान्यगुणोपदेशकुलकम्, आर्यावृत्तं ॥ १८ ॥
निक्षारयविससरं वीरं बंदिसु वित्तरुइपसरं । दिन्नजियदिक्खसिक्खं भणामि सामन्नगुणसिक्खं ॥ १ ॥ ववहारसुद्धिजणादाण - ज्जवावारचागणिष्पन्ना व्यापारत्यागनिष्पन्ना ) । कालुचिय ऽवियल सम्मम्म परिपालय सरूवा ॥ २ ।। संखाणं धवलपहा गभीरयाविव महासमुद्दाणं । चंदारण सिसिरजोरहन्न जयणसोहव्व दरिणीणं ।। ३ ।। उच्छू महुरयाविव धम्मियकुलजाइधम्मसन्भावो । अइविहु सिद्धा सा तेसिं तद्दवि एवं समवसेया ॥ ४ ॥ णाणवयवुड्डुसेवा सत्यन्भासो परोवयारितं । सच्चरियजणपसंसा दक्खिन्नपरा
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सामान्य
गुणोपदेश कुलकम् -
॥ ३१ ॥

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