Book Title: Prakaran Samucchay
Author(s): Ratnasinhsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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अणुस्सुओ इट्ठसमागमेस, कर्हिवि णटेसु अदुम्मणो य ॥ ६॥ पाएण बज्झवि गुणा भवंति, रूवे पसन्ने महुरे णराणं । अभंतरे किं पुण| शुध्धधर्म प्रकरण
IG|| सीलरूवे?. जएज्ज तो संठवणंमि तस्स ॥१०।। सोमो जहा सोम. सुदंसणिज्जो, सहावसोमत्तणओ गुणाओ । तहा तुम चिट्टणमासणेस, लाग्योपदेड समुच्चयः
होज्जा महाणंदकरो जणाणं ॥११॥ जणप्पिो सुंदर ! तेण अप्पा, तएउवाएण जहोचिएण। कज्जो जओ धम्मगुणाणुरागं,
जणा कयाणंदमणा कुणंति ॥ १२॥ सव्वस्स कल्लाणविचिंतगाणं, समंतओ भद्दपरंपराभो। भवंति कूरत्तणमप्पमत्तो, चएज्ज तं ॥२३॥
सजणमि चित्तं ॥ १३ जहा मसाणिंधनमद्धदई, तहा जणो सीलकलंकिओ जो। कलंकपंकाउ कुलाइहीलाणिबंधणाओ भव भीरुभावो ॥१४॥ पुव्वं मणो होज्ज जहा तहेव, भासिज्ज चिट्ठिज्ज तुम तो ते । दढं दढत्तेण ऽजढस्स होही, सुहं जसो निम्मलधम्मकम्मं ॥१५॥ धीरो गहीरो हयमच्छरो य, घवन्नदक्खिन्नभरो भवित्ता । परत्थ मज्झत्थियसूरयाए, करेज्ज सव्वत्थ पसत्थचित्तो ।।१६।। लज्जिज्ज सक्खं सपसंसणांम, मज्के महंताण पहाणभावे । कहिंचि दुट्ठाइ कुलट्ठिईए, भंगे अणायारनिसेवणाय ॥ १७ ॥ दयालुया धम्मधणस्स मूलं, तो तदत्थी पढमं तमेव । करेज्ज इसिपि परिरुचएज्जा, तुम परुव्वेयकार पवित्तिं ॥ १८॥ अपक्खवाएण (अपक्षपातेन) णिए परे य, जणमि वट्टिज्ज ठिई ठवितो। एवं च मज्झत्थगुणत्तणाओ, विस्संभणिज्जोऽसि तुमं जणाणं ॥ १९ ॥ निद्धं सुतारं सरलं सलोणं, पफुल्लनीलोप्पलकोमलं च । जणंमि पीयूसमितुम्मुयंतं, चक्खुप्पसन्नं सइ निक्खिवेज्जा ।। २० ॥ नीहारहारुज्जलसालिसीले, जणे गुणन्नम्मि रई करेजा । जओ जिओ तग्गुणखित्तचित्ते, ण रज्जए दोसविसे कहंपि ॥ २१ ॥ मुंचेज्ज मिच्छाभिनिवेसबुद्धिं, वई तहा दोसवई सहावि । कहं च पक्खं च विसुद्धमेव, करेज्ज सद्धम्मपरायणाणं ॥ २२ ॥ मा निष्फलारंभपरो भवेज्जा, पराभवट्ठाणकरो स जम्हा । सुदीहदंसित्तणो विहेज्ज, कज्जाइ पज्जंतसुहावहाई ॥ २३ ॥ जाणेज्ज सव्वत्थ तुमं विसेसं, गुणाण दोसाण य निव्विसेसं ।।
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