Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण समुच्चयः ॥ २९॥ विसमकम्मरोगाणं । तस्स सपुरण समयामयस्स रसपाइणो होति ॥ ६॥ निम्मलनाणपहाण जलनिहिणणे चरणकरणारयणार्य । कप्प-15 उपदेशामृत दुमव्व सययं सुसाहुणो सेवणिज्जत्ति ॥ ७॥ निच्चं च खलियसीलहिं संथवं सव्वहा विवज्जेज्जा । जं जीवो संसग्गेण तम्मश्रो होइप्रकरणम् अचिरेणं ॥८॥ होज्ज व ण वा पहुत्तं दोसाययणेसु वट्टमाणस्स । भूयफलदोसदरिसी भूयच्छायं विवज्जेइ ॥6॥ पिप्पलदलग्गलम्गो | व्व जललवो चंचलं विचिंतेज्जा । जीयममुणियागमणं मरणं अइदारुणसहावं ॥१०॥ अनिवाराणज्जमेयं सयणधणाईण भावहेऊ य । ता एयंमि अपत्ते जुत्तं हियमप्पणो कार्ड ॥ ११ ॥ चिंतेज दुकडा पमायचारियाण विरसमवसाणं । दुस्सहदुरंतसयसंखदुक्खरुवं जओ | भणियं ॥ १२॥ न तहा विसं न सत्थं न बिसहरो दारुणो हयासो य। जह जीवाण पमायो अणत्यसयसाहणो होइ ॥ १३ ॥ सवसा || चिणंति कम्मं पमायो तेण परवसा होति । सवसो दुरुहइ रुक्खं निवडेइ परव्यसो तत्तो ॥१४॥ श्रमलं भावेज फलं धम्माईणं विहाणविहियाणं । सुकुलुग्गमाइसग्गापवग्गसुहसंपयारूवं ॥१५॥ कप्पा मोवि चिंतामणीवि जीवाण कामधेरावि । न तहा कप्पति फलं जहप्पणी सुद्धचरियाई ॥१६॥ कप्पदुमं तणेण व काणकवडेण कामधेणू व । चिंतामणिमुवलेण व किणेज्ज देहेण धम्मधणं ॥ १७ ॥ इहइंपि | सज्जणाणं सलाहणिज्जो सय सुही चेव । सुविसुद्धधम्मकम्मे समुज्जओ जायए जीवो ॥ १८॥ ता सम्वहा जएज्जा तह जह मसुयत्तसाईसामग्गी । एसा जिणाखमाणाऽऽराहणो फलबई होई ॥१६॥ तत्थ सिवसाहणाणं चिइवंदणमाइयाण सव्वेसिं । आवस्सयाण हाणी थेवीविय रक्खणिज्जत्ति ॥ २०॥ तहउणुव्वयमाईणं पडिवनगुणाण पालणे जत्तो। करणिज्जो अइयारा दूरं परिवज्जाणिज्जा य ॥ २१ ॥ पसमामएस जह जह कसायविसमुवसमं पवज्जेइ । चिट्ठणभासणसचिंतणाणि तह तह विजेयाणि ॥२२॥ तुसखंडणं व मयमंडणं व ४ ॥ २९॥ तह सुन्नरन्नस व । संपुग्नपि य जमुवसमसुम्नं मन्नेज्ज ऽणुद्वाणं ॥२३ ॥ किं बहुणा? कुसलासयकप्पतरू पडियरणीश्रो तहाउपमत्तेहिं । जह For Private and Personal Use Only

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