Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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किरण
धर्मोपदेश कुलकम्.
मुच्चयः
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माणो अभाणवसणो माणा नाणाइगुणहाणी ॥१३॥ माया य वाउलीविव (उद्धमवात्येव) उच्छालइ दोसधूलिमइबहलं। जीएँ परद्धा (प्रारब्धाः) जीवा न दोसगुणदंसिणो होंति ॥ १४ ॥ लोहो भुयंगमोविव लद्धपयारो ( लब्धप्रचारः ) विसंठुलं (शिथिलं ) कुणइ । उद्दामदोसविसवेगदूसियं कं न जियलोए? ॥१५॥ एवंविहा कसाया कसिणा निक्कासिया मणगिहाओ (मनोगृहात्) । निम्मलसमाहिजोगा जेहिं सुहं ते जियंति जए ॥ १६ ॥ एयगुणाराहणओ जो जो धम्मो जया जया कोई । कीरइ सो परिणामे अमयं व सुहावहो होइ ॥१७॥ तिहुयणजणनमणिज्जो जिणो सया परमभत्तिमंतेहिं । पुज्जो नमंसणिज्जो संभरणिज्जो विहाणेणं ॥ १८ ॥ पंचविहायारपरा परोवयारुज्जया सया कालं । गुणिणो | मुणिणो य मणे गुरुत्तणेणं ठवेयव्वा ॥ १९ ॥ संझादुगसज्झाओ पच्चक्खाणं खणे खणे परमं । चित्तमलपावणाओ ( मनोमलपाविन्यो ) य भावणाओ सरेयब्वा ॥ २० ॥ दुईतेंदियदमणं समणं कामाइवइरिवग्गस्स । पियपुव्वाभासित्तं सुयणत्तमकित्तिमं चेव ।। २१ ॥ साहम्मिय-| वच्छल्लं सत्तीइ तवो सुपत्तदाणं च। सीलविसुद्धी सद्धा सययं सद्धम्मकरणम्मि ॥ २२ ॥ नवनवसत्थन्भासो नवनवगुणअज्जणे असंतोसो । अप्पसमाहिय (आत्मसमाधित) गुणगामधामजणमज्झसंवासो (गुणग्रामधामजनमध्ये संवासः) ॥ २३ ॥ सीलंगसंगसुहगं समणत्तणमप्पमत्तचित्तेणं । कइया णु मए कज्ज? खणे खणे इय विचिंतेज्जा ॥ २४ ॥ मुणिचंदायारियाणं उवएसाणं इमाण कयपुन्ना । भविया हवंति भायण-| मकलंकगुणा परं केई ॥ २५ ॥ इति धर्मोपदेशकुलकम् ॥ अथ सम्यक्त्वोपायप्रकरणम् ॥ २० ॥
भुवणजणवंदणिज्ज बंदिय दिय (दित ) माणमच्छरं वीरं । सम्मत्तुप्पायविहिं भणामि समयाणुसारेणं ॥ १॥ दुविहं सिद्धतमयं | सम्मुप्पायंमि बिंति मुणिवसभा। तत्थ किल कोइ जीवो अहापवत्तेण करणेणं ॥२॥ सुज्झिन्तो (शुध्यमानः) जा गंठी अपुब्वकरणं तओ पवज्जेइ।
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