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(xv)
19-9-99
शुभाशंसा
"ओसवाल वंश का उद्भव और विकास प्रथम खण्ड मुझे भतीजे चंचलमल लोढ़ा ने दिखाया और मैंने उसे सरसरी निगाह से देखा। लेखक भतीज महावीरमल लोढ़ा का यह प्रयास प्रशंसनीय है। यूरोपीयन हिस्ट्री के लेखक हेज ने अपनी पुस्तक की भूमिका में कहा है- "Man without man's past is meaningless." ओसवंश का उद्भव व विकास कैसे हुआ, इस वंश की उत्पत्ति कहाँ से हुई, ओसवाल जाति में कौन-कौन सी जातियों के लोग, जैसे राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ इत्यादि समाविष्ट हुए हैं, जैन धर्म का किस प्रकार उन पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे उनको अहिंसा प्रधान जीवन जीने को उद्यत बना दिया, इन बातों पर लेखक ने अच्छा प्रकाश डाला है। जैन धर्म की मैं दो बड़ी देन मानता हूँ - एक तो शाकाहारी भोजन व दूसरा अहिंसा का सिद्धान्त, जिससे केवल भारतवासी ही नहीं, बल्कि समस्त संसार के लोग प्रभावित
हुए हैं।
चञ्चलमल व महावीरमल इस प्रयास के लिये बधाई के पात्र हैं और मैं उनके लिये अपनी शुभकामनाएँ व आशीर्वाद प्रेषित करता हूँ।
चापमललोटा
चाँदमल लोढ़ा मुख्य न्यायाधिपति
(सेवानिवृत्त) राजस्थान उच्च न्यायालय,
जोधपुर
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